डॉ. यतीश अग्रवाल का जन्म 20 जून, 1959 में बरेली (उत्तरप्रदेश) में हुआ। ये एक बहुप्रतिभा संपन्न व्यक्ति हैं। ये वरिष्ठ चिकित्सक, प्रोफेसर, शोधकर्ता, लेखक, स्वास्थ्य स्तंभकार तथा प्रसारणकर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। आजकल ये ‘सफदरजंग हॉस्पिटल तथा वी.एम. मेडिकल कॉलेज’ नई दिल्ली में प्रोफेसर एवं परामर्शदाता के रूप में कार्य कर रहे हैं।
डॉ. यतीश अग्रवाल स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ उसे लोकप्रिय बनाने के लिए तीन दशकों से अधिक समय से कार्य कर रहे हैं। भारत के प्रमुख समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में इनके लेख नियमित रूप से छपते रहते हैं। इनके लेख सरल, सरस व प्रभावशाली होते हैं।
रचनाएँ- डॉ. यतीश अग्रवाल ने कई पुस्तकें लिखी हैं, इनमें प्रमुख हैं- ‘मन के रोग’, ‘नेत्र रोग’, ‘हृदय रोग’, ‘नारी स्वास्थ्य और सौंदर्य’, ‘दाम्पत्य विज्ञान’, ‘सबके लिए स्वास्थ्य’, ‘तुरन्त उपचार’, ‘स्वस्थ खाएँ तनमन जगाएँ’, ‘ब्लड प्रेशर जितना संयत उतना स्वस्थ’ तथा ‘दवाइयाँ और हम’ ।
स्वास्थ्य तथा चिकित्सा के क्षेत्र में इनके अपूर्व योगदान के कारण इन्हें भारत सरकार द्वारा नेशनल साइंस अवार्ड (1999), डॉ. मेघनाद साहा अवार्ड (1991, 1992 1993 तथा 2002), श्री अटल बिहारी वाजपेयी (प्रधानमंत्री) से ‘शिक्षा अवार्ड’ (2001-02), लिटरेचर अवार्ड हिंदी अकादमी (2003), राजीव गाँधी अवार्ड (2005), इंदिरा गाँधी अवार्ड (2006) आदि से नवाजा गया। इनके अतिरिक्त उपराष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा से ‘महाराजा अग्रसेन अवार्ड’ (1992), राष्ट्रपति श्री के. आर. नारायणन से आत्माराम अवार्ड’ (1999) तथा इंडियन काऊंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च अवार्ड (2004) से भी इन्हें सम्मानित किया गया है।
‘एक अंतहीन चक्रव्यूह’ निबंध में वर्तमान युग की एक ज्वलंत समस्या – नौजवानों में फैल रही नशे की लत तथा उसके घातक नतीजों को बखूबी दर्शाया गया है। इसमें लेखक ने बताया है कि नौजवान किस तरह इस नशे की लत में पड़कर अपना जीवन अंधकारमय बना लेते हैं। लेखक का कहना है कि शुरू-शुरू में लोग मात्र विनोद के लिए नशे को शुरू करते हैं जो धीरे-धीरे आदत बनकर व्यक्ति को अपना गुलाम बना लेता है। नशे के आदी व्यक्ति की हालत ऐसी हो जाती है कि वह नशा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। वह चोरी तस्करी या कोई भी अपराध करने को तत्पर हो जाता है। उसका पारिवारिक व सामाजिक जीवन नष्ट हो जाता है। लेखक ने यह भी माना है कि नशे के आदी व्यक्ति का इससे छुटकारा पाना आसान नहीं है। डॉक्टर और स्वयंसेवी संस्थाएँ इस लत को छुड़ाने के काम में लगी हैं फिर भी लेखक ने लोगों को नशों से दूर रहने की सलाह दी है।
धरती पर जीवन का अंकुर फूटते ही आदमी तरह-तरह के प्रयोग करने लगा था। नशे की मायावी दुनिया से उसका प्रथम परिचय उन्हीं दिनों हुआ। सहस्रों वर्ष पहले धरती पर पग धरते ही उसने कौतूहलवश अपने आसपास उग रही वनस्पतियों के साथ न जाने कितने ही खेल खेले। उसे कुछ वनस्पतियों में मन को बहलाने और रंगने के गुण दिखे। समय की धारा में वह निर्बुद्धि उनके चक्रव्यूह में ऐसा फँसा कि उसे सुध ही न रही और वह इन का बंदी बन गया। सच, मादक पदार्थों के आकाशकुसुम हैं ही ऐसे कि कोई कितना ही छटपटाए, इस चक्रव्यूह से बचकर निकल पाना बहुत मुश्किल है। नशे के दलदल भरे चक्रव्यूह में फँसा आदमी तन- मन-धन अपना सब कुछ ही लुटा देता है। सभ्यता का सूर्य उगने से बहुत पहले ही आदमी ने पेड़-पौधों से नशीले पदार्थ पाकर उनका रसास्वादन शुरू कर दिया था। पुरातात्विक उत्खननों से पता चला है कि पाषाण युग में भी अफीम का सेवन हुआ करता था। भाँग, गाँजा और चरस का इतिहास भी हज़ारों साल पुराना है। भारत, मिस्त्र, चीन और तुर्की में 3,000 वर्ष ईसा पूर्व से इनके इस्तेमाल के सुस्पष्ट उल्लेख मिलते हैं। उत्तरी और केंद्रीय अमेरिका के कबीलों ने मैक्सीको में उगने वाले नशीले नागफनी और दक्षिण अमेरिकी आदिवासियों ने कोकेन का सदियों से नशा किया है।
19वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक मन की तार तरंगों को रागमय बनाने के ये भ्रामक प्रयास आबादी के छोटे-से हिस्से तक सीमित थे। जीवन की सच्चाइयों से मुँह मोड़ने के लिए थोड़े- से लोग नशे की भूल भुलैया में खो जाया करते थे। जैसे-जैसे जीवन का रूप बदला, तौर- तरीके और मूल्य बदले, चिलम का धुआँ समाज की रग-रग में बढ़ता फैलता गया। आज नशा करनेवालों में हर तबके और हर उम्र के लोग हाई स्कूल और कॉलेज के छात्र-छात्राएँ, पढ़ाई बीच में छोड़ देनेवाले किशोर और युवा, कलाकार, अभिनेता-अभिनेत्रियाँ, छोटे-बड़े, दुकानदार, दफ्तर में कलम घिसते क्लर्क, छोटी-बड़ी फैक्टरियों में काम करत मजदूर, रिक्शा-ठेला खींचने वाले, तिपहिया स्कूटर और टैक्सी चालक, पान-सिगरेट बेचनेवाले और बेरोजगार- सभी इस भूल-भुलैया में सम्मिलित हैं। कोई गम ग़लत करने, तो कोई शून्य, स्नेहरिक्त, नीरस जीवन में रस लाने के लिए, कोई उत्सुकतावश तो कोई फैशनेबल दिखने- कहलाने के लिए नशे के नरक में धँसता जा रहा है।
मोटे तौर पर आदमी की नशे की निर्भरता दो तरह की होती है। पहली वह, जिसमें नशा न मिलने पर मन बेचैन होने लगता है, पर शारीरिक लक्षण नहीं उभरते। इसे मनोवैज्ञानिक निर्भरता (साइकोलॉजिकल डिपेंडेंस) कहते हैं। कुछ नशों में मन के बाद शरीर भी नशे का इतना गुलाम हो जाता है कि अगली खुराक न मिलने पर छटपटाने लगता है। धीरे-धीरे खुराक की मात्रा भी बढ़ती जाती है। यह दूसरी अवस्था शारीरिक निर्भरता (फिज़िकल डिपेंडेंस) के दरजे में आती है। इसे ही व्यसन या ड्रग एडिक्शन भी कहते हैं।
नशे की शुरुआत अक्सर किसी दोस्त या साथी के कहे में आकर होती है। यह एक ‘अनुभव’ ही कई बार आगे चलकर व्यसन में तबदील हो जाता है। अवसाद, तनाव, विफलता, आदि मन को कमज़ोर बनाने वाली स्थितियाँ भी आदमी को नशे की ओर धकेल सकती हैं। मन का संतुलन खोजता आदमी एक अंतहीन चक्रव्यूह में फँस जाता है।
कुछ इस गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं कि नशा कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता बढ़ाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि नशा करने से मननक्षमता क्षीण हो जाती है और व्यक्ति अपना स्वास्थ्य भी गँवा सकता है। कुछ विद्यार्थी परीक्षा के दिनों में यह सोचकर भी नशीली दवाएँ लेने लगते हैं कि इससे उनकी मानसिक एकाग्रता बेहतर बन जाएगी, पर होता उलटा है।
व्यक्तित्व की कुछ खामियाँ भी आदमी को नशे में डुबो सकती हैं। ज़रा ज़रा-सी बात पर चिंता, तनाव, अवसाद और मन में हीन भावना का घर कर जाना नशे की तरफ ले जा सकता है। घर में बड़ों को नशा करते देखकर भी कुछ किशोर और युवा गुमराह हो जाते हैं।
हर नशा मन की दुनिया पर गहरा असर डालता है। ज़्यादातर मादक पदार्थ सुख का भ्रांति – भाव पैदा करते हैं। आदमी पर मदहोशी-सी छा जाती है और मन कुछ सोच नहीं पाता। इसके साथ-साथ हर नशे का अपना एक खास रंग होता है। एल. एस. डी. और पी.सी.पी. नाना प्रकार के भ्रमराक्षस (इल्यूजन) उत्पन्न करते हैं रंगों में सुर्खी आ जाती है, खुद का अस्तित्व परिवेश में मिटता लगता है और मन अद्भुत कल्पनाओं की उड़ान भरने लगता है। कैनाबिस लेने के बाद मन प्रमत्त हो उठता है, बेवजह हँसी और रुलाई छूटने लगती है और वास्तविकता से नाता टूट जाता है। कोई चीज़ बड़ी दिखती है तो कोई छोटी, सुबह शाम लगती है और शाम सुबह अपना शरीर ही अपरिचित सा दिखने लगता है। एम्फेटामिन दवाएँ विभ्रम पैदा करती हैं। आदमी दृष्टि-भ्रम और श्रुति-भ्रमों से घिर जाता है। कोकेन के सेवन से कभी यह आभास होता है कि मानो त्वचा के नीचे असंख्य कीड़े रेंगने लगे हैं।
