एक दिन गुरुदेव प्रातः टहलने निकल पड़े। साथ में उनका प्रिय शिष्य अभय भी चल दिया। मार्ग में यत्र-तत्र काँटे व कंकड़ पड़े थे; किंतु दोनों निश्चिन्त भाव से नंगे पाँव चले जा रहे थे। गुरुदेव जब कुछ परिश्रांत हुए तो एक ऊँचे टीले पर चढ़े और प्रसन्नचित्त बैठ गए। अभय ने उनसे कहा – “आज मुझे नींद नहीं आई। मैं बहुत दुखी हूँ, कुछ भी तो समझ में नहीं आता कि क्या करूँ।”
गुरुदेव ने प्रश्न किया- “तुम्हारे दुख का क्या कारण है?” शिष्य ने व्याकुल होकर निवेदन किया- “गुरुदेव, जब एक समय ऐसा आएगा कि सभी आत्माओं को इस जीवन मरण से छुटकारा मिल जाएगा, तब क्या होगा?”
प्रश्न सुनकर गुरुदेव कुछ गंभीर हो गए, बोले, “वत्स, तुम्हारा प्रश्न भविष्य से संबंध रखता है; और भविष्य अनादि है, अक्षय है। वह रहस्यपूर्ण है। यह संसार बड़ा विशाल है। इसकी गति का कोष पार है। इसका न आदि है न अंत। यह पूर्ण है।
परिवर्तन ही इसका प्रमुख गुण है। इस संभावना में भ्रम है, अज्ञान है। एक दिन ऐसा अवश्य आएगा। संतोष ही हमारे मन का बल है, मूल आश्रय है, जो हमारी इंद्रियों को पूर्ण रक्षा करता है। हम वर्तमान में संतोष प्राप्त करें। बाकी सब कुछ तो रहस्य है।”