विनोबा के असली दाँत टूट चुके थे, नकली दाँत लगाए थे। वे रोज अपने हाथ से दाँतों को धोते थे। उसमें पंद्रह मिनट सहज ही लग जाते थे। एक बार जानकी देवी ने विनोबा से कहा “आपके पंद्रह मूल्यवान मिनट दाँत घोने में लगते हैं। यह ठीक नहीं है! किसी दूसरे को यह काम क्यों नहीं सौंप देते? नाहक का ‘वेस्ट ऑफ टाइम’ (समय का दुरुपयोग) होता है।”
विनोबा ने कहा – ‘हाथ-पैर से कोई काम करने में ‘वेस्ट ऑफ टाइम’ नहीं है। ‘वेस्ट ऑफ टाइम’ तो जिन क्षणों में हमारे मन में काम-क्रोध आदि विकार पैदा हो, उसमें है। उस वक्त समझ लो कि उतना समय व्यर्थ गया। बाकी शुद्ध मन से कोई भी काम करने में समय व्यर्थ नहीं जाता।”