Prerak Prasang

बापू का क्रोध

Mahatma_gandhi iji ka krodh Hindi Short story

एक बार एक अमेरिकन स्त्री ने बापू से पूछा – “आपको क्रोध प्राता है या नहीं?”

बापू ने हँसकर जवाब दिया- “बा से पूछो।”

बा को बापू के क्रोध का कैसा अनुभव था, वह इस घटना में पढ़िए :

बापू भिवानी गए थे। साथ में बा भी थीं। बापू का बड़ा भारी स्वागत हुआ। हॉल में बापू बैठे थे और दर्शकों से हॉल भरा हुआ था; पर बा नहीं थीं। पंडित नेकीराम शर्मा बा को खोजने लगे, तो वे एक सूने कमरे में खिड़की के पास बाहर की ओर मुँह करके चुप- चाप खड़ी मिलीं।

पंडित नेकीराम ने पूछा – “आप यहाँ क्यों खड़ी हैं?”

बा ने उदास भाव से कहा – “बापू की खड़ाऊँ कहीं खो गई हैं।”

पंडितजी ने कहा – “खड़ाऊँ की यहाँ क्या कमी है? अभी नई मँगवा देता हूँ।”

बा ने कहा- “वे अपनी खड़ाऊँ पहचानते हैं।”

नहाने का समय आया। बापू ने स्नान किया तो उनके सामने एक जोड़ी नई खड़ाऊँ रखी गईं। उन्हें देखकर उन्होंने कहा – “ये तो मेरी खड़ाऊँ नहीं हैं।”

डरी हुई बा ने आगे आकर कहा – “वे तो रेल में कहीं छूट गई।”

बापू ने कहा – “तुम्हारे साथ रहकर जो क्रोध को जीत सकता है, वह संसार को जीत सकता है।”

और वे खड़ाऊँ पहने बिना ही अपने काम के कमरे में चले गए।

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