बचेंद्री पाल
बचेंद्री पाल का जन्म उत्तरांचल के चमौली जिले में बंपा गाँव में 24 मई, 1954 को हुआ। इनकी माता का नाम हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशन सिंह पाल है। ये अपने माता-पिता की तीसरी संतान हैं। इनके पिता पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे, अतः बचेंद्री को आठवीं से आगे की पढ़ाई का खर्च सिलाई-कढ़ाई करके जुटाना पड़ा। बचेंद्री ने ऐसी कठिन स्थितियों के बावजूद संस्कृत में एम.ए. और बी.एड. की शिक्षा हासिल की।
बचेंद्री को पहाड़ों पर चढ़ने का शौक बचपन से ही था। 1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। दुनिया में तब तक सिर्फ 4 महिलाएँ एवरेस्ट की चढ़ाई में कामयाब हो पाई थीं। 1984 के इस अभियान की जो टीम बनी उसमें बचेंद्री पाल समेत 7 महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया। कई महीनों के अभ्यास के बाद आखिर वह दिन आ ही गया जब उन्होंने एवरेस्ट विजय के लिए प्रयाण किया। इसके साथ ही 23 मई, 1984 को 1 बजकर 7 मिनट पर 29028 फुट (8848 मीटर) की ऊँचाई पर एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक कदम रखने वाली वे भारत की प्रथम और दुनिया की पाँचवीं महिला पर्वतारोही बनीं।
पाठ परिचय :
बचेंद्री ने एवरेस्ट विजय की अपनी पर्वतारोहण यात्रा को स्वयं लिखा है। प्रस्तुत पाठ उसी विवरण में से लिया गया है। इसमें इन्होंने अपनी संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा और पर्वतारोहण यात्रा को प्रस्तुत किया है।
बचेंद्री पाल
मेरा जन्म 24 मई, 1954 को हुआ था। गढ़वाल में लड़की होने का क्या अर्थ है, यह मैं जानती हूँ। बचपन से ही मैंने निश्चय कर लिया था कि मैं परिवार में किसी से पीछे नहीं रहूँगी और न केवल वह करूँगी जो लड़के करते थे, वरन् उनसे अच्छा करके दिखाऊँगी।
मैं एक बहुत बड़ी स्वप्नदृष्टा थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि कोई चीज़ मेरी पहुँच से बाहर है। दस साल की आयु में ही मैं जंगलों और पहाड़ी ढलानों पर प्रायः अकेली घूमा करती थी। प्रकृति के साथ मेरे खुलाव ने मुझे निडर और स्वतंत्र बना दिया था। बसंत के दिनों में मैं उन प्रवासी पक्षियों के झुंडों को देखने के लिए चुपचाप घर से बाहर निकल जाती थी जो सर्दियों में मैदानों में रहते थे।
मेरा परिवार बहुत गरीब था और न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी असमर्थ था। मेरे माता-पिता इस बात से दुखी थे कि उनके बच्चे ऐसे सपनों की दुनिया में रहते थे जो कभी साकार नहीं हो सकते। लेकिन परिवार के छोटे सदस्य मेरी कल्पनाओं में बहुत आनंद लेते थे और मुझे प्रेरित करते रहते थे। मैं उनसे कहती थी, “इंतज़ार करो, मैं तुम्हें सब कुछ करके दिखा दूँगी।”
मैं हर तरह की बाहरी क्रीड़ा में विशिष्टता हासिल करना चाहती थी, विशेष रूप से लड़कों के साथ होने वाली प्रतियोगिताओं में मैं दौड़ की वार्षिक प्रतियोगिताओं जैसे कि तीन टँगड़ी, सुई-धागे वाली दौड़, बोरा दौड़ तथा सिर पर पानी भरा मटका रखकर होने वाली दौड़ आदि का अभ्यास प्रतियोगिताओं के शुरू होने से पहले पूरे परिश्रम से करती थी। मैं पढ़ाई में काफी अच्छी थी, लेकिन खेल – कूद में और भी बेहतर। जिन-जिन खेलों में मैंने भाग लिया, अधिकांश में प्रथम रही और मैदानी खेलों जैसे कि गोला फेंक, डिस्क फेंक व लम्बी दौड़ में अनेक कप जीते।
