Punjab Board, Class IX, Hindi Pustak, The Best Solution Do Haath, Dr. Indu Baali, दो हाथ, डॉ० इन्दु बाली

डॉ. इंदु बाली का जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में सन् 1932 में हुआ था। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पहले लाहौर और फिर विभाजन के बाद शिमला से प्राप्त की। उच्च शिक्षा लुधियाना और चंडीगढ़ से ली। हिंदी अध्यापन को इन्होंने अपने व्यवसाय के रूप में चुना तथा सरकारी कॉलेजों में प्राध्यापिका के रूप में पंजाब के विभिन्न शहरों में अध्यापन कार्य किया। इस बीच इन्होंने अनेक स्थानों पर प्राचार्या (प्रिंसिपल) के रूप में भी कार्य किया तथा अब पिछले अनेक वर्षों से चंडीगढ़ में सेवानिवृत्त (रिटायर्ड) जीवन व्यतीत कर रही हैं।

डॉ. इंदु बाली ने भले ही सारा जीवन अध्यापन के क्षेत्र में व्यतीत किया, परंतु मूलतः ये रचनाकार ही हैं। लेखन जैसे इनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन चुका है। इस क्षेत्र में इन्होंने अनेक कहानियों के साथ-साथ उपन्यास तथा आलोचना साहित्य का भी सृजन किया। पंजाब के हिंदी कहानीकारों में इनका विशिष्ट स्थान है। इतना ही नहीं, भाषा विभाग, पंजाब की ओर से इन्हें शिरोमणि साहित्यकार के सम्मान से भी अलंकृत किया गया। इसके अतिरिक्त भी इन्हें अनेक प्रकार के पुरस्कार समय-समय पर मिलते रहे हैं। इनकी लगभग पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पहली कहानी मैं दूर से देखा करती हूँ’ सन् 1964 में धर्मयुग में प्रकाशित हुई थी। चित्रकला और संगीत भी इनके कलाकार की अभिव्यक्ति के साधन बने हैं।

‘मन रो दिया’, ‘दो हाथ’, ‘मेरी तीन मौतें’, ‘दूसरी औरत होने का सुख’, ‘टूटती- जुड़ती’, ‘मैं खरगोश होना चाहती हूँ’ आदि इनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं तथा ‘बांसुरिया बज उठी’, ‘सोए प्यार की अनुभूति’- उपन्यास हैं। इनकी भाषा सुबोध, सरस तथा प्रभावोत्पादक है।

इस कहानी में दो हाथों के माध्यम से सौंदर्य के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। सौंदर्य का एक रूप कर्म करने में विद्यमान है। ईश्वर ने हमें दो हाथ दिये हैं, मात्र सजाने के लिए नहीं। हाथों का वास्तविक सौंदर्य कर्म करने में है। फिर भले ही वे खराब हो जाएँ, खुरदरे हो जाएँ इससे अंतर नहीं पड़ता। इसी संदेश द्वारा लेखिका ने लोगों की मानसिक कुंठा को दूर करने का प्रयास किया है। बिन माँ की नीरू जिसे घर का सारा कार्य करना पड़ता है, अपने हाथों के खराब होने पर कुंठाग्रस्त है। परंतु कॉलेज के वार्षिक उत्सव के अवसर पर सभापति की ओर से उसे विशेष रूप से उसके उन हाथों के लिए इनाम दिया गया, जिन पर काम करने के सौंदर्य की आभा झलक रही थी। इस प्रकार लेखिका ‘कर्म के सौंदर्य की अमूल्य कीमत’ का संदेश बच्चों तक पहुँचाने में पूर्णत: सफल रही हैं।