लगभग सभी नशों का लगातार सेवन मनन क्षमता और स्मरण शक्ति को कमज़ोर बना देता है। रोगी पर आलस्य छाया रहता है और वह पोस्ती हो जाता है। किसी कामकाज में मन नहीं लगता, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। जरा-जरा-सी बात पर झूठ बोलने की आदत बन जाती है। पहनावे और व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति लापरवाह हो जाता है। शंकालु-भाव हावी होने पर मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। नशा करने वाले लोगों में आत्महत्या की दर भी अधिक पाई गई है।
नशीले पदार्थों का सेवन शरीर पर भी कई दुष्प्रभाव डालता है। भूख मर जाती है, जिससे शरीर दुर्बल हो जाता है और रोगों से लड़ने के काबिल नहीं रहता। यही कारण है कि नशा करने वालों में तपेदिक, एच. आई. वी. और दूसरे संक्रामक रोग अधिक पाए जाते हैं। मतली, कै और शरीर के दर्द भी उन्हें सताते हैं। सिगरेट और चिलम के सहारे नशा करनेवालों के फेफड़े रुग्ण हो जाते हैं। यह लोग बिना फिल्टर की सिगरेट पीते हैं और नशे का पूरा रस लेने के लिए उसका धुआँ देर तक भीतर रोके रखते हैं। इससे वातस्फीति (एम्फ़ाइसिमा, दम फूलने का एक रोग) और फेफड़े का कैंसर होने की आशंका कई गुणा बढ़ जाती है। पूरे समूह में एक ही टीके से नस में नशीली दवा लेनेवालों में यकृतशोथ (हेपेटाइटिस-बी) और एच.आई.वी. एड्स का खतरा बढ़ जाता है।
मन और तन की ये रुग्णताएँ रोगी के पारिवारिक और सामाजिक जीवन को भी खंडहरों में बदल देती हैं। वह अपनों का प्यार और साथ खो बैठता है और दुनिया में निरपट अकेला हो जाता है। नौकरी छूट जाती है, मित्र और सगे-संबंधी छूट जाते हैं। आर्थिक समस्याएँ दिनोंदिन बढ़ती जाती हैं। इसके बावजूद मन और तन की छटपटाहट अगली खुराक जुटाने के लिए उससे चोरी, नशीले पदार्थों की बिक्री, तस्करी आदि कुछ भी करवा सकती है जिससे वह फिर और ज्यादा दलदल में फँसता जाता है तथा अपराधी का जीवन जीने के लिए विवश हो जाता है।
मादक पदार्थों के व्यसन से मुक्ति पाना आसान नहीं होता। शारीरिक आसक्तता उत्पन्न करने वाले नशे समय से अगली खुराक न मिलने पर तन-मन के भीतर गहरी तड़प पैदा कर देते हैं। ये अवहार लक्षण नशा न मिलने के चंद घंटों बाद ही शुरू हो जाते हैं और 10-14 दिन तक कायम रहते हैं। इस चक्रव्यूह से निकलने के लिए चिकित्सीय मदद की ज़रूरत पड़ती है।
नशे के चंगुल से मुक्त कराने में मनोरोग विशेषज्ञ विशेष रूप से मदद कर सकते हैं। नशा- मुक्ति के लिए वे कई प्रकार की चिकित्सीय पद्धतियाँ व्यवहार में लाते हैं। कुछ नशीले पदार्थों से छुटकारा दिलाने के लिए डॉक्टर नशे की खुराक घटाते हुए उसे धीरे-धीरे बंद करते हैं, तो कुछ नशों को बंद करने के साथ-साथ ऐसी दवाएँ दी जाती हैं, जिनसे तन-मन की छटपटाहट नियंत्रण में रहती है। उपचार का यह प्रथम चरण प्रायः दो हफ्ते तक चलता है। इस दौरान रोगी को अस्पताल में भरती करना पड़ सकता है।
मादक पदार्थों के चंगुल से निकलने के बाद उपचार का दूसरा चरण शुरू होता है। इसमें रोगी के मानसिक और सामाजिक पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं। यह पुनर्वास परिवारजनों और प्रियजनों के सच्चे सहयोग से ही पूरा हो सकता है। जब तक रोगी बीते जीवन को भुला न ले और उसमें नई शुरुआत करने का संकल्प न जागे, यह यज्ञ संपन्न नहीं हो सकता।
