पंजाब की भूदान – यात्रा। रास्ते में ही साथ हुए किसी पंजाबी भाई का हाथ पकड़कर विनोबा चलने लगे। उस भाई के हाथ में सोने की अँगूठी थी। कांचनमुक्ति के प्रयोगकर्ता ने उस भाई से कहा – “आपकी यह अँगूठी मुझे चुभती है।” उस भाई ने अँगूठी निकालकर जेब में रख ली। यह देखकर विनोबा ने पूछा “जेब में क्यों रख ली?”
साथ चलनेवाले दूसरे भाई ने उस पंजाबी के कान में फुसफुसाया
“अरे, तू समझ नहीं रहा यह तो इशारा है। अँगूठी विनोबा को दे देनी चाहिए। तुरंत ही उसने जेब से अँगूठी निकालकर विनोबा को दे दी।
“इसको मैं फेंक हूँ?” विनोबा ने पूछा। “जैसी आपकी मर्जी।” उसने कहा।
विनोबा ने अँगूठी दूर फेंक दी और फिर उसका हाथ पकड़कर कहने लगे “आपने त्याग किया, इसलिए अब आपका हाथ पकड़ने लायक हुआ।”
उस भाई का नाम शेरसिंह था। बाबा ने कहा “अब तुम सच्चे शेर बने, नहीं तो बकरी
या बिल्ली थे।”
विनोबा की दृष्टि से गहने बेड़ियाँ थे। वे कहते थे – “जमीन के नीचे का सोना
निकाल – निकालकर शरीर पर चढ़ाने से क्या मिलता है, यह मेरी समझ में नहीं आता। मिट्टी को मिट्टी में ही रहने देते। यदि भगवान की ऐसी इच्छा होती कि हम शरीर में छेद करके गहने पहनें तो वह तो सर्वसमर्थ है। वह हमें वहीं से नाक-कान छेदकर भेजता। परंतु उसकी इच्छा स्पष्ट है। फिर हम क्यों नाहक की गुलामी को आमंत्रित करे?”