बर्तन साफ कर नीरू ने रसोई को धोया और साग काटने में मग्न हो गई। घर का काम और कॉलेज की पढ़ाई, बस यही उसका जीवन था माँ का अभाव प्रायः उसे खला करता। अपनी हम उमर सहेलियों को खेलते देखती तो उसके मन में टीस सी उठने लगती। काश, उसकी भी माँ होती तो वह भी इसी तरह बेफिकर-सी चहकती गाती, झूमती नाचती। यही सोचते हुए मशीन की तरह अपना काम निपटा कर पढ़ाई की किताबें ले उनमें डूब जाती। कभी-कभी पढ़ते और काम करते समय जब उसका ध्यान अपने हाथों की ओर जाता तो वह उदास हो जाती। फिर सोचती, मोर के पैर भी तो कुरूप होते हैं। इससे क्या होता है। सुंदरता में क्या वह मोर से कम है। भगवान ने उसे सुंदर चेहरा दिया है। हाथों से दिन भर काम करेगी तो उन में सुंदरता और कोमलता कहाँ से आयेगी। कभी बर्तन माँजना, कभी झाड़ देना, कभी चपाती सेकते हुए हाथ का जलना बस हर पल काम और काम रसोई का काम निपटा चुपचाप कपड़ों का ढेर धोना। किन्तु रात को जब पिता जी सिर पर हाथ रख कर कहते, “मेरी बेटी थक गई होगी।” तो पिता का अपार दुलार पाकर सभी अभाव भूल जाती। उनका प्यार भरा स्पर्श बड़ा सुखद लगता।

कभी वह हँसते-हँसते उदास हो जाती तो पिता झट पूछते, “क्या बात है, मेरी रानी बिटिया उदास क्यों है?”

“कुछ नहीं पिता जी।”

“अरे-अरे तुम तो रो रही हो, क्या बात है?”

“नहीं-नहीं-हाँ, बस यूँ ही मन भर आया था।”

“बिना बात के मन भर आया था यह भी कभी होता है। शायद, माँ की बात याद आ गई थी? क्यों ठीक है न?”

“नहीं तो, हाँ।” और वह फूट-फूट कर रो पड़ती। पिता जी सिर पर हाथ फेरते हुए कहते, “शायद मैं तुम्हें माँ का पूरा प्यार नहीं दे पाया।” उनकी आँखें भी डब डबा गयी थीं।

“नहीं-नहीं, आप ग़लत न समझें। वह तो जाने क्यों वैसे ही याद आ गयी, भला आपसे अधिक प्यार कौन दे सकता है?”

उसी समय नीरू को ध्यान आया कि अभी उसे ढेर सारा काम करना है। रसोई में सारे बर्तन जूठे पड़े हैं। चूल्हे को लीपना है। कल के लिए कोयले तोड़ने हैं। इस बार लकड़ियाँ इतनी मोटी हैं कि रोज़ कुल्हाड़ी से उन्हें छाँटना होता है। उसे याद आया कैसे माँ उसे घर का कोई काम नहीं करने देती थी। जब कभी माँ का हाथ बँटाने के लिए कुछ करना चाहती माँ कह देती, “यह सब काम तेरे करने के नहीं। हम अनपढ़ औरतें तो जानवर होती हैं और माँ अपने हाथ खोल कर दिखाती मोटी खुरदरी उंगलियाँ, कटी-फटी चमड़ी और टेढ़-मेढ़े नाखून!” नीरू को जाने कैसे लगता और वह अपने सुंदर हाथों की कोमलता में एक प्यार का सपना बुनने लगती। माँ कहती, “तुम्हारी उंगलियाँ ककड़ी की तरह कोमल हैं, इन पाँच उंगलियों में पाँच अँगूठियाँ डालूँगी, मेंहदी रचाऊँगी, कलाई को चूड़ियों से सजाऊँगी।” और माँ उन्हें गहराई से छू चूम लेती, अपनी गालों पर घुमाती पर अब नीरू जैसे ही अपने हाथों को देखती उसका सपना टूटने लगता। मन की गहराई में जाने कैसा तूफान घिरने उभरने लगता। काम करते हुए कई बार नीरू का ध्यान इस बात की ओर चला जाता और वह सोचती क्या उसके हाथ हमेशा ऐसे ही रहेंगे? पहले जैसे न होंगे? अनजाने ही वह अपने हाथों को साड़ी के पल्लू में छिपाने की कोशिश करती माँ की याद उसे और बेचैन करने लगती।

अगले दिन रसोई में नीरू काम कर रही थी। पिता दफ्तर से लौटे थे और आते ही प्यार से नीरू को पास बुला कर कहने लगे, “आज से सारा काम मैं किया करूँगा।”

“यह कैसे हो सकता है, मेरे रहते आप काम करें?”

