रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 ई. में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक स्थान पर हुआ था। इन्होंने बी. ए. तक की शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से प्राप्त की। इन्होंने सीतागढ़ी में सब-रजिस्ट्रार के पद पर कार्य किया। सन् 1952 से 1964 तक दिनकर जी राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1964 में ये भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर नियुक्त हो गये। कई वर्ष दिनकर जी भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे।
रचनाएँ इनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता तथा विश्व बंधुत्व की भावना विशेष रूप से मिलती है। आरंभ में इन्होंने कुछ रचनाएँ छायावादी रंग में लिखीं। परंतु बाद में इनका स्वर सामाजिक चेतना से जा जुड़ा। इनकी चर्चित कृतियों में ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’ तथा ‘उर्वशी’ का नाम उल्लेखनीय है। गद्य रचनाओं में ‘संस्कृति के चार अध्याय’ खूब चर्चा का विषय रही है। इनकी शैली ओज, प्रवाह, अनुभूति और संवेदना के तत्त्वों से सदा युक्त रही है। इनकी मृत्यु 1974 ई. में हुई।
प्रस्तुत निबंध ‘हिम्मत और जिंदगी’ जीवन के उस सत्य को साथ लेकर चलता है, जिसके अनुसार हिम्मत, परिश्रम, साहस, कर्मठता आदि तत्त्व ही हमारी सफलता के आधार – बिंदु हैं। परिश्रम सफलता की कुंजी है। हमें जीवन में चुनौती स्वीकार करनी चाहिए। हिम्मत हार कर हम जीवन नहीं जी सकते। जोखिम उठा कर आगे बढ़ना- यही मनुष्य की पहचान है। दुख-सुख, असफलता सफलता, गम-खुशी को समान दृष्टि से देखना चाहिए तभी हम जीने की कला सीख सकते हैं।
जिंदगी के असली मज़े उनके लिए नहीं है, जो फूलों के नीचे खेलते और सोते हैं बल्कि फूलों की छाँह के नीचे अगर जीवन का कोई स्वाद छिपा है, तो वह भी उन्हीं के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं, जिनका कंठ सूखा हुआ, होंठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है। पानी में जो अमृत वाला तत्त्व है, उसे वह जानता है, जो धूप में खूब सूख चुका है, वह नहीं जो रेगिस्तान के वश में कभी पड़ा ही नहीं है।
सुख देने वाली चीजें पहले भी थीं और अब भी हैं। फर्क यह है कि जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं उनके मजे बाद में लेते हैं, उन्हें स्वाद अधिक मिलता है। जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है उनके लिए आराम ही मौत है।
जो लोग पाँव भीगने के ख़ौफ़ से पानी से बचते रहते हैं समुद्र में डूब जाने का खतरा उन्हीं के लिए है। लहरों में तैरने का जिन्हें अभ्यास है, वे मोती लेकर बाहर आएँगे।
चाँदनी की ताज़गी और शीतलता का आनंद वह मनुष्य लेता है जो दिन भर धूप में थक कर लौटा है, जिसके शरीर को अब तरलाई की जरूरत महसूस होती है और जिसका मन यह जानकर संतुष्ट है कि दिन भर का समय उसने किसी अच्छे काम में लगाया है।
इसके विपरीत वह आदमी भी है जो दिन भर खिड़कियाँ बंद करके पंखों के नीचे छुपा हुआ था और अब रात में जिसकी सेज बाहर चाँदनी में लगाई गई है। भ्रम तो शायद उसे भी होता होगा कि वह चाँदनी के मज़े ले रहा है, लेकिन सच पूछिए तो वह खुशबूदार फूलों के रस में दिन-रात सड़ रहा है।
उपवास और संयम, ये आत्महत्या के साधन नहीं हैं। भोजन का असली स्वाद उसी को मिलता है, जो कुछ दिन बिना खाये भी रह सकता है। “त्यक्तेन भुंजीथा: जीवन का भोग त्याग के साथ करो”, यह केवल परमार्थ का ही उपदेश नहीं है, क्योंकि संयम से भोग करने पर जीवन से जो आनद प्राप्त होता है, वह निरा भोगी बन कर भोगने से नहीं मिल पाता।
बड़ी चीजें बड़े संकटों में विकास पाती हैं। बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पल कर दुनिया पर क़ब्ज़ा करती हैं। अकबर ने तेरह साल की उम्र में अपने बाप के दुश्मन को परास्त कर दिया था, जिसका एकमात्र कारण यह था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था और वह भी उस समय जब उसके बाप के पास कस्तूरी के एक नाफे को छोड़ कर और दौलत नहीं थी।
