एक यवन राजा, स्वामी रामानंद के पास कई दिन आता रहा- वह बड़ी उलझन में था कि प्रायश्चित्त से मनः शुद्धि कैसे हो जाती है! स्वामीजी एक दिन उसे नदी के किनारे ले गए, जिसका पानी सड़ गया था। राजा को पानी दिखाते हुए स्वामीजी बोले- “राजन् जानते हो यह पानी क्यों सड़ गया?” राजा ने उत्तर दिया – “इसे कौन नहीं जानता गुरुदेव कि प्रवाह रुकने से पानी सड़ जाता है।”
स्वामीजी ने स्पष्टीकरण किया, “तो इतना भी जानो राजन् कि पाप से जब हमारे प्रवाह रुक जाते हैं तो प्रायश्चित्त वर्षा की बाढ़ बनकर उन्हें गति देता है।”