आज देश में बहुत से सरकारी और गैर-सरकारी संगठन, अस्पताल, पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाएँ नशामुक्ति की सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं। किंतु अच्छाई इसी में है कि इस चक्रव्यूह से स्वयं को बिल्कुल आज़ाद ही रखें। कोई कुछ भी कहे, न तो नशों के साथ एक्सपेरिमेंट करना अच्छा है, न ऐसी संगत में रहना ठीक है जहाँ लोग उसके चंगुल में क़ैद हों। कई युवा दूसरों की देखादेखी इस चक्रव्यूह में फँस तो जाते हैं, पर फिर चाह कर भी उसकी क़ैद से छूट नहीं पाते। चारों तरफ अँधियारा गहराता जाता है, जीवन खून की सिसकियों में लिपट जाता है और मृत्यु का साया समीप आता दिखाई देता है।
अंतहीन – जिसका अंत न हो
चक्रव्यूह – = चक्र के रूप में सेना की स्थापना टिप्पणी : युद्ध में एक ऐसी मोर्चाबंदी जिसके अंदर फँसने के बाद उसमें से फिर बाहर निकलना असंभव हो जाता है, नशे की लत पड़ने पर भी यही स्थिति होती है कि व्यक्ति फिर नशे के दलदल से बाहर नहीं आ पाता।
कौतूहलवश – उत्सुकता के कारण
पुरातात्विक – पुरातत्व (प्राचीन वस्तुओं की खोज एवं अध्ययन) से संबंधित
रसास्वादन – स्वाद लेना
उत्खनन – ज़मीन से खोदकर निकालना, खुदाई
पाषाण – पत्थर
नागफनी – साँप के फन के आकार का गूदेदार पौधा
कोकेन – कोका की पत्तियों से तैयार किया गया द्रव्य, जिसे लगाने से अंग सुन्न हो जाता है।
उत्तरार्द्ध – पिछला आधा भाग
भ्रामक – भ्रम उत्पन्न करने वाला, बहलाने वाला
चिलम – मिट्टी की बनी हुई नली जिस में तंबाकू जलाकर पीते हैं।
गम ग़लत करना – दुख भूलने के लिए नशा करना
स्नेहरिक्त – स्नेह से रहित
व्यसन – लत
अवहार – अस्थायी
ड्रग एडिक्शन – नशीले पदार्थ पर शारीरिक व मानसिक रूप से निर्भरता
अवसाद – सुस्ती, थकावट, उदासी
हताशा – निराशा, दु:ख
कल्पनाशीलता – मन की कल्पना शक्ति, सृजनात्मकता मौलिकता, रचनात्मक शक्ति
भ्रांति – भ्रम, संदेह
पोस्ती – अफ़ीम खाने वाला
हीनभावना – अपने को तुच्छ समझने की भावना
तपेदिक – क्षय रोग, टी. बी. (Tubercle bacillus)
मतली – मिचली, जी मचलने की अवस्था
कै – वमन, उल्टी करना
रुग्ण – बीमार, दूषित
यकृतशोथ – जिगर की सूजन
एड्स – (एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएँसी सिंड्रोम) एक विशेष तरह के वायरस से उत्पन्न एक रोग जिसमें शरीर की रोग-बचाव प्रणाली बेअसर हो जाती हैं।
निरपट – बिल्कुल
आसक्तता – लिप्तता
पुनर्वास – बीमारी आदि के कारण उजड़े / बर्बाद हुए लोगों का उपचार करके उन्हें फिर से बसाना
एक्सपेरिमेंट – प्रयोग
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) नशे के चक्रव्यूह में फँसा आदमी क्या कुछ लुटा देता है?
उत्तर – नशे के चक्रव्यूह में फँसा आदमी अपना शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन व एकाग्रता, अपनी संपत्ति और अपना सामाजिक रुत्बा सब कुछ लुटा देता है।
(ii) व्यसन या ड्रग एडिक्शन किसे कहते हैं?
उत्तर – जब किसी व्यक्ति को नशे की आदत लग जाती है और नशा न करने या मिलने की स्थिति में उसका मन व्यग्र होने लगता है और तन नियंत्रण से बाहर होने लगता है तो उसे ही व्यसन या ड्रग एडिक्शन कहते हैं।
(iii) नशे के अंतहीन चक्रव्यूह में कौन फँस जाता है?
उत्तर – मानसिक सुकून और शरीर को आराम देने की चाह में नशे का सहारा लेने वाले लोग नशे के अंतहीन चक्रव्यूह में फँस जाते हैं।
(iv) कोकेन के सेवन से क्या नुकसान होता है?
उत्तर – कोकेन के सेवन से ऐसा महसूस होता है कि त्वचा के नीचे असंख्य कीड़े रेंग रहे हैं जो लंबे समय के बाद मनन क्षमता और स्मरण शक्ति को कमज़ोर कर देती है।
(v) नशा करने से पारिवारिक व सामाजिक जीवन पर क्या असर पड़ता है?
