आजादी मिलने के बाद, कुछ कांग्रेस कार्यकर्ता दिल्ली नगर में बापू का सौंपा हुआ कोई काम कर रहे थे। उन दिनों सारे भारत में ही हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे के खून के प्यासे थे। एक दिन शाम को किसी कार्यकर्ता ने बापू को एक बड़ी दर्दनाक सूचना दी।
बापू बोले, “इस तरह इन घटनाओं का अन्त न होगा। अब मुझे उपवास रखना ही पड़ेगा।” और बापू ने उपवास व्रत ले लिया। इस पर दिल्ली के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बड़ी ही चिंता हुई।
अगले दिन शाम के वक्त जब वे बापू के पास पहुँचे, तो बापू बहुत खुश नजर आए। उन्होंने पूछा- “बापू, आज आप इतने खुश क्यों नजर आ रहे हैं?”
बापू बोले- “कल तक मैं केवल अन्याय की बातें सुनता था और सुनकर चुप हो जाता था। अब मुझमें अन्याय का विरोध करने की शक्ति आ गई है और मैंने अन्याय को दूर करने के लिए कमर कस ली है। मेरे लिए इससे अधिक खुशी की बात और क्या हो सकती है?”