विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’
(सन् 1890-1944)
जीवन-परिचय- विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का जन्म 1890 ई. में तत्कालीन पंजाब प्रांत के अंबाला जिले में हुआ था। उन्होंने कानपुर में मैट्रिक तक स्कूली शिक्षा प्राप्त की। इसके पश्चात् वे साहित्य- सेवा में लग गए। उन्हें हिंदी के अतिरिक्त उर्दू और अंग्रेज़ी का भी पर्याप्त ज्ञान था। संगीत और फोटोग्राफी में भी आपकी विशेष रुचि रही। 1944 ई. में आपकी मृत्यु हुई।
साहित्यिक परिचय- कौशिक जी मुख्य रूप से कहानीकार थे। प्रेमचंद युग के उल्लेखनीय कथाकार कौशिक जी की कहानियों में आदर्शवादी और भावुकता की प्रधानता है। उन्होंने अपनी कहानियों में कथावस्तु, चरित्र चित्रण और वातावरण की यथार्थ अभिव्यक्ति के साथ पात्रों के मनोविश्लेषण पर विशेष ध्यान दिया है। इनकी कहानियों में स्वाभाविक गद्य शैली का विकास मिलता है।
कौशिक जी के दो उपन्यास ‘माँ’ और ‘भिखारिणी’ हिंदी जगत में प्रसिद्ध हैं।
इन्होंने विजयानंद दूबे के छद्म नाम से तत्कालीन मासिक पत्रिका ‘चाँद’ में कुछ महत्त्वपूर्ण पत्र भी लिखे थे, जिन्हें बाद में पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया।
प्रमुख रचनाएँ-
कहानी संग्रह – 1. चित्रशाला 2. मणिमाला।
उपन्यास – 1. माँ 2. भिखारिणी।
पत्र – संग्रह दूबे जी की डायरी।
पाठ-परिचय
‘अशिक्षित का हृदय’ प्रकृति के साथ मनुष्य के भावात्मक संबंध को दर्शाने वाली एक मार्मिक कहानी है। कहानी में मनोहर सिंह साधारण जीवन जीने वाला व्यक्ति है। उसे अपने पिता द्वारा लगाए गए नीम के पेड़ से आत्मीय लगाव है। अभाव के कारण उसे अपना पेड़ जमींदार के यहाँ गिरवी रखना पड़ता है। जमींदार उस वृक्ष को कटवाना चाहता हैं किंतु मनोहर सिंह उस वृक्ष का रक्षक बन जाता है। वह अपनी जान देकर भी उस पेड़ को बचाने का प्रण करता है। गाँव का एक लड़का तेजा सिंह मनोहर सिंह की भावनाओं की कद्र करता है और अपने प्रयत्न से पेड़ को बचाने में सफल हो जाता है। मनोहर सिंह को तेजा जैसा सही उत्तराधिकारी मिल जाता है और वह उस पेड़ को तेजा को दे देता है।
अशिक्षित का हृदय
बूढ़ा मनोहर सिंह विनीत भाव से बोला- सरकार, अभी तो मेरे पास रुपये हैं नहीं होते तो दे देता। ऋण का पाप तो देने से ही कटेगा। फिर आपके रुपये को कोई जोखिम नहीं। मेरा नीम का पेड़ गिरवी धरा हुआ है। वह पेड़ कुछ न होगा तो पच्चीस-तीस रुपये का होगा। इतना पुराना पेड़ गाँव भर में दूसरा नहीं।
ठाकुर शिवपाल सिंह बोले-डेढ़ साल का ब्याज मिलाकर कुल 22 होते हैं। वह रुपया अदा कर दो। नहीं तो हम तुम्हारा पेड़ कटवा लेंगे।
मनोहर सिंह कुछ घबरा कर बोला- अरे सरकार, ऐसा अंधेर न कीजिएगा। पेड़ न कटवाइएगा। रुपया मैं दे ही दूँगा। यदि न भी दे सकूँ तो पेड़ आपका हो जाएगा। पर मेरे ऊपर इतनी दया कीजिएगा कि उसे कटवाइगा नहीं।
ठाकुर शिवपाल सिंह मुस्करा कर बोले-मनोहर, तुम सठिया गए हो। तभी तो ऐसी ऊल- जलूल बातें करते हो। भला जो पेड़ कटाया न जाएगा, तो हमारे पैसे कैसे निकलेंगे?
