गोविंद कुमार गुंजन का आधुनिक हिंदी साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म 28 अगस्त, 1956 सनावद मध्यप्रदेश में हुआ। इन्होंने एम.ए. अंग्रेजी साहित्य में प्राप्त की है। साहित्य की विविध विधाओं में रचनाओं का सृजन कर ये हिंदी साहित्य की सेवा कर रहे हैं। ये मूलतः कवि तथा ललित निबंधकार हैं। ललित निबंधों की रचना में इनकी खास पहचान है। इनके निबंध वैचारिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संपन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त कहानी लेखन में भी गोविंद कुमार ‘गुंजन’ सिद्धहस्त हैं।
रचनाएँ : इनकी ‘रुका हुआ संवाद (कविता संग्रह) 1998’, ‘समकालीन हिंदी गज़लें (सहयोगी प्रकाशन – 2001) ‘, ‘कपास के फूल, सभ्यता की तितली (ललित निबंध संग्रह 2002)’, ‘पंखों पर आकाश (उपन्यास- 2007)’, ‘ज्वाला भी जलधार भी (ललित निबंध संग्रह)’ हैं।
इन्हें प्रथम समानांतर नवगीत अलंकार (1994), अखिल भारतीय अंबिकाप्रसाद दिव्य प्रतिष्ठा पुरस्कार (2002), निर्मल पुरस्कार (हिंदी निबंध हेतु) – (2002), मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी का बाल कृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार (2007) आदि पुरस्कारों से नवाज़ा गया है।
प्रस्तुत कहानी में लेखक ने मनुष्य की आदत पर प्रकाश डाला है। ऐसा कहते हैं कि मनुष्य की आदत कभी नहीं बदलती लेकिन कभी-कभी किसी दूसरे के कारण बदल जाती है। लेखक देर तक सोए रहने की आदत से मजबूर था उसे एक छोटी सी चिड़िया जगाती हैं। सुबह की ताज़ी हवा के स्पर्श का अहसास दिलाती है और उसे सुबह उठने की आदत डाल देती है।
अब मोबाइल फ़ोन में अलार्म उपलब्ध रहने से अलार्म घड़ियों की बाज़ार में माँग घटने लगी है परंतु एक समय घरों में अलार्म घड़ी महत्त्वपूर्ण वस्तु हुआ करती थी। परीक्षा के दिनों में सिरहाने रखी अलार्म घड़ी भोर में जगाती थी। सुबह जल्दी यात्रा करनी होती, तो रात को घड़ी में अलार्म लगा देते थे ताकि सुबह समय पर उठा जा सके। अलार्म घड़ियाँ बहुत काम आती थीं, परंतु आज जैसे हर किसी के पास मोबाइल फ़ोन है, कुछ इसी तरह पहले सबके पास घड़ियाँ उपलब्ध नहीं रहती थीं। कलाई पर घड़ी एक उपहार हुआ करती थी। परीक्षा में पास होने पर और कॉलेज में दाखिला होने पर बच्चों को दिलवाई जाती थी, तो शादी में दूल्हे को ससुराल पक्षवाले घड़ी अवश्य देते थे। कई सरकारी विभागों में सेवा-निवृत्ति पर भी घड़ी देने की परंपरा थी। हम लोग कहते थे कि सेवा निवृत्ति के बजाय नौकरी लगने पर विभाग द्वारा पहले ही कर्मचारी को एक घड़ी भेंट में दी जानी चाहिए ताकि वह समय पर अपने काम पर उपस्थित हुआ करे।
