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हिंदी के अग्रणी कथाकार एवं पत्रकार हिमांशु जोशी का जन्म 4 मई, 1935 को जोसपूड़ा गाँव (उत्तराँचल) में हुआ। ये गत 50 वर्षों से लेखन एवं पत्रकारिता में सक्रिय हैं। इन्होंने लगभग 25 वर्ष देश की अग्रणी पत्रिका ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ (हिन्दुस्तान टाइम्स लिमिटेड, नई दिल्ली) में वरिष्ठ पत्रकार के रूप में कार्य किया। ये कोलकाता से प्रकाशित होने वाली प्रसिद्ध पत्रिका ‘वागर्थ’ के सम्पादक रहे तथा नार्वे से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘शांतिदूत’ के सलाहकार सम्पादक भी रहे।

रचनाएँ इन्होंने दस उपन्यास लिखे जिनमें से ‘अरण्य’, ‘छाया मत छूना मत’, ‘महासागर’, ‘कगार की आग’, ‘समय साक्षी है’, सु-राज’ आदि उल्लेखनीय हैं।

कहानी संग्रह : इन्होंने अठारह कहानी संग्रहों की रचना की है जिनमें ‘हिमांशु जोशी की चुनी हुई कहानियाँ’, ‘चर्चित कहानियाँ’, ‘आँचलिक कहानियाँ’, ‘इस बार फिर बर्फ गिरी तो’, ‘प्रतिनिधि लोकप्रिय कहानियाँ’, ‘इकहत्तर कहानियाँ’, ‘गंधर्व गाथा’ आदि प्रमुख कहानी संग्रह हैं।

कविता संग्रह ‘अग्नि सम्भव’, ‘नील नदी का वृक्ष’, ‘एक आँखर की कविता’।

यात्रा वृत्तांत : ‘यात्राएँ’ तथा ‘नावें सूरज चमके आधी रात’।

जीवनी तथा खोज : ‘अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ’ तथा ‘यातना शिविर में (अण्डमान की अनकही कहानी)।

बाल साहित्य : इन्होंने बाल साहित्य में भी अनुपम योगदान दिया। ‘तीन तारे’, ‘बचपन की याद रही कहानियाँ’, ‘सुबह के सूरज’, ‘भारत रत्नः पं० गोविन्दबल्लभ पन्त’ आदि उल्लेखनीय बाल साहित्य हैं।

हिमांशु जोशी जी को उनके हिंदी में अद्वितीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार तथा भारत सरकार द्वारा अनेक सम्मानित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इन्हें दक्षिण अफ्रीका में जोहान्सबर्ग में नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन में विशेष रूप से सम्मानित किया गया।

भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में ये हिंदी सलाहकार समितियों के सदस्य रहे हैं। वर्तमान में ये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित ‘केन्द्रीय हिंदी सलाहकार समिति’ के साथ- साथ ‘संसदीय कार्य मंत्रालय’ तथा ‘मानव संसाधन मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य हैं।

हिमांशु जोशी जी ने ‘दूरदर्शन’ तथा ‘आकाशवाणी’ के लिए भी कार्य किया है। इनके उपन्यास ‘सु-राज’ पर आधारित फ़िल्म ‘सु-राज’ ने ‘इंडियन पेनोरमा’ के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में भारतीय फ़िल्मों का प्रतिनिधित्व किया। शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के सुप्रसिद्ध बांग्ला – उपन्यास ‘चरित्रहीन’ का रेडियो सीरियल निर्देशित किया।

इन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, फ्रांस, नेपाल, ब्रिटेन, मारीशस, त्रिनिदाद, थाइलैंड, सूरीनाम, नीदरलैंड, जापान, कोरिया आदि देशों में यात्राएँ की हैं।

वर्तमान में ये स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इसके साथ-साथ ये नार्वे से प्रकाशित पत्रिका ‘शांतिदूत’ (विश्व के 151 देशों में पढ़ी जाने वाली पत्रिका) के विशेष सलाहकार तथा हिंदी अकादमी दिल्ली की पत्रिका ‘इन्द्रप्रस्थ भारती’ के सम्पादन-मंडल के सदस्य भी हैं।

