Prerak Prasang

जगत् को अंदर से छोड़कर पकड़े रहो !

Sadhu ki short story

किसी राज्य का राजा मर गया था। उसकी गद्दी के लिए लोगों के बीच झगड़ा मचा हुआ था। कोई एक को राजा बनाना चाहता या तो कोई दूसरे को। अंत में कुछ समझदार लोगों के कहने पर निश्चय हुआ कि राजमहल के फाटक के भीतर कल सुबह जो आदमी सबसे पहले प्रवेश करेगा वही राजा बना दिया जाएगा। एक साधु राजमहल के बाहर एक पेड़ की छाया तले पड़ा हुआ था। जब रात में बारिश होने लगी तो अपने को वर्षा से बचाने के लिए वह राजभवन के छज्जे के नीचे छिप गया। सुबह संतरी ने जब दरवाजा खोला तो सबसे पहले गेट पर बाबा ही दिखाई दिया। तुरंत घोषणा कर दी गई कि भावी राजा मिल गया। फिर तो बाबा को बड़े सम्मान के साथ भीतर राजमहल में ले जाया गया और उसके अभिषेक की तैयारी होने लगी।

इधर बाबा हैरत में था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है। जब उसे राज मालूम हुआ तो उसने राजसी ठाट-बाट पहनने के पहले अपनी लंगोटी और अलफी की पोटली बना डाली और मंत्री को आदेश दिया कि इसे राज खजाने में सुरक्षित रख दिया जाए। ऐसा ही हुआ।

बाबा को राज्य करते कुछ ही दिन बीते थे कि पड़ोसी देश के राजा ने बाबा के राज्य को कमजोर समझकर उसपर हमला बोल दिया। बात यह हुई कि बाबा के गद्दी पर बैठते ही राज्य में धीरे-धीरे अनाचार फैलता गया। कोई भी अपराधी बाबा के सामने पेश होते ही दंडमुक्त कर दिया जाता था। फलतः जिसके जी में जो आए करता चला गया। स्वयं बाबा भी राज-काज में मन न देकर भजन-कीर्तन और ध्यान में ही समय बिताने लगा। इस माहौल में राज्य-व्यवस्था का कमजोर पड़ जाना स्वाभाविक था।

पड़ोसी देश की सेना धड़ल्ले के साथ राजमहल में घुस गई। इधर बाबा इस चढ़ाई से बेखबर बना हुआ-सा अपने ध्यान-पूजन में लगा हुआ था। राज्य के सेनापति, वजीर आदि ने बाबा के पास पहुँचकर कुछ करने के लिए आदेश माँगा। बोले, ‘हुजूर, हम पड़ोसी देश की फौज से घिर गए हैं।’ बाबा बोला, ‘आने दो। हमारी फौज को उससे लड़ने की क्या जरूरत है। किसी से लड़ाई-झगड़ा करना ठीक नहीं होता। इसी बीच दुश्मन की फौज दरवाजा तोड़कर भीतर आ गई और समाधि में बैठे हुए बाबा को गिरफ्तार करनी चाही। सेनापति बाबा से बोला “हम तुम्हें गिरफ्तार करते हैं, तुम आज से राजा नहीं, हमारे कैदी हो।” बाबा ने पूछा, “तुम यहाँ आए किसलिए हो?” बोला, “तुमको कैद करना है तुम्हारा यह राज्य अब हमारा है।” बाबा बोला, “वजीर को बुलाओ।” वजीर आया। बाबा ने उससे खजाने में रखी हुई अपनी पोटली माँगी। बाबा को पोटली दे दी गई। बाबा ने झट् उसे खोलकर अपनी लंगोटी और अलफी पहन ली और बेलौसपने के साथ कहा, “अब संभालो अपना राज्य इतने दिन हम राजा रहे, कुछ दिन तुम भी रह लो।” यह कहकर बाबा जंगल की ओर चल पड़ा। विरोधी राजा ने बाबा की इस निर्लिप्तता से प्रभावित होकर कहा, “बाबा, हमसे गलती हो गई। हम यह राज्य फिर आप ही को दे देते हैं। कृपया आप जंगल न जाए।” बाबा बोला, “तेरे जैसे इस दुनिया में पचासों राजा हो गए। उन सबों ने कुछ-कुछ दिन राज्य किए। थोड़े दिन मैंने भी किया। अब तेरा मन ललचाया है तो तू भी गद्दी संभाल लें। लड़ाई करने की क्या जरूरत?” इतना कहकर बाबा जंगल की ओर बढ़ चला।

जिन्होंने संसार की वास्तविकता को समझा है उनका मन तो ऐसा होता है। बाबा को न राज्य पाने का हर्ष हुआ और न खोने का शोक। इसी प्रकार सुखी जीवन तो तभी होगा जब चित्त हर्ष-शोक से खाली होगा।

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