“क्यों नहीं, तुम भी तो मेरे रहते सब काम करती हो?”

“यह बात अलग है।”

“नहीं बेटी; तुम भोली हो- चलो दोनों बाँट कर करेंगे, क्यों ठीक है न?”

तभी नीरू और भी जोर से रोने लगी और बोली, “मेरी सब सहेलियाँ मेरे हाथ देखकर हँसती हैं और कहती हैं, तेरी शादी कभी नहीं होगी, तुझे कोई पसंद नहीं करेगा। चेहरे के सौन्दर्य के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण हाथों का सौंदर्य होता है। फिर किसी को शादी दासी या नौकरानी से तो करनी नहीं। लड़कियों के हाथ तो अवश्य सुंदर, कोमल, स्निग्ध और चमकीले होने चाहिए। और भी जाने क्या-क्या कह मेरा और आपका उपहास करती हैं।” “जाने कौन यह सब व्यर्थ की बातें तुम्हारे दिमाग में भरता रहता है सब पगली हैं। देखो नीरू! काम करने वाले की शोभा तो उसके हाथों से ही आँकी जाती है। अपने हाथ से काम करने वाली लड़की तो शक्ति और संपन्नता की प्रतीक होती है। काम करने वाले ये दो हाथ तो मानव जीवन की शोभा हैं। भगवान ने ये दो हाथ कर्म करने के लिए बनाए हैं। यही इतिहास, संस्कृति और साहित्य का निर्माण करते हैं। हाथों का सौंदर्य तो कर्म की गति के साथ सुंदर से सुंदरतर और सुंदरतर से सुन्दरतम होता जाता है।” यही सब कहते कहते वह गंभीर हो गये थे।

तभी नीरू में एक नई जागृति आ गई और वह उमंग से भर कहने लगी, “सच पिता जी, आप ठीक कहते हैं।” और वह अपने पिता के चेहरे की तरफ श्रद्धालु भक्त की तरह देखने लग गई। उनके चेहरे पर ऐसा भाव उदय हुआ था कि जिसकी गहराई के रहस्य से नीरू का अंतर्मन प्रकाशित होने लगा था। वह अपने काम में फिर से लग गई, तरह- तरह के पकवान बना टेबल सँवारने लगी। दो हाथों के सौंदर्य का रहस्य धीरे-धीरे, परत- दर परत खुलने लगा था।

माँ की मृत्यु के बाद भाई बहनों को सँभालने का सारा बोझ उसने ही उठा लिया था। सभी छोटे बहन-भाई खेलने खाने में मस्त रहते और माँ की तरह गंभीर स्वभाव के कारण अपनी ही धुन में समस्त कर्त्तव्य निभाती रहती। पढ़ाई में भी सबसे आगे रहती। घर के काम में व्यस्त हाथ कलम पर भी खूब चलते थे।

कल कॉलेज में वार्षिक उत्सव था और उसे ढेरों इनाम दिये जाने वाले थे। पढ़ाई के साथ साथ संगीत, चित्रकला और खेलों में भी ढेरों इनाम जीते थे पर न जाने क्यों आज रह रह कर माँ की याद आ रही थी और फिर मन उदास हो जाता था। रात भर अजीब-अजीब सपने देखती रही, माँ को देखा सपना उनमें कहीं न था, उसका अपना सपना कहीं खो गया था। वह चौंक-चौंक कर उठती रही। रह कर अपने हाथों को टटोलती, स्पर्श करती और शरमा जाती। उसके कॉलेज की सभी लड़कियाँ हफ्तों से अपने नाखूनों की सजावट में जुटी थीं। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह इन हाथों का क्या करे?

