प्रो० हरमहेंद्र सिंह बेदी
प्रो० हरमहेंद्र सिंह बेदी का जन्म 12 मार्च, 1950 को पंजाब के मुकेरियाँ (होशियारपुर) में हुआ। ये समकालीन हिंदी कविता के नामवर कवि हैं। वे पिछले चार दशकों से पंजाब की हिंदी कविता के चश्मदीद गवाह रहे हैं। आपने पंजाब के हिंदी साहित्य को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में सक्रिय भूमिका निभायी है। आपने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए नार्वे, कनाडा और पाकिस्तान की यात्राएँ भी की हैं। इन्हें गुरुमुखी लिपि में उपलब्ध पंजाब के मध्यकालीन हिंदी साहित्य को प्रकाश में लाने का श्रेय जाता है। आपने एम.ए. (हिंदी, पंजाबी), पीएच. डी., डी. लिट्. तक की उच्चकोटि की शिक्षा ग्रहण की है।
रचनाएँ: ‘गर्म लोहा’ (1982), ‘पहचान की यात्रा’ (1987), ‘किसी और दिन’ (1999), ‘फिर से फिर’ (2011) आदि प्रमुख काव्य संकलन हैं। आपकी कविताओं में पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत स्वत: ही झलकती है। आपने हिंदी एवं पंजाबी में 36 ग्रंथों की रचना की। इनके अतिरिक्त आपने ‘ओम जय जगदीश हरे’ के कर्त्ता पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी की ग्रंथावली (तीन भाग) का संपादन भी किया है।
प्रो० बेदी 35 वर्षों तक गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर के हिंदी विभाग में अध्यापन के दौरान अध्यक्ष, डीन, कबीर विद्यापीठ के प्रभारी नामधारी सतगुरु राम सिंह चेयर के मुखी एवं स्वामी विवेकानंद अध्ययन केन्द्र के चेयरमैन रहे हैं। ये भारत सरकार की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे। आपको भारत के राष्ट्रपति द्वारा हिंदी सेवा के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है।
अब प्रो० बेदी राजस्थान के एक विश्वविद्यालय में विजिटिंग फैलो तथा पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में भाई काहन सिंह नाभा के ‘महान कोश’ के हिंदी अनुवाद- योजना के प्रभारी एवं संपादक के तौर पर कार्य कर रहे हैं।
पाठ-परिचय :
भारतवर्ष को अंग्रेज़ों के शासन से मुक्त कराने के लिए अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दे डाली। इन वीरों में पंजाब के वीर सपूतों का तो अद्वितीय स्थान रहा है जिनमें करतार सिंह सराभा, लाला लाजपतराय, भगतसिंह आदि का नाम तो बच्चा- बच्चा जानता है। इन पर प्रचुर मात्रा में साहित्य भी लिखा गया है किंतु ऐसे भी रणबांकुरे हुए हैं जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर देश को स्वतंत्रता दिलायी। इनमें पंजाब के एक वीर देशभक्त मदन लाल ढींगरा का नाम भी आता है। प्रस्तुत निबंध ‘महान देशभक्त : मदन लाल ढींगरा में लेखक ने बताया है कि भारतीय स्वतंत्रता की चिंगारी को आग में बदलने का श्रेय मदन लाल ढींगरा को जाता है। इस पाठ में लेखक ने उनकी सच्ची देशभक्ति तथा निडरता का सुंदर ढंग से परिचय दिया है। निस्संदेह यह निबंध विद्यार्थियों में आत्मविश्वास तथा निर्भीकता के गुणों को उत्पंन करेगा।
महान राष्ट्रभक्त : मदन लाल ढींगरा
भारतीय स्वतंत्रता की चिंगारी को अग्नि में बदलने का श्रेय महान शहीद मदन लाल ढींगरा को जाता है। मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितम्बर 1883 में पंजाब में एक संपन्न परिवार में हुआ। उनके पिता साहिब गुरदित्ता मल गुरदासपुर में सिविल सर्जन थे। सेवामुक्त होकर वे अमृतसर में रहने लगे।
मदन लाल शुरू से ही स्वतंत्रता प्रेमी थे। हर बात को वह तर्क के तराजू में तोल कर देखते थे। बचपन की कई ऐसी घटनाएँ मदन लाल ढींगरा के आत्मविश्वास को अभिव्यक्त करती हैं। भले ही मदन के परिवार में राष्ट्रभक्ति की कोई ऐसी परम्परा नहीं थी परंतु वह खुद शुरू से ही देशभक्ति के रंग में रंगे गए थे। लाहौर कॉलेज में पढ़ते हुए
