Prerak Prasang

भगवान गौतम बुद्ध

Goutam BUddh ki mili galiyon ki kahani

भगवान गौतम बुद्ध एक बार राजगृह के वेलुवन नामक स्थान में ठहरे हुए थे। एक दिन एक ब्राह्मण आकर उन्हें गालियाँ बकने लगा, क्योंकि उसका कोई संबंधी भिक्षु संघ में शामिल हो गया था। उसकी गालियाँ और फटकार सुनकर बुद्ध ने शांत भाव से पूछा – “ब्राह्मण, क्या तुम्हारे यहाँ कभी कोई अतिथि या बंधु- बान्धव आता है?”

“हाँ” ब्राह्मण ने कहा।

“तुम उसके लिए अच्छी-अच्छी भोजन सामग्रियाँ भी तैयार कराते हो?”

“हाँ। कराता हूँ।”

“अतिथि अगर उन चीजों का उपयोग नहीं करता, तब वे चीजें किसे मिलती हैं?”

“वे हमारी चीजें होती हैं, हमारे यहाँ ही रहती हैं।”

बुद्ध ने कहा – “भाई, मैं तुम्हारी गालियों और फटकारों का कोई उपयोग नहीं कर सकता, क्योंकि न में कभी गाली बकता ही हूँ और न किसीको फटकारता ही हूँ। फिर बताओ, ये गालियाँ किसे मिलेंगी? तुम्हीं को न? यह तो आदान-प्रदान की बात है, जो चीज तुम देते हो वह मैं लेता नहीं और न वह किसी को देता ही हूँ। स्वभावतः ही तुम्हारी दी हुई गालियाँ तुम्हें ही मिल रही हैं।”

Leave a Comment

You cannot copy content of this page