दो हाथ-दो हाथ-दो हाथ चारों तरफ सुंदर सुंदर कमल रूपी हाथ दिखाई देते थे। सारा आकाश उन हाथों से भर गया था, पर वह अँधेरा कैसा है? वह घबरा जाती है उसे उस अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं देता, उसका दम घुटने लगता है। तभी उनके मध्य से उदित होते दो कटे-फटे, मैले धब्बेदार, टेढ़े नाखूनों वाले, आटा लगे, कहीं से जले, काले पीले बदशक्ल दो हाथ दिखाई दिये। पर अजीब बात है उन दो हाथों के उदित होते ही वातावरण जगमगा उठा, जैसे सूर्य के उदित होते ही रात्रि का अंधकार जगमगा उठता है और सुन्दर हाथ तारों के समान कहीं खो गये थे, नीरू यह अनोखा सपना देख फिर सो न पाई। उसके मन में अजीब उद्वेलन – सा हो रहा था।

प्रातः का समय बहुत ही व्यस्तता का समय होता है। हर तरफ जल्दी और भाग-दौड़। कोई कुछ माँग रहा था कोई कुछ। बस समय भी भाग रहा था। नीरू किसी तरह सारा काम निपटा तैयार हुई और कॉलेज जा पहुँची। पर जल्दी में हाथ धोना ही भूल गई। हॉल में उत्सव था और वहाँ पहुँचने के बाद ही उसे याद आया। पर अब क्या हो सकता था? सभी बैठ चुके थे। सभापति आ चुके थे। भागते-भागते ही वह अपनी निश्चित कुर्सी पर पहुँची और उदास खोई सी बैठ गई। सभापति के स्वागत के बाद इनाम बँटने आरम्भ हुए। नीरू का नाम बहुत ही सम्मान और तारीफ़ों के बाद लिया गया। बड़े चाव से भागती हुई वह स्टेज पर गई पर इनाम लेने के लिए ज्यों ही हाथ फैलाये शर्म से उसके हाथ काँपने लगे और आँखों से आँसू टपकने लगे।

इनाम बँट जाने के बाद सभापति ने कहा, “एक विशेष इनाम देने को मन चाह रहा है। वह इनाम है उस लड़की के लिए जिसके हाथ कॉलेज में सबसे सुंदर होंगे। निर्णय जजों पर छोड़ा जाता है। इतना सुनना था कि सुन्दर सुंदर हाथ अपने अपने को सँवारते से आ धमके। आज सभी लड़कियाँ खुश थीं। उनकी किस्मत जाग उठी थी। कोई मूल्य डालने वाला तो मिला। पर नीरू मौन सिर झुकाये खड़ी थी। इतनी उदास और शर्मिन्दा तो वह पहले कभी न हुई थी। उसकी समस्त सहन शक्ति मानो खो गई थी, लगने लगा था “एक भयंकर विस्फोट होगा और वह धरती में समा जायेगी।”

सभापति ने निर्णय सुनाया तो सभी चौंक गये। वह कह रहे थे नीरू के दो हाथ मुझे पिछले चार घंटों से अपने अपूर्व सौंदर्य के प्रति आकर्षित कर रहे थे। आज मैंने जाना सुंदर हाथ कर्म से सजते हैं। कर्मशीलता ही हाथों की शोभा होती है। हाथ सर्जक हैं, उनका सौंदर्य कार्य करने की क्षमता है। वह जीवन का बाह्य नहीं, आंतरिक सौंदर्य और शृंगार हैं। वे हाथ कितने सुंदर हो सकते हैं जिन्हें कर्म-साधना में अपनी ही होश नहीं और जो केवल दूसरों की सेवा में लगे हैं। हाथों पर लगा आटा, काले-पीले जले निशान, स्थान-स्थान से कटे-फटे नदी-नालों सम बहता अद्वितीय अलौकिक सृष्टि का अपार सौंदर्य मानो यहीं आकर समा गया हो। ऐसे सुंदर हाथ मैंने पहले कभी नहीं देखे! यह कहते कहते सभापति समस्त हॉल में बैठी लड़कियों की तरफ देखने लगे, जैसे उनकी आँखें कहीं दूर खो गई हों।

नीरू इनाम लेकर लौट रही थी। वह खुश थी। धरती सम गंभीर, सागर सी अपार थी उसकी खुशी की उपलब्धि। उसने अपने हाथों की ओर देखा। उसे आज से दोनों हाथ सुंदर लग रहे थे। साथ यह भी उसके मन में आया कि सौंदर्य का केंद्र बिन्दु कहाँ है?