उन्हें देशभक्ति के कारण कॉलेज छोड़ना पड़ा। कॉलेज छोड़कर उन्होंने कई धंधे किए, जिनमें कारखाने की मज़दूरी तथा अपना गुजारा करने के लिए रिक्शा और टांगा तक चलाना भी शामिल है। घर में केवल उनके बड़े भैया ही उनकी बात को सुनते व समझते थे। बड़े भैया के कारण ही वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सन् 1906 में इंग्लैंड चले गए। वहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी (मकैनिकल इंजीनियरिंग) में दाखिला ले लिया। यह मदन लाल ढींगरा के जीवन का नया मोड़ था। भाई की सहायता के बिना यह सब संभव न था। विदेश में रहकर अध्ययन करने में उनके बड़े भाई ने तो उनकी मदद की ही परंतु इसके साथ-साथ इंग्लैंड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्त्ताओं ने भी उनकी आर्थिक सहायता की।
लंदन में मदन लाल ढींगरा भारत के प्रखर राष्ट्रवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर तथा श्याम जी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए। इन्होंने उनके संपर्क में आने पर जहाँ अपने को गौरवान्वित महसूस किया वहीं सावरकर तथा श्याम जी कृष्ण वर्मा भी मदन लाल ढींगरा की देशभक्ति से प्रभावित हुए। कहा जाता है कि सावरकर ने ही मदन लाल को ‘अभिनव भारत’ नामक क्रांतिकारी संस्था का सदस्य बनाया और उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया। लंदन में श्याम जी कृष्ण वर्मा के संरक्षण में भारतीय छात्रों में राष्ट्रवादी विचारों के प्रचार के लिए ‘इंडिया हाउस’ की स्थापना की गयी। मदन लाल ‘इंडिया हाउस’ में ही रहते थे। उन दिनों खुदीराम बोस, कन्हैया लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने मृत्युदंड दे दिया। इन घटनाओं ने मदन लाल ढींगरा और सावरकर जैसे देशभक्तों के मन में अंग्रेज़ों के प्रति नफरत और बदले की भावना को जन्म दिया।
1 जुलाई, 1909 को ‘भारतीय राष्ट्रीय संस्था’ के सदस्य (इनमें अंग्रेज़ भी सदस्य थे) वार्षिक दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए। इसी समारोह में कर्जन वायली भी परिवार समेत आया। वह उस समय ‘स्टेट ऑफ इंडिया’ का सचिव सलाहकार था। मदन लाल ढींगरा ऐसे अधिकारियों से नफरत करते थे। मदन लाल ढींगरा का मानना था कि ऐसे नीच अधिकारियों ने हजारों भारतीयों को केवल गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि बिना किसी कारण के मौत के घाट उतारा है। 22 वर्ष के नौजवान ने अपनी जेब से पिस्टल निकाला और कर्ज़न वायली को सात गोलियों से वहीं ढेर कर दिया। मदन लाल ढींगरा सच्चे देशभक्त थे। वे भागे नहीं बल्कि बड़े आराम से अपना चश्मा ठीक करते हुए उन्होंने भरी सभा में अपने देशभक्त होने का साक्ष्य दिया।
1909 में अंग्रेज़ों के लिए यह पहली साहसपूर्ण चेतावनी थी कि भारतीय अपना देश आज़ाद करवाना चाहते हैं तथा आज़ादी के लिए हर कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं। मदन लाल ढींगरा ने बंग-भंग आंदोलन के समय भी लंदन की गलियों को ‘वंदे मातरम्’ से गुंजाया था। वे अपनी कमीज़ के ऊपर ‘वंदे मातरम्’ लिखकर लंदन के बाज़ारों में घूमा करते थे। अपनी हर पुस्तक के ऊपर मदन लाल ढींगरा न लिखकर ‘वंदे मातरम्’ लिखा करते थे। मदन लाल ढींगरा उच्च आदर्शों के स्वामी थे। वे भारतीय संस्कृति के मूल्यों का अनुपालन करना भी खूब जानते थे।
