सूर्य भगवान को अर्घ्य चढ़ाने के लिए अंजलि में जल लिए वैवस्वत मनु मंत्र जप कर रहे थे कि उन्हें अपनी हथेलियों में हल-चल-सी अनुभव हुई। आँख खोलकर देखा, तो एक नन्हा सा मीन- शिशु अंजलि में तैर रहा था। मनु उसे फेंक दें, इससे पूर्व ही उसने उनसे कहा – “मेरी रक्षा कीजिए, बड़ा होकर मैं कभी आपके काम आऊँगा।” करुणालु मनु ने जल-भरे कसोरे में उसे रख दिया। मीन- शिशु बढ़ने लगा। मनु उसे कसोरे से कुंड, कूप और सरोवर में स्थानांतरित करते गए और जब वह महामत्स्य बन गया, तो उसे सागर में छोड़ दिया। फिर एक दिन महाप्रलय हुई। सागर धरती को लीलने लगा। तब वह महामत्स्य मनु के पास आया और उन्हें नौका में बैठाकर सुरक्षित स्थान पर ले गया।
हमारी चित्तांजलि में भी कल्पना रूपी मीन- शिशु प्रायः आते रहते हैं, और हम उन्हें फेंक देते हैं। यदि हम उन्हें पालें-पोसें, बड़ा करें, तो वे आगे चलकर हमारा और दूसरों का उपकार कर सकते हैं।