श्रावस्ती में एक बार जब अकाल पड़ा, तो भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायियों से पूछा – “तुममें से कौन इन भूखों के भोजन की ज़िम्मेदारी उठा सकता है?” रत्नाकर शाह सिर मटकाकर- बोला, “इनके लिए तो मेरी संपत्ति से भी कहीं अधिक धन चाहिए।”
राजा के सेनापति ने कहा- “इनके लिए में अपनी जान तक दे सकता हूँ; पर मेरे पास इतना धन नहीं।” सैकड़ों बीघे भूमि के मालिक धर्मपाल निःश्वास भरते हुए बोले – “अनावृष्टि के कारण मेरी सारी खेती सूख गई है। राजा का कर कैसे चुकाऊँगा, यही नहीं सूझ रहा।” अंत में एक भिखारी की लड़की सुप्रिया ने उठकर सभीका अभिवादन किया और संकोच के साथ बोली – “मैं दूँगी भूखों को भोजन।”
सभी आश्वर्यचकित हो एक साथ बोल उठे, “किस प्रकार? प्रतिज्ञापालन का यह कर्तव्य तू किस प्रकार पूरा करेगी?” सुप्रिया ने उत्तर दिया- “मैं सभी से गरीब हूँ- यही मेरी शक्ति है। मेरी शक्ति और भंडार आप सबके घरों में है।”