मुझे पहली बार कलाई घड़ी तब मिली थी, जब मैंने कॉलेज में प्रवेश पाया था और पहली अलार्म घड़ी भी मुझे कॉलेज में एक निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार स्वरूप मिली थी। उस अलार्म घड़ी में चाबी भरकर अलार्म की घंटी बार-बार बजाकर उसके सम्मोहक प्रभाव को मैं बहुत गहराई तक महसूस करता था। वह मुझे जागृत करने वाली ध्वनि थी, जो रोमांचित कर देती थी। उस ध्वनि का नशा और स्वाद अब महँगे से महँगे अलार्म ध्वनि वाले मोबाइल फ़ोन से भी नहीं मिलता। संवेदना के स्तर सदैव एक जैसे नहीं रहते। कभी उनकी सघनता घट जाती है, तब बड़ी-बड़ी बातें भी उतना रस नहीं देतीं। यह सब मानवीय मनों की संवेदनाओं का खेल है।
जिन दिनों हमारे पास कोई घड़ी नहीं थी, तब पिता जी कहा करते थे कि तुम्हें सुबह जितने बजे भी उठना हो, तुम अपने तकिये से कहकर सो जाओ कि सुबह मुझे इतने बजे उठा देना। बस, फिर तुम्हारी नींद सुबह उतने ही बजे खुल जाएगी। बचपन में कितनी ही बार इस फ़ॉर्मूले को अपनाया था और सही पाया था। तकिया हमारी बात सुनता है और ठीक समय पर हमें जगा भी देता है। यह कौतूहल भरा आश्चर्यजनक अनुभव बहुत अच्छा लगता था, भले ही तब उसका रहस्य हमें पता नहीं था। मुझे सुबह-सुबह उठकर पढ़ना रास नहीं आता था। रात में देर तक पढ़ना सुहाता था। रात्रि के एकांत में मध्य रात्रि से भोर तक पढ़ते रहना और सुबह-सुबह नींद आ जाने पर देर से उठना मेरी आदत होती जा रही थी। कई बार रात को दो या तीन बजे तक पढ़ने के कारण सुबह जल्दी नींद नहीं खुलती थी और सुबह का सौंदर्य सिर्फ़ कविताओं में ही महसूस किया जाता था। पुरस्कार में मिली वह अलार्म घड़ी जब खराब हुई, तो फिर सुधर नहीं सकी। आज भी वह तीन दशकों से अधिक समय से मेरे पास बंद हालत में है, वह अब सुधरने योग्य नहीं रहीं परंतु मैं भी कहाँ सुधरने लायक बचा था! देर रात तक पढ़ना और सुबह देर तक सोना एक अभ्यास ही बन गया था।
वह अस्सी का दशक था, मेरी नई-नई नौकरी लगी थी। पहली बार घर से बाहर निकला था। एक कमरा किराए पर लेकर रहता था। अकेले रहने का यह पहला पहला अनुभव। कमरे में मैंने महादेवी, पंत और निराला जी की सुंदर तसवीरें फ्रेम करवाकर टाँग दी थीं। एक तरफ गुसाईं तुलसीदास जी का चित्र, अपनी पुस्तकें और अपना एकांत। रातें जाग जागकर बिताना, कविताएँ लिखना और कविताओं में डूबे रहना जैसे स्वर्ग में जीना था परंतु अपने उस एकांत में, निशाचरी वृत्ति के कारण फिर सुबह जल्दी उठना मुश्किल होने लगा। पड़ोसी कृपा करके दरवाजा खटखटाते तो नींद खुलती। देर-सवेर दफ्तर पहुँचता। अलार्म घड़ी भी नहीं थी और न ही खरीदने का ख्याल आया। मोबाइल फोन तो तब देखे भी नहीं थे।
