Punjab Board, Class IX, Hindi Pustak, The Best Solution Soordas Ke Pad, Soordas, सूरदास के पद, सूरदास

(सन् 1478-1583)

सूरदास भक्तिकाल की सगुणधारा की कृष्ण-भक्ति शाखा के प्रमुख भक्त कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनके जन्म स्थान एवं जन्म काल के बारे में मतभेद हैं। अधिकतर विद्वानों का मत है कि इनका जन्म सन् 1478 ई. में दिल्ली के निकट सीही ग्राम में हुआ था। महाप्रभु वल्लभाचार्य के द्वारा उन्हें वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित किया गया। इनके जन्म से अथवा बाद में अंधे होने के विषय में अलग-अलग मत हैं। हिंदी साहित्य के इस महान कवि का निधन सन् 1583 ई. में मथुरा के पास पारसौली ग्राम में हुआ।

रचनाएँ : वैसे तो सूरदास की लगभग 25 रचनाएँ मानी जाती हैं किंतु आधुनिक आलोचकों ने पर्याप्त अनुसंधान के बाद इनकी तीन रचनाओं को ही प्रामाणिक माना है। ये तीन रचनाएँ हैं : 1. सूरसागर 2. सूरसारावली 3. साहित्य लहरी

प्रस्तुत संकलन में महाकवि सूरदास के वात्सल्य भाव से संबंधित पद लिए गये हैं। पहले पद में यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झूला झुलाकर और लोरी देकर सुला रही है। श्रीकृष्ण कभी पलकें मूँद लेते हैं तो कभी व्याकुल हो उठ जाते हैं, तब यशोदा फिर से उन्हें सुलाती है। दूसरे पद में यशोदा श्रीकृष्ण को दूर न खेलने जाने के लिए कहती है। तीसरे पद में माँ यशोदा श्रीकृष्ण को चोटी बढ़ने का लालच देकर बहाने से दूध पिलाती है तो श्रीकृष्ण चोटी न बढ़ने से चिंतित हैं। चौथे पद में श्रीकृष्ण माँ से गायें चराने जाने के लिए हठ करते हैं। इस प्रकार सभी पदों में वात्सल्य रस अपनी चरम सीमा पर दृष्टिगोचर होता है।

सूरदास की भाषा ब्रज है। अवधी और पूर्वी हिंदी के भी शब्द उनकी रचना में मिलते हैं। गीति तत्व की विशेषता उनके पदों में साफ दृष्टिगोचर होती है।

