इस जगत् में अगर मैं किसी से प्यार करता हूँ, तो वह है मेरी माँ। मेरी माँ जिसने अपनी तमाम सांसारिक यंत्रणाओं के बीच भी मेरे प्रति स्नेहमयी – ममतामयी बनी रहकर मुझे संपूर्ण मानव- जाति को प्यार करना सिखाया।
उसका सारा जीवन कष्टमय रहा है। मेरा मंझला भाई भी जब से घर छोड़कर निकला है, माँ का हृदय विदीर्ण हो गया है। मेरा सबसे छोटा भाई इस योग्य नहीं दिखता कि वह घर चलाने लायक कुछ संतोषजनक उपार्जन कर सके। और अपने सबसे प्यारे बेटे को, जिसे वह अपना एकमात्र भरोसा समझती थी, ईश्वर और मानव जाति की सेवा में अर्पित कर दिया।
मैंने अपनी माँ का समुचित ध्यान नहीं रखा। अब मेरी एक ही अंतिम इच्छा है कि मैं शेष समय माँ के साथ रहकर उसकी सेवा- सुश्रूषा में लगाऊँ। इससे निश्चय ही मेरे और माँ के अंतिम दिन सहजता में बीतेंगे।
श्री शंकराचार्य को भी ठीक यही करना पड़ा था। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे माँ के पास लौट गए थे। मैं भी जीवन के शेष दिन माँ के साथ उसकी सेवा में गुजारना चाहता हूँ।