Prerak Prasang

माघ कवि

mahakavi magh hindi short story

संस्कृत के महाकवि माघ एक दिन घर बैठे अपने काव्य का नवम सर्ग लिख रहे थे, तभी अवंतिका से एक दरिद्र ब्राह्मण ने आकर अपनी कन्या के विवाह के लिए उनसे आर्थिक सहायता की याचना की। कविवर स्वयं आर्थिक कष्ट में थे। फिर भी उन्होंने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई। घर में भी कोई मूल्यवान वस्तु शेष नहीं थी। एक खाट पर उनकी पत्नी पड़ी सो रही थी। उसके हाथ में स्वर्णकंकण थे। माघ ने चुपचाप उसके एक हाथ का आभूषण निकाल लिया और चलने ही वाले थे कि इतने में स्त्री की आँख  खुल गई। उसे नारी स्थिति समझते देर नहीं लगी और उसने दूसरे हाथ का कंगन भी निकालकर देते हुए अपने पति से कहा- “स्वामी, निर्धन ब्राह्मण का काम एक से नहीं चलेगा, इसलिए इसे भी सहर्ष दे दीजिए।”

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