एक बार गौतम बुद्ध अपने सारथी के साथ चुपके से नगर भ्रमण के लिए निकले। रास्ते में उन्हें एक खाँसता हुआ आदमी दिखाई पड़ा। उन्होंने सारथी से पूछा इसे क्या हो गया है?”
सारथी बोला “यह रोगी आदमी है, इसे खाँसने की बीमारी हो गई है।”
सिद्धार्थ ने पुनः पूछा- “यह रोग क्या है? आदमी रोगी क्यों हो जाता है?” सारथी बोला “जब आदमी युवावस्था को पार कर जाता है तब वह क्षीणकाय हो जाता है। उसमें तरह-तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं।”
कुछ दूर चलने के बाद उन्हें एक झुका हुआ आदमी दिखाई पड़ा। उन्होंने सारथी से पूछा “यह आदमी झुककर क्यों चल रहा है?”
सारथी बोला जब आदमी वृद्धावस्था को प्राप्त होता हो जाता है तो उसका शरीर झुक जाता है। हाथ-पैर काम नहीं करते। उसे लाठी के सहारे चलना पड़ता है।”
कुछ और आगे चलने पर उन्होंने कुछ आदमी को खाट पर एक मृत व्यक्ति को ले जाते देखा। उन्होंने सारथी से पूछा “ये लोग इस सोए हुए आदमी को ऐसे क्यों ले जा रहे हैं?” सारथी बोला “यह मर गया है।”
सिद्धार्थ ने पूछा “ये मरना क्या बला है?”
सारथी बोला- “वृद्धावस्था के बाद आदमी मर जाता है। उसकी सारी शारीरिक क्रियाएँ स्तब्ध हो जाती हैं।”
मनुष्य की जरा, व्याधि और मृत्यु की अवस्था को देखकर उनका मन दुखी हो उठा। उन्होंने सोचा कि जब सबकुछ प्राप्त करने के बाद भी आदमी मर ही जाता है तो क्यों न उस परम सत्ता को प्राप्त किया जाए जिसे प्राप्त कर लेने के बाद कुछ पाना बाकी नहीं रह जाता। जरा-व्याधि-मृत्यु के उस पार जो अमृत का पथ है उसे ही क्यों न ढूँढा जाए। ऐसा सोच उन्होंने गृह-त्याग का संकल्प लिया।