महाभारत में देश के प्रायः अधिकांश वीर कौरवों के पक्ष में थे। मगर फिर भी जीत पांडवों की हुई, क्योंकि उन्होंने लाक्षागृह की मुसीबत झेली थी, वनवास के जोखिम को पार किया था।
श्री विन्स्टन चर्चिल ने कहा है कि जिंदगी का सबसे बड़ा गुण हिम्मत है। आदमी के अन्य सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं।
जिंदगी की दो सूरतें हैं। एक तो यह कि आदमी बड़े-बड़े मकसद के लिए कोशिश करे, जगमगाती हुई जीत पर पंजा डालने के लिए हाथ बढ़ाये और अगर असफलताएँ कदम- कदम पर जोश की रोशनी के साथ अँधियाली का जाल बुन रही हों, तब भी वह पीछे को पाँव न हटाये।
दूसरी सूरत यह कि वह उन ग़रीब आत्माओं का हमजोली बन जाए, जो न तो बहुत अधिक सुख पाती हैं और न जिन्हें बहुत अधिक दुख पाने का संयोग है, क्योंकि ये आत्माएँ ऐसी गोधूलि में बसती हैं जहाँ न तो जीत हँसती है और न कभी हार के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ती है। इस गोधूलि वाली दुनिया के लोग बँधे हुए घाट का पानी पीते हैं, वे जिंदगी के साथ जुआ नहीं खेल सकते और कौन कहता है कि पूरी जिंदगी को दाँव पर लगा देने में कोई आनंद नहीं है?
अगर रास्ता आगे ही आगे निकल रहा हो तो फिर असली मजा तो पाँव बढ़ाते जाने में ही है।
साहस की जिंदगी सबसे बड़ी जिंदगी होती है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेख़ौफ़ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान है कि वह इस बात की चिन्ता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देख कर चलना, यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं, और न अपनी चाल को ही पड़ोस की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं।
साहसी मनुष्य उन सपनों में भी रस लेता है, जिन सपनों के कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं हैं। साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, वह अपने विचारों में रमा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है।
झुंड में चरना, यह भैंस और भेड़ का काम है। सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मग्न रहता है।
अर्नाल्ड बेनेट ने एक जगह लिखा है, कि जो आदमी यह महसूस करता है कि किसी महान् निश्चय के समय वह साहस से काम नहीं ले सका, जिंदगी की चुनौती को क़बूल नहीं कर सका, वह सुखी नहीं हो सकता। बड़े मौके पर साहस नहीं दिखाने वाला आदमी बराबर अपनी आत्मा के भीतर एक आवाज़ सुनता रहता है, एक ऐसी आवाज़ जिसे वही सुन सकता है और जिसे वह रोक भी नहीं सकता। यह आवाज उसे बराबर कहती रहती है, “तुम साहस नहीं दिखा सके, तुम कायर की तरह भाग खड़े हुए।” सांसारिक अर्थ में जिसे हम सुख कहते हैं उसका न मिलना, फिर भी, इससे कहीं श्रेष्ठ है कि मरने के समय हम अपनी आत्मा से यह धिक्कार सुनें कि तुममें हिम्मत की कमी थी, कि कि तुम में साहस का अभाव था, कि तुम ठीक वक्त पर जिंदगी से भाग खड़े हुए।
जिंदगी को ठीक से जीना हमेशा ही जोखिम झेलना है और जो आदमी सकुशल जीने के लिए जोखिम को हर जगह पर एक घेरा डालता है, वह अंततः अपने ही घेरों के बीच कैद हो जाता है और उसे जिंदगी का कोई मज़ा नहीं मिल पाता, क्योंकि जोखिम से बचने की कोशिश में, असल में, उसने जिंदगी को ही आने से रोक रखा है।
जिंदगी से, अंत में हम उतना ही पाते हैं जितनी कि उसमें पूँजी लगाते हैं। यह पूँजी लगाना जिंदगी के संकटों का सामना करना है, उसके उस पन्ने को उलट कर पढ़ना है जिसके सभी अक्षर फूलों से ही नहीं, कुछ अंगारों से भी लिखे गए हैं। जिंदगी का भेद कुछ उसे ही मालूम है जो यह जानकर चलता है कि जिंदगी कहीं भी खत्म न होने वाली चीज़ है। अरे ओ जीवन के साधको! तुम निचली डाल का फल तोड़कर लौटे जा रहे हो, तो फिर फुनगी पर का वह लाल-लाल आम किसके वास्ते हैं?