‘साए’ कहानी में जीवन के एक प्रमुख पहलू पर प्रकाश डाला गया है कि कठिन समय में मदद करने वाला मित्र ही असली मित्र है। अफ्रीका में सांझे में काम करते दो मित्रों में से एक की मृत्यु के समाचार को दूसरा मित्र छिपा देता है। अपने मृत मित्र के पूरे परिवार का भरण-पोषण करता है। वह मृत मित्र के सांझे की रकम पिता बनकर लगातार उसके बच्चों के लिए भेजता है। इस तरह उन्हें सफल जिंदगी देकर अंत में उसके हिस्से का काम उन्हें सौंप देता है।

नन्हें-नन्हें दुधमुँहे बच्चे! अकेली रुग्ण पत्नी! नाते-रिश्ते का ऐसा कोई नहीं, जो ज़रूरत पर काम आ सके! पति सुदूर अफ्रीका में अस्पताल में बीमार! महीनों तक कोई पत्र नहीं….

हर रोज़ वे रंग-बिरंगे टिकटोंवाले पत्र की राह देखते परंतु डाकिया भूल से भी इधर झाँकता न था।

हाँ, बहुत लंबे अर्से के बाद एक दिन एक पत्र मिला। बड़ा करुण, बहुत दर्दभरा। नैरोबी के किसी अस्पताल से। लिखा था – अजीब-सा था यह बहुत रंगभेद के कारण पहले यूरोपियन लोगों के अस्पताल में जगह नहीं मिली किंतु बाद में कुछ कहने – कहलवाने पर स्थान तो मिला पर इस अनावश्यक विलंब के कारण रोग काबू से बाहर हो गया है। डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी है किंतु उसमें भी अब सार लगता नहीं। चंद दिनों की मेहमानदारी है….। उसके बाद तुम लोगों का क्या होगा, कुछ सूझता नहीं। पास होते तो….. लेकिन….. भरोसा रखना…. भगवान सबका रखवाला है…. जिसने पैदा किया है, वह परवरिश भी करेगा….।

पत्नी पत्र पढ़ती… रोती …. अबोध बच्चे रूलाईभरी आँखों से माँ का मुँह ताकते।

फिर चिट्ठी पर चिट्ठियाँ डालीं उन्होंने फिर तार तब कहीं केन्या की मोहर लगा एक विदेशी लिफ़ाफ़ा मिला। लिखा था, परमात्मा का ही यह चमत्कार है कि हालत सुधर रही है। एक नया जन्म मिला है…..।

थोड़े दिनों बाद फिर पत्र आया, पहले की ही तरह किसी से बोलकर लिखवाया हुआ- हालत पहले से अच्छी है। चिंता की अब कोई बात नहीं।

हमेशा की तरह कुछ रुपये भी पहुँच गए इस बार।

बच्चों के मुरझाए मुखड़े खिल उठे। रुग्ण पत्नी का स्वास्थ्य तनिक सुधार की ओर बढ़ा। चिट्ठियाँ नियमित रूप से आती रहीं। रुपये भी पहुँचते रहे।

उसने लिखा था, हाथ के ऑपरेशन के बाद अब वह पत्र नहीं लिख पाता इसलिए किसी से लिखवा लेता है। इधर एक नया टाइपराइटर खरीद लिया है उसने अपने कारोबार का भी कुछ विस्तार कर रहा है- धीरे-धीरे कुछ नई ज़मीन खरीदने का भी इरादा है- शहर के पास एक फार्म हाउस’ की योजना है…

घर के बारे में, पत्नी के बारे में, बच्चों की पढ़ाई के बारे में कितने ही प्रश्न थे! बड़ी उत्साहजनक बातें थीं विस्तार से इतना अच्छा पत्र पहले कभी भी न आया था। सबको स्वाभाविक रूप से प्रसन्नता हुई।

डूबती नाव फिर पार लग रही थी धीरे-धीरे।

लगभग तीन बरस बीत गए।

घर की ओर से पत्र पर पत्र जाते रहे कि अब उसे थोड़ा सा समय निकालकर कभी घर भी आना चाहिए। बच्चे उसे बहुत याद करते हैं। उसे देखनेभर को तरसते हैं। जो- जो हिदायतें चिट्ठियों में लिखी रहती हैं, उनका अक्षरशः पालन करते हैं। माँ को किसी किस्म का कष्ट नहीं देते; कहना मानते हैं; पढ़ने में बहुत मेहनत करते हैं। अज्जू कहता है कि बड़ा होकर वह भी पापा की तरह अफ्रीका जाएगा। इंजीनियर बनेगा। पापा के साथ खूब काम करेगा। अब वह पूरे बारह साल का हो गया है। छठी कक्षा में सबसे अव्वल आया है। मास्टर जी कहते हैं कि उसे वज़ीफ़ा मिलेगा। उसी से अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख सकता है। तनु अब अठारह पार कर रही है। उसका भी ब्याह करना है। कहीं कोई अच्छा सा लड़का, अपनी जात-बिरादरी का मिले तो चल सकता है…..