  1. जसोदा हरि पालने झुलावै।

हलरावै, दुलराइ मल्हावे, जोइ सोइ कछू गावै।

मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै।

तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकों कान्ह बुलावै।

कबहुँक पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।

सोवत जानि मौन व्है रहि रहि, करि करि सैन बतावै।

इहिं अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुरं गावै।

जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नंद भामिनि पावै॥

  1. कहन लागे मोहन मैया मैया।

नंद महर सों बाबा बाबा, अरु हलधर सों भैया।

ऊंचे चढ़ि चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया।

दूरि खेलन जनि जाहु लला रे, मारैगी काहु की गया।

गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर घर बजति बधैया।

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों, चरननि की बलि जैया॥

  1. मैया कबहुं बढ़ेगी चोटी।

किती बेर मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूं है छोटी।

तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।

काढ़त गुहत न्हवावत जैहैं नागिन सी भुई लोटी।

काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।

सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी॥

  1. आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।

बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं।  

ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।

तनक तनक पग चलिहाँ कैसें, आवत हवै है अति राति।

प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।

तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे, रेंगति घामहिं मांझ।

तेरी सौं मोहि घाम न लागत, भूख नहीं कछु नक।

सूरदास प्रभु कहयौ न मानत, पर्यो आपनी टेक॥

पद – 01

जसोदा हरि पालने झुलावै।

हलरावै, दुलराइ मल्हावे, जोइ सोइ कछू गावै।

मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै।

तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकों कान्ह बुलावै।

कबहुँक पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।

सोवत जानि मौन व्है रहि रहि, करि करि सैन बतावै।

इहिं अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुरं गावै।

जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नंद भामिनि पावै॥

शब्दार्थ

जसोदा – माता यशोदा

हरि – कृष्ण

पालने – पालना

झुलावै – झुलाना

हलरावै  – बच्चे को हिलाना

दुलराइ – बच्चे को दुलार करना

मल्हावे – बच्चे को प्यार करना

काहु की – किसी की

आनि – आकर

गैया – गाय

सुवावे – सुलाना

बधैया – बधाई देना

बेगहिं –  जल्दी

बलि – बलिहारी

अधर –  ओष्ठ, होंठ

कछू – कुछ

गावै – गाना

मेरे लाल – मेरे बेटे

आउ – आए

निंदरिया – नींद

काहै – क्यों

आनि – आना

सुवावै – सुलाना

तोकों – तुम्हें

कान्ह – कृष्ण

बुलावै – बुला रहे हैं

कबहुँक – कभी

मूँदि – मूँद लेना

अधर – होंठ

फरकावै – फड़काना

सोवत – सोता हुआ

जानि – जानकर

मौन – चुप

इहिं – इधर

अंतर – हृदय

अकुलाई – आकुलता

जसुमति – यशोदा

दुरलभ – द्यर्लभ, मुश्किल से मिलने वाला

नंद – कृष्ण के पिता

भामिनि – पत्नी

पावै – पाना

प्रसंग –

प्रस्तुत पद हमारी कक्षा दसवीं की हिंदी पुस्तक के दूसरे अध्याय सूरदास के पद से लिया गया है। इसमें कवि सूरदास के बाल जीवन कर वर्णन करते हुए यह बता रहे हैं कि माता यशोदा किस प्रकार बाल कृष्ण को सुलाने के लिए प्रयत्न कर रही हैं।

व्याख्या –

माता यशोदा नन्हें कृष्ण को सुलाने के लिए पालने में झुला रही हैं। वह कभी झूला झुलाती हैं, कभी प्यार करके पुचकारती हैं और लोरी गाते हुए कहती हैं कि हे निद्रा! तू मेरे लाल के पास आ जा और इसे सुला दे। तू क्यों झटपट आकर इसे सुलाती नहीं है। तू? तुझे कन्हैया बुला रहा है। इसी समय कृष्ण कभी पलकें बंद कर लेते हैं, कभी अधर फड़काने लगते हैं। उन्हें सोते हुए समझकर माता चुप हो जाती हैं और दूसरी गोपियों को भी संकेत करके समझाती हैं कि यह सो रहा है, तुम सब भी चुप रहो। इसी बीच में कृष्ण आकुल होकर जग जाते हैं। यशोदा फिर मधुर स्वर में गाने लगती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि जो सुख देवताओं और मुनियों के लिए भी दुर्लभ है, वही कृष्ण को बालरूप में पाकर लालन-पालन और प्यार करने का सुख नंदजी की पत्नी यशोदा प्राप्त कर रही हैं।

पद – 02

कहन लागे मोहन मैया मैया।

नंद महर सों बाबा बाबा, अरु हलधर सों भैया।

ऊंचे चढ़ि चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया।

दूरि खेलन जनि जाहु लला रे, मारैगी काहु की गया।

गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर घर बजति बधैया।

(मनि खम्भन प्रतिबिंब बिलोकत, नचत कुँवर निज पैया॥

नंद जसोदाजी के उर तें, इहि छवि अनत न जैया।) अतिरिक्त  

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों, चरननि की बलि जैया॥

शब्दार्थ –

अरु – और

हलधर – बलराम

कहुँ – कहीं

जाहु – जाना

लला – कृष्ण

गैया – गाय 

बधैया – बधाई देना   

मनि – मणि

खम्भन – खंभा

प्रतिबिंब – Reflection

बिलोकत – देखना

नचत – नाचना

निज पैया – अपने पैर 

उर तें – हृदय में

इहि – यह

छवि – चित्र

अनत – कभी नहीं

जैया – जाना 

प्रसंग –

प्रस्तुत पद हमारी कक्षा दसवीं की हिंदी पुस्तक के दूसरे अध्याय सूरदास के पद से लिया गया है। इसमें कवि सूरदास के बाल जीवन कर वर्णन करते हुए यह बता रहे हैं कि किस प्रकार कृष्ण बड़े हो रहे हैं और तुतलाती बोली में अपने परिवार के प्रियजनों को संबोधित कर रहे हैं। 