अरे ओ जीवन के साधको! अगर किनारे की मरी हुई सपियों में ही तुम्हें संतोष हो जाए तो समुद्र के अंतराल में छिपे हुए मौक्तिक कोष को कौन बाहर लाएगा?
दुनिया में जितने भी मजे बिखेरे गए हैं, उनमें तुम्हारा भी हिस्सा है। वह चीज भी तुम्हारी हो सकती है, जिसे तुम अपनी पहुँच के परे मान कर लौटे जा रहे हो।
कामना का आँचल छोटा मत करो। जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबा कर निचोड़ो, रस की निर्झरी तुम्हारे बहाए भी बह सकती है।
कंठ – गला
ख़ौफ़ – डर
परास्त – पराजित
मद्धिम – हलका, मंद
उपवास – व्रत, भोजन का त्याग
जनमत – लोगों की राय
लाक्षागृह – लाख का बना घर
जोखिम – ख़ौफ़ निडर
अंतराल में – बीच में
अंततः – अंत में, आखिरकार
जोखिम – 1.हानि, अनिष्ट, घाटे की संभावना, 2. खतरा, संकट
मौक्तिक-कोष – मोतियों का खजाना
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) सुख का स्वाद किन लोगों को अधिक प्राप्त है?
उत्तर – सुख का स्वाद उन लोगों को अधिक प्राप्त होता है जिन्होंने सुख को प्राप्त करने के लिए पहले एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया होगा।
(ii) लेखक के अनुसार किन लोगों के लिए आराम ही मौत है?
उत्तर – लेखक के अनुसार उन लोगों के लिए आराम ही मौत है जिन्हें आराम से जीवन गुजारने के लिए कभी मेहनत ही नहीं करनी पड़ी हो। उन्हें आरामदायक ज़िंदगी विरासत में मिली हो।
(iii) ‘त्यक्तेन भुंजीथा:’ का क्या अर्थ है?
उत्तर – ‘त्यक्तेन भुंजीथा:’ का अर्थ है – जीवन का भोग त्याग के साथ करें।
(iv) अकबर ने कितने वर्ष की उम्र में अपने पिता के दुश्मन को हराया था?
उत्तर – अकबर ने तेरह (13) वर्ष की उम्र में अपने पिता के दुश्मन को हराया था।
(v) महाभारत का युद्ध किन-किन के मध्य हुआ था?
उत्तर – महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के मध्य हुआ था।
(vi) महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत का क्या कारण था?
उत्तर – महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत का कारण यह था कि उन्होंने मुसीबतें झेलीं थीं, जैसे लाक्षागृह की अग्नि को झेला था तो वनवास के कष्ट को उठाया था।
(vii) साहसी व्यक्ति की पहली पहचान क्या है?
उत्तर – साहसी व्यक्ति की पहली पहचान यह होती है कि उसे इस बात की कभी भी चिंता नहीं रहती कि उसके काम से उसके आस-पास वाले उसके बारे में क्या सोचेंगे।
(viii) लेखक के अनुसार साधारण जीव कौन-से लोग हैं?
उत्तर – जो लोग अपने आस-पड़ोस की चाल के अनुसार अपनी चाल तय करते हैं, लेखक के अनुसार वे ही साधारण जीव होते हैं।
(ix) लेखक ने किन्हें क्रांति करने वाले लोग कहा है?
उत्तर – लेखक ने उन्हें क्रांति करने वाले लोग कहा है जो अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं, और न अपनी चाल को ही पड़ोस की चाल देखकर मद्धिम यह तेज़ बनाते हैं।
2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिये-
(i) लेखक के अनुसार नींद तथा भोजन का वास्तविक आनन्द किन्हें मिलता है?
