घटना 30 मार्च सन् 1916 की है। स्वामीजी महाराज महात्मा गांधी द्वारा प्रवर्तित रोल्ट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन का दिल्ली में नेतृत्व कर रहे थे। 30 मार्च को दिल्ली में पूर्ण हड़ताल थी। दिल्ली नगर का एक चक्कर लगाकर वे मध्याह्न 12 बजे अपने निवास स्थान पर पहुँचे ही थे कि स्टेशन पर गोली चलने का समाचार प्राप्त हुआ। वे तुरंत स्टेशन पहुँचे और वहाँ एकत्र तीन-चार सहस्र लोगों को कंपनी बाग में सभा स्थल पर ले गए। सभा में लगभग 25 सहस्र की उपस्थिति थी। आप व्याख्यान दे रहे थे कि चाँदनी चौक के घण्टाघर पर भी गोली चलने और दस- बारह व्यक्तियों के घायल होने का समाचार मिला। उत्तेजित जनता को आपने किसी प्रकार शांत रखा। मिलिटरी ने आकर एक बार सारी सभा को घेर लिया। फिर चीफ कमिश्नर भी कुछ घुड़सवारों के साथ आए मशीनगनें भी लाकर लगा दी गई। स्वामीजी ने चीफ कमिश्नर से स्पष्ट कह दिया कि यदि आपके आदमियों ने लोगों को उत्तेजित किया तो मैं शान्ति-रक्षा का जिम्मेदार नहीं हूँ अन्यथा शान्ति भंग न होने देने का सब उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है।
सभा से लौटते हुए भयानक उत्तेजना के रोमांचकारी क्षणों में भी जिस प्रकार आपने जनता को शांत वह आपका ही काम था। चालीस सहस्र का जनममूह आपके पीछे आ रहा था। घण्टाघर पर गुरखे सिपाही मार्ग से हटकर एक और पंक्ति बाँधकर खड़े हो गए। लोगों ने समझा कि हमारे लिए रास्ता छोड़ा गया। पतु वहाँ पहुँचते ही गोली चलाई गई। लोगों में बड़ी बेचैनी और खलबली मच गई। जनता से वही शांत खड़े रहने का आदेश देकर स्वामीजी शांत जनता पर गोली दागने का कारण जानने के लिए आगे बढ़े।
तुरंत दो किरचें आपकी छाती पर बड़े घमण्ड में और घृष्टता के साथ यह कहते हुए तान दी गई कि “तुमको छेद देंगे।” एक हाथ से उत्तेजित जनता को शांत करते हुए और दूसरे से अपनी छाती की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा – “ मैं खड़ा हूँ, गोली मारो।”
ऐसी कठिनतर स्थिति में भी उनका साहस अडिग बना रहा।