व्याख्या –

इस पद में कविवर सूरदास जी बालकृष्ण का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि कृष्ण बड़े हो रहे हैं। कृष्ण अब यशोदा को माँ-माँ कहते हैं, नंद जी को बाबा कहकर पुकारते हैं। बलराम को भैया कहते हैं। जब वे बाहर कभी निकल जाते हैं तो यशोदा ऊँचे स्थान पर चढ़ कर उनसे कहती हैं कि – बेटा रे, दूर कहीं मत जाना। किसी की गाय मार देगी। गोपी-ग्वाल कृष्ण के खेल देखकर खुश होते हैं। घर-घर में लोग कृष्ण की दोनों हथेलियों की मुट्ठी बनाकर उसके सिर से छुलाकर अपने सिर से छूते हैं और सारी बलैया स्वयं ले लेते हैं और माता यशोदा को बधाइयाँ देते हैं। कृष्ण मणि के खंभों पर प्रतिबिंब देखते हैं और अपने नन्हें पैरों से नाचते-कूदते हैं। कृष्ण का यह सुंदर रूप नंद-यशोदा के मन में सर्वदा बैठा रहता है। सूरदास कहते हैं- हे प्रभो, मैं तुम्हारे चरण कमलों के दर्शन का अभिलाषी हूँ। मैं अपने को उन चरणों पर न्योछावर करता हूँ।

पद – 03

मैया कबहुं बढ़ेगी चोटी।

किती बेर मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूं है छोटी।

तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।

काढ़त गुहत न्हवावत जैहैं नागिन सी भुई लोटी।

काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।

सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी॥

शब्दार्थ

जहूँ – अभी भी

मोहिं – मुझे

निहारि – देखकर

जोटी – जोड़ी

चारि – चार

कबहिं – कब

किती – कितनी

पिवत – पीना

बैनी – चोटी

ज्यों – जैसा

काढ़त – बाल बनाते हुए

गुहत – बाँधते हुए

न्हववात – नहाते हुए

नागिनी – नाग

भुईं – भूमि

लोटी – लोटना

काछो – कच्चा

पिवावति – पिलाना

पचि-पचि – जैसे-तैसे

चिरजीवौ – हमेशा जीवित रहें।

दोउ – दोनों

हरि – कृष्ण

प्रसंग –

प्रस्तुत पद हमारी कक्षा दसवीं की हिंदी पुस्तक के दूसरे अध्याय सूरदास के पद से लिया गया है। इसमें कवि सूरदास के बाल जीवन कर वर्णन करते हुए यह बता रहे हैं कि एक बार बाल कृष्ण ने अपनी माता यशोदा से यह शिकायत की कि उनके बाल बलराम के बालों की तरह लंबे और घने क्यों नहीं हो रहे हैं।

व्याख्या –

यशोदा मैया से कृष्ण अपने बालों के न बढ़ने को लेकर शिकायत कर रहे हैं और उलाहना देते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने अपनी माता की बातों को मानकर मक्खन रोटी खाना छोड़ दिया ताकि उनके केश बलराम की तरह लंबे, घने और मोटे हो जाए। बालों को सँवारते समय वह नागिन की तरह भूमि पर बलखाने लगेंगी पर इतने दिनों तक कच्चा दूध पीने के बाद भी उनकी चोटी नहीं बढ़ रही है। सूरदास इस दृश्य को देखकर यही प्रार्थना करते हैं कि कृष्ण और बलराम की जोड़ी सदा बनी रहे। 

पद – 04 

आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।

बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं।  

ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।

तनक तनक पग चलिहाँ कैसें, आवत हवै है अति राति।

प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।

तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे, रेंगति घामहिं मांझ।

तेरी सौं मोहि घाम न लागत, भूख नहीं कछु नक।

सूरदास प्रभु कहयौ न मानत, पर्यो आपनी टेक॥

शब्दार्थ

चलिहौ – चलकर

खेहाँ – खाऊँगा

तनक तनक पग – छोटे-छोटे कदम

काचो दूध – कच्चा दूध

कुम्हिलैहे – मुरझाना

हलधर – बलराम

घामहि – धूप

जोटी – जोड़ी

टेक – जिद्द, हठ

चरावन जैहौं – चराने जाना

आपनी टेक – अपनी बात पर अटल

प्रसंग –

प्रस्तुत पद हमारी कक्षा दसवीं की हिंदी पुस्तक के दूसरे अध्याय सूरदास के पद से लिया गया है। इसमें कवि सूरदास के बाल जीवन कर वर्णन करते हुए यह बता रहे हैं कि एक बार बाल कृष्ण ने यह जिद पकड़ ली कि अब वे भी अपने पिता के साथ गायेँ चराने जाएँगे।

