सुभद्राकुमारी चौहान
(सन् 1904-1948)
हिंदी कवयित्रियों में सुभद्राकुमारी चौहान का प्रमुख स्थान है। इनका जन्म सन् 1904 की नाग पंचमी को प्रयाग (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। कहीं कहीं इनका जन्म सन् 1905 में लिखा हुआ भी मिलता है। इनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा-प्रेमी एवं उच्च विचारों के व्यक्ति थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा प्रयाग में संपन्न हुई। इन्होंने क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की।
रचनाएँ : सुभद्राकुमारी चौहान को बचपन से ही काव्य से बहुत प्रेम था। इनके हृदय की भाँति इनकी कविताएँ भी सरल और निर्मल भावों से युक्त हैं। इनकी कविताओं के दो काव्य संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-’मुकुल’ और ‘त्रिधारा’। इनकी कविताओं में देश-प्रेम की भावना तथा वात्सल्य भाव का चित्रण विशेष रूप से हुआ है। ‘झाँसी की रानी’, ‘वीरों का कैसा हो बसंत’, ‘राखी की चुनौती’ तथा ‘जलियाँवाला बाग़ में बसंत’ इनकी अत्यंत लोकप्रिय कविताएँ हैं।
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन्होंने बढ़चढ़कर भाग लिया। सन् 1948 में एक दुर्घटना में इनका निधन हो गया था।
पाठ-परिचय
प्रस्तुत कविता में ‘झाँसी की रानी’ की वीरगाथा है। उन्होंने अंग्रेजी सेना के साथ साहसपूर्वक मुकाबला करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। वह भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अमर सेनानी रही हैं। कवयित्री ने रानी की समाधि पर अपने स्नेह और श्रद्धा के पुष्प अर्पित किए हैं और समाधि में छिपी उनकी राख की ढेरी में भारत की स्वतंत्रता की चिंगारी को देखा है। कवयित्री को रानी की समाधि अति प्रिय है क्योंकि इसमें वीरांगना की स्मृतियाँ समाई हुई हैं जो हमें सदा प्रेरणा देती रहेंगी।
झाँसी की रानी की समाधि पर
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी।
जलकर जिसने स्वतंत्रता की दिव्य आरती फेरी॥
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की।
अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की॥
यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न विजय माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी॥
सहे वार पर वार अन्त तक लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर चमक उठी ज्वाला-सी॥
बढ़ जाता है मान वीर का रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की, आशा की चिनगारी॥
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते॥
पर कवियों की अमर गिरा में इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती है वीरों की बानी॥
बुंदेले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी।
खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी॥
यह समाधि यह चिर समाधि है, झाँसी की रानी की।
अन्तिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की।
शब्दार्थ
समाधि – चिता पर बनाया जाने वाला एक स्मारक
ज्वाला – आग की लपट
मान – आदर-सत्कार
स्वतंत्रता – आज़ादी
रण – युद्ध
दिव्य – अप्रतिम, अलौकिक
लघु – छोटी
मूल्यवती – मूल्यवान
निहित – छिपी हुई
अंतिम – आखिरी
निशीथ – आधी रात
लीला स्थली = जहाँ कार्य किया जाए
क्षुद्र – छोटे
भग्न – टूटी-फूटी
वाणी – आवाज़
संचित – इकट्ठी की हुई, जमा
विजय-माला – जीत की माला
हरबोले – बुंदेलखंड की एक जाति जो राजा-महाराजाओं का यशोगान करती थी।
स्मृति – याद
बाला – लड़की, युवती
चिर – सदा रहने वाली
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) समाधि में छिपी राख की ढेरी किसकी है?
(ii) किस महान लक्ष्य के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने अपना बलिदान दिया?
(iii) रानी लक्ष्मीबाई को कवयित्री ने ‘मरदानी’ क्यों कहा है?
(iv) रण में वीरगति को प्राप्त होने से वीर का क्या बढ़ जाता है?
(v) कवयित्री को रानी से भी अधिक रानी की समाधि क्यों प्रिय है?
(vi) रानी लक्ष्मीबाई की समाधि का ही गुणगान कवि क्यों करते हैं?
2. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(i) यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न विजय माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी॥
सहे वार पर वार अन्त तक लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर चमक उठी ज्वाला-सी॥
(ii) बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की आशा की चिनगारी॥
(iii) इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते॥
पर कवियों की अमर गिरा में इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती है वीरों की बानी॥
(ख) भाषा-बोध
1. निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-
एकवचन बहुवचन
रानी रानियाँ
माला
समाधि
शाला
ढेरी
चिता
प्यारी
ज्वाला
बहुवचन
चिनगारी
कहानी
बाला
गाथा
2. निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध करके लिखिए-
अशुद्ध शुद्ध
सुतंत्रता स्वतंत्रता
आरति
लघु
स्थलि
भगन
आहूति
मुल्यवती
भसम
कशुद्र
कवीयों
श्रधा
जंतू
(ग) पाठ्येतर सक्रियता
1. रानी लक्ष्मीबाई की पूरी जीवनी पुस्तकालय से पुस्तक लेकर पढ़ें।
2. रानी लक्ष्मीबाई के अतिरिक्त दुर्गाभाभी (क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा की धर्मपत्नी), झलकारी बाई, सुनीति चौधरी, सुहासिनी गांगुली, विमल प्रतिभा देवी (भारत नौजवान सभा, बंगाल शाखा की अध्यक्ष) आदि की जीवनियों के बारे में पुस्तकों/ इंटरनेट से जानकारी ग्रहण करें।
3. स्वतंत्रता सेनानियों से संबंधित डाक टिकटों/सिक्कों अथवा चित्रों का संग्रह करें।
4. पंजाब के अमर शहीदों जैसे लाला लाजपतराय, भगत सिंह, करतार सिंह सराभा, मदनलाल ढींगरा आदि के बारे में पढ़ें व इनके जीवन से देशभक्ति की प्रेरणा लें।
5. झाँसी की आधिकारिक वेबसाइट (www.jhansi.nic.in) पर झाँसी / रानी झाँसी से संबंधित दुर्लभ चित्रों का अवलोकन करें।
(घ) ज्ञान-विस्तार
1. झाँसी : झाँसी भारत के उत्तर प्रदेश का एक जिला है। यह उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है। यह शहर बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है।
2. झाँसी के दर्शनीय स्थल झाँसी-किला, रानी महल, झाँसी-संग्रहालय, महालक्ष्मी- मंदिर, गणेश मंदिर व गंगाधर राव की छतरी।
3. रानी लक्ष्मीबाई लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर, 1828 ई० को काशी (बाद में बनारस और अब वाराणसी) के भदैनी नगर में हुआ। लक्ष्मीबाई की जन्म तिथि के बारे में इतिहासकारों / विद्वानों की एक राय नहीं है। कुछ विद्वान इनका जन्म 19 नवम्बर, 1835 को मानते हैं। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे व माता का नाम भागीरथी बाई था। लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था किंतु सभी इसे प्यार से मनु कहते थे। मनु का विवाह झाँसी के महाराज गंगाधर राव से हुआ था। विवाह के बाद मनु का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। इस तरह मनु झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई। सन् 1851 को रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया किन्तु कुछ ही महीने बाद गंभीर रूप से बीमार होने पर इस बालक की चार महीने की उम्र में ही मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् महाराज बीमार रहने लगे और उन्होंने एक बच्चे को गोद लिया। इस बालक का नाम दामोदर राव रखा गया। किन्तु महाराज का स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा था अतः कहते हैं कि पुत्र गोद लेने के दूसरे ही दिन महाराज की भी मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने गोद लिए हुए पुत्र को राजा मानने से इंकार कर दिया। वे झाँसी को अपने अधीन करना चाहते थे किंतु रानी ने अंग्रेजों को घोषणा की कि मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी। तत्पश्चात् रानी और अंग्रेज़ों में भयंकर युद्ध हुआ और 18 जून, 1858 को रानी अंग्रेज़ों से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई। (कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि रानी 17 जून, 1858 को शहीद हुई थीं अतः जन्म तिथि की ही भाँति इनकी शहादत की तिथि पर भी मतभेद हैं)
4. रानी लक्ष्मीबाई पर डाक टिकट भारत सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई पर वर्ष 1957 को पंद्रह पैसे का एक डाक टिकट जारी किया।
इसके बाद वर्ष 1988 को भारत सरकार ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के प्रमुख सेनानियों के लिखे नामों (रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, नाना साहब, मंगल पांडे, बहादुर शाह ज़फर) का डाक टिकट जारी किया जिसमें रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे ऊपर दर्ज है।
5. झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की सेना की महिला शाखा ‘दुर्गा दल’ की सेनापति थी झलकारी बाई। इसकी वीरता के किस्से भी झाँसी में प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि रानी की हमशक्ल होने के कारण इसने कई बार अंग्रेजों को धोखा दिया। मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी बाई की बहादुरी पर लिखा है-
“जाकर रण में ललकारी थी,
वह तो झाँसी की झलकारी थी
गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में,
झलक रही वह तो भारत की ही नारी थी।”
भारत सरकार ने 22 जुलाई, 2001 को झलकारी बाई का चार रुपए का डाक टिकट जारी किया।
6. बुंदेलखंड : बुंदेलखंड मध्यभारत का एक प्राचीन क्षेत्र है। यूँ तो बुंदेलखंड क्षेत्र दो राज्यों – उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश में विभाजित है परंतु भौगोलिक व सांस्कृतिक दृष्टि से यह एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ा है। रीति-रिवाजों, भाषा और विवाह संबंधों के कारण इसकी एकता और भी मज़बूत हुई है। बुंदेली इस क्षेत्र की बोली है। इतिहासकारों के अनुसार बुंदेलखंड में 300 ई० पूर्व मौर्य शासन काल के साक्ष्य उपलब्ध हैं। इसके बाद वाकाटक शासन, गुप्त, कलचुरी, चंदेल, बुंदेल शासन, मराठा शासन व अंग्रेजों का शासन रहा।
7. बुंदेले हरबोले : ‘बुंदेले हरबोले’ बुंदेलखंड की एक जाति विशेष है। इस जाति के लोग राजा-महाराजाओं के यश का गुणगान करने के लिए जाने जाते हैं।
8. बुंदेलखंड की अमर विभूतियाँ / विशिष्ट व्यक्तित्व
(i) आल्हा ऊदल आल्ह और ऊदल ये दो भाई थे। ये बुंदेलखंड (महोबा) के वीर योद्धा थे। इनकी वीरता की कहानी उत्तर भारत में गायी जाती रही है।
(ii) कवि पद्माकर – रीतिकालीन कवि।
(iii) रानी लक्ष्मीबाई – प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अमर सेनानी।
(iv) मैथिलीशरण गुप्त – राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के देदीप्यमान नक्षत्र हैं। इनका जन्म झाँसी (उत्तर प्रदेश) के चिरगाँव में हुआ।
(v) डॉ० हरिसिंह गौर – डॉ० हरिसिंह गौर सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, शिक्षाशास्त्री, ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता, समाज सुधारक, साहित्यकार, महान दानी व देशभक्त थे। ये दिल्ली तथा नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे हैं।