उत्तर – नशा करने से पारिवारिक व सामाजिक जीवन खंडहरों में बदल जाता है। वह अपनों का प्यार और साथ खो बैठता है और दुनिया में निपट अकेला हो जाता है।
(vi) नशा करने से आर्थिक जीवन पर क्या असर पड़ता है?
उत्तर – नशा करने से आर्थिक जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है, जैसे कि अगर नशा करने वाला नौकरीशुदा व्यक्ति है तो उसकी नौकरी चली जाती है। अपने नशे की अगली खुराक के लिए वह चोरी करने तक को तैयार हो जाता है।
(vii) कौन-कौन-सी संस्थाएँ नशामुक्ति की सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं?
उत्तर – आज देश में बहुत से सरकारी संस्थाएँ और गैर-सरकारी संगठन, अस्पताल, पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाएँ नशामुक्ति की सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं।
2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिये-
(i) नशे की भूल भुलैया में लोग क्यों फँस जाते हैं?
उत्तर – नशे की भूल भुलैया में लोग अपनी मानसिक कमजोरी की वजह से फँस जाते हैं। कोई गम ग़लत करने के लिए तो कोई शून्य, स्नेहरिक्त, नीरस जीवन में रस लाने के लिए, तो कोई उत्सुकतावश तो कोई फैशनेबल दिखने-कहलाने के लिए नशे के नरक में धँसता जाता है।
(ii) लेखक के अनुसार किस तरह के लोग नशे के शिकार होते हैं?
उत्तर – लेखक के अनुसार जो लोग अपने जीवन में हताशा, निराशा, तनाव, दबाव में जीते हैं वे ही अधिकतर नशे के शिकार होते हैं, जिसमें – हाई स्कूल और कॉलेज के छात्र-छात्राएँ, पढ़ाई बीच में छोड़ देनेवाले किशोर और युवा, सफल-असफल कलाकार, अभिनेता-अभिनेत्रियाँ, छोटे-बड़े दुकानदार, दफ्तर में कलम घिसते क्लर्क, छोटी-बड़ी फैक्टरियों में काम करते मजदूर, रिक्शा-ठेला खींचने वाले, तिपहिया स्कूटर और टैक्सी चालक, पान-सिगरेट बेचनेवाले और बेरोजगार शामिल हैं।
(iii) लोगों में नशे के बारे में किस तरह की ग़लतफहमी है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर – लोगों में नशे के बारे में इस तरह की ग़लतफहमी है कि यह सृजनात्मकता और कल्पनाशीलता को बढ़ाता है। इसके सेवन से काम द्रुत गति के साथ-साथ बिना त्रुटि के हो सकता है और नशे के सेवन से मन की एकाग्रता बढ़ती है, जबकि यह पूर्णत: गलत तथ्य है।
(iv) नशा करने वाले व्यक्ति के स्वभाव में क्या परिवर्तन आ जाता है?
उत्तर – नशा करने वाले व्यक्ति के स्वभाव में तरह-तरह के परिवर्तन आ जाते हैं जिसमें किसी कामकाज में मन का नहीं लगना, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाना, जरा-जरा-सी बात पर झूठ बोलने की आदत बन जाना, पहनावे और व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति लापरवाह हो जाना, शंकालु-भाव हावी होने पर मरने-मारने पर उतारू हो जाना शामिल हैं।
(v) नशा करने से कौन-कौन सी भयंकर बीमारियाँ होती हैं?
उत्तर – नशीले पदार्थों का सेवन करने से अनेक भयंकर बीमारियाँ होती हैं, जैसे – भूख मर जाती है, जिससे शरीर दुर्बल हो जाता है और रोगों से लड़ने के काबिल नहीं रहता। इसके फलस्वरूप तपेदिक, एच. आई. वी. और दूसरे संक्रामक रोग अधिक पाए जाते हैं। सिगरेट और चिलम के सहारे नशा करनेवालों के फेफड़े रुग्ण हो जाते हैं। इससे वातस्फीति और फेफड़े का कैंसर होता है। समूह द्वारा एक ही टीके से नस में नशीली दवा लेने से यकृतशोथ और एच.आई.वी. एड्स का खतरा बढ़ जाता है।
3.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिये-
(i) नशा करने का एक बार का अनुभव आगे चलकर व्यसन में बदल जाता है-कैसे?
उत्तर – अनेक अध्ययनों और रिपोर्टों की मानें तो नशे की शुरुआत अक्सर किसी दोस्त या साथी के कहे में आकर होती है। यह एक ‘अनुभव’ ही कई बार आगे चलकर व्यसन में तब्दील हो जाता है। आगे चलकर जीवन में आने वाले अवसाद, तनाव, विफलता आदि मन को कमज़ोर बनाने वाली स्थितियाँ भी आदमी को नशे की ओर धकेलती हैं। इस तरह से मन का संतुलन खोजता आदमी एक नशे के अंतहीन चक्रव्यूह में फँस जाता है।
(ii) नशेड़ी व्यक्ति का जीवन अंततः नीरस हो जाता है-कैसे?