मेरे कमरे में सिर्फ़ एक दरवाजा ही था। न कोई खिड़की थी, न कोई रोशनदान परंतु फिर भी वह कमरा बहुत प्यारा लगता था। किराया भी काफ़ी कम था। इन सबसे बढ़कर पड़ोसी बहुत अच्छे थे। देर तक रात में पढ़ने-लिखने का व्यसन बढ़ता जा रहा था और इसमें कोई व्यवधान नहीं था। हिंदी और अंग्रेजी का बहुत सारा साहित्य मैंने उस एकांत में खँगाल डाला। वह सुख अपूर्व था। कठिनाई सिर्फ़ सुबह की थी, जब नींद नहीं खुलती थी। दिन के काम और दफ्तर की नई-नई जिम्मेदारी देर से उठने के कारण अव्यवस्थित हो जाती। दिन गड़बड़ा जाता था। कई बार तकिये से सुबह जल्दी उठा देने की भी मिन्नतें करता था परंतु तब तकिये ने मेरी बात सुनना बंद कर दिया था। ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे।
अपनी किताबों की दुनिया में खोया हुआ मैं इतना बेखबर था कि कब एक चिड़िया कमरे के खुले दरवाज़े से कमरे में आकर दीवार पर लगी पंत जी की तस्वीर के पीछे अपना घोंसला बनाने लगी, मुझे पता नहीं चला। जब पता चला, तब तक उसका अपने घोंसले में गृह प्रवेश हो चुका था और वहाँ वह अपनी गृहस्थी जमा चुकी थी।
शाम को देर तक मेरा दरवाजा खुला रहता था इसलिए खिड़की या रोशनदान न होने के बावजूद भी वह चिड़िया आराम से पधार जाती। अपने घोंसले में आराम करती। मैं अपनी किताबों की दुनिया में खोया कभी उसकी तरफ़ ध्यान ही नहीं देता था। एक सुबह मैं नींद में था। चिड़िया मेरे पलंग के सिरहाने बैठकर एक अलग तरह की झुंझलाहट से भरी चीं…चीं… कर रही थी। उसकी आवाज़ तीव्र थी, मानो मेरे न उठने पर वह नाराज़ हो उसकी आवाज़ से मेरी नींद खुली परंतु मैं उठा नहीं। चिड़िया बार-बार पलंग के सिरहाने आकर फुदकती और अपनी तीव्र ध्वनि से कमरे को गुँजा रही थी। मैं कुछ समझा नहीं परंतु उठकर दरवाजा खोला तो वह बाहर चली गई।
मैं तब समझा कि सुबह-सुबह चिड़िया को बाहर जाना होता है। घोंसला तो उसका केवल रातभर का आश्रय है। दिन में वह घोंसले में आराम से पड़ी नहीं रहती। छुट्टी के दिन हम घर में भले ही पड़े रहें, चिड़िया को दिन में घोंसले में रहना नहीं सुहाता।
कमरे में खिड़की या रोशनदान होता, तो वह चिड़िया मुझे जगाए बिना बाहर चली जाती परंतु दरवाजा बंद होने पर उसके बाहर जाने का दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था इसीलिए वह दरवाजा खुलवाने के लिए मुझे जगा रही थी, मेरे न जागने पर वह नाराज़ भी हो रही थी। उसकी चहचहाहट में जिस झुंझलाहट को मैंने महसूस किया था, उसका कारण भी मुझे समझ में आ चुका था। दरवाजा खुलते ही चिड़िया तेजी से चली गई थी और शाम को फिर लौट आई, चुपचाप पंत जी की तस्वीर के पीछे बनाए हुए अपने घोंसले में!