उत्तर – लेखक के अनुसार नींद का असली आनंद वही कर्मवीर व्यक्ति ले सकता है जिसने दिनभर कड़ी मेहनत की है और रात को सोते वक्त उसे यह एहसास होता है कि आज अच्छे कर्मों के संपादन में उसका दिन बिता है। भोजन का वास्तविक आनंद उन्हें ही मिलता है जो कई दिनों से भूखा हो या जो कुछ दिन बिना खाये भी रह सकता है।
(ii) जीवन में असफलताएँ मिलने पर भी साहसी मनुष्य क्या करता है?
उत्तर – जीवन में असफलताएँ मिलने पर भी साहसी मनुष्य अपने लक्ष्य से नहीं भटकता और न ही लक्ष्य बदलता है, बल्कि लक्ष्य को प्राप्त करने का तरीका बदलता है। पूरे हिम्मत के साथ, फिर से आगे बढ़ता है। अपनी गलतियों से सीखकर नई रणनीतियाँ अपनाता है। ऐसे साहसी मनुष्य हर मुश्किलों को चुनौती के रूप में स्वीकार करता है और लक्ष्य प्राप्ति न हो जाने तक दृढ़संकल्पित रहता है।
(iii) महान निश्चय व बड़े मौके पर कायरता दिखाने वाले व्यक्ति का जीवन कैसा होता है?
उत्तर – महान निश्चय व बड़े मौके पर कायरता दिखाने वाले व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है। पहले तो वह अपने जीवन को सुखमय और स्मृतिममय नहीं बना पाता। उसे हमेशा यह मलाल रहता है कि उसने महान निश्चय व बड़े मौके सही फैसला न लेकर कायरता दिखाई और यही आवाज़ उसकी अंतर-आत्मा से निरंतर आती रहती है जो उसे कभी भी चैन से बैठने या सोने नहीं देती।
(iv) जिंदगी में जोखिम से बचने के कारण क्या हानि होती है?
उत्तर – जिंदगी में जोखिम से बचने के कारण मनुष्य के कर्मक्षेत्र का दायरा सीमित हो जाता है। वह अपनी ज़िंदगी को पूरे तरह से खुलकर नहीं जी पाता। वह हमेशा जोखिम से बचने के लिए अपनी असीमित शक्तियों को संकुचित कर लेता है। उस आदमी का जीवन ठीक वैसे ही हो जाता है जैसे कोई वायुयान आकाश में उड़ने के लिए बना हो पर जोखिम के डर से जीवन भर एयरपोर्ट पर ही खड़ा रहा हो।
3.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिये-
(i) साहसी व्यक्ति के कोई पाँच गुण लिखिए।
उत्तर – साहसी व्यक्ति के पाँच गुण निम्नलिखित हैं –
हिम्मत – यह किसी भी मनुष्य का सर्वप्रथम गुण होता है।
ईमानदारी – साहसी व्यक्ति में ईमानदारी का अमूल्य गुण भी होता है।
आत्मकेंद्रित – साहसी व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति इतने सपर्पित होते हैं कि औरों के निंदा और प्रशंसा से इन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता।
दृढ़संकल्प – सफलता के आकांक्षी सफलता के मिल जाने तक दृढ़संकल्पित होते हैं।
आत्ममंथन – साहसी व्यक्ति अपने साहस का प्रदर्शन करते हैं तो इस बात का भी ख्याल रखते हैं कि उनके कार्य और प्रयास सही दिशा की ओर ही बढ़े।
(ii) निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए :
– जो लोग पाँव भीगने के ख़ौफ़ से पानी से बचते रहते हैं, समुद्र में डूब जाने का खतरा उन्हीं के लिए है। लहरों में तैरने का जिन्हें अभ्यास हैं, वे मोती लेकर बाहर आएँगे।
उत्तर – इन पंक्तियों का आशय यह है कि जीवन में जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा। घर से बाहर निकलकर चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ेगा। जीवन का यही सार है। परंतु जो लोग जोखिम उठाने से डरते हैं, वे साधारण-जीवन जीते हैं। पाँव भीग जाने के डर से पानी में उतरने वाले समुद्र की गहराइयों से मोती नहीं निकाल पाते अर्थात् जीवन के जोखिमों से डरने वाले लोग जीवन में सफलता हासिल नहीं कर पाते।
– अगर रास्ता आगे ही आगे निकल रहा हो तो फिर असली मजा तो पाँव बढ़ाते जाने में ही है।
उत्तर – लेखक इस पंक्ति के माध्यम से कहना चाहते हैं कि सफलता किसी निर्दिष्ट स्थान पर जाकर रुकने में नहीं वरन् सफलता मिलने के बाद भी निरंतर आगे बढ़ते रहने में ही है। जिस प्रकार रास्ते कभी खत्म नहीं होते उसी प्रकार जीवन में सफलताओं के मार्ग कभी समाप्त नहीं होते। हमारा संपूर्ण जीवन भी बहुत कम होता है सफलता के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए। इसलिए हमारी साँसें जब तक चल रही हैं और तब तक हमें भी रुकना नहीं है और सफलता के मार्ग पर उत्तरोत्तर बढ़ते ही जाना है।
– अरे ओ जीवन के साधको! अगर किनारे की मरी हुई सीपियों में ही तुम्हें संतोष हो जाए तो समुद्र के अंतराल में छिपे हुए मौक्तिक कोष को कौन बाहर लाएगा?