मनोहर सिंह बोला- अन्नदाता, आपके रुपये तो जहाँ तक होगा मैं दे ही दूँगा।
ठाकुर- अच्छा, अब ठीक-ठीक बताओ कि रुपये कब तक दे दोगे?
मनोहर कुछ देर सोच कर बोला- एक सप्ताह में अवश्य दे दूँगा।
ठाकुर अच्छा, स्वीकार है। एक सप्ताह में दे देना, नहीं तो फिर पेड़ हमारा हो जाएगा। हमारी जो इच्छा होगी, वह करेंगे चाहे कटावेंगे, चाहे रक्खेंगे।
मनोहर और चाहे जो कीजिएगा उसे कटवाइएगा नहीं, इतनी आपसे प्रार्थना है।
ठाकुर-खैर, हमारा जो जी चाहेगा, करेंगे। तुम्हें फिर कुछ कहने का अधिकार नहीं रहेगा।
मनोहर सिंह की आयु 55 वर्ष के लगभग है। अपनी जवानी उसने फौज में व्यतीत की थी। इस समय वह संसार में अकेला है। उसके परिवार में कोई नहीं। गाँव में दो-एक दूर के रिश्तेदार हैं, जिनके यहाँ अपना भोजन बनवा लेता है। न कहीं आता है, न जाता है। दिन-रात अपने टूटे-फूटे मकान में पड़ा ईश्वर-भजन किया करता है।
एक वर्ष पूर्व उसे खेती कराने की सनक सवार हुई थी। उसने ठाकुर शिवपाल सिंह की कुछ भूमि लगान पर लेकर खेती कराई भी थी पर उसके दुर्भाग्य से उस साल अनावृष्टि के कारण कुछ पैदावार न हुई। ठाकुर शिवपाल सिंह का लगान न पहुँचा। मनोहर सिंह को जो कुछ पेंशन मिलती थी वह उसके भोजन-वस्त्र भर ही को होती थी। अंत में जब ठाकुर साहब को लगान न मिला, तो उन्होंने उसका एक नीम का वृक्ष, जो उसकी झोंपड़ी के द्वार पर लगा था, गिरवी रख लिया। यह नीम का वृक्ष बहुत पुराना और उसके पिता के हाथ का लगाया हुआ था।
मनोहर सिंह को एक सप्ताह का अवकाश दिया गया, उसने बहुत कुछ दौड़धूप की, दो-चार आदमियों से क़र्ज माँगा, पर किसी ने उसे रुपये न दिये। लोगों ने सोचा, वृद्ध आदमी है, न जाने कब दुलक जाय। ऐसी दशा में रुपया किससे वसूल होगा? मनोहर चारों ओर से हताश होकर बैठा रहा और धड़कते हुए हृदय से सप्ताह व्यतीत होने की राह देखने लगा।
दोपहर का समय है। मनोहर सिंह एक चारपाई पर नीम के नीचे लेटा हुआ है। नीम की शीतल वायु के झोकों से उसे बड़ा सुख मिल रहा है। वह पड़ा पड़ा सोच रहा है कि परसों तक यदि रुपये न पहुँचेगे, तो ठाकुर साहब उस पेड़ को कटवा डालेंगे। यह पेड़ मेरे पिता के हाथ का लगाया हुआ है। मुझे और मेरे परिवार को दतून और छाया देता रहा है। इसको ठाकुर साहब कटवा डालेंगे।