उत्तर – नशेड़ी व्यक्ति का जीवन अंततः नीरस हो जाता है क्योंकि वह नशे की लत के कारण इस सुंदर जीवन का आनंद उठा ही नहीं पाता। पहले तो वह समाज से अलग हो जाता है। दूसरा उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। लोग उससे कोई संपर्क रखना भी पसंद नहीं करते। इन सभी कारणों से नशेड़ी व्यक्ति का जीवन नीरसता की ओर बढ़ता रहता है और अंत में जब उसका स्वास्थ्य पूरा खराब हो जाता है तो वह अपने परिवारवालों के साथ-साथ समाज के लिए भी एक बोझ बन जाता है।
(iii) नशामुक्ति के क्या-क्या उपाय किए जाते हैं?
उत्तर – नशामुक्ति के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं, जैसे –
– नशेड़ी को नशे की अगली खुराक न मिलने पर तन-मन के भीतर गहरी तड़प पैदा होती है। इसके लिए चिकित्सीय मदद की ज़रूरत पड़ती है।
– इसमें मनोरोग विशेषज्ञ विशेष रूप से मदद कर सकते हैं।
– नशा-मुक्ति के लिए डॉक्टर नशे की खुराक घटाते हुए उसे धीरे-धीरे बंद करते हैं, तो कुछ नशों को बंद करने के साथ-साथ ऐसी दवाएँ दी जाती हैं, जिनसे तन-मन की छटपटाहट नियंत्रण में रहती है। – उपचार का यह प्रथम चरण प्रायः दो हफ्ते तक चलता है। इस दौरान रोगी को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है।
– उपचार के दूसरे चरण में रोगी के मानसिक और सामाजिक पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं।
– यह पुनर्वास परिवारजनों और प्रियजनों के सच्चे सहयोग से ही पूरा हो सकता है।
– देश में बहुत से सरकारी और गैर-सरकारी संगठन, अस्पताल, पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाएँ नशामुक्ति की सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं।
(iv) निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
-अवसाद, तनाव, विफलता, हताशा आदि मन को कमज़ोर बनाने वाली स्थितियाँ भी नशे की ओर धकेल सकती हैं। मन का संतुलन खोजता आदमी एक अंतहीन चक्रव्यूह में फँस जाता है।
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि कई बार हम अपने जीवन में अवसाद, तनाव, विफलता, हताशा आदि के कारण मानसिक दबाव में चले जाते हैं और उससे निजात पाने के लिए नशे का सहारा लेने लगते हैं। फिर यह पता ही नहीं चलता कि कब हम इसके आदी हो चुके हैं। इसलिए हमें यह जानने की आवश्यकता है कि अवसाद, तनाव, विफलता, हताशा जीवन के अनचाहे तत्त्व हैं जो यदा-कदा हमारे जीवन में आते ही रहेंगे इसलिए इनके वशीभूत होकर हमें नशे की तरफ नहीं बढ़ना चाहिए।
-किंतु अच्छाई इसी में है कि इस चक्रव्यूह से स्वयं को बिल्कुल आजाद ही रखें। कोई कुछ भी कहे, न तो नशों के साथ एक्सपेरिमेंट करना अच्छा है, न ऐसी संगत में रहना ठीक है जहाँ लोग उसके चंगुल में क़ैद हों।
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि हमें पहले से अपने मन को इस चीज़ के लिए तैयार कर लेना होगा कि नशे की तरफ हम किसी भी कीमत पर आगे नहीं बढ़ेंगे। न ही हम ऐसे लोगों से किसी भी प्रकार का संबंध रखेंगे कि उनके प्रभाव में हम भी नशा करने लग जाए। नशा पहली और दूसरी बार भले ही हमें सुख की अनुभूति कराता हो पर इसकी आदत हमारे जीवन को पूरी तरह से तहस-नहस कर देता है।
1.निम्नलिखित में से उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द उपसर्ग मूल शब्द
निर्बुद्धि निर् + बुद्धि
दुष्प्रभाव दुस् + प्रभाव
बेचैन बे + चैन
बेरोज़गार बे + रोज़गार
उत्खनन उत् + खनन
विवश वि + वश
2.निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द मूल शब्द प्रत्यय
निर्भरता निर्भर + ता
पुरातात्विक पुरातत्त्व + इक
मानसिक मानस + इक
कल्पनाशीलता कल्पनाशील + ता
चिकित्सीय चिकित्सा + ईय
विफलता विफल + ता
शारीरिक शरीर + इक
मनोवैज्ञानिक मनोविज्ञान + इक
सृजनात्मकता सृजनात्मक + ता
सरकारी सरकार + ई
3.निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
मुहावरा अर्थ वाक्य
मुँह मोड़ना – उपेक्षा करना, ध्यान न देना – नशे करने वालों से सभी मुँह मोड़ लेते हैं।
रग-रग में फैलना – सब जगह फैलना – बेईमानी तो आजकल समाज के रग-रग में फैल गई है।
