Prerak Prasang

अनादर पर विजय

Goutam buddh hindi short story

एक बार बुद्धदेव अपने प्रिय शिष्य आनंद के साथ कुरु देश में गए। वहाँ की रानी बड़ी दुष्ट प्रकृति की थी। जब उसे पता चला कि बुद्धदेव उसके प्रदेश में आ रहे हैं तो नगरवासियों को आदेश दिया कि वे लोग उनका अनादर करें। फलतः नगर प्रवेश करते ही लोगों ने उन्हें चोर, मूर्ख, गधा आदि से संबोधन करना शुरू कर दिया, पर बुद्धदेव शांत ही रहे। आखिर उनके प्रिय शिष्य आनंद से न रहा गया। बोले “भन्ते! हमे यहाँ से चला जाना चाहिए।”

“कहाँ जाना चाहते हो?”

“किसी दूसरे नगर में, जहाँ कोई अपशब्द न कहे।”

“और वहाँ भी यदि कोई दुर्व्यवहार करे तो?” “किसी और स्थान को चले जाएँगे।’

“नहीं ! जहाँ दुर्व्यवहार हो रहा हो, उस स्थान को तब तक नहीं छोड़ना चाहिए जबतक वहाँ शांति स्थापित न हो जाए। क्या तुमने नहीं देखा कि मेरा व्यवहार संग्राम में बढ़े हाथी की तरह होता है। जिस प्रकार हाथी चारों ओर से लग रहे तीरों को सहता रहता है उसी तरह हमें दुष्ट पुरुषों के अपशब्दों को सहन करते रहना चाहिए। याद रखो आनंद ! मन को हमेशा अपने वश मे रखना चाहिए, कभी उत्तेजित नहीं होना चाहिए। धर्म के प्रचार में हमें लड़ाई के मैदान में खड़े हाथी की तरह अविचल रहना होगा।”

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