पिछली सदी के विख्यात लेखक तथा पत्रकार श्री सखाराम देउस्कर एक बार अपने दो मित्रों के साथ स्वामी विवेकानंदजी से मिलने गए। बातचीत के दौरान स्वामीजी को पता चला कि उनमें से एक सज्जन पंजाब के निवासी हैं। उन दिनों पंजाब में अकाल पड़ा हुआ था। स्वामीजी ने अकाल पीड़ितों के विषय में चिंता प्रकट की और पीड़ितों के लिए क्या-क्या राहत कार्य किए जा रहे है, उस बारे में पूछताछ की। तदनन्तर वे शिक्षा तथा नैतिक एवं सामाजिक उन्नति के बारे में बातें करते रहे। स्वामीजी से विदा लेते समय उस पंजाबी गृहस्थ ने विनयपूर्वक कहा – “महाराज, में तो आपके पास इस आशा से आया था कि धर्म के विषय में उत्कृष्ट उपदेश सुनने को मिलेगा; परंतु आप तो सामान्य विषयों की ही चर्चा करते रहे और आपके पास से कुछ भी ज्ञान नहीं मिला।”
स्वामीजी क्षण-भर चुप रहे, फिर बड़े गंभीर स्वर में बोले- “भाई, जब तक मेरे देश में एक भी छोटा बच्चा भूखा है, तब तक उसे मिलाना, उसे संभालना, यही सच्चा धर्म है। इसके सिवा जो कुछ है, यह झूठा धर्म है। जिनका पेट खाली हो, उनके सामने धर्म का उपदेश करना निरा दंभ है। पहले उन्हें रोटी का टुकड़ा देने का प्रयत्न करना चाहिए।”