दूसरे दिन सुबह फिर मेरी नींद नहीं खुली थीं। देर रात तक पढ़ा था। अचानक चिड़िया की झुंझलाहट भरी चहचहाहट ने जगा दिया। पलंग के सिरहाने बैठी वह चिड़िया मुझे गुस्से से देख रही थी, मानो मेरे देर तक सोने के कारण वह मुझसे नाराज़ हो। मैं थोड़ी देर उसकी चहचहाहट का आनंद लेता रहा। उसने मेरी रजाई का कोना चोंच से पकड़कर खींचा, वह मुझसे जरा भी डर नहीं रही थी। वह रजाई के उस हिस्से पर आ बैठी जो मेरे सीने पर था। उसका इस तरह मेरे ऊपर आना बहुत अच्छा लगा था। पंत जी की वाणी में लिखी पंक्तियाँ मानस में तैरने लगीं-
तूने ही पहले बहुदर्शिनी, गाया जागृति का गाना,
श्री सुख-सौरभ का नभचारिणी, गूँथ दिया ताना-बाना,
खुले पलक, फैली सुवर्ण छवि, खिली सुरभि, डोले मधुबाल,
स्पंदन कंपन औ’ नवजीवन, सीखा जग ने अपनाना।
सचमुच, उस सुबह पलकें खुलने पर ऐसा ही लगा, जैसे किसी ने जागृति का गीत गाया हो। उस नभचारिणी ने सचमुच श्री सुख-सौरभ का ताना-बाना उस सूने कमरे में गूँथ दिया था। ऐसी एक सुवर्ण छवि कमरे में छाई थी, जिसे पहले मैंने कभी महसूस नहीं किया था।
उस सुबह चिड़िया ने मेरी रजाई का कोना अपनी चोंच से खींचकर अपनी चहचहाहट से जगाया था। बचपन में इतने ही प्यार और इतनी ही झुंझलाहट से देर तक सोने पर माँ जगाती थी। मैं अपने चारों ओर फैले हुए उस श्री सुख-सौरभ की स्वर्णिम छवि से अभिभूत होकर जागा था।
मैंने उठकर दरवाजा खोला, तो वह चिड़िया बाहर निकलकर चली गई। अब यह रोज़ ही की बात हो गई थी। सुबह चिड़िया को कमरे से बाहर जाना होता था, वह जल्दी जग जाती और दरवाजा खुलवाने के लिए मेरे पलंग के सिरहाने बैठकर चहचहाती और मेरी नींद खुल जाती।
जब मैं अपनी बंद कोठरी की शय्या को छोड़कर भोर में चिड़िया को बाहर जाने देने के लिए दरवाजा खोलता, तो दरवाजे से उस ताजी सुबह की देह की कांति कमरे में कौंध जातीं। ठंडी हवा का स्पर्श और बहुत कोमलकांत उजाला आँखों को सहलाता। मुझे लगा किसी अप्रतिम अनुभव को मैं देर तक सोकर व्यर्थ करता रहा हूँ। अब भी मैं रात को देर तक पढ़ता हूँ परंतु अब वह चिड़िया मेरी अलार्म घड़ी है, जो मुझे अपने साथ सुबह जगा लेती है। अब वह पलंग के सिरहाने या मेरी रजाई पर बैठकर मधुर चहचहाहट से मुझे जगाती है। उसकी चहचहाहट में अब वह झुँझलाहट नहीं, एक वात्सल्य भरी जागृति है। यह किसी घड़ी की यांत्रिक ध्वनि नहीं है, अपनेपन से भरी पुकार है, जो मुझे आसमान से अवतरित होती हुई प्रातः काल की सुमंगल घड़ी में पुकारती है। उस सुमंगल घड़ी में सरिताओं का जल, आकाश की वायु, सूर्य का प्रकाश सब अपनी निर्मलता के चरम पर पहुँचकर सृष्टि में नए फूल खिलाने का उपक्रम करते हैं।
अब मैं चिड़िया के साथ जगना सीख गया था और सुबह की फूलों की सुगंध से भरी ताज़गी का वरदान पाने लगा था।
रवींद्रनाथ ने अपनी जीवन स्मृति में सच ही लिखा है, “मैं देवदार के जंगलों में घूमा, झरनों के किनारे बैठा, उसके जल में स्नान किया, कंचनजंगा की मेघमुक्त महिमा की ओर ताकता बैठा रहा लेकिन जहाँ मैंने यह समझा था कि पाना सरल होगा, वहीं मुझे खोजने पर भी कुछ नहीं मिला। परिचय मिला लेकिन और कुछ देख नहीं पाया। रत्न देख रहा था, सहसा वह बंद हो गया, अब मैं डिबिया देख रहा था। लेकिन डिबिया के ऊपर कैसी ही मीनाकारी क्यों न हो, उसको गलती से डिबिया मात्र मानने की आशंका नहीं रही।”