यह विचार मनोहर सिंह को ऐसा दुखदायी प्रतीत हुआ कि वह चारपाई पर उठकर बैठ गया और वृक्ष की ओर मुँह करके बोला- यदि संसार में किसी ने मेरा साथ दिया है तो तूने। यदि संसार में किसी ने निःस्वार्थ भाव से मेरी सेवा की है तो तूने। अब भी मेरी आँखों के आगे वह दृश्य आ जाता है, जब मेरे पिता तुझे सींचा करते थे। तू उस समय बिल्कुल बच्चा था। मैं तेरे लिए तालाब से पानी भर कर लाया करता था। पिता कहा करते थे बेटा मनोहर! यह मेरे हाथ की निशानी है। इससे जब-जब तुझे और तेरे बाल-बच्चों को सुख पहुँचेगा, तब-तब मेरी याद आवेगी। पिता का देहांत हुए चालीस वर्ष व्यतीत हो गए। उनके कहने के अनुसार तू सदैव उनकी कीर्ति का स्मरण कराता रहा और जब तक रहेगा उनकी याद दिलाता रहेगा। मुझे वह दिन अच्छी तरह याद है जब मैं अपने मित्रों सहित तेरी डालियों पर चढ़ कर खेला करता था। इस संसार में तू ही एक पुराना मित्र है। तुझे वह दुष्ट काटना चाहता है। हाँ, काटेगा क्यों नहीं देखेँ, कैसे काटता है।
उसी समय उधर से एक पंद्रह-सोलह वर्ष का लड़का निकला। वृद्ध मनोहर को बड़बड़ाता देख उसने पूछा- चाचा, किससे बातें करते हो? यहां तो कोई है भी नहीं।
बुड्ढे ने चौंक कर लड़के की ओर देखा और कहा-क्या कहूँ बेटा तेजा, अपने कर्म से बातें कर रहा हूँ। ठाकुर शिवपालसिंह के मुझ पर कुछ रुपये चाहियें। तुझे तो बेटा मालूम ही है कि पर साल खेतों में एक दाना भी नहीं हुआ होता तो क्या मैं उनका लगान रख लेता? अब वे कहते हैं, लगान के रुपये दो, नहीं पेड़ कटवा लेंगे। इस पेड़ को कटवा लेंगे जो मेरे बापू के हाथ का लगाया हुआ है। यह बात तो देखो : समय का फेर है, जो आज ऐसी-ऐसी बातें सुननी पड़ती है। बेटा, मैंने सारी उमर फ़ौज में बिताई है। बड़ी-बड़ी लड़ाई और मैदान देखे हैं। ये बेचारे हैं किस खेत की मूली। आज शरीर में बल होता, तो इनकी मजाल थी कि मेरे पेड़ के लिए ऐसा कहते। मुँह नोच लेता। मैंने कभी नाक पर मक्खी नहीं बैठने दी। बड़े-बड़े साहब-बहादुरों से लड़ पड़ता था। ये बेचारे हैं क्या? बड़े ठाकुर की दुम बने घूमते हैं। मैंने तो तोप के मुँह पर डट कर बन्दूकें चलाई हैं। पर बेटा, समय सब कुछ करा लेता है। जिन्होंने कभी तोप की सूरत नहीं देखी, वे वीर और ठाकुर बने घूमते हैं। हमें आंखें दिखाते हैं कि रुपये दो, नहीं पेड़ कटवा लेंगे। देखें, कैसे पेड़ कटवाते हैं? लाख बुड्ढा हो गया हूँ। जब तलवार लेकर डट जाऊँगा तो भागते दिखाई पड़ेंगे और बेटा, सौ बात की एक बात तो यह है कि मुझे अब मरना ही है, चल – चलाव लग रहा है। मैं बड़ी-बड़ी लड़ाइयों से जीता लौट आया। समझँगा, यह भी एक लड़ाई ही हैं। अब इस लड़ाई में मेरा अंत है। पर इतना समझ रखना कि मेरे जीते जी इस पेड़ की एक डाल भी कोई काटने नहीं पावेगा। उनका रुपया गले बराबर है। भगवान जाने, मेरे पास होता, तो मैं दे देता। नहीं है, तो क्या किया जाय? पर यह नहीं हो सकता कि ठाकुर साहब मेरा पेड़ कटवा लें, और मैं बैठे टुकुर-टुकुर देखा करूँ।
