Prerak Prasang

स्वामी विवेकानंद जी के विचार

swami viveknand jee ke vichar hindi shrt story

सन् 1896 में कलकत्ते में भयंकर प्लेग फैला हुआ था। शायद हो कोई ऐसा घर बचा था जिसमें रोग का प्रवेश न हुआ हो। स्वामी विवेकानंद, उनके कई शिष्य तथा गुरुभाई स्वयं रोगियों की सेवा-सुश्रूषा करते रहे, स्वयं अपने हाथों से नगर की गलियाँ और बाजार साफ करते रहे। तभी कुछ पंडितों की मंडली स्वामीजी से मिली।

पंडितों ने उनसे कहा – “स्वामीजी, आप यह कार्य ठीक नहीं कर रहे हैं। पाप बहुत बढ़ गया है, इसलिए इस महामारी के रूप में भगवान लोगों को दंड दे रहे हैं। आप लोगों को बचाने का यत्न कर रहे हैं ! ऐसा करके आप भगवान के कार्यों में बाधा डाल रहे हैं।”

स्वामीजी ने उत्तर दिया- “पंडितगण, मनुष्य तो अपने कर्मों के कारण कष्ट पाता ही है; लेकिन उसे कष्ट से मुक्त करने वाला अपने पुण्य को पुष्ट करता है। जिस प्रकार उनके भाग्य में दुख पाना, कष्ट पाना बदा है, उसी प्रकार इन कार्यकर्ताओं के भाग्य में रोगियों का कष्ट दूर करके पुण्य अर्जित करना बदा है।”

Leave a Comment

You cannot copy content of this page