घर करना – मन में कोई बात बैठ जाना – माउंट एवरेस्ट पर विजय पाने की बात हरप्रीत के मन में घर कर गई है।
सुध न रहना – याद न रहना – नशे करने वालों को अपने स्वास्थ्य की सुध नहीं रहती।
ग़म ग़लत करना – दुख भूलने के लिए नशा करना – ग़म ग़लत करने के नाम पर नशा करना आज का शहरी प्रचलन हो गया है।
नाता टूटना – संबंध ख़त्म हो जाना – लोग नशेड़ियों से अपना नाता तोड़ लेते हैं।
4.निम्नलिखित पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए-
(i) ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਖੁਰਾਕ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵੀ ਵੱਧਦੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
उत्तर – धीरे-धीरे ख़ुराक की मात्रा भी बढ़ती जाती है।
(ii) ਨਸ਼ੇ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਆਮਤੌਰ ‘ਤੇ ਕਿਸੇ ਦੋਸਤ ਜਾਂ ਸਾਥੀ ਦੇ ਕਹਿਣ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।
उत्तर – नशे की शुरुआत आमतौर पर किसी दोस्त या साथी के कहने में आकर होती है।
(iii) ਨਸ਼ੇੜੀ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕੰਮ ਵਿੱਚ ਮਨ ਨਹੀਂ ਲਗਦਾ।
उत्तर – नशेड़ी व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता
(iv) ਨਸ਼ੀਲੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਲਤ ਤੋਂ ਮੁਕਤੀ ਪਾਉਣਾ ਅਸਾਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ।
उत्तर – नशीले पदार्थों की आदत से मुक्ति पाना आसान नहीं होता
(v) ਨਸ਼ਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਖੁਦ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਅਜ਼ਾਦ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।
उत्तर – नशे से हमें स्वयं को सदा आज़ाद रखना चाहिए।
1.‘घर में बड़ों को नशा करते देखकर भी कुछ किशोर और युवा गुमराह हो जाते हैं।’ क्या आप लेखक की इस उक्ति से सहमत हैं? यदि हाँ, तो चार-पाँच वाक्यों में उत्तर दीजिए।
उत्तर – ‘घर में बड़ों को नशा करते देखकर भी कुछ किशोर और युवा गुमराह हो जाते हैं।’ मैं लेखक की इस उक्ति से सहमत हूँ परंतु पूर्णत: नहीं –
-जब घर मे बड़े नशा करते हैं तो छोटों को यही लगता है कि यकीनन यह कोई अच्छी ही चीज होगी।
– जब छोटे बड़े हो जाते हैं और बड़े बूढ़े हो जाते हैं तो वे भी अपने बड़ों की राह पर चलते हुए नशा करने लग जाते हैं।
– नशा करने से कुछ समय के लिए भले ही मानसिक शांति का एहसास होता होगा पर इससे शरीर और स्वस्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है पर फिर भी युवाओं कि इसकी लत लग जाती है।
– यदि बड़े घर में नशा करते हैं और उन्हें कोई लाइलाज बीमारी या शरीर का कोई अंग सदा-सदा के लिए काम करना बंद कर देता है या उसे जबरन निकलवाना पड़ता है तो नशे के बुरे परिणाम को देखकर छोटे डर-सहम जाते हैं और नशा करने की सोचते तक नहीं हैं।
2.यदि आपको कोई नशा करने के लिए उकसाए तो आप किस तरह उसे मना करेंगे?
उत्तर – यदि मुझे कोई नशा करने के लिए उकसाए तो मैं उसे तने हुए शब्दों में मना कर दूँगा और यह भी चेतावनी दूँगा कि यदि मुझे दुबारा नशा करने के लिए उकसाया तो पुलिस थाने में तेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दूँगा।
1.नशा उन्मूलन संबंधी प्रभावशाली नारे एक चार्ट पर लिखकर कक्षा की दीवार पर लगाइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
2.तख्तियाँ बनाकर उन पर सुंदर लिखावट के साथ नशा उन्मूलन संबंधी प्रभावशाली नारे लिखें और जब भी स्कूल की ओर से नशा उन्मूलन रैली का आयोजन किया जाए तो इन नारों से समाज को नशों से दूर रहने के लिए जागृत करें।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
3.नशों के घातक परिणामों से संबंधित चित्र अखबारों, मैगज़ीनों, इंटरनेंट आदि से इकट्ठे कीजिए और उनका कोलाज बनाइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
4.नशा उन्मूलन संबंधी कोई एकांकी ढूँढ़ें अथवा अपने मित्रों/अध्यापकों की मदद से छोटी-सी नाटिका लिखें और उसे बाल सभा में मंचित करें।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