 

अभाव – कमी

उद्वेलन – उछाल (भावों की उथल-पुथल)

टीस – कसक, सहसा रह-रह कर उठने वाली पीड़ा

स्पर्श –  छूना

सौंदर्य – सुंदरता

स्निग्ध – कोमल

शोभा – सुंदरता

कर्मशीलता – फल की इच्छा छोड़कर काम करना

सर्जक – रचना करने वाला

अद्वितीय – अनोखा

अलौकिक – जो इस लोक में न हो

रहस्य – गुप्त बात, राज

सृष्टि – संसार

उपलब्धि – विशेष प्राप्ति

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-

 (i) नीरू की दिनचर्या क्या थी?

उत्तर – नीरू की दिनचर्या में केवल घर के घरेलू काम और कॉलेज की पढ़ाई थी।

 (ii) नीरू को प्रायः किसका अभाव खलता था?

उत्तर – नीरू को प्रायः उसकी माँ की कमी खलती थी।

 (iii) नीरू अपनी हम उमर सहेलियों को खेलते देखकर क्या सोचा करती थी?

उत्तर – नीरू अपनी हम उमर सहेलियों को खेलते देखकर यह सोचा करती थी कि काश! मेरी भी माँ जीवित होती तो मैं भी जी भर कर खेल-कूद कर सकती थी।

 (iv) पिता का दुलार पाकर नीरू क्या भूल जाती थी?

उत्तर – पिता का दुलार पाकर नीरू अपने जीवन के सभी अभावों को भूल जाती थी।

 (v) नीरू ने पढ़ाई के साथ अन्य कौन-से इनाम जीते थे?

उत्तर – नीरू ने पढ़ाई के साथ कॉलेज के सबसे सुंदर हाथ होने का इनाम भी जीता था।

 (vi) कॉलेज की लड़कियाँ हफ्तों से किसकी सजावट में जुटी थीं?

उत्तर – कॉलेज की लड़कियाँ हफ्तों से अपने नाखूनों की सजावट में जुटी थीं।

 (vii) सभापति ने कौन-सा निर्णय सुनाया?

उत्तर – सभापति ने निर्णय सुनाया कि नीरू के दो हाथ में मुझे कर्मशीलता के साक्षात् दर्शन हो रहे हैं। आज मैंने जाना सुंदर हाथ कर्म से सजते हैं। कर्मशीलता ही हाथों की शोभा होती है। हाथ सर्जक हैं, उनका सौंदर्य कार्य करने की क्षमता है।

 (viii) घर लौटते समय नीरू खुश क्यों थी?

उत्तर – नीरू इनाम लेकर लौटते समय बहुत खुश थी क्योंकि उसे आज अपने दोनों हाथ सुंदर लग रहे थे। उसे यह भी अहसास हुआ कि हाथों की सुंदरता कर्म करने से बढ़ती हैं न कि सजाने से।  

2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिये-

 (i) नीरू घर के कौन-कौन से काम किया करती थी?

उत्तर – नीरू घर के सारे घरेलू काम, जैसे- झाड़ू-पोछा, रसोई करना, बर्तन धोना, जलावन की लकड़ियाँ काटना, चूल्हे को लीपना, कोयले तोड़ना आदि काम किया करती थीं।

(ii) नीरू की माँ उसे घर के काम करने से क्यों रोकती थी?

उत्तर – नीरू की माँ नीरू को घर के काम करने से रोकती थी क्योंकि उनका मानना था घर के काम अनपढ़ औरतें करती हैं। वह तो नीरू को पढ़ा-लिखा कर आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी। वह कहा करती थीं कि तुम्हारी उंगलियाँ ककड़ी की तरह कोमल हैं, इन पाँच उंगलियों में पाँच अँगूठियाँ डालूँगी, मेंहदी रचाऊँगी, कलाई को चूड़ियों से सजाऊँगी।

 (iii) नीरू की सहेलियाँ उसका मजाक क्यों उड़ाती थीं?

उत्तर – दिनभर घरेलू काम करने की वजह से उसके हाथ बहुत जगह से कटे-फटे थे। रोटियाँ सेंकते हुए भी उसके हाथ कहीं-कहीं से जल भी गए थे। लकड़ियाँ काटने और कोयले तोड़ने के कारण उसके हाथ कुछ सख्त हो गए थे। इसलिए नीरू की अबोध और कमअक्ल सहेलियाँ उसका मजाक उड़ाते हुए कहती थी कि तेरी शादी कभी नहीं होगी, तुझे कोई पसंद नहीं करेगा।

 (iv) नीरू को उसके पिता ने हाथों का क्या महत्त्व समझाया?