चिट्ठी के जवाब में बहुत-सी बातें थीं। लिखा था कि इस समय तो नहीं, हाँ, अगले साल तनु के ब्याह पर अवश्य पहुँचेगा। योग्य वर तो यहाँ भी मिल सकते हैं पर विदेश में, अफ्रीका जैसे देश में लड़की को ब्याहने के पक्ष में वह नहीं है। दहेज की चिंता न करना। वहीं वर की खोज करना।

वर की तलाश में अधिक भटकने की आवश्यकता न हुई। आसानी से खाता-पीता घर मिल गया। शायद इतना अच्छा घराना न मिलता लेकिन इस भरम से कि कन्या का बाप अफ्रीका में सोना बटोर रहा है, सब सहज हो गया।

शादी की तिथि निश्चित हो गई। नैरोबी से पत्र आया कि वह समय पर पहुँच रहा है। गहने, कपड़े सब बनवाकर वह साथ लाएगा लेकिन शादी के समय वह चाहकर भी पहुँच नहीं पाया। विवशताओं से भरा लंबा पत्र आया कि इस बीच जो एक नया कारोबार शुरू किया है, उसमें मज़दूरों की हड़ताल चल रही है। ऐसे संकट के समय में, यह सब छोड़कर वह कैसे आ सकता है! हाँ, गहने, कपड़े और रुपये भिजवा दिए हैं। वर-वधू के चित्र उसे अवश्य भेजें, वह प्रतीक्षा करेगा।

खैर, ब्याह हो गया, धूमधाम के साथ विवाह के सारे चित्र भी भेज दिए। अज्जू ने इस वर्ष कई इनाम जीते। हाई स्कूल की परीक्षा में जिले में सर्वप्रथम रहा। खेलों में भी पहला। बहुत-से सर्टिफिकेट मिले, वज़ीफ़ा मिला। इनाम में मिली सारी वस्तुओं के फ़ोटो वे पापा को भेजना न भूले।

बदले में कीमती कैमरा आया। गरम सूट का कपड़ा आया। सुंदर घड़ी आई और मर्मस्पर्शी लंबा पत्र आया। लिखा था कि वह बच्चों की उम्मीद पर ही जी रहा है। पत्नी का स्वास्थ्य अच्छा रहना चाहिए। बच्चे इसी तरह नाम रोशन करते रहें- उनके सहारे वह जिंदगी की डोर कुछ और लंबी खींच लेगा…. यह सारा कारोबार सब उन्हीं के लिए तो है!

पर, अनेक वादे करने पर भी घर आना संभव न हो पाता। हर बार कुछ-न-कुछ अड़चनें आ जातीं और उसका जाना स्थगित हो जाता।

पाँवों पर पंख बाँधकर समय उड़ता रहा-अबाध गति से।

बच्चों ने लिखा कि यदि उसका इधर आ पाना कठिन हो रहा है, तो वे ही सब अफ्रीका आने की सोच रहे हैं। कुछ वर्ष वहीं बिता लेंगे।

उत्तर में केवल इतना ही था कि काम बहुत बढ़ गया है। नैरोबी, मोम्बासा के अलावा अन्य स्थानों पर भी उसे नियमित रूप से जाना पड़ता है। यहाँ विश्वास के आदमी मिलते नहीं इसलिए उसे स्वयं ही खटना पड़ता है। यहाँ की आबोहवा, बच्चों की पढ़ाई, अनेक प्रश्न थे। अज्जू जब तक अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर लेता, तब तक कुछ नहीं हो सकता। समय निकालकर कभी वह स्वयं घर आने का प्रयास करेगा। बच्चों की बहुत याद आती है। घर की बहुत याद आती है। लेकिन, विवशता है, क्या किया जाए!