व्याख्या –

एक बार बालकृष्ण ने जिद पकड़ ली कि मैया आज तो मैं गायेँ चराने जाऊँगा। साथ ही वृंदावन के वन में उगने वाले नाना प्रकार के फलों को भी अपने हाथों से खाऊँगा। इस पर यशोदा ने बाल कृष्ण को समझाया कि बेटा अभी तो तुम्हारी उम्र बहुत कम है। तू अभी बहुत छोटा है। इन छोटे-छोटे पैरों से तू इतना कैसे चल पाएगा और फिर लौटते समय रात्रि भी हो जाती है। तुझसे कहीं अधिक उम्र के लोग गायों को चराने के लिए प्रात: घर से निकलते हैं और संध्या होने पर लौटते हैं। सारे दिन धूप में वन-वन भटकना पड़ता है। फिर तेरा शरीर तो पुष्प के समान कोमल है, यह कड़ी धूप को कैसे सहन कर पाएगा। परंतु माता यशोदा के समझाने का कृष्ण पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उलटकर बोले, मैया! मैं तेरी सौगंध खाकर कहता हूँ कि मुझे धूप नहीं लगती है और न ही मुझे भूख ही सताती है। सूरदास कहते हैं कि परब्रह्म स्वरूप श्रीकृष्ण ने यशोदा की एक नहीं मानी और अपनी ही बात पर अटल रहे।

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-

(i) यशोदा श्रीकृष्ण को किस प्रकार सुला रही है?

उत्तर – यशोदा श्रीकृष्ण को प्यार से पुचकार कर, लोरी गाकर और निद्रा देवी से विनती करके सुला रही हैं।

(ii) यशोदा श्रीकृष्ण को दूर क्यों नहीं खेलने जाने देती?

उत्तर – यशोदा श्रीकृष्ण को दूर नहीं खेलने जाने देती क्योंकि उन्हें यह डर लगा रहता है कि कहीं किसी गाय से कृष्ण को चोट न लग जाए।

(iii) यशोदा श्रीकृष्ण को दूध पीने के लिए क्या प्रलोभन देती हैं?

उत्तर – यशोदा श्रीकृष्ण को दूध पीने के लिए यह प्रलोभन देती हैं कि इससे तुम्हारे बाल बलराम की तरह मोटे और घने हो जाएँगे।

(iv) श्रीकृष्ण यशोदा से क्या खाने की माँग करते हैं?

उत्तर – श्रीकृष्ण यशोदा से मक्खन-रोटी खाने की माँग करते हैं।

(v) अंतिम पद में श्रीकृष्ण अपनी माँ से क्या हठ कर रहे हैं?

उत्तर – अंतिम पद में श्रीकृष्ण अपनी माँ से वन में गायेँ चराने जाने की हठ कर रहे हैं।

II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-

(i) मैया कबहुं बढ़ेगी चोटी।

किती बेर मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूं है छोटी।

तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।

काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी।

काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी॥

सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी॥

उत्तर – प्रसंग

प्रस्तुत पद हमारी कक्षा दसवीं की हिंदी पुस्तक के दूसरे अध्याय सूरदास के पद से लिया गया है। इसमें कवि सूरदास के बाल जीवन कर वर्णन करते हुए यह बता रहे हैं कि एक बार बाल कृष्ण ने अपनी माता यशोदा से यह शिकायत की कि उनके बाल बलराम के बालों की तरह लंबे और घने क्यों नहीं हो रहे हैं।

व्याख्या

यशोदा मैया से कृष्ण अपने बालों के न बढ़ने को लेकर शिकायत कर रहे हैं और उलाहना देते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने अपनी माता की बातों को मानकर मक्खन रोटी खाना छोड़ दिया ताकि उनके केश बलराम की तरह लंबे, घने और मोटे हो जाए। बालों को सँवारते समय वह नागिन की तरह भूमि पर बलखाने लगेंगी पर इतने दिनों तक कच्चा दूध पीने के बाद भी उनकी चोटी नहीं बढ़ रही है। सूरदास इस दृश्य को देखकर यही प्रार्थना करते हैं कि कृष्ण और बलराम को जोड़ी सदा बनी रहे। 

 