उत्तर – नीरू को उसके पिता ने बड़े प्यार से हाथों का महत्त्व समझाते हुए कहा कि अपनी सहेलियों की व्यर्थ की बातों पर ध्यान मत दिया करो। किसी भी व्यक्ति के कर्मशील व्यक्तित्व की शोभा उसके हाथों से आँकी जाती है। अपने हाथों से काम करने वाली लड़की तो शक्ति और संपन्नता की प्रतीक होती है। काम करने वाले ये दो हाथ तो मानव जीवन की शोभा हैं। भगवान ने ये दो हाथ कर्म करने के लिए बनाए हैं। यही इतिहास, संस्कृति और साहित्य का निर्माण करते हैं।

 (v) इनाम लेते समय नीरू को शर्म क्यों आ रही थी?

उत्तर – इनाम लेते समय नीरू को शर्म आ रही थी क्योंकि पुरस्कार वितरण के दिन जल्दी-जल्दी में वह घर से बिन हाथ धोए ही कॉलेज पहुँच चुकी थी। और अपने निश्चित जगह पर बैठ जाने के बाद उसे हाथ साफ करने का अवसर भी नहीं मिला। जब उसके नाम की घोषणा पुरस्कार देने के लिए की गई तो उसे इस बात का अहसास हुआ कि न तो उसके हाथ ही सुंदर हैं और न ही वह आज हाथ धोकर आई है। वह यही सोच रही थी कि जब सभापति महोदय इनाम देंगे तो उसके हाथों को देखकर वे क्या सोचेंगे।

 (vi) ‘कर्मशीलता ही हाथों की शोभा होती है।’ इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘कर्मशीलता ही हाथों की शोभा होती है।’ इस पंक्ति में निहित भाव यह है कि जो व्यक्ति कर्मशील होता है, वह अपने हाथों से विविध काम निरंतर करता रहता है, जिससे उसके हाथों की कोमलता और सुंदरता भले ही कम या नष्ट हो जाए पर उसके व्यक्तित्व में कर्मशील होने का अद्भुत गुण समा जाता है। यही गुण उसे सामान्य से विशिष्ट की श्रेणी में ला खड़ा करता है।  

 (vii) इनाम लेकर लौटते समय नीरू को अपने हाथ सुंदर क्यों लग रहे थे?

उत्तर – इनाम लेकर लौटते समय नीरू को अपने हाथ सुंदर लग रहे थे क्योंकि नीरू को जो विशेष पुरस्कार मिला था वह उसे उसके कर्मशीलता के कारण मिला था जिसके प्रमाण उसके हाथ थे, जो थोड़े खुरदरे, कटे-फटे, थोड़े सख्त और कहीं-कहीं जले हुए थे। उसके हाथ सुंदर न होते हुए भी सुंदर थे क्योंकि वह कर्मशील थी। आज उसकी परख करने वाले नज़रों ने उसे सम्मानित किया था। उसे आज अपने दोनों हाथ सुंदर लग रहे थे। साथ यह भी ज्ञान हुआ कि सौंदर्य का केंद्र बिंदु कर्मों में होता है।  

3.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिये-

(i) नीरू का चरित्र चित्रण कीजिए।

उत्तर – इस कहानी की मुख्य पात्र नीरू के चरित्र में हमें बहुत सारी खूबियाँ देखने को मिलती हैं, जैसे–

कर्तव्यनिष्ठ – नीरू एक कर्तव्यनिष्ठ युवती है। वह अपनी माता के देहांत के बाद अपने पिताजी और घर के अन्य सदस्यों का पूरा-पूरा ख्याल रखती है।

पढ़ाई के प्रति सजग – नीरू पढ़ाई-लिखाई के महत्त्व को अच्छी तरह से जानती हैं। इसलिए जब भी घरेलू कामों से फुर्सत पा लेती है तो पढ़ाई-लिखाई में डूब जाती है।

भावुक युवती – जब कभी भी उसे अपनी दिवंगत माँ की याद आती है तो उसके आँखों में आँसू आ जाते हैं। भाव-विभोर होकर वह उन पलों को याद करने लगती हैं जब उसकी माँ जीवित थी।

आज्ञाकारी पुत्री – नीरू एक आज्ञाकारी पुत्री है। जब वह निराश होती है तो पिताजी के समझाने पर समझ जाती है तथा ऊर्जा से भी भर जाती है। 

 (ii) नीरू ने कौन-सा अनोखा सपना देखा था?