5.जब भी कभी आपके स्कूल में नशों के विरोध में कोई आयोजन हो तो उस अवसर पर ‘नशामुक्ति’/ ‘नशाबंदी’ विषय पर छात्रों का एक समूह मिलकर एक प्रदर्शनी का आयोजन करे।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
6.स्कूल में नशा उन्मूलन विषय पर आयोजित होने वाली विभिन्न क्रियाओं जैसे ‘निबंध’, ‘भाषण’, ‘वाद-विवाद’ तथा ‘पोस्टर बनाना’ आदि प्रतियोगिताओं में सक्रिय भाग लें। 7. 1 दिसम्बर को प्रतिवर्ष ‘विश्व एड्स दिवस’ के अवसर पर स्कूल में आयोजित होने वाली कार्यशाला में भाग लें। इस अवसर पर अध्यापकों, रिसोर्स पर्सन्स, चिकित्सकों आदि के ‘एड्स’ विषय पर बहुमूल्य विचार सुनें एवं इस अवसर पर आयोजित ‘प्रश्नोत्तरी काल’ में ‘एड्स’ से संबंधित प्रश्न पूछकर अपनी सभी जिज्ञासाओं को शांत करें।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- कोकेन – यह भी एक खतरनाक ड्रग है। इसकी लत से दृष्टिभ्रम, मतिभ्रम, क्रोधयुक्त उन्माद आदि होने लगता है और पूरी तरह से मनुष्य का मानसिक व नैतिक पतन हो जाता है। भारत सहित अनेक देशों में इसके उपयोग व बिक्री पर रोक है।
- एल. एस. डी. (लाइसर्जिक एसिड डाई ऐथाइलामाइड) : तेज़ मादक पदार्थ जिसे लेने से मानसिक व्यवहार और शारीरिक क्रिया-कलापों पर गहरा असर पड़ता है। मन व्यग्रता से घिर उठता है, मतिभ्रम और दृष्टिभ्रम होने से सच्चाई से नाता टूट जाता है और तरह-तरह की मानसिक विकृतियां दिलोदिमाग पर हावी हो जाती हैं।
- पीसीपी (फेनसाइक्लीडिन) : कई नामों जैसे एँजल डस्ट, पीस पिल (शाँति की गोली) और सेरनिल के नाम से बिकने वाली नशे की गोली जिसे लेने से सच्चाई से नाता टूट जाता है और मन-मस्तिष्क में कई तरह के भ्रम-विभ्रम उठ खड़े होते हैं।
- कैनाबिस देश के कई हिस्सों में उगने वाली बूटी, जिसके विभिन्न हिस्सों से मादक पदार्थ भांग, गांजा और चरस प्राप्त किए जाते हैं। इनका नशे करने से मतिभ्रम उत्पन्न होता है, जिसके चलते छोटी-सी चीजें बहुत बड़ी दिखने लग सकती हैं, कानों में आवाजें सुनाई देने लग सकती हैं, और नशे की इस हालत में आदमी कई प्रकार से अपना बुरा कर सकता है। लंबे समय तक इनके सेवन से तन-मन दोनों पर गंभीर दुष्परिणाम पड़ते हैं।
- एम्फेटामिन दवाएँ मस्तिष्क को उत्तेजित करने वाली शक्तिशाली दवाओं का एक खास वर्ग। अक्सर इन दवाओं का दुरुपयोग एकाग्रता और मानसिक सतर्कता में वृद्धि लाने के लिए होता है। युवा पीढ़ी में ‘स्पीड’ के नाम से लोकप्रिय ये दवाएँ नींद भगाने, थकान मिटाने और सुखबोध उत्पन्न करने के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं, किंतु उनके सेवन से तन-मन पर अनेक दुष्परिणाम पड़ सकते हैं। ये दवाएँ अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, दिल की धड़कनों की गड़बड़ी, ब्लड प्रेशर में वृद्धि पैदा करती हैं, आदमी को नशाखोर बनाती हैं और दिल पर बुरा असर डाल मौत की नींद सुला सकती हैं।
- एच.आई.वी. (ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएन्सी वायरस) : यह एक विषाणु है जिसके साथ एड्स फैलता है।
- एड्स – यह अंग्रेजी के अक्षर ए.आई.डी.एस. से बना है अर्थात् एक्वायर्ड इम्यून डेफिशिएन्सी सिन्ड्रोम। वास्तव में यह कोई रोग नहीं है अपितु एक शारीरिक अवस्था है जिसमें मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होते-होते लगभग खत्म ही हो जाती है तथा मनुष्य फिर साधारण रोग-कीटाणुओं द्वारा फैलने वाली सामान्य बीमारियों से भी अपने आप को बचा नहीं पाता। इस तरह फिर वह प्राणघातक संक्रामक रोगों व कई तरह के कैंसर आदि से ग्रस्त हो सकता है।
- तपेदिक (क्षयरोग) T.B. (Tubercle bacillus) : यह एक संक्रामक बीमारी है जो आमतौर पर फेफड़ों पर हमला करती है लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकती है। यह हवा के माध्यम से तब फैलती है जब वे लोग जो टी.बी. संक्रमण से ग्रसित हैं और छींक, खांसी या किसी अन्य प्रकार से हवा के माध्यम से अपनी लार संचारित कर देते हैं।
- हेपेटाइटस बी / यकृतशोथ: यह वायरस के कारण होने वाली एक संक्रामक बीमारी है जिसके कारण लीवर में सूजन और जलन पैदा होती है।