Prerak Prasang

खरे-खोटे की पहचान

khari khoti kii pahchan

एक आदमी शिष्य बनने के ख्याल से संत एकनाथ जी के पास आ रहा था। उसने एकनाथ जी को पहले देखा नहीं था, सिर्फ उनकी महिमा सुनी थी। वह उनके आश्रम का पता पूछता हुआ उधर को जा रहा था कि रास्ते में उसे एक बूढ़ा आदमी घास काटता हुआ मिला। उसने पूछा – “क्या आप संत एकनाथ जी को जानते हैं?” बूढ़े ने जवाब दिया “वह तो ढोंगी और महाधूर्त है। उस चोर के पास तुम क्यों जाना चाहते हो?” अपनी छड़ी से उस आदमी ने बूढ़े के सिर पर प्रहार करते हुए कहा “बड़ा बदतमीज है तू जो उतने बड़े संत को ऐसा अपशब्द बोलता है।”

वह आदमी एकनाथ जी के आश्रम जा पहुँचा। गुरुदेव से मिलने की बात कहीं। शिष्यों ने बताया कि वे अब आते ही होंगे गायों के लिए घास लेने खेतों की ओर गए हैं। कुछ ही देर मे काँख में घास दबाए हुए वही बूढ़े आदमी चले आ रहे थे। सभी चेले दौड़कर पाँवों में गिरकर प्रणाम करने लगे। उस आदमी को समझते देर नहीं लगी कि वही थे संत एकनाथ जी महाराज। अब तो बेचारे को काटो तो देह में खून नहीं। वह रोता हुआ उनके चरणों में जा गिरा। बाबा बोले “दो पाई की हँड़िया खरीदते हो तो उसे ठोक-ठाक बजाकर देख लेते हो कि वह खरा है या नहीं। इधर जीवन भर के लिए गुरु-शिष्य का रिश्ता करने चले हो अब ठोककर देख तो लिया कि मैं खरा हूँ या खोटा।”

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