Punjab Board, Class IX, Hindi Pustak, The Best Solution Soordas Ke Pad, Soordas, सूरदास के पद, सूरदास

(सन् 1478-1583)

सूरदास भक्तिकाल की सगुणधारा की कृष्ण-भक्ति शाखा के प्रमुख भक्त कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनके जन्म स्थान एवं जन्म काल के बारे में मतभेद हैं। अधिकतर विद्वानों का मत है कि इनका जन्म सन् 1478 ई. में दिल्ली के निकट सीही ग्राम में हुआ था। महाप्रभु वल्लभाचार्य के द्वारा उन्हें वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित किया गया। इनके जन्म से अथवा बाद में अंधे होने के विषय में अलग-अलग मत हैं। हिंदी साहित्य के इस महान कवि का निधन सन् 1583 ई. में मथुरा के पास पारसौली ग्राम में हुआ।

रचनाएँ : वैसे तो सूरदास की लगभग 25 रचनाएँ मानी जाती हैं किंतु आधुनिक आलोचकों ने पर्याप्त अनुसंधान के बाद इनकी तीन रचनाओं को ही प्रामाणिक माना है। ये तीन रचनाएँ हैं : 1. सूरसागर 2. सूरसारावली 3. साहित्य लहरी

प्रस्तुत संकलन में महाकवि सूरदास के वात्सल्य भाव से संबंधित पद लिए गये हैं। पहले पद में यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झूला झुलाकर और लोरी देकर सुला रही है। श्रीकृष्ण कभी पलकें मूँद लेते हैं तो कभी व्याकुल हो उठ जाते हैं; तब यशोदा फिर से उन्हें सुलाती है। दूसरे पद में यशोदा श्रीकृष्ण को दूर न खेलने जाने के लिए कहती है। तीसरे पद में माँ यशोदा श्रीकृष्ण को चोटी बढ़ने का लालच देकर बहाने से दूध पिलाती है तो श्रीकृष्ण चोटी न बढ़ने से चिंतित हैं। चौथे पद में श्रीकृष्ण माँ से गायें चराने जाने के लिए हठ करते हैं। इस प्रकार सभी पदों में वात्सल्य रस अपनी चरम सीमा पर दृष्टिगोचर होता है।

सूरदास की भाषा ब्रज है। अवधी और पूर्वी हिंदी के भी शब्द उनकी रचना में मिलते हैं। गीति तत्व की विशेषता उनके पदों में साफ दृष्टिगोचर होती है।

1. जसोदा हरि पालने झुलावै।

हलरावै, दुलराइ मल्हावे, जोइ सोइ कछू गावै।

मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै।

तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकों कान्ह बुलावै।

कबहुँक पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।

सोवत जानि मौन व्है रहि रहि, करि करि सैन बतावै।

इहिं अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुरं गावै।

जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नंद भामिनि पावै॥

2. कहन लागे मोहन मैया मैया।

नंद महर सों बाबा बाबा, अरु हलधर सों भैया।

ऊंचे चढ़ि चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया।

दूरि खेलन जनि जाहु लला रे, मारैगी काहु की गया।

गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर घर बजति बधैया।

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों, चरननि की बलि जैया॥

3. मैया कबहुं बढ़ेगी चोटी।

किती बेर मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूं है छोटी।

तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।

काढ़त गुहत न्हवावत जैहैं नागिन सी भुई लोटी।

काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।

सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी॥

4. आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।

बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं।  

ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।

तनक तनक पग चलिहाँ कैसें, आवत हवै है अति राति।

प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।

तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे, रेंगति घामहिं मांझ।

तेरी सौं मोहि घाम न लागत, भूख नहीं कछु नक।

सूरदास प्रभु कहयौ न मानत, पर्यो आपनी टेक॥

हलरावै – हल्का सा हिलाना

महर –  पूज्य

दुलराइ मल्हावे – प्यार करना

काहु की – किसी की

आनि – आकर

गैया – गाय

सुवावे – सुलाना

बधैया – बधाई देना

बेगहिं –  जल्दी

बलि – बलिहारी

अधर –  ओष्ठ, होंठ

किती बेर – कितनी बार

फरकावै –  फड़काना

अजहूं –  अभी भी

मौन व्है – मौन होकर

बल –  बलराम

अंतर –  अंतराल, इसी बीच

बेनी – चोटी

अकुलाई – व्याकुल होकर, परेशान होकर

लांबी – लंबी

काढ़त – सँवारना (बालों को कंघी से)