तेजा बोला- चाचा, जाने भी दो, इन बातों में क्या रक्खा है? पेड़ कटवाने को कहते हैं, काट लेने देना। इस पेड़ में तुम्हारा रक्खा ही क्या है? पेड़ तो नित्य ही कटा करते हैं।
मनोहर सिंह बिगड़ कर बोला- आखिर लड़के ही हो न! अरे बेटा, यह पेड़ ऐसा-वैसा नहीं है। यह पेड़ मेरे भाई के बराबर है। मैं इसे अपना सगा भाई समझता हूँ। यह मेरे पिता के हाथ का लगाया हुआ है, किसी और के हाथ का नहीं। जब मैं तुम से भी छोटा था, तब से इसका और मेरा साथ है। मैं बरसों इस पर खेला हूँ, बरसों इसकी मीठी-मीठी निबोलियाँ खाई हैं। इसकी दतून आज तक करता हूँ। गाँव में सैकड़ों पेड़ हैं, पर मुझ से कसम ले लो, जो मैंने कभी उनकी एक पत्ती तक छुई हो। जब मेरे घर में आप ही इतना बड़ा पेड़ खड़ा हुआ है, तब मुझे दूसरे पेड़ में हाथ लगाने की क्या पड़ी है? दूसरे, मुझे किसी और पेड़ की दतून अच्छी नहीं लगती।
तेजा बोला-चाचा, बिना रुपये दिये तो यह पेड़ बच नहीं सकता।
मनोहर- बेटा, ईश्वर जानता है, मेरे पास रुपये होते, तो मैं आज ही दे देता। पर क्या करूँ, लाचार हूँ। मेरे घर में ऐसी कोई चीज़ भी नहीं, जो बेच कर दे दूँ। मुझे आप इस बात का बड़ा दुख है। गाँव भर में घूम आया। किसी ने उधार न दिये। क्या करूँ? बेटा तेजा, सच जानना, जो यह पेड़ कट गया, तो मुझे बड़ा दुख होगा। मेरा बुढ़ापा बिगड़ जाएगा। अभी तक मुझे कोई दुख नहीं था। खाता था, ईश्वर का भजन करता था, पर अब घोर दुख हो जाएगा।
यह कर कह वृद्ध मनोहरसिंह ने आँखों में आँसू भर लिए।
तेजा वृद्ध मनोहर सिंह का कष्ट देख-सुन कर बड़ा दुखी हुआ। तेजासिंह गाँव के एक प्रतिष्ठित किसान का लड़का था। उसका पिता डेढ़-दो सौ बीघे भूमि की खेती करता था। मनोहर को तेजासिंह चाचा कहा करता था।
तेजा ने कहा- चाचा, बापू से यह हाल कहा है?
मनोहर सब से कह चुका बेटा! तेरा बापू तो अब बड़ा आदमी हो गया है। वह मेरे जैसे गरीबों की बात क्यों सुनने लगा? एक जमाना था, जब वह दिन-दिन भर द्वार पर पड़ा रहता था। घर में लड़ाई होती थी, तो मेरे ही यहाँ भाग आता था, और दो-दो तीन-तीन दिन तक यहाँ रहता था, वही तुम्हारा बापू अब सीधे मुँह बात नहीं करता। इसी से कहता हूँ, समय की बात है।
तेजा ने पूछा- कितने रुपये देने से पेड़ बच सकता है?