उत्तर – लेखक रामधारी सिंह ‘दिनकर’ यह कहना चाहते हैं कि साधारण जीवन जीने वालों को मनुष्य योनि में जीवन मिलना निरर्थक है। इस दुनिया में इतना सुख, इतना ऐश्वर्य इतनी संपत्ति है जिसकी कल्पना करना असंभव है। इससे अनजान कुछ लोग जीवन से थोड़ा मिल जाने पर कृत हो जाते हैं। लेखक का मानना है कि जिन व्यक्तियों को समुद्र के किनारे मिली सीपियों से ही संतुष्टि की प्राप्त हो जाए वो समुद्र के गर्भ में छिपे मोतियों के भंडार को बाहर लाने के बारे में क्या सोचेगा।
– कामना का आँचल छोटा मत करो। जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबाकर निचोड़ो, रस की निर्झरी तुम्हारे बहाए भी वह सकती है।
उत्तर – इन पंक्तियों का आशय यह है कि जीवन में आप बहुत कुछ और बहुत अच्छा हासिल कर सकते हैं लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए आपको उतना ही साहसी बनना पड़ेगा ताकि निडर होकर अपने कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ते रहे। जोखिम से डरे नहीं और मुश्किलों से घबराए नहीं। ज़िंदगी मिली है तो उसे पूरे जोश के साथ जीएँ। जो जिंदगी के इस फल को अपने दोनों हाथों से निचोड़ता है उसे निर्झरी के समान सफलता रूपी रस की प्राप्ति होती है।
1.निम्नलिखित तत्सम शब्दों के तद्भव रूप लिखिए-
तत्सम तद्भव
पुष्प फूल
ओष्ठ होंठ
मृत्यु मौत
हस्त हाथ
रात्रि रात
गृह घर
लाक्षा लाख
कर्म काम
2.निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उन्हें वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए-
मुहावरा अर्थ वाक्य
दाँव पर लगाना – कोई वस्तु बाजी पर लगाना – कुछ लोग अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपना जीवन दाँव पर लगा देते हैं।
पाँव बढ़ाना – चाल तेज करना, जल्दी-जल्दी चलना, आगे बढ़ना – व्यापारी अपने व्यापार में पाँव बढ़ाते चलते हैं।
3. निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध करके लिखिए-
अशुद्ध शुद्ध
रेगीस्तान रेगिस्तान
सन्तुष्ट संतुष्ट
सवाद संवाद
खुशबुदार खुशबूदार
आतमा आत्मा
संजम संयम
ज़रुरत ज़रूरत
चुनोती चुनौती
अवाज़ आवाज़
निरझरी निर्झरी
4.निम्नलिखित वाक्यों में सही विराम चिह्न लगाइए-
(i) झुंड में चरना यह भैंस और भेड़ का काम है
उत्तर – झुंड में चरना, यह भैंस और भेड़ का काम है।
(ii) यह आवाज़ उसे बराबर कहती रहती है तुम साहस नहीं दिखा सके तुम कायर की तरह भाग खड़े हुए
उत्तर – यह आवाज़ उसे बराबर कहती रहती है, “तुम साहस नहीं दिखा सके, तुम कायर की तरह भाग खड़े हुए।”
(iii) अरे ओ जीवन के साधको तुम निचली डाल का फल तोड़कर लौटे जा रहे हो तो फिर फुनगी का वह लाल लाल आम किसके वास्ते है
उत्तर – अरे ओ जीवन के साधको! तुम निचली डाल का फल तोड़कर लौटे जा रहे हो, तो फिर फुनगी का वह लाल-लाल आम किसके वास्ते है?