गुहत – गूंथना

न्हवावत – नहलाकर

नागिन-सी – नागिन जैसी

चलिहौ – चलकर

खेहाँ – खाऊँगा

तनक तनक पग – छोटे-छोटे कदम

काचो दूध – कच्चा दूध

कुम्हिलैहे – मुरझाना

हलधर – बलराम

घामहि – धूप

जोटी – जोड़ी

टेक – जिद्द, हठ

चरावन जैहौं – चराने जाना

(i) यशोदा श्रीकृष्ण को किस प्रकार सुला रही है?

(ii) यशोदा श्रीकृष्ण को दूर क्यों नहीं खेलने जाने देती?

(iii) यशोदा श्रीकृष्ण को दूध पीने के लिए क्या प्रलोभन देती हैं?

(iv) श्रीकृष्ण यशोदा से क्या खाने की माँग करते हैं?

(v) अंतिम पद में श्रीकृष्ण अपनी माँ से क्या हठ कर रहे हैं?

(i) मैया कबहुं बढ़ेगी चोटी।

किती बेर मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूं है छोटी।

तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।

काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी।

काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी॥

सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी॥

(ii) आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।

बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहाँ॥

ऐसी बात कहाँ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।

तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत हवै है अति राति।

प्रात जात गया लै चारन घर आवत हैं सांझ।

तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे, रंगति घामहि मांझ।

तेरी सौं मोहिं घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।

सूरदास प्रभु कह्यौ न मानत, पर्यो आपनी टेक॥

ब्रज भाषा के शब्द                खड़ी बोली हिंदी के शब्द

कछु

कुछ

तोको

कबहुँक

निंदरिया

कान्ह

इहिं

किति

अरु

भुईं

तुम्हरे

2. निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-

एकवचन            बहुवचन

पलक

नागिन

ग्वाला

गोपी

चोटी

रोटी

1. श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के चित्र इकट्ठे करके अपनी कॉपी में चिपकाएँ।

2. जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर में जाकर श्रीकृष्ण की बाल लीला से संबंधित झाँकियों का अवलोकन कीजिए।

3. जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिरों में बच्चों द्वारा श्रीकृष्ण की बाल लीला से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनमें भाग लीजिए।

4. जन्माष्टमी के अवसर पर रात को श्रीकृष्ण के जन्म की कथा सुनाई जाती हैं। वहाँ जाइए और कथा श्रवण कर रसास्वादन कीजिए अथवा टेलीविजन/इंटरनेट से श्रीकृष्ण की जन्म कथा को सुनिए / देखिए।

5. आप भी बचपन में दूध आदि किसी पदार्थ को नापसंद करते होंगे। आपके माता-पिता आपको यह पदार्थ खिलाने-पिलाने में कितने लाड-प्यार से यल करते होंगे। अपने माता- पिता से पूछिए और लिखिए।

हिंदी साहित्य के भक्तिकाल (सन् 1318-1643 तक) की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त कृष्णदास, नंददास, रसखान जैसे प्रसिद्ध कवियों तथा कवयित्री मीराबाई ने भी श्रीकृष्ण को आधार बनाकर उत्कृष्ट काव्य की रचना की हैं। श्रीकृष्ण की भक्ति से ओत-प्रोत रसखान के सवैयों को तो विद्वानों ने सचमुच रस की खान ही कहा है। मीराबाई का हिंदी की कवयित्रियों में अप्रतिम स्थान है। मीरा द्वारा रचित श्रीकृष्ण- भक्ति के सुंदर व मधुर गीत जगत प्रसिद्ध हैं।

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