मनोहर- 25 रुपये देने पड़ेंगे।
तेजा – 25 रुपये तो बहुत हैं चाचा।
मनोहर – पास नहीं हैं, तो बहुत ही हैं। होते, तो थोड़े थे।
तेजा दस-पाँच रुपये की बात होती, तो मैं ही कहीं से ला देता।
मनोहर- बेटा, ईश्वर तुझे चिरंजीव रखें। तूने एक बात तो कही। गाँव वालों ने तो इतना भी नहीं कहा। खैर, देखा जायगा। पर इतना तू याद रखना कि मेरे जीते जी इस पेड़ को कोई हाथ नहीं लगाने पावेगा।
एक सप्ताह बीत गया। आज आठवाँ दिन है। मनोहर सिंह रुपयों का प्रबंध नहीं कर सका। वह समझ गया कि अब पेड़ का बचना कठिन है पर साथ ही वह यह भी निश्चित कर चुका था कि उसके जीते जी कोई उसको नहीं काट सकता। उसने अपनी तलवार भी निकाल ली थी, और साफ करके रख ली थी। अब वह हर समय पेड़ के नीचे पड़ा रहता था। तलवार सिरहाने रखी रहती थी।
आठवें दिन दोपहर के समय शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह को बुलवाया। मनोहर सिंह तलवार बगल में दबाये अकड़ता हुआ ठाकुर साहब के सामने पहुँचा।
शिवपाल सिंह और उनके पास बैठे हुए लोग बुड्ढे को इस सजधज से देखकर मुस्कराए। शिवपाल सिंह ने कहा- सुनते हो मनोहर सिंह, एक सप्ताह बीत गया। अब पेड़ हमारा हो गया। आज हम उसकी कटाई शुरू करते हैं।
मनोहर – आपको अधिकार है। मुझे रुपया मिलता, तो दे ही देता। और अब भी मिल जाएगा तो दे ही दूँगा। मेरी नीयत में बेईमानी नहीं है। मैं फौज में रहा हूँ। बेईमानी का नाम नहीं जानता।
शिवपाल तो अब हम उसे कटवा लें न!
मनोहर यह कैसे कहूँ। आपका जो जी चाहे, कीजिए।
यह कहकर मनोहर सिंह उसी प्रकार अकड़ता हुआ ठाकुर शिवपाल के सामने से चला आया और अपने पेड़ के नीचे चारपाई पर आकर बैठ गया।
दोपहर ढलने पर चार-पाँच आदमी कुल्हाड़ियाँ लेकर आते हुए दिखाई पड़े। मनोहर सिंह झट म्यान से तलवार निकाल डट कर खड़ा हो गया और ललकार कर बोला…..संभल कर आगे बढ़ना। जो किसी ने भी पेड़ में कुल्हाड़ी लगाई, तो उसकी जान और अपनी जान एक कर दूँगा।
वे मजदूर बुड्ढे की ललकार सुन और तलवार देखकर भाग खड़े हुए।
जब शिवपाल सिंह को यह बात मालूम हुई, तब पहले तो वे बहुत हँसे, परंतु पीछे कुछ सोचकर उनका चेहरा क्रोध के मारे लाल हो गया। बोले- इस बुड्ढे की शामत आई है। हमारा माल हैं, हम चाहे काटें, चाहे रखें, वह कौन होता है?
चलो तो मेरे साथ, देखूं तो वह क्या करता है?
शिवपाल सिंह मज़दूरों तथा दो लठबंद आदमियों को लेकर पहुँचे। उन्हें आता देख बुड्ढा फिर तलवार निकाल कर खड़ा हो गया।
शिवपाल सिंह उसके सामने पहुँचकर बोले- क्यों मनोहर, यह क्या बात है?