सच है, एक बार रत्न दिख गया तो फिर भले ही डिबिया बंद हो जाए, पर उस डिबिया में रत्न है, यह अनुभूति नहीं जानी चाहिए। रवींद्रनाथ की इन पंक्तियों में डिबिया की मीनाकारी का भी जो उल्लेख है, वह महत्त्वपूर्ण है।
उस चिड़िया ने डिबिया खोलकर मुझे भी उषा सुंदरी के रत्न दिखा दिए थे। उसका यह उपकार मैं भला कैसे भूलता? दरवाजा खोलते ही चिड़िया चहचहाती हुई बाहर जाती, मानो मुझे कहती हुई जा रही हो कि देखो यह मीनाकारी वाली सुंदर डिबिया खुल रही है, फिर यह बंद हो जाएगी। फिर तो दिनभर मीनाकारी से सजी डिबिया ही दिखाई देगी, इसके रत्न नहीं दिखेंगे।
मैं उस वात्सल्यमयी चिड़िया के उस उपकार को बहुत कृतज्ञता से महसूस करता हूँ। उसने मुझे उस घड़ी जगना सिखाया, जब धरती ओस के मोती बिखराकर हर नए खिल रहे फूल का अभिनंदन कर रही होती है।
भोर – प्रात:काल
भेंट – उपहार
सेवा निवृत्ति – रिटायरमेंट, कार्यकाल समाप्त होना
उपस्थित – हाज़िर
संवेदना – अनुभूति
कौतूहल – उत्सुकता
निशाचरी – रात को जागने वाली, राक्षसी
व्यसन – बुरी आदत
व्यवधान – बाधा
स्पंदन – कंपन, हिलना
नभचारिणी = आकाश में घूमने वाली
सौरभ – खुशबू
स्वर्णिम – सोने जैसी
अभिभूत – प्रभावित किया हुआ
अप्रतिम – अनोखा
वात्सल्य – प्यार
अवतरित – उतरती हुई
कृतज्ञता – अहसान
शय्या – चारपाई
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) बाज़ार में अलार्म घड़ियों की माँग क्यों घटने लगी है?
उत्तर – बाज़ार में अलार्म घड़ियों की माँग घटने लगी है क्योंकि आज मोबाइल का युग है और इस मोबाइल में ही अलार्म की सुविधा मौजूद है।
(ii) लेखक को कॉलेज में पुरस्कार में कौन-सी घड़ी मिली थी?
उत्तर – लेखक को कॉलेज में पुरस्कार स्वरूप अलार्म घड़ी मिली थी।
(iii) लेखक को कविताओं में डूबे रहना कैसा लगता था?
उत्तर – लेखक को कविताओं में डूबे रहना ऐसा लगता था मानो वे स्वर्ग में जी रहे हों।
(iv) चिड़िया कमरे में दीवार पर लगी किसकी तस्वीर के पीछे अपना घोंसला बनाने लगी थी?
उत्तर – चिड़िया कमरे में दीवार पर लगी प्रकृति के चितेरे कवि सुमित्रानंदन पंत की तस्वीर के पीछे अपना घोंसला बनाने लगी थी।
(v) लेखक अपनी कौन-सी दुनिया में खोया रहता था कि चिड़िया की तरफ ध्यान ही नहीं देता था?
उत्तर – लेखक अपनी साहित्य की दुनिया में कविता पढ़ने और रचने में खोए रहते थे और इस वजह से वे चिड़िया की तरफ ध्यान ही नहीं देते थे।
(vi) लेखक के लिए अब अलार्म घड़ी कौन थी?
उत्तर – लेखक के लिए अब चिड़िया की चहचहाट ही अलार्म घड़ी का काम करती थी।
(vii) चिड़िया ने लेखक को कौन-सा रत्न दिया था?
उत्तर – चिड़िया ने लेखक को प्रात:काल का लालिमायुक्त उदित होता हुआ सूर्यरूपी रत्न दिया था।
2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिये-
(i) पहले किन-किन अवसरों पर घड़ी देने की परंपरा थी?