(ii) आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।

बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहाँ॥

ऐसी बात कहाँ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।

तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत हवै है अति राति।

प्रात जात गया लै चारन घर आवत हैं सांझ।

तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे, रंगति घामहि मांझ।

तेरी सौं मोहिं घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।

सूरदास प्रभु कह्यौ न मानत, पर्यो आपनी टेक॥

उत्तर – प्रसंग

प्रस्तुत पद हमारी कक्षा दसवीं की हिंदी पुस्तक के दूसरे अध्याय सूरदास के पद से लिया गया है। इसमें कवि सूरदास के बाल जीवन कर वर्णन करते हुए यह बता रहे हैं कि एक बार बाल कृष्ण ने यह जिद पकड़ ली कि अब वे भी अपने पिता के साथ गायेँ चराने जाएँगे।

व्याख्या –

एक बार बालकृष्ण ने जिद पकड़ ली कि मैया आज तो मैं गायेँ चराने जाऊँगा। साथ ही वृंदावन के वन में उगने वाले नाना प्रकार के फलों को भी अपने हाथों से खाऊँगा। इस पर यशोदा ने बाल कृष्ण को समझाया कि बेटा अभी तो तुम्हारी उम्र बहुत कम है। तू अभी बहुत छोटा है। इन छोटे-छोटे पैरों से तू इतना कैसे चल पाएगा और फिर लौटते समय रात्रि भी हो जाती है। तुझसे कहीं अधिक उम्र के लोग गायों को चराने के लिए प्रात: घर से निकलते हैं और संध्या होने पर लौटते हैं। सारे दिन धूप में वन-वन भटकना पड़ता है। फिर तेरा शरीर तो पुष्प के समान कोमल है, यह कड़ी धूप को कैसे सहन कर पाएगा। परंतु माता यशोदा के समझाने का कृष्ण पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उलटकर बोले, मैया! मैं तेरी सौगंध खाकर कहता हूँ कि मुझे धूप नहीं लगती है और न ही मुझे भूख ही सताती है। सूरदास कहते हैं कि परब्रह्म स्वरूप श्रीकृष्ण ने यशोदा की एक नहीं मानी और अपनी ही बात पर अटल रहे।

 

1.नीचे दिए गए सूरदास के पदों में प्रयुक्त ब्रज भाषा के शब्दों के लिए खड़ी बोली हिंदी के शब्द लिखिए-

ब्रज भाषा के शब्द     खड़ी बोली हिंदी के शब्द

कछु               कुछ

तोको               तुम्हें

कबहुँक             कभी

निंदरिया            नींद

कान्ह              कान्हा

इहिं                यहीं

किति              कितनी

अरु                और

भुईं                भूमि

तुम्हरे              तुम्हारे

2.निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-

एकवचन      बहुवचन

पलक        पलकें

नागिन       नागिनें

ग्वाला        ग्वाले

गोपी         गोपियाँ

चोटी         चोटियाँ

रोटी         रोटियाँ

  1. श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के चित्र इकट्ठे करके अपनी कॉपी में चिपकाएँ।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।

  1. जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर में जाकर श्रीकृष्ण की बाल लीला से संबंधित झाँकियों का अवलोकन कीजिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।

  1. जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिरों में बच्चों द्वारा श्रीकृष्ण की बाल लीला से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनमें भाग लीजिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।

  1. जन्माष्टमी के अवसर पर रात को श्रीकृष्ण के जन्म की कथा सुनाई जाती हैं। वहाँ जाइए और कथा श्रवण कर रसास्वादन कीजिए अथवा टेलीविजन/इंटरनेट से श्रीकृष्ण की जन्म कथा को सुनिए / देखिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।

  1. आप भी बचपन में दूध आदि किसी पदार्थ को नापसंद करते होंगे। आपके माता-पिता आपको यह पदार्थ खिलाने-पिलाने में कितने लाड-प्यार से यल करते होंगे। अपने माता- पिता से पूछिए और लिखिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।

हिंदी साहित्य के भक्तिकाल (सन् 1318-1643 तक) की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त कृष्णदास, नंददास, रसखान जैसे प्रसिद्ध कवियों तथा कवयित्री मीराबाई ने भी श्रीकृष्ण को आधार बनाकर उत्कृष्ट काव्य की रचना की हैं। श्रीकृष्ण की भक्ति से ओत-प्रोत रसखान के सवैयों को तो विद्वानों ने सचमुच रस की खान ही कहा है। मीराबाई का हिंदी की कवयित्रियों में अप्रतिम स्थान है। मीरा द्वारा रचित श्रीकृष्ण-भक्ति के सुंदर व मधुर गीत जगत प्रसिद्ध हैं।

You cannot copy content of this page