मैं लगभग तेरह वर्ष की थी और आठवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की थी, तभी मेरे पिता ने कहा कि वे अब मुझे स्कूल में भेजने का खर्च बर्दाश्त नहीं कर सकते और अब मुझे घर के काम में मदद करनी चाहिए। मैंने अपने मन में ऊँची शिक्षा प्राप्त करने का निश्चय कर लिया था, इसलिए मैं दिन के समय न केवल अपने हिस्से का, बल्कि उससे कहीं अधिक घर का काम करती थी और अपने मित्रों से स्कूल की किताबें उधार लेकर देर रात तक बैठकर अध्ययन करती थी। मेरे तीव्र उत्साह और दृढ़ संकल्प को देखकर हर आदमी प्रभावित था और अंत में मेरी माता और बहन कमला ने मेरे पिता से मुझे आगे पढ़ाने की वकालत की और मुझे नौवीं कक्षा में दाखिला लेने की अनुमति मिल गई। मैंने सिलाई का काम सीख लिया और सलवार-कमीज़ के सूट सिलकर पाँच से छह रुपये प्रतिदिन कमाने लगी।
उच्च शिक्षा प्राप्त करना मेरा प्रथम उद्देश्य था। इसलिए मैंने पर्वतारोहण की अपनी इच्छा को रोककर रखा। जब मैंने एम.ए., बी.एड. कर लिया तब मैंने अपने आपको पर्वतारोहण के लिए पूरी तरह समर्पित कर दिया।
घर में खाली बैठने की बजाय मैंने नेहरू संस्थान के प्रारंभिक पर्वतारोही कोर्स में प्रवेश के लिए आवेदन किया। मुझे प्रवेश मिल गया और मैंने वहाँ बरफ और चट्टानों पर चढ़ने के तरीकों का अध्ययन किया और ‘रैपलिंग’ के रोमांच का अनुभव किया। रैपलिंग का अर्थ है- ऊँची चट्टान अथवा हिमखंड से एक नाईलौन की रस्सी के सहारे कुछ ही क्षणों में नीचे आना।
हमने चट्टान, बरफ और हिम पर चढ़ने की और अधिक उच्च तकनीकें सीखीं। हमें अभियान को आयोजित करने का भी प्रशिक्षण दिया गया। अधिक ऊँचाई के रूप में मैंने, ‘ब्लैक पीक’ अथवा ‘काला नाग-6387 मीटर की चढ़ाई की।
इस कोर्स में भी मुझे ‘ए’ ग्रेड मिला और अभियानों में भाग लेने के लिए मेरी संस्तुति की गई। मेरे प्रशिक्षक बहुत अधिक प्रोत्साहन देने वाले थे और कहते थे मेरे अंदर अच्छे पर्वतारोही के लक्षण हैं।
जब मैंने सुना कि ‘इंडियन मांउन्टेनियरिंग फाउंडेशन’ (आई.एम.एफ.) ने 1984 में होने वाले एवरेस्ट अभियान के लिए आयोजित जाँच शिविर के लिए मुझे चुना है तो मैं जैसे एक बदली हुई इंसान बन गई। अपने आप को मज़बूत बनाने के लिए मैं घास चारे और सूखी लकड़ी के भारी से भारी गट्ठर घर लाने लगी। मैं रोज़ आने-जाने का रास्ता भी बदल देती थी। मैं अधिक दुर्गम रास्तों और घाटियों से होकर निकलती और जानबूझ कर पत्थरों के ऊपर से चलती अथवा सीधी खड़ी ढलाऊ चट्टानों से उतरती जिससे कि मैं बेहतर संतुलन प्राप्त कर सकूँ, ऊँचाई के डर को निकाल सकूँ। मेरे सभी क्रियाकलापों का एकमात्र उद्देश्य एक सच्चा दक्ष पर्वतारोही बनना था।
एक बार तेनजिंग ने हँसते हुए मुझसे कहा था कि “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो, तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।” ये शब्द ही मेरे साथी बने।
मई 1984 तक आरोहण योजना को शुरू करने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। हमें 8 मई को साउथ कोल पहुँचकर 9 मई को चोटी पर पहुँचने का प्रयास करना था। 9 मई को हमने प्रातः सात बजे शिखर कैंप से प्रस्थान किया।
16 मई को प्रातः आठ बजे तक हम कैंप II तक पहुँच गये थे। मैंने अगले दिन की महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी।
सुबह 6:20 पर जब अंग दोरजी और मैं साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी लेकिन ठंड भी बहुत अधिक थी। मैं अपने आरोही उपस्कर में काफी सुरक्षित और गरम थी। हमने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंग दोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और मुझे उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