कर्जन वायली की हत्या के आरोप में उन पर 22 जुलाई, 1909 को अभियोग चलाया गया। मदन लाल ढींगरा ने अदालत में बड़े खुले शब्दों में कहा कि ‘मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन भारत माँ को समर्पित कर रहा हूँ। आप याद रखना कि भारत के सुनहरे दिन आने वाले हैं। बहुत जल्दी ही भारत माँ स्वतंत्र होगी।’ उन्होंने कहा कि ‘दुनिया के हर नागरिक को अपनी मातृभूमि स्वतंत्र कराने का अधिकार है। अंग्रेजों को कोई हक नहीं कि वे बिना किसी कारण भारतीयों को गुलाम बनाकर रखें।’
17 अगस्त, 1909 को मदन लाल ढींगरा को पेंटोविले की जेल, लंदन में फाँसी की सज़ा दी गई थी। यह वही जेल थी जहाँ शहीद ऊधमसिंह को भी फाँसी दी गयी थी। आयरिश लोगों ने मदन लाल ढींगरा की हिम्मत को सराहा क्योंकि वे खुद इंग्लैंड में रहकर अपनी आज़ादी के लिए जूझ रहे थे। मिस्टर वी. एस. बलंट, जो उस समय इंग्लैंड के मैंबर पार्लीमैंट थे, ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि ‘मैंने किसी ईसाई को भी इतने आत्मसम्मान और आत्मबल के साथ न्यायपालिका का सामना करते हुए नहीं देखा।’
ढींगरा की महान् शहादत को याद करते हुए लाला हरदयाल ने कहा कि ‘ढींगरा की शहीदी उन राजपूतों और सिक्खों की कुर्बानियों का स्मृति पुंज है जिसके कारण शहादत अमर बन जाती है। अंग्रेज़ सोचते होंगे कि उन्होंने मदन लाल ढींगरा को फाँसी देकर सदा के लिए स्वतंत्रता की आवाज को दबा दिया है परंतु वास्तविकता यह है कि यही आवाज़ भारत को स्वतंत्र बनाएगी।’ श्रीमती ऐनी बेसेंट ने मदन लाल की शहीदी पर कहा था कि “हमें देश की स्वतंत्रता के लिए अनेक मदन लालों की ज़रूरत है।” मदन लाल की शहीदी से प्रभावित हो कर वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय ने उनकी स्मृति में ‘मदन तलवार’ नामक पत्रिका निकाली। बाद में यह पत्रिका क्रांतिकारियों की विचारधारा की संवाहक बनी। 16 अगस्त, 1909 के ‘डेली न्यूज़’ समाचारपत्र में मदन लाल ढींगरा का जोशभरा वक्तव्य छपा जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘एक हिन्दू होने के नाते मैं अनुभव करता हूँ कि गुलामी राष्ट्र देवता का अपमान है। राष्ट्र पूजा ही राम और कृष्ण की पूजा है। मैं तब तक बार-बार जन्म लेना चाहूँगा जब तक भारत माँ स्वतंत्र न हो जाए।’
ब्रिटिश सरकार ने मदन लाल ढींगरा की देह को लावारिस करार देकर दफना दिया। वीर सावरकर जी ने ढींगरा की देह को प्राप्त करने के लिए अनथक प्रयत्न किए, परंतु वे सफल नहीं हुए, क्योंकि सरकार का कहना था कि वे उनके संबंधी नहीं हैं। कई वर्षों बाद जब 13 दिसम्बर, 1976 को महान शहीद ऊधम सिंह की अस्थियाँ भारत लाई गईं, उसी समय मदन लाल ढींगरा की अस्थियों को भी मातृभूमि का स्नेह प्राप्त हुआ।
शब्दार्थ
संपन्न – खुशहाल
अध्ययन – पढ़ाई
गौरवान्वित – महिमा से युक्त
प्रशिक्षण – सिखलाई, ट्रेनिंग
साक्ष्य – सबूत
अनुपालन – रक्षण
अभियोग – मुकद्दमा
स्मृति पुंज – यादों का समूह
संवाहक – आगे ले जाने वाली
वक्तव्य – कथन
अनथक – बिना थके
अस्थियाँ – हड्डियाँ
अभ्यास
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) मदन लाल ढींगरा का जन्म कब हुआ?
(ii) मदन लाल ढींगरा को लाहौर कॉलेज की पढ़ाई क्यों छोड़नी पड़ी?
(iii) कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर उन्होंने अपना गुज़ारा कैसे किया?
(iv) वे इंग्लैंड में कौन-सी पढ़ाई करने गए थे?
(v) मदन लाल ढींगरा किस क्रांतिकारी संस्था के सदस्य बने?
(VI) कर्जन वायली कौन था?
(vii) मदन लाल को फाँसी की सजा कब दी गयी?
(viii) शहीद मदन लाल ढींगरा की अस्थियाँ भारतभूमि कब लायी गयीं?
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए-
(i) मदन लाल ढींगरा ने अंग्रेज़ों से बदला लेने की क्यों ठानी?
(ii) कर्जन वायली को मदन लाल ढींगरा ने क्यों मारा?