1.“बड़ी चीजें बड़े संकटों में विकास पाती हैं। बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पल कर दुनिया पर क़ब्ज़ा करती हैं।” पाठ में आईं इन पंक्तियों के आधार पर किसी महापुरुष, विद्वान, आविष्कारक, योद्धा आदि में से किसी एक व्यक्तित्व पर अपने विचार लिखें जिसने बड़ी मुसीबतों का सामना करते हुए शीर्ष पर पहुँचकर नाम कमाया हो।
उत्तर – जगदीश चन्द्र बसु नाम के भारतीय वैज्ञानिक ने बड़ी मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करके यह पता लगाया था कि पौधों में भी संवेदना होती है। इसके बाद नोबल पुरस्कार प्राप्तकर्ता चन्द्रशेखर वेंकट रामन ने भी सीमित साधनों वाले प्रयोगशाला में अनुसंधान कार्य करके रामन प्रभाव की खोज की थी।
2.“आदमी के अन्य सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं।” आप लेखक के इस विचार से कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर – “आदमी के अन्य सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं।” मैं लेखक के इस विचार से पूर्णत: सहमत हूँ क्योंकि हिम्मत और साहस से ही अन्य सभी गुणों का विकास होता है। हिम्मत के कारण ही वह अन्य के खिलाफ आवाज़ उठाता है और अपने लक्ष्य की तरफ निर्भय होकर बढ़ता है।
1.हिम्मत बढ़ाने वाली कुछ प्रेरणादायक कविताओं / कहानियों का चयन कीजिए और उन्हें अपनी कक्षा में सुनाइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
2.उन महापुरुषों / देशभक्तों / समाज सुधारकों/योद्धाओं के चित्रों का संकलन कीजिए जिन्होंने हिम्मत की जिंदगी को जिया है।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
3.आपने अथवा आपके किसी मित्र/ परिचित ने किसी संकट के समय अदम्य साहस का परिचय दिया हो तो उस प्रसंग को अपनी कक्षा में सुनाएँ।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
4.स्टेशनरी की दुकान से एक स्टिक लाख लें और अध्यापक से जानें कि किस तरह ज़रूरी दस्तावेजों को सीलबंद करने में इसका उपयोग होता है।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
महाभारत – ‘महाभारत’ भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक अनुपम महाकाव्य है, जिसकी रचना माना जाता है कि वेदव्यास जी ने की। इस ग्रंथ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद भी माना जाता है। कहा जाता है कि ‘महाभारत’ का वास्तविक नाम ‘जय’ था। तत्पश्चात् इसे ‘भारत’ नाम से भी पुकारा गया तथा भरतवंश की गाथा होने के कारण बाद में यह ‘महाभारत’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कौरव – कौरव महाभारत में हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र और गांधारी के पुत्र थे। ये गिनती में सौ थे तथा राजा कुरु के वंशज थे। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था जो कि बहुत ही जिद्दी था।
पाँडव – पाँडव महाभारत के मुख्य पात्र हैं। पाँडव पाँच भाई थे युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव पांडवों के पिता का नाम पांडु था। पांडु की दो पत्नियाँ थीं- कुंती तथा माद्री। युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन की माता कुंती थी और नकुल एवं सहदेव माद्री के पुत्र थे।
लाक्षागृह – दुर्योधन के मामा शकुनि ने लाक्ष (लाख) के बने हुए घर (लाक्षागृह) में पांडवों को भेजकर उन्हें जलाकर मारने का प्रयत्न किया किंतु अपने काका विदुर की मदद व समझबूझ से वे उस जलते हुए गृह से बच निकले।
अकबर – तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक अकबर था। इसके पिता का नाम हुमायूँ तथा दादा का नाम बाबर था।
विन्स्टन चर्चिल – ये एक अंग्रेज़ राजनीतिज्ञ थे और 1940-1945 के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री थे। इसके अतिरिक्त वे इतिहासकार, लेखक और कलाकार भी थे। वे एकमात्र प्रधानमंत्री थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।