Prerak Prasang

अपने स्वभाव के धर्म का पालन

Sant eknath maharaj ki kahani

एक बार संत एकनाथ जी गोदावरी में स्नान कर रहे थे। इतने में उन्होंने देखा कि सामने से एक बिच्छू पानी में बहा जा रहा था। उनको उस पर दया आ गईं। उन्होंने उसे अपने हाथ से पकड़कर पानी से बाहर कर दिया। परंतु बिच्छू तो बिच्छू ही ठहरा। उसने उनकी हथेली पर डंक मार दिया। एकनाथ जी उस ओर ध्यान न देकरर पुनः स्नान करने लगे। इतने में लहरों का एक झोंका आया और बिच्छू फिर पानी में बहने लगा। बिच्छू को पानी में दुबारा बहता देखकर एकनाथ जी ने फिर से उसकी रक्षा की। परंतु इस बार भी बिच्छू डंक मारने से नहीं चूका। एकनाथ जी चुपचाप हाथ मलने लगे। लहर का झोंका तीसरी बार आया और बिच्छू को बहा ले गया। एकनाथ जी ने तिबारे उसकी रक्षा की और तीसरे डंक को भी सहा।

समीप ही एक व्यक्ति स्नान कर रहा था। उसने यह सब देखा तो एकनाथजी से पूछा,

“महाराज! मैं कब से देख रहा हूँ कि यह बिच्छू बार-बार आपको डंक मार रहा है और तब भी आप उसकी रक्षा किए जा रहे हैं। क्या ऐसे विषैले जीव पर दया करना उचित है?”

एकनाथ जी ने जवाब दिया, ‘बंधु ! इसमें अनुचित क्या है? मैं अपने स्वभाव के धर्म

का पालन कर रहा हूँ और वह अपने। किसी जीव की रक्षा करना हमारा फर्ज बनता है। भगवान ने उसका स्वभाव ही ऐसा बनाया है कि वह हर किसी को डंक मारता है। फिर जब वह अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकता तब मैं अपने स्वभाव से कैसे विमुख हो सकता हूँ?”

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