जमी हुई बरफ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं मानो शीशे की चादरें बिछी हों। हमें बरफ काटने के फावड़े का इस्तेमाल करना पड़ा और मुझे बड़ी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमी हुई बरफ की धरती को फावड़े के दाँत काट सकें।
दो घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुँच गये। अंग दोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ? मैंने जवाब दिया, “नहीं” जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि पहले वाले दल ने तो शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाये थे और यदि इसी गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर 1 बजे तक पहुँच जाएँगे।
मेरी सांस मानो रुक गई थी। मुझे लगा कि सफलता बहुत नजदीक है। 23 मई, 1984 के दिन दोपहर के 1 बजकर सात मिनट पर मैं एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली मैं प्रथम भारतीय महिला थी।
मैं अपने घुटनों के बल बैठी, बरफ पर अपने माथे को लगाकर मैंने सागरमाथे के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। उन्हें लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और बरफ में दबा दिया।
आनंद के उस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया। मैं उठी, मैंने अपने हाथ जोड़े और अंग दोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और कहा, “मैं बहुत खुश हूँ।”
हमने शिखर पर 43 मिनट व्यतीत किये। लहोत्से, नुपत्से और नकाचू जैसी विशाल पर्वत श्रेणियाँ अब हमारे पर्वत के सामने बौनी लग रही थीं। मैंने चोटी के समीप एक छोटे से खुले स्थान से पत्थरों के कुछ नमूने एकत्र किए और अपनी वापिसी यात्रा शुरू कर दी।
मुझे पर्वतारोहण में श्रेष्ठता के लिए, भारतीय पर्वतारोहण संघ का प्रतिष्ठित स्वर्ण पदक तथा अन्य अनेक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किये गये। पद्मश्री और प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार की भी घोषणा की गई।
एवरेस्ट चढ़ाई से मेरी हार्दिक इच्छाओं की पूर्ति हुई है और मुझे वह सभी कुछ मिला है जो मेरे पास है। मैं इससे अधिक कुछ नहीं चाहती।
शब्दार्थ
स्वप्नदृष्टा – स्वप्न देखने वाला
प्रवासी – दूसरे स्थान का निवासी
संस्तुति – प्रशंसा
प्रशिक्षक – प्रशिक्षण देने वाला
प्रोत्साहन – किसी काम के लिए उत्साह बढ़ाना
न्यूनतम -कम से कम
साकार – आकार युक्त
दुर्गम – जहाँ पहुँचना कठिन हो
क्रीड़ा – खेल
विशिष्टता – विशेषता
क्रिया-कलाप = किसी व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले काम
शिखर – पहाड़ की चोटी
दक्ष – निपुण, कुशल
प्रतियोगिता = मुकाबला
बर्दाश्त – सहन करने की शक्ति
पर्वतारोहण – पर्वतों पर चढ़ना
प्रारंभिक – शुरू का
प्रस्थान – जाना, रवानगी
पर्वतारोही – पहाड़ पर चढ़ने वाला
आरोही – चढ़ने या ऊपर जाने वाला
रोमांच – रोंगटे खड़े होना
हिमखंड – बर्फ का टुकड़ा
प्रशिक्षण – नियमित रूप से दी जाने वाली व्यावहारिक शिक्षा, ट्रेनिंग
आरोहण – ऊपर की ओर चढ़ना
उपस्कर – सामान
कुदाल – फावड़ा
प्रतिष्ठित – सम्मानित
अभ्यास
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) बचेंद्री पाल ने बचपन में क्या दृढ़ निश्चय कर लिया था?
(ii) बचेंद्री पाल के माता-पिता किस बात से दुखी थे?
(iii) बचेंद्री पाल ने किन मैदानी खेलों में कप जीते?
(iv) बचेंद्री पाल ने कब अपने आपको पर्वतारोहण के लिए पूरी तरह समर्पित किया?
(v) ‘रैपलिंग’ का क्या अर्थ है?
