एक मुसलमान सबेरे उठकर मस्जिद में बाँग दे रहा था- “अल्लाह, बिस्मिल्लाह, रसूलल्लाह……… ।” वह उस वक्त मन में सोच रहा था कि दस-बीस हजार रुपए होते तो लड़की का ब्याह हो जाता। मस्जिद के निकट से एक सिद्ध फकीर गुजर रहा था। उसने उस मौलवी को आवाज देकर कहा, “वहाँ क्या व्यर्थ चिल्ला रहा है? तेरा ख़ुदा यहाँ पड़ा है, उठा ले।“ वैसा उसने जमीन में पैर मारकर बताया। मौलवी उस फकीर पर अत्यंत नाराज हुआ और काजी से शिकायत की। फकीर का वह आचरण इस्लाम की तौहीनी साबित हुआ और उसे सजा दी गई। फकीर ने पूछा, “मेरा कसूर क्या है जो मुझे सजा दी जा रही है? इस मौलवी से ही पूछा जाए कि वहाँ बाँग देते वक्त क्या यह दस हजार रुपये का ख्याल नहीं कर रहा था? इसके मन की बात जानकर ही मैंने जमीन में पैर मारकर उसके खुदा को वहाँ बताया था। उस जगह को खोदकर देखा जाए, वहाँ दस हजार रुपये न पड़े हो तो मुझे चाहे जो सजा दी जाए।” जमीन खोदी गई तो सचमुच वहाँ दस हजार रुपये मिले।
कहने का मतलब यह कि जब हम भगवान की पूजा और ध्यान करते हैं तब भी मन से दुनिया का ही चिंतन करते हैं। अतः हमारा भगवान तो संसार हुआ, भगवान तो नहीं।