अंत में वह दिन भी आ पहुँचा जब अज्जू ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। कहीं अच्छी नौकरी की तलाश शुरू हुई। पर पिता के अब भी घर आने की संभावना न दिखी तो उसने लिखा- अम्मा बीमार रहती हैं, बहुत कमजोर हो गई हैं। एक बार, अंतिम बार देखना भर चाहती हैं।

प्रत्युत्तर में विस्तृत पत्र मिला। इलाज के लिए रुपये भी। परंतु इस बार अज्जू ने ही जाने का कार्यक्रम बना लिया। अकस्मात पहुँचकर पापा को चौंकाने की पूरी-पूरी योजना के साथ।

टिकट खरीद लिया। पासपोर्ट, वीजा भी सब देखते-देखते बन गया और एक दिन दिल्ली से वह विमान से रवाना भी हो गया।

उसके मन में गहरी उत्कंठा थी कि पापा उसे देखकर कितने चकित होंगे। उन्होंने कल्पना भी न की होगी कि एकाएक वह इतनी दूर एक दूसरे देश में इतनी आसानी से आ जाएगा। उनकी निगाहों में तो अभी वह उतना ही छोटा होगा, जब वह निक्कर पहनकर आँगन में गुल्ली-डंडा खेलता था!

नैरोबी के हवाई अड्डे पर उतरकर वह सीधा उसी पते पर गया, जो पत्र में दिया हुआ था परंतु वहाँ ताला लगा था। हाँ, उसके पिता की पुरानी, धुंधली नेमप्लेट अवश्य लगी थी।

आसपास पूछताछ की तो पता चला कि एक वृद्ध भारतीय अप्रवासी अवश्य यहाँ रहते हैं। रात को देर से दफ्तर से घर लौटते हैं। किसी से मिलते-जुलते नहीं। निपट अकेले हैं।

वह बाहर बरामदे में रखी बेंच पर बैठा प्रतीक्षा करता रहा।

रात को एक बूढ़ा व्यक्ति ताला खोलने लगा तो देखा एक युवक सामान के सामने बैठा ऊँघ रहा है।

उसका नाम-धाम पूछा तो उसे अपनी बाँहों में भर लिया।

बड़े उत्साह से उसका स्वागत किया।

भोजन के बाद वे उसे अपने कमरे में ले गए। दीवार की ओर उन्होंने इंगित किया- एक नन्हा बच्चा माँ की गोद में दुलका किलक रहा है।

“यह किसका चित्र है?”

युवक ने गौर से देखा। कुछ झेंपते हुए कहा, मेरा!”

वृद्ध इस बार कुछ और ज़ोर से खिलखिलाए, “मेरे बच्चे, तुम इतने बड़े हो गए हो! सच, कितने साल बीत गए। जैसे कल की बात हो!” उन्होंने उसके चेहरे की ओर देखा, “तुम शायद नहीं जानते, तुम्हारे पिता का मैं कितना जिगरी दोस्त हूँ। कितने लंबे समय तक हम साथ-साथ रहे, दो दोस्तों की तरह नहीं, सगे भाइयों की तरह उसी ने मुझे हिंदुस्तान से यहाँ बुलाया था। बड़ी लगन से सारा काम सिखलाया। साथ-साथ सांझे में हमने यह कारोबार शुरू किया। नैरोबी की आज यह एक बहुत अच्छी फ़र्म है। यह सब उसी की बदौलत है….” कहते-कहते वह ठिठक गए।

उसका हाथ अपने हाथों में थामते हुए बोले, “तुम्हारी माँ कैसी हैं?”

“अच्छी हैं….।”

“ भाई-बहन ….?”

“सब ठीक हैं।”

“कहीं कोई कठिनाई तो नहीं?”

नहीं। सब ठीक है।”

“बस, यही मैं चाहता था…. यही।” हौले से उन्होंने उसका हाथ सहलाया। देर तक शून्य में पलकें टिकाए कुछ सोचते रहे। कुछ क्षणों का मौन भंग कर खोए-खोए-से बोले, “देखो बेटे, तिनकों के सहारे तो हर कोई जी लेता है। लेकिन, कभी-कभी हम तिनकों के साए मात्र के आसरे, भँवर से निकलकर किनारे पर आ लगते हैं। हमारा जीवन कुछ ऐसे ही तंतुओं के सहारे टिका रहता है। यदि वे टूट जाएँ, छिन्न- छिन्न होकर बिखर जाएँ, तो पलभर में पानी के बुलबुलों की तरह सब समाप्त हो जाता है….।”

