Prerak Prasang

ज्ञानी और अज्ञानी मैं फर्क

GYANI AUR AGYANI KI HINDI SHORT STORY

एक राजा था। उसने अपने गुरु महाराज को राजसी ठाट-बाट के साथ आलीशान बंगले में ठहराया था। गुरु महाराज की राजा से भी बड़ी मान-प्रतिष्ठा थी, चूँकि वे राजा के गुरु थे। एक दिन राजा के मन में ख्याल आया कि गुरु महाराज भी तो मेरी ही तरह रहते हैं, वैसा ही खाते-पीते और सोते हैं। फिर उनमें और मुझमें फर्क कैसा है!

एक दिन राजा ने अपने इस ख्याल को गुरु महाराज के सामने प्रकट कर दिया। बोला, “महाराज, आपमें और मुझमें फर्क क्या है?” महाराज ने तुरंत कुछ उत्तर नहीं दिया। बोले, “तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान बाद में कर दूँगा।”

एक दिन राजा गुरु महाराज के साथ घूमता-टहलता दूर जंगल की ओर निकल गया। उसका नगर बहुत पीछे छूट गया। वह लौट जाना चाहता था किंतु गुरु महाराज आगे बढ़ते ही जा रहे थे। उपदेश और बातचीत में डूबे हुए उनको इसका अहसास ही नहीं था कि उन्हें पीछे भी लौटना है। इधर राजा बेचैन होता गया। आखिर उसे कहना ही पड़ा, “महाराज, हम दोनों नगर से काफी टूर बढ़ आए हैं, अब तो लौटना चाहिए। महात्मा बोले, ‘क्या जरूरत है लौटने की? चलो आज सैर करने निकल चलते हैं। घूमते-घामते कुछ महीने बाद लौटेंगे।” इधर राजा के सिर पर तो दुनिया भर की जिम्मेवारियाँ थीं राजकाज का बड़ा बंधन वह उनकी उपेक्षा करके कैसे जा सकता था! उधर महात्मा लौटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। तंग आकर राजा को कहना पड़ा, “मुझे आगे नहीं जाना, मैं तो अब लौट रहा हूँ। यदि आप जाना चाहें तो जा सकते हैं।” महात्मा बोले, “तुमने एक दिन मुझसे कुछ जिझासा की थी। उसका जवाब आज तुम्हें बताए देता हूँ! तुममें और मुझमें यही अंतर है कि मैं तमाम चीजों को तुम्हारी ही तरह भोगता हुआ भी मिनट भर में उन्हें छोड़ सकता हूँ। किंतु तुम उन्हें छोड़ नहीं सकते।” इतना कहकर महात्मा राजा को छोड़कर आगे बढ़ गए। इस तरह ज्ञानी और अज्ञानी दोनों ही संसार में रहते हैं किंतु फर्क यह होता है कि एक यहाँ रहते हुए भी यहीं के हो जाते हैं और दूसरे यहाँ रहकर भी संसार से निर्लिप्त बने रहते हैं।

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