उत्तर – पहले के समय में परीक्षा में पास होने पर और कॉलेज में दाखिला होने पर बच्चों को घड़ी दिलवाई जाती थी, तो शादी में दूल्हे को ससुराल पक्षवाले घड़ी अवश्य देते थे। कई सरकारी विभागों में सेवा-निवृत्ति पर भी घड़ी देने की परंपरा थी।
(ii) जिन दिनों लेखक के पास घड़ी नहीं थी तब उनके पिता जी क्या कहा करते थे?
उत्तर – जिन दिनों लेखक के पास कोई घड़ी नहीं थी, तब पिता जी उनसे कहा करते थे कि तुम्हें सुबह जितने बजे भी उठना हो, तुम अपने तकिये से कहकर सो जाओ कि सुबह मुझे इतने बजे उठा देना। बस, फिर तुम्हारी नींद सुबह उतने ही बजे खुल जाएगी। लेखक ने बचपन में कितनी ही बार इस फ़ॉर्मूले को अपनाया था और सही पाया था।
(iii) शाम को चिड़िया लेखक के कमरे में कैसे पधार जाती थी?
उत्तर – शाम को देर तक लेखक के घर का दरवाजा खुला रहता था इसलिए खिड़की या रोशनदान न होने के बावजूद भी वह चिड़िया लेखक के कमरे में बड़े आराम से प्रवेश कर जाती थी और अपने घोंसले में आराम करती थी।
(iv) रोज सुबह – सुबह चिड़िया लेखक के पलंग के सिरहाने बैठकर चहचहाती क्यों थी?
उत्तर – लेखक हर रात को साहित्य साधना में समय व्यतीत करते थे जिस वजह से सोने में काफी देर हो जाया करती थी और सुबह भी देर से जगते थे। इसलिए जब सुबह-सुबह चिड़िया को बाहर जाना होता था तो वो लेखक के सिरहाने बैठकर चीं-चीं की आवाज करती और उन्हें जगाती थी ताकि लेखक दरवाजा खोले और वो बाहर जा सके।
(v) लेखक ने चिड़िया की तुलना माँ से क्यों की है?
उत्तर – लेखक जब बाल्यावस्था में देर रात तक पढ़ाई-लिखाई किया करते थे तो सुबह उठने में अक्सर देर हो जाया करती थी। तब उन्हें उनकी माँ उठाया करती थी और न उठने पर गुस्से का भाव भी प्रदर्शित करती थीं। अभी लेखक अपने घर से दूर हैं। अब सुबह चिड़िया लेखक की रजाई का कोना अपनी चोंच से खींचकर अपनी चहचहाहट से उन्हें जगाती है। लेखक को याद आया बचपन में इतने ही प्यार और इतनी ही झुंझलाहट से देर तक सोने पर माँ जगाती थी। इसलिए लेखक ने चिड़िया की तुलना माँ से की है।
3.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिये-
(i) ‘वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी’ कहानी के द्वारा लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर – ‘वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी’ कहानी के द्वारा लेखक यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें अपने जीवन में बहुत से लोग मिलते हैं जिनमें से बहुत लोग ऐसे होते हैं जो केवल हमसे अपना फायदा निकलवाना चाहते हैं और उँगलियों पर गिने जा सकने वाले लोग ही ऐसे होते हैं जो सचमुच हमारा भला चाहते हैं। हमारी उन्नति में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं। इसलिए हमें अच्छी संगति करनी चाहिए। संगत का असर हमारे जीवन पर, हमारे आचरण पर और हमारे प्रतिदिन के व्यवहार पर पड़ता है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें भी अच्छी आदतों का ही स्वामी बनना चाहिए। अच्छी आदतें हमारे जीवन को सरल और सहज बना देती हैं।
(ii) चिड़िया द्वारा लेखक को जगाए जाने के प्रयास को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – चिड़िया सुबह-सुबह विस्तृत गगन में उड़ना पसंद करती है। इधर लेखक के घर में रोशनदान नहीं था इसलिए बाहर जाने के लिए लेखक को उठाने हेतु उनकी चारपाई पर बैठ कर तेज़ ध्वनि में चीं-चीं की ध्वनि करना शुरू कर दिया। लेखक को उसकी ध्वनि से कुछ झुँझलाहट-सी हुई फिर कुछ समय के बाद लेखक समझ गए कि चिड़िया क्या कहना चाहती है। इसके अगले दिन भी जब लेखक सुबह-सुबह नहीं उठे तो पहले तो वह चीं-चीं की ध्वनि में शोर मचाती रही। किंतु इससे भी लेखक नहीं जगा तो उसने लेखक की रजाई का कोना अपनी चोंच से पकड़कर खींचना शुरू कर दिया। फिर कहीं लेखक की आँखें खुलीं और उसने उठकर दरवाज़ा खोला। इसके बाद चिड़िया का यह क्रियाकलाप प्रतिदिन का हो गया।
(iii) लेखक उस वात्सल्यमयी चिड़िया का उपकार क्यों मानता है?
