एक बार आदिवासियों के एक गाँव में जाने का प्रसंग आया। मेरे लिए पास की एक झोंपड़ी में एक खाट डाल रखी थी। मैंने उसे देखकर पूछा – “यह जगह तुम्हें कैसे मिली?” उस भोले आदिवासी ने हकीकत कह दी, “मैं इसमें सुअर रखता हूँ। मेरे पास और जगह न थी, इसलिए आज आपके लिए इसे ही साफ कर दिया है।”
तो में शंकित हो उठा कि कहीं रात में कोई घुस आया तो मैंने पूछा “इसमें दरवाजा नहीं है?”
वह बोला- “इसमें दरवाजे की जरूरत नहीं है।”
“क्यों? क्या आस-पास कोई चोर नहीं है?”
वह बोला, “मैं इतना भाग्यवान कहाँ कि मेरे घर चोर आए! मेरे पास तो एक ही वस्तु है, और वह है गरीबी, जिसे कोई चुराने वाला नहीं।”
मैंने पूछा, “तो तुम्हें पुलिस फौज को ज़रूरत नहीं पड़ती होगी?”
उसने उत्तर दिया- “पुलिस और फौज को हमें क्या जरूरत?” “पुलिसवाला तुम्हारे यहाँ कभी नहीं आता?”
“आता है।”
“कब आता है?”
“आपकी घड़ी खो जाए तो उसे ढूँढने हमारे यहाँ आता है।”
“पुलिस और फ़ौज़ किसलिए ठीक है?”
वह बोला, “आपकी अमीरी और हमारी गरीबी को ज़िंदा रखने के लिए क्योंकि यह इन दोनों की रक्षा करती है।”