ज़रा सोचो बेटे!” वे खाँसे, “अगर तुम्हारे पिता की मृत्यु आज से 10-15 साल पहले हो जाती, तो क्या होता! भले ही वे एक अच्छी रकम तुम्हारे नाम छोड़ जाते।” उन्होंने युवक के असमंजस में डूबे, गंभीर चेहरे की ओर देखा, “रुपये रेत में गिरे पानी की तरह कहीं विलीन हो जाते और तुम अनाथ हो जाते! तुम्हारी माँ घुल-घुलकर कब की मर चुकी होती। तुम इतने हौसले से पढ़ नहीं पाते। जहाँ तुम आज हो, वहाँ तक नहीं पहुँच पाते। निराशा की, हताशा की, असुरक्षा की इतनी गहरी खाई में होते, कि वहाँ से अँधेरे के अलावा और कुछ भी न दीखता तुमको….।”

उन्होंने अपने सूखे होठों को जीभ की नोक से भिगोया, “हम दुर्बल होते हुए, असहाय, अकेले होते हुए भी कितने-कितने बीहड़ वनों को पार कर जाते हैं, सहारे की एक अदृश्य डोर के सहारे….”

उनका गला भर आया, “तुम्हारे पिता तो तभी गुजर गए थे। अपने सांझे कारोबार से, उनके ही हिस्से के पैसे तुम्हें नियमित रूप से भेजता रहा। कितने वर्षों से मैं इसी दिन के इंतज़ार में था…. अब तुम बड़े हो गए हो। अपने इस कारोबार में मेरा हाथ बँटाओ। तुम सरसब्ज़ हो गए, मेरा वचन पूरा हो गया जो मैंने उसे मरते समय दिया था।….” उनका गला भर आया। डबडबाई आँखों से वे दीवार पर टंगे एक धुँधले- से चित्र की ओर न जाने क्या-क्या सोचते हुए देखते रहे!

रुग्ण – बीमार

सुदूर – बहुत दूर

विलंब – देरी

परवरिश – पालन-पोषण

अबोध – अनजान, नासमझ

टाइपराइटर – टाइप करने की मशीन

स्वाभाविक – बिना किसी बनावट के

हिदायतें – सीख

अक्षरशः – ज्यों-का-त्यों

अव्वल – प्रथम

विवशता – मजबूरी

स्थगित –  कुछ समय के लिए रोक देना

अबाध –  बाधा रहित, बिना रुकावट

आबोहवा – जलवायु

प्रत्युत्तर – जवाब में

अकस्मात् – सहसा, अचानक

उत्कंठा –  प्रबल इच्छा

इंगित –  इशारा

भँवर – लहरों का चक्कर

असमंजस – दुविधा

असुरक्षा – सुरक्षा का अभाव

वज़ीफ़ा – छात्र- वृत्ति

मर्मस्पर्शी – दिल को छू लेने वाला

बीहड़ – ऊबड़-खाबड़

सरसब्ज़ – हरा-भरा

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

 (i) परिवार वाले हर रोज़ किसकी राह देखते थे?

 (ii) घर का मुखिया कारोबार करने कहाँ गया हुआ था?

(iii) अज्जू बड़ा होकर क्या बनना चाहता था?

(iv) अज्जू को नैरोबी में मिला वृद्ध व्यक्ति कौन था?

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिए-

 (i) नैरोबी के अस्पताल से आए पत्र को पढ़कर पत्नी परेशान क्यों हो गई?

(ii) घर से जाने वाले पत्र में अज्जू और तनु के बारे में क्या-क्या लिखा था?

(iii) तनु के लिए वर सहज रूप से मिल जाने का क्या कारण था?

 (iv) अज्जू के लिए अफ्रीका से क्या-क्या आया था?

 (v) पढ़ाई पूरी करने के बाद अज्जू ने अफ्रीका जाने का निर्णय किन-किन कारणों से किया?

 (vi) अज्जू को अंत में पिता के जिगरी दोस्त ने भरे गले से क्या बताया?

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिए-

 (i) वृद्ध व्यक्ति का चरित्र चित्रण कीजिए।

 (ii) वृद्ध व्यक्ति ने अज्जू और उसके परिवार की देखभाल में क्या भूमिका निभाई और क्यों?

 (iii) ‘साए’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

 (iv) निम्नांकित कथनों के भावार्थ स्पष्ट करो-

“ तिनकों के सहारे तो हर कोई जी लेता है लेकिन कभी-कभी हम तिनकों के साए मात्र के आसरे भँवर से निकलकर किनारे पर आ लगते हैं।”

“हम दुर्बल होते हुए, असहाय, अकेले होते हुए भी कितने कितने बीहड़ वनों को पार कर जाते हैं, आसरे की एक अदृश्य डोर के सहारे…..”