उत्तर – नीरू ने एक अनोखा सपना देखा कि चारों तरफ सुंदर-सुंदर कमल रूपी हाथ दिखाई देते थे। सारा आकाश उन हाथों से भर गया था, पर वह अँधेरा कैसा है? वह घबरा जाती है उसे उस अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं देता, उसका दम घुटने लगता है। तभी उनके मध्य से उदित होते दो कटे-फटे, मैले धब्बेदार, टेढ़े नाखूनों वाले, आटा लगे, कहीं से जले, काले पीले बदशक्ल दो हाथ दिखाई दिए। पर अजीब बात है उन दो हाथों के उदित होते ही वातावरण जगमगा उठा, जैसे चन्द्र के उदित होते ही रात्रि का अंधकार जगमगा उठता है और सुंदर हाथ तारों के समान कहीं खो गए थे।

(iii) सभापति ने हाथों का वास्तविक सौंदर्य क्या बताया?

उत्तर – सभापति महोदय ने हाथों का वास्तविक सौंदर्य बताते हुए कहा कि नीरू के दो हाथ मुझे पिछले चार घंटों से अपने अपूर्व सौंदर्य के प्रति आकर्षित कर रहे थे। आज मैंने जाना सुंदर हाथ कर्म से सजते हैं। कर्मशीलता ही हाथों की शोभा होती है। हाथ सर्जक हैं, उनका सौंदर्य कार्य करने की क्षमता है। वह जीवन का बाह्य नहीं, आंतरिक सौंदर्य और शृंगार हैं। वे हाथ कितने सुंदर हो सकते हैं जिन्हें कर्म-साधना में अपना ही होश नहीं और जो केवल दूसरों की सेवा में लगे हैं। हाथों पर लगा आटा, काले-पीले जले निशान, स्थान-स्थान से कटे-फटे नदी-नालों सम बहता अद्वितीय अलौकिक सृष्टि का अपार सौंदर्य मानो यहीं आकर समा गया हो। ऐसे सुंदर हाथ मैंने पहले कभी नहीं देखे!

(iv) ‘दो हाथ’ कहानी का उद्देश्य क्या है?

उत्तर – ‘दो हाथ’ कहानी का उद्देश्य  बड़ा ही रोचक और उद्देश्यपूर्ण है। इसमें लेखिका इंदु बाली पाठकों को यह बताना चाहती हैं कि केवल बाहरी सुंदरता को देखकर हमें किसी नतीजे पर नहीं पहुँचना चाहिए बल्कि हमारी पार की नज़र कुछ ऐसी होनी चाहिए जो उस परतों में छिपे सत्य को भी पहचान ले। इसी बात को लेखिका इंदु बाली ने हाथों के माध्यम से समझाया है। यहाँ हम देखते हैं कि नीरू के हाथ बहुत जगह से कटे-फटे थे। रोटियाँ सेंकते हुए भी उसके हाथ कहीं-कहीं से जल भी गए थे। लकड़ियाँ काटने और कोयले तोड़ने के कारण उसके हाथ कुछ सख्त हो गए थे। इस वजह से उसके हाथ बाहरी रूप से तो सुंदर नहीं थे पर उसके कर्मों के कारण उसका व्यक्तित्व सुंदर बन गया। नीरू के इसी सुंदरता को उसके पिताजी ने और सभापति महोदय ने पहचान लिया था।     

1.निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर इनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

मुहावरा                   अर्थ               वाक्य

मन भर आना – भावुक होना – अपनी माँ को याद करके इंदु का मन भर आया।

फूट-फूट कर रोना – बहुत ज्यादा रोना – अपनी स्वर्गवासी माँ को याद करके इंदु कभी-कभी फूट-फूट कर रोने लगती है।

