नीचे वेगवती और निर्मल यमुना बह रही थी ऊपर से चट्टानी तट उसपर झुका हुआ था। चारों ओर वन- निविड़, निर्झर – विदीर्ण पर्वत घिरे थे। गुरु गोविंदसिंह चट्टान पर बैठे, धर्मग्रंथों के स्वाध्याय में लीन थे। तभी अपने ऐश्वर्य का अभिमानी शिष्य रघुनाथ आया और प्रणाम करके बोला – “एक तुच्छ भेंट सेवा में लाया हूँ।”
और उसने सोने के दो हीरे जड़े कड़े गुरु के समक्ष रख दिए। गुरु ने एक को उठाया और उँगली के चौगिर्द चक्र की भाँति घुमाया। हीरे किरणें बिखेरने लगे। तभी कड़ा उँगली पर से उछला और चट्टान पर से लुढ़कता हुआ नदी में गिर पड़ा।
“हाय ! कहता हुआ रघुनाथ नदी में कूद पड़ा और कड़े को खोजने लगा। गुरु पुनः स्वाध्याय में तन्मय हो गए।
दिन छिपे रघुनाथ पानी से निकला और हाँफता हुआ बोला- “अगर आप बता दें कि कड़ा कहाँ गिरा है, तो अब भी मैं उसे खोज लाऊँगा।” गुरु ने दूसरा कड़ा उठाया और उसे पानी में फेंककर कहा – “ठीक वहाँ।”