 (ख) भाषा-बोध

1. निम्नलिखित शब्दों के लिंग बदलिए-

पुल्लिंग- स्त्रीलिंग

बेटा

पति

युवक

वर

बच्चा

मज़दूर

2. निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-

शब्द         उपसर्ग-       मूल शब्द

अबोध

असहाय.

अदृश्य

असुरक्षा.

अप्रवासी

विलंब

विलीन

विमान

3. निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-

शब्द         मूल शब्द                 प्रत्यय

मेहमानदारी.

भारतीय

स्वाभाविक

नियमित

आसानी

आवश्यकता

4. निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-

तद्भव       तत्सम

ब्याह

बूढ़ा

भाई

हाथ

घर

पाँव

आज

रात

मुँह

1. वृद्ध व्यक्ति ने अपने मरते हुए जिगरी दोस्त को जो वचन दिया था उसे पूरा किया; यदि आप उस वृद्ध की जगह होते तो क्या करते?

2. परिवार को पिता की मृत्यु की सूचना न देकर पिता के जिगरी दोस्त ने अच्छा किया या बुरा। अपने विचार लिखें।

3. यदि पिता का मित्र पत्र और पैसे न भेजता तो परिवार की क्या हालत होती? 4. क्या पत्र की जगह फैक्स, ई-मेल, टैलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?

5. आप भविष्य में क्या बनना चाहते हैं?

1. ‘सच्ची मित्रता’ पर कुछ सूक्तियाँ चार्ट पर लिखकर कक्षा में लगाइए।

2. ‘जैसी कथनी वैसी करनी’ विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिये। 1

3. परोपकार और ईमानदारी विषय पर कहानियाँ पढ़िये।

4. पत्र लेखन विधा के अनेक संग्रह और संकलन हैं जैसे:- ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ जवाहर लाल नेहरू, ‘गांधी जी के पत्र’ मोहन दास कर्मचंद गांधी, सुभाष के पत्र’ नेता जी सुभाष चंद्र बोस आदि इन्हें पढ़िए।

1. केन्या (कीनिया) – केन्या गणतंत्र पूर्वी अफ्रीका में स्थित एक देश है। भूमध्य रेखा पर हिंद महासागर से सटे हुए इस देश की सीमा उत्तर में इथोपिया, उत्तर-पूर्व में सोमालिया, दक्षिण में तंजानिया, पश्चिम में युगांडा व विक्टोरिया झील और उत्तर पश्चिम में सूडान से मिलती है। देश की राजधानी नैरोबी है। राजभाषाएँ स्वाहिली व अंग्रेज़ी हैं।  

2. भँवर -नदी के बहाव में वह स्थान जहाँ पानी चक्कर की तरह घूमता है।

3. पासपोर्ट – पासपोर्ट एक राष्ट्रीय सरकार द्वारा जारी वह दस्तावेज होता है जो अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के लिए उसके धारक की पहचान और राष्ट्रीयता को प्रमाणित करता है। पहचान स्थापित करने के लिए नाम, जन्मतिथि, लिंग और जन्म स्थान के विवरण इसमें प्रस्तुत किये जाते हैं। आमतौर पर एक व्यक्ति की राष्ट्रीयता और नागरिकता समान होती है।

4. वीज़ा – वीजा लैटिन शब्द का वीजा से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ होता हैं, ‘वह कागज़ जो देखा गया हो। वीज़ा इंगित करता है कि अमुक व्यक्ति वीज़ा जारी करने वाले देश में प्रवेश के लिए अधिकृत है। वीजा वह दस्तावेज़ होता है जो एक व्यक्ति को किसी अन्य देश में प्रवेश करने की अनुमति देता है। वीज़ा एक अलग दस्तावेज़ के रूप में भी हो सकता है लेकिन अधिकतर यह आवेदक के पासपोर्ट पर ही एक मोहर के रूप में पृष्ठांकित किया जाता है। वीजा जारी करने वाला देश आमतौर पर इसके साथ कई शर्तें जोड़ देता है जैसे वीजा की वैधता, वह अवधि जिसके दौरान एक व्यक्ति उस देश में रह सकता है, दिए गए वीजा पर व्यक्ति कितनी बार यात्रा कर सकता है, आदि।

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