(iii) मदन लाल ढींगरा की शहादत पर लाला हरदयाल ने क्या कहा था?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-
(i) ‘शहीद मदन लाल ढींगरा एक सच्चे देशभक्त थे।‘ ‘स्पष्ट कीजिए।
(ii) आपको शहीद मदन लाल ढींगरा के जीवन से क्या प्रेरणा मिलती है?
(ख) भाषा-बोध
1. निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध करके लिखें-
अशुद्ध शुद्ध
शरेय
आतमविश्वास
कालज
देशभगती
यांतरिकी
अध्यन
गौर्वान्वित
परशिक्शण
क्रांतीकारी
सथापना
मृत्यूदंड
हजार
आजादी
मातरिभुमि
स्मरिति
लवारिस
अस्थीयाँ
प्राप्त
2. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उनका वाक्यों में प्रयोग करें-
मुहावरा अर्थ वाक्य
तर्क के तराजू में तौलना सोच-समझकर फैसला लेना
रंग में रंगा जाना – प्रभाव पड़ना
मौत के घाट उतारना – मार डालना
ढेर करना – मार गिराना, मार कर गिरा देना
आवाज़ को दबाना – चुप कराना, डराना.
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
1. यदि आप मदन लाल ढींगरा के स्थान पर होते तो क्या परिवार वालों के विरोध के बावजूद स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़ते?
2. भारत की स्वतंत्रता की चिंगारी को आग में बदलने का काम मदन लाल ढींगरा की शहादत को जाता है। कैसे?
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
1. इस पाठ में आए अन्य क्रांतिकारियों जैसे विनायक दामोदर सावरकर, श्याम जी कृष्ण वर्मा, खुदीराम बोस, लाला हरदयाल आदि की जीवनियाँ पढ़ें।
2. मदन लाल ढींगरा की पुण्य तिथि पर इनके बारे में अपने विचार स्कूल की प्रार्थना सभा में प्रस्तुत करें।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
यांत्रिक अभियांत्रिकी (मकैनिकल इंजीनियरिंग) – यह भिन्न-भिन्न तरह की मशीनों की बनावट, निर्माण, चालन आदि का सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान है। विनायक दामोदर सावरकर (जन्म 28 मई, 1883; मृत्यु 26 फरवरी, 1966) : भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमुख सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। इन्हें प्रायः ‘वीर सावरकर’ नाम से संबोधित किया जाता है। ये स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता व दूरदर्शी राजनेता भी थे।
श्याम जी कृष्ण वर्मा : अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों के द्वारा भारत की स्वतंत्रता के संकल्प को गतिशीलता प्रदान करने में इन्होंने मुख्य भूमिका निभायी। ऐसा कहा जाता है कि वे पहले ऐसे भारतीय थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम०ए० और बैरिस्टर की उपाधियाँ मिलीं। क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा उनके प्रिय शिष्यों में से एक थे। अभिनव भारत इसकी स्थापना स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर ने 1904 में की थी। यह संगठन अंग्रेज़ी हकूमत से लड़ने के लिए बनाया गया था।
इंडिया हाउस – यह लंदन में स्थित एक अनौपचारिक भारतीय राष्ट्रवादी संस्था थी जिसकी स्थापना ब्रिटेन के भारतीय छात्रों में राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने के लिए श्याम जी कृष्ण वर्मा के संरक्षण में की गयी।
खुदीराम बोस (जन्म 1889 मृत्यु 1908) – इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए 19 वर्ष की आयु में फाँसी पर चढ़कर इतिहास रचा।
वंदे मातरम् – बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत था।
एनी बेसेंट – अग्रणी थियोसोफिस्ट। महिला अधिकारों की समर्थक, लेखिका, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला थीं। इनके पिता अंग्रेज़ थे किंतु इन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना की तथा प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ कहा। महिलाओं और शोषितों के लिए वह आजीवन संघर्ष करती रहीं।
आयरिश लोग – आयरलैंड के लोगों को आयरिश लोग कहा जाता है।
लाला हरदियाल – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी लाला हरदियाल ने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान देने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने अमरीका में जाकर गदर पार्टी की स्थापना की। 4 मार्च, 1939 को अमरीका से भारत आते समय रहस्यमयी परिस्थितियों में इनकी मृत्यु हो गयी।
वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय (1880-1937) – ये भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे और यूरोप में भारतीय विद्यार्थियों को भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए प्रेरित करते थे।
स्मारक – शहीद मदन लाल ढींगरा का स्मारक अजमेर (राजस्थान) में रेलवे स्टेशन के ठीक सामने स्थित है।