कविश्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर सांप्रदायिक एकता के कट्टर समर्थक कलकत्ते थे। परंतु दुर्भाग्यवश जिन दिनों साम्प्रदायिक तनातनी फैली हुई थी, उन्हीं दिनों ‘रक्षा बंधन’ का पर्व आ गया। वे साथियों के साथ गंगा स्नान करने गए। लौटते समय सबको राखी बाँधते हुए आने लगे। रास्ते में कुछ मुसलमान सईसों (सदाचारी, शिष्टाचारी, नेक अतवार) को देखा। वे उनके निकट गए और राखी बाँधी। अपने साथियों की कल्पना के विपरीत सारे सईस बिगड़ने के बजाय कवि से गले मिले। उसके बाद रवि बाबू ने चितपुर की बड़ी मस्जिद में जाकर मौलवियों को राखी बाँधने की इच्छा प्रकट की। लोगों को अब दंगा होने में कोई संदेह नहीं रहा। उनके अनेक साथी इधर-उधर खिसक गए। परंतु कवि ने सभी मौलवियों को राखी बाँधी और मौलवियों ने उनके पैर छुए।