(vi) बचेंद्री पाल और अंग दोरजी ने बर्फ काटने के लिए किस चीज का इस्तेमाल किया?
(vii) एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला कौन है?
(viii) एवरेस्ट पर आनंद के क्षणों में बचेंद्री पाल को किन का ध्यान आया?
(ix) बचेंद्री पाल को कौन-कौन से पुरस्कार दिए गए?
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए-
(i) दस साल की आयु में ही बचेंद्री पाल निडर और स्वतंत्र कैसे बन गई थी?
(ii) बचेंद्री पाल प्रतियोगिताओं के शुरू होने से पहले ही कौन-कौन सी दौड़ का अभ्यास करना शुरू कर देती थी?
(iii) बचेंद्री पाल ने अपनी शिक्षा कैसे प्राप्त की?
(iv) बचेंद्री पाल ने नेहरू संस्थान के पर्वतारोही कोर्स में क्या-क्या सीखा?
(v) तेनजिंग ने बचेंद्री पाल की तारीफ में क्या कहा?
(vi) एवरेस्ट पर पहुँच कर बचेंद्री पाल ने घुटनों के बल बैठ कर क्या किया?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-
(i) बचेंद्री पाल का चरित्र चित्रण कीजिए।
(ii) बचेंद्री पाल के एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने का वर्णन कीजिए।
(ख) भाषा-बोध
(ख) भाषा-बोध
1. निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-
एकवचन – बहुवचन
किताब
कमीज़
तकनीक
चट्टान
चादर
साँस
लड़की
मटका
धागा
परीक्षा
इच्छा
श्रेणी
2. निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द उपसर्ग मूलशब्द
प्रवासी प्र वासी
परिवार
प्रशिक्षण
परिश्रम
प्रशिक्षक
अभियान
3. निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द मूलशब्द प्रत्यय
पढ़ाई पढ़ आई
बचपन
ऊँचाई
सफलता
चढ़ाई
कठिनाई
न्यूनतम
सुरक्षित
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
1. कल्पना कीजिये कि आप पर्वतारोहण के लिए गये हैं। अपने मित्र को पत्र लिखकर पर्वतारोहण का अनुभव बताइए।
2. आपने अपने भविष्य के लिए क्या लक्ष्य निर्धारित किया है?
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
1. अपने विद्यालय में होने वाले खेलों में बढ़चढ़ कर भाग लें।
2. ‘मन के हारे हार, मन के जीते जीत’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित करें।
3. विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्थान प्राप्त करने वाली भारतीय महिलाओं के चित्र चार्ट पर लगाकर कक्षा में टाँगे।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
1. एवरेस्ट पर्वत एवरेस्ट पर्वत (नेपाली में सागरमाथा अर्थात् स्वर्ग का शीर्ष, संस्कृत में देवगिरि) दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है जिसकी ऊँचाई 8848 मीटर हैं। 2. तेनजिंग नॉरगे: तेनजिंग नॉरगे एक नेपाली पर्वतारोही थे। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मांऊट एवरेस्ट की चोटी पर पहला मानव कदम रखा। इस मिशन में न्यूजीलैंड के सर एडमंड हिलेरी उनके साथ थे। 29 मई, सन् 1953 को सातवें प्रयास में उन्हें इस मिशन में सफलता मिली।
3. भारत की प्रथम महिला :
(i) भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
(ii) भारत की प्रथम महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू
(iii) भारत की प्रथम विश्व सुंदरी- कुमारी रीता फारिया
(iv) भारत की प्रथम मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन
(v) यूनाइटेड नेशन जनरल एसेम्बली की प्रथम भारतीय महिला और अध्यक्ष- विजय लक्ष्मी पंडित
(vi) किसी उच्च न्यायालय (केरल उच्च न्यायालय) की प्रथम भारतीय महिला जज- अन्ना चान्डी
(vii) भारतीय पुलिस सेवा (आई.पी.एस.) में भर्ती होने वाली प्रथम महिला – किरण बेदी
(viii) माऊंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला-बचेंद्री पाल
(ix) भारत के उच्चतम न्यायालय की प्रथम महिला जज न्यायमूर्ति एम० फातिमा बीबी
(x) अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला कल्पना चावला
(xi) भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल
(xii) लोकसभा की प्रथम महिला अध्यक्षा मीरा कुमार