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महाप्रभु चैतन्य की इच्छा

mahaprabhu chitnya ki iccha hindi short story

आरती की पावन बेला थी। रव और शंखनाद से भगवान जगन्नाथ का मंदिर गुंजरित था। नित्य की भाँति महाप्रभु चैतन्य गरुड़ स्तंभ के समीप खड़े थे।

भक्त जनों की भीड़ घने वन जैसी निविड़ थी। एक उड़िया स्त्री बहुत उचकने के बाद भी भगवान का दर्शन नहीं पा सकी, तो गरुड़-स्तंभ पर चढ़ गई और महाप्रभु के कंधे पर पैर टिकाकर आरती देखने लगी।

महाप्रभु के शिष्य गोविंद यह देख उस स्त्री को डाँटने लगे। किंतु महाप्रभु ने उन्हें रोकते हुए कहा- “डाँटो मत आदिवश्य! करने दो इसे जी भरकर भगवान का दर्शन।”

परंतु वह उड़िया स्त्री हड़बड़ाकर नीचे उतर गई और महाप्रभु के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगी। तब महाप्रभु बोले – “दर्शन की जो प्यास भगवान ने इस माता को दी है. काश वह मुझे भी दी होती! यह दर्शन में इस भाँति तन्मय थी कि इसे भान ही नहीं हुआ पैर मेरे कंधे पर है।

“धन्य है यह ! मुझे तो इसकी चरण-वन्दना करनी चाहिए, ताकि मुझमें भी ऐसा उत्कट भक्ति भाव जागे।”

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