आँखें डबडबा आना – आँखों में आँसू आ जाना – अपनी माँ के साथ बिताए पलों को याद करके इंदु की आँखें डबडबा गईं।

दम घुटना – उकता जाना – कुछ लोगों को छोटी जगह में दम घुटने लगता है।

2.निम्नलिखित वाक्यों में उपयुक्त स्थान पर उचित विराम चिह्न का प्रयोग कीजिए-

 (i) पिता झट पूछते क्या बात है मेरी रानी बिटिया उदास क्यों है

उत्तर – पिता झट पूछते, “क्या बात है! मेरी रानी बिटिया उदास क्यों है?”

 (ii) पिता जी सिर पर हाथ फेरते हुए कहते शायद मैं तुम्हें माँ का पूरा प्यार नहीं दे पाया

उत्तर – पिता जी सिर पर हाथ फेरते हुए कहते, “शायद मैं तुम्हें माँ का पूरा प्यार नहीं दे पाया।”

(iii) वह उमंग से भर कहने लगी सच पिता जी आप ठीक कहते हैं

उत्तर – वह उमंग से भर कहने लगी, “सच पिता जी! आप ठीक कहते हैं।”

3.निम्नलिखित वाक्यों का हिंदी में अनुवाद कीजिए-

 (i) ਬਰਤਨ ਸਾਫ਼ ਕਰਕੇ ਨੀਰੂ ਨੇ ਰਸੋਈ ਨੂੰ ਧੋਇਆ ਅਤੇ ਸਾਗ ਕੱਟਣ ਵਿੱਚ ਮਗਨ ਹੋ ਗਈ।

उत्तर – बर्तन साफ करके नीरू ने रसोई को धोया और साग काटने में मग्न हो गई।

 (ii) ਸਭਾਪਤੀ ਨੇ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸੁਣਾਇਆ ਤਾਂ ਸਭ ਹੈਰਾਨ ਹੋ ਗਏ।

उत्तर – सभापति ने निर्णय सुनाया तो सब हैरान हो गए।

 (iii) ਭਗਵਾਨ ਨੇ ਇਹ ਦੋ ਹੱਥ ਕਰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਬਣਾਏ ਹਨ।

उत्तर – भगवान ने ये दो हाथ कर्म करने के लिए बनाए हैं।

1.क्या आप भी नीरू की तरह हर काम ज़िम्मेदारी से निभाते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – सच पूछा जाए तो मैं नीरू की तरह हर काम ज़िम्मेदारी से तो नहीं निभा पाता लेकिन इतना ज़रूर है कि कुछ काम पूरी ज़िम्मेदारी से निभाता हूँ जैसे कि दादा को समय पर दवाइयाँ देना। पौधों में पानी देना और सुबह-शाम पानी की सप्लाई के समय टंकी भर लेना और अपने गृहकार्य सही से पूरा करना।

2.अपने दैनिक कार्यों की सूची बनाइए और बताइए कि अपनी पसंद के कार्य के लिए आप किस तरह समय निकालते हैं?

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

1.कर्मशील व्यक्तियों के जीवन चरित्र पढ़े।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

2.कर्मठ व्यक्तियों के चित्र एकत्रित करके एक छोटी सी पत्रिका तैयार करें।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

3.आप अपने घर अपनी माता जी की मदद किस प्रकार करते हैं? क्या केवल लड़कियाँ ही मदद करती हैं या लड़के भी? कक्षा में चर्चा करें।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

हाथ पर मुहावरे

हाथ धो कर पीछे पड़ना – बुरी तरह पीछा करना।

हाथ मलना – पछताना।

हाथ साफ करना – चोरी करना।

हाथ फैलाना – याचना करना।

हाथ पाँव फूल जाना – घबरा जाना।

हाथों हाथ बिकना – बहुत जल्दी बिकना।

हाथों के तोते उड़ना – बहुत व्याकुल होना।

हाथ धो बैठना- किसी वस्तु से वंचित होना, गँवा बैठना।

हाथ पैर मारना – कोशिश करना।

हाथ रँगना – खूब धन कमाना।

हाथ खींचना – सहायता बंद करना।

हाथ तंग होना – पैसों का अभाव।

 

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