मनोहर सिंह बोला-बात केवल इतनी है कि मेरे रहते इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता। यह मैं जानता हूँ कि अब पेड़ आपका है, मगर यह होने पर भी मैं इसे कटता हुआ नहीं देख सकता।
शिवपाल सिंह पर हम तो इसे कटवाये बिना न मानेंगे।
मनोहर सिंह को भी क्रोध आ गया। वह बोला-ठाकुर साहब, जो आप सच्चे ठाकुर हैं, तो इस पेड़ को कटवा लें। जो मैं ठाकुर हूँगा, तो इसे न कटने दूंगा।
शिवपाल सिंह अपने आदमियों से बोले-देखते क्या हो, इस बुड्ढे को पकड़ लो और पेड़ काटना शुरू कर दो।
ठीक उसी समय तेजा सिंह दौड़ता हुआ आया और मनोहर सिंह को कुछ रुपये देकर बोला- लो चाचा, ये रुपये। अब तुम्हारा पेड़ बच गया।
मनोहर सिंह ने रुपये गिन कर ठाकुर शिवपाल सिंह से पूछा- कहिए ठाकुर साहब, रुपये लेने हों, तो ये हाजिर हैं। और पेड़ कटवाना हो, तो आगे बढ़िये।
ठाकुर- रुपये अब हम नहीं ले सकते। रुपये देने की मियाद बीत गई। अब तो पेड़ कटेगा। मनोहर सिंह अकड़ कर बोला- ठीक है। अब मालूम हुआ कि आप केवल मुझे दुख पहुँचाने के लिए पेड़ कटवा रहे हैं। अच्छा कटवाइए! मुझे भी देखना है, आप किस तरह पेड़ कटवाते हैं।
इतनी ही देर में गाँव भर में खबर फैल गई कि शिवपाल सिंह मनोहर सिंह का पेड़ कटवाते हैं, पर मनोहर सिंह तलवार खींचे खड़ा है, किसी को पेड़ के पास नहीं जाने देता। यह खबर फैलते ही गाँव भर जमा हो गया।
गाँव के दो-चार प्रतिष्ठित आदमियों ने मनोहर सिंह से पूछा- क्या बात हैं मनोहर सिंह?
मनोहर सिंह सब हाल कहकर बोला- मैं रुपये देता हूँ, ठाकुर नहीं लेते। कहते हैं कल तक मियाद थी। अब तो पेड़ कटेगा।
शिवपाल सिंह बोले- कल तक यह रुपये दे देता तो पेड़ पर हमारा कोई अधिकार न होता। अब हमारा उस पर पूरा अधिकार है। हम पेड़ अवश्य कटवाएँगे।
एक व्यक्ति बोला- जब कल तक इसके पास रुपये नहीं थे, तो आज कहाँ से आ गए? शिवपाल सिंह का एक आदमी बोला- तेजा ने अभी ला कर दिये हैं।
गाँव वालों के साथ तेजा का पिता भी आया था। उसने यह सुनकर तेजा को पकड़ा और कहा- क्यों बे, तूने ही रुपये चुराये? मैंने दोपहर को पूछा तो तीन-तेरह बकने लगा था।
इसके बाद मनोहर सिंह से कहा- मनोहर, ये रुपये तेजा मेरे संदूक से चुरा लाया है। ये रुपये मेरे हैं।
मनोहर रुपये फेंक कर बोला- तेरे हैं तो ले जा मैंने तेरे लड़के से रुपये नहीं माँगे थे।
फिर मनोहर सिंह ने तेजा से कहा- बेटा, तूने यह बुरा काम किया! चोरी की। राम-राम! बुढ़ापे में मेरी नाक काटने का काम किया था। ये लोग समझेंगे मैंने ही चुराने के लिए तुझसे कहा होगा।
तेजा बोला- चाचा, मैं गंगा जल उठा कर कह सकता हूँ कि तुमने रुपये मांगे तक नहीं, चुराने के लिए कहना तो बड़ी दूर की बात है।
