एक अवधूत महात्मा छह दिनों के भूखे थे श्मशान में पिंडदान के आटे को इकट्ठा करके उन्होंने चार टिक्कड़ बनाए थे और उन्हें चिता की आग पर रखा था। उनकी दशा देखकर पार्वती ने महादेव से कहा ‘आर्य, आप कैसे निष्ठुर है भला ! कहते हैं कि विश्व भर का मैं भरण-पोषण करता हूँ और आपके आश्रित, बेचारे इस फकीर की यह दशा है! क्या इसकी ओर आपकी निगाह कभी नहीं गई ! देखिए न, छह दिनों का भूखा वह महात्मा श्मशान में पिंडदान का आटा इकट्ठा करके उसे चिता की आग में पका रहा है!”
भगवान शंकर कहने लगे “पार्वती! ऐसे परम विरक्त महात्मा के लिए भी क्या कुछ कमी है? यदि वह चाहे तो ऋद्धि-सिद्धियाँ उसकी सेवा में भेज दी जाए, इहलोक-परलोक का कुल वैभव उस पर वार दिया जाए पर क्या कहे ऐसे अवधूत की, यह चाहता ही कुछ नहीं।”
पार्वती को जैसे विश्वास नहीं हुआ। बोली “आप भी अजीब-सी बात करते हैं। बेचारा
कुछ चाहता कैसे नहीं? भूख के मारे बेचैन है।”
भगवान ने कहा – “विश्वास नहीं तो जाकर आजमा लो। तुम भी तो सबकुछ दे ही सकती हो। यदि कुछ लेना चाहे तो जाकर दे दो।”
आजमाइश के लिए माता एक बुढ़िया बनकर भीक्षा माँगती हुई सामने पहुँची।
बोलीं “बेटा, सात दिनों की भूखी हूँ, कुछ खाने को दो।”
महात्मा ने सोचा कि यह बुढ़िया हमसे भी ज्यादा भूखी है, इसलिए पहले इसका पेट भरना चाहिए। उन्होंने अपने तीन टिक्कड़ दे डाले।
बोली – “बच्चे भी हैं, इतने से क्या होगा भला?”
महात्मा ने चौथा टिक्कड़ भी फेंक दिया, लो, ले जाओ’ और स्वयं अपनी मस्ती का
भजन गाता हुआ उधर से विमुख हो गया। वह बुढ़िया पार्वती के रूप में प्रकट हो गई।
बोली “बेटा! तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ, वर माँगो।”
अवधूत महात्मा ने कहा- “अभी तो तुम भिखारिन बनी थीं, अब देनेवाली बन गई। जा जा, मुझे कुछ नहीं चाहिए। तू क्या हमें देगी?”
माता जी बोली “बेटा, तुम्हें बिना कुछ दिए जी को संतोष नहीं होता। अवश्य ही कुछ माँगो।”
फकीर बोला “मुझे किसी चीज़ की जरूरत नहीं है, माँगूँ क्या? जा, तू उसे कुछ दे जिसे जरूरत हो।”
माता ने पुनः पुनः आग्रह किया “बेटा, तू जरूर कुछ माँग ले और मेरे हृदय का बोझ हल्का होने दे। तू जो चीज़ माँगेगा, अवश्य दूँगी।
पार्वती के बार-बार कहने से उकताकर फकीर ने कहा “जा, यदि देना ही है तो यही दे कि अभी तो कुछ दिन ही खाने को नहीं मिला है यदि छह महीने भी कुछ खाने को न मिले तब भी मेरी भक्ति में अंतर न पड़े।”
पार्वती ठिठक गई। महादेव भी वहाँ प्रकट हो गए और कहने लगे ‘यह जो माँग रहा है दे, दो न ! जो माँग रहा है, सो दे दो !! मैं कहता था कि विरक्तों की मौज निराली होती है, उसमें अक्ल मत लड़ाओ।” दोनों आपसे में बातें करते रहे और मस्त अवधूत बेपरवाही से श्मशान में घूमने चला गया।
ये महात्मा अवधूत शिरोमणि, परम विरक्त भर्तृहरि जी महाराज थे।