Prerak Prasang

ईसा मसीह और जेकस

Isa maseeh aur jaikas hindi short story

जेकस जितना धनी था, उतना ही अनाचारी भी था। जब वह टैक्स वसूली के लिए निकलता, तो नगर निवासी उसकी अमानुषिक यातनाओं के भय से जंगलों में जा छिपते। उसके स्वामित्व में कई शराबखाने भी थे, जहाँ रात-दिन दुराचार के दावानल सुलगते रहते।

एक दिन ईसा उस नगर में आए। अपार भीड़ उनके दर्शन को उमड़ पड़ी। कौतूहलवश जेकस भी एक पेड़ पर चढ़कर ईसा के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा। किंतु जब स्वयं ईसा ने उसे यों संबोधित किया, तो वह आश्चर्य स्तब्ध रह गया- “जैकस, जल्दी पेड़ से नीचे उतरो। में आज तुम्हारा ही अतिथि बनूँगा।”

ईसा को एक पापी के साथ इस प्रकार स्नेह-भाव से जाते देख दर्शकों का रोष उबल पड़ा। वे स्वयं ईसा की भी निंदा करने लगे। किंतु वीतराग ईसा को निंदा-स्तुति से क्या सरोकार ! वे जेकस के घर गए और उनके अतिथि बने। अंतर्यामी दाता की अशेष

करुणा का स्नेहिल स्पर्श पाकर जेकस का हृदय हिम-पाषाण की भाँति पिघल गया। जड़ तर्क जिसे वर्षों से नहीं कर पा रहा था, उसे प्रेम ने एक क्षण में चरितार्थ कर दिया। अभ्यर्थना-सत्कार के बाद आत्म-स्फूर्त जेकस ने गद्गद कंठ से कहा – “प्रभो, अपनी आधी सम्पत्ति में दरिद्रनारायण को अर्पण करता हूँ और जिनसे मैंने अनुचित धन प्राप्त किया है उन्हें चौगुना वापस करने का वचन देता हूँ।”

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