उत्तर – लेखक उस वात्सल्यमयी चिड़िया का उपकार मानते हैं क्योंकि उनकी वजह से उन्हें सुबह जल्दी उठने की आदत पड़ी और सुबह की प्राकृतिक सुंदरता जो अद्वितीय होती है उसके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेखक को सुबह के अनुपम दृश्य से कविता रचने की प्रेरणा और नए-नए उपमान मिले। उदित होता हुआ रक्ताभ सूर्य उनके लिए ऊर्जा का स्रोत था। उन्होंने वह दृश्य भी देखा जब धरती ओस के मोती बिखराकर हर नए खिल रहे फूल का अभिनंदन कर रही होती है।
1.निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-
एकवचन बहुवचन
घोंसला घोंसले
कमरा कमरे
दरवाज़ा दरवाज़े
बच्चा बच्चे
चिड़िया चिड़ियाँ
डिबिया डिबियाँ
घड़ी घड़ियाँ
खिड़की खिड़कियाँ
छुट्टी छुट्टियाँ
दूल्हा दूल्हे
2.निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द उपसर्ग मूल शब्द
उपहार उप + हार
उपस्थित उप + स्थित
उपलब्ध उप + लब्ध
अभिभूत अभि + भूत
सुमंगल सु + मंगल
अनुभूति अनु + भूति
बेखबर बे + खबर
उपकार उप + कार
3.निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द मूल शब्द प्रत्यय
चहचहाहट चहचहा + आहट
झुंझलाहट झुंझला + आहट
रोशनदान रोशन + दान
कृतज्ञता कृतज्ञ + ता
सघनता सघन + ता
मानवीय मानव + ईय
4.पाठ में आए निम्नलिखित तत्सम शब्दों के तद्भव रूप तथा तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
तत्सम तद्भव
रात्रि रात
आश्रय आसरा
कृपा किरपा
गृह घर
सूर्य सूरज
सच सत्य
नींद निद्रा
मोती मुक्ता
चिड़िया चटका
माँ मातृ
1.यदि आपके घर में भी किसी चिड़िया ने घोंसला बनाया है तो उसके क्रियाकलाप को ध्यान से देखिए और अपना अनुभव लिखिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
2.यदि किसी पशु-पक्षी के कारण आपके जीवन में भी परिवर्तन आया है तो वर्णन कीजिए।
उत्तर – एक बार मैंने एक कुत्ता पाला था। हालाँकि, वह सामान्य नस्ल का आवारा कुत्ता था। पर रूप-रंग और कद काठी अच्छी थी। उसे पालने के दौरान मेरे अंदर एक अभिभावक के गुणों का संचार हुआ और मुझे यह पता चला कि अभिभावकों को बहुत-सी जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है। इसके बाद मैं भी अपने माता-पिता के प्रति विनम्र और आज्ञाकारी हो गया।
3.चिड़िया को ‘अलार्म घड़ी’ के अतिरिक्त आप और क्या नाम देंगे और क्यों?
