Prerak Prasang

स्वामी विवेकानंदजी का क्रोध

swami viveknand jee ke vichar hindi shrt story

पूर्वी बंगाल के कुछ जिलों में दुर्भिक्ष पड़ा था। स्वामी विवेकानंद पीड़ितों के लिए अन्न-धन एकत्र कर रहे थे। जब वे ढाका में थे, तब उनसे कुछ वेदांती पंडित शास्त्रार्थ करने आए। स्वामीजी ने उन्हें बड़े आदर से बैठाया ओर अकाल की चर्चा करते हुए कहा- “जब मैं अकाल से लोगों को मरते हुए सुनता हूँ, तो मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं। क्या इच्छा है प्रभु की !”

यह सुन सभी पंडित मौन रहे और एक-दूसरे से नजर मिला मंद-मंद मुस्कराने लगे। उनकी इस विचित्र प्रतिक्रिया को देखकर स्वामीजी स्तब्ध रह गए। कुछ देर मौन रहने के पश्चात् वे पूछ बैठे- “आप लोग मुझपर हँस क्यों रहे हैं?” एक पंडित ने और अधिक मुस्कराते हुए कहा- “स्वामीजी, हम तो समझते थे कि आप वीतराग संन्यासी हैं। सांसारिक सुख-दुख से ऊपर हैं। लेकिन आप तो इस नाशवान शरीर के लिए आँसू बहाते हैं, जो आत्मा के निकल जाने पर मिट्टी से भी गया-बीता है।”

स्वामीजी उनके तर्क को सुनकर अवाक् रह गए। आवेश में आकर डंडा उठा पंडित की ओर बढ़े और बोले – “लो, आज तुम्हारी परीक्षा है। यह डंडा तुम्हारी आत्मा को नहीं मारेगा, केवल नश्वर देह को ही मारेगा। अगर यथार्थ में पंडित हो, तो अपनी जगह से मत हिलना।”

फिर क्या था, पंडित वहाँ से ऐसे भागे कि घर पहुँचकर ही साँस ली और डंडे के भय से अपना सारा शास्त्रज्ञान भूल गए।

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