उत्तर – चिड़िया को ‘अलार्म घड़ी’ के अतिरिक्त मैं ‘समय का पाबंद’ नाम देना चाहूँगा क्योंकि चिड़िया के पास कोई घड़ी नहीं होती फिर भी वो अपने समय से उठ जाती हैं और अपने कर्मों को सही से संपादन करती है।
1.प्रातः काल में प्रकृति को ध्यानपूर्वक निहारिए और कक्षा में सभी को अपना अनुभव बताइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
2.विभिन्न प्रकार के पक्षियों की आवाजों, उनके स्वभाव और उनके घोंसले के बारे में सामग्री जुटाइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
3.पक्षी विज्ञानी सालिम अली की पुस्तक ‘भारतीय पक्षी’ पढ़िए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
4.कहानी पढ़कर आपके सामने चिड़िया का जो चित्र उभरता है, उस चित्र को बनाइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
5.चिड़िया और प्रात:कालीन सौंदर्य पर कविताओं का संकलन कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
महादेवी वर्मा : महादेवी वर्मा हिंदी की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री है। हिंदी साहित्य के ‘आधुनिक काल’ की छायावादी कविता में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। छायावाद की प्रायः रहस्यवादी, प्रकृति-चित्रण, काव्य-वेदना आदि सभी विशेषताएँ इनके काव्य में मिलती हैं। कवयित्री के साथ-साथ ये उत्कृष्ट लेखिका के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनकी ‘नीहार’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘काव्य संग्रह’ तथा ‘अतीत के चलचित्र’, ‘पथ के राही’, ‘मेरा परिवार’ आदि संस्मरण और रेखाचित्र प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
पंत : पंत जी का पूरा नाम ‘सुमित्रानंदन पंत’ है। इन्हें प्रकृति के रंग भीने वातावरण ने अत्यधिक प्रभावित व प्रेरित किया। इनकी कविताओं में प्रकृति की अनुपम छटा के दर्शन स्वतः ही हो जाते हैं। इसीलिए इन्हें प्रकृति का सुकुमार (कोमल) कवि कहा जाता है। ‘उच्छ्वास’, ‘ग्रंथि’, ‘वीणा’, ‘चिदम्बरा’ आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
निराला : निराला जी का पूरा नाम सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ है। हिंदी साहित्य में छायावादी काव्य परम्परा को आगे बढ़ाने वाले प्रसाद के बाद दूसरे कवि हैं। छायावादी कविता में वेदना का जो चित्रण व्यापक परिवेश में हुआ है, वह इनकी कविताओं में प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसके अतिरिक्त रहस्यवाद तथा प्रकृति चित्रण भी इनके काव्य की विशेषता है।
तुलसीदास : भक्तिकालीन हिंदी साहित्य में राम भक्त कवियों में तुलसीदास का स्थान सर्वोपरि है। यद्यपि इनके अतिरिक्त कई अन्य कवियों ने भी राम काव्य से संबंधित रचनाएँ लिखीं किंतु तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ जैसी अभूतपूर्व सफलता, किसी को नहीं मिली। इन्होंने ‘रामचरितमानस’ के माध्यम से राम कथा को घर-घर तक पहुँचाने का अनुपम कार्य किया।
रवींद्रनाथ ठाकुर – रवींद्रनाथ ठाकुर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार व दार्शनिक के रूप में जाने जाते हैं। इनका जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। इनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर व माता का नाम शारदा देवी था। वे एशिया के प्रथम नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उनकी काव्य रचना ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें 1913 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्रगान जन गण मन और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला। इन्हें ‘गुरुदेव’ के नाम से भी जाना जाता है। 7 अगस्त, 1941 को इनका निधन हो गया।
लोकोक्तियों में पक्षी
अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
खग ही जाने खग ही की भाषा।
घर की मुर्गी दाल बराबर।
कौआ चला हंस की चाल।
जंगल में मोर नाचा किसने देखा?
आधा तीतर, आधा बटेर।
झूठ बोले कौआ काटे।
अंधे के हाथ लगा बटेर।
आधा बगुला आधा सूअर।