शिवपाल सिंह ने हँस कर कहा- क्यों मनोहर, अब रुपये कहाँ हैं? लाओ, रुपये ही लाओ। मैं रुपये लेने को तैयार हूँ। अब या तो अभी रुपये दे दो, या सामने से हट जाओ। झगड़ा करने से कोई लाभ न होगा।
मनोहर सिंह बोला-ठाकुर साहब, इन तानों से क्या फायदा? रुपये मेरे पास नहीं हैं, लेकिन पेड़ मैं कटने नहीं दूँगा।
शिवपाल सिंह उपस्थित लोगों से बोले-आप लोग इस बात को देखिए और न्याय कीजिए। मियाद कल तक की थीं मैं अब भी रुपये लेने को तैयार हूँ। अब मेरा अपराध नहीं, यह बुड्ढा व्यर्थं झगड़ा कर रहा है।
तेजा सिंह यह सुनते ही आगे बढ़ा, और अपनी उंगली से सोने की अंगूठी उतार कर शिवपाल सिंह से बोला- ठाकुर साहब, यह अंगूठी एक तोले की है। आपके रुपये इससे निकल आयेंगे। आप यह अंगूठी ले जाइये। इस अंगूठी पर बापू का कोई अधिकार नहीं। यह अंगूठी मुझे मेरी नानी ने दी थी।
यह देखकर तेजा सिंह का पिता आगे बढ़ा और बोला-ठाकुर साहब, लीजिए ये पच्चीस रुपये और अब इस पेड़ को छोड़ दीजिए। आप अभी कह चुके हैं कि रुपये मिल जायें, तो पेड़ छोड़ देंगे। अतएव अपने वचन का पालन कीजिए।
ठाकुर साहब के चेहरे का रंग उड़ गया। उन्हें विश्वास हो गया था कि अब मनोहर सिंह को रुपये मिलना असंभव है। इसी से उन्होंने केवल उदारता दिखाने के लिए रुपए लेना स्वीकार किया था। अब वे कुछ न कह सके। कारण, उन्होंने पच्चीस-तीस आदमियों के सामने रुपये लेना स्वीकार कर लिया था। वे रुपये लेकर चुपचाप चले गए।
ठाकुर साहब के चले जाने के बाद मनोहर सिंह ने तेजा को बुलाकर छाती से लगाया और कहा- बेटा, इस पेड़ को तूने ही बचाया है, अतएव मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे पीछे तू इस पेड़ की पूरी रक्षा कर सकेगा।
मनोहर ने यह कह कर उपस्थित लोगों से कहा-भाइयो! मैं तुम सबके समाने यह पेड़ तेजा सिंह को देता हूँ। तेजा को छोड़ कर इस पर किसी का कोई अधिकार न रहेगा।
फिर तलवार म्यान में रखते हुआ आप ही आप कहा पर मेरे जीते जी कोई पेड़ में हाथ नहीं लगा सकता था, अपनी और उसकी जान एक कर देता। मैंने फौज में नौकरी की है। बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ जीती हैं। ये बिचारे हैं क्या चीज!
शब्दार्थ-
विनीत – विनय से युक्त, नम्र और शिष्ट
हताश = निराश
ऋण – कर्ज
निःस्वार्थ – बिना स्वार्थ के
गिरवी – किसी के पास कोई चीज़ इस शर्त पर रखना कि जब ऋण चुका दिया जाएगा तब वह चीज भी लौटा दी जाएगी।
कीर्ति – यश, प्रसिद्धि
टुकुर-टुकुर – ललचाई हुई नज़र से
निबोली – नीम का छोटा सा फल
प्रतिष्ठित – सम्मान प्राप्त
सठिया जाना – साठ वर्ष का होना, बुड्ढा होना
चिरंजीव – दीर्घजीवी, बहुत समय तक जीवित रहने वाला
ऊल-जलूल – ऊट-पटाँग
लठबंध – लठैत
अनावृष्टि – वर्षा का अभाव, सूखा
मियाद – समय, अवधि
अभ्यास
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(1) बूढ़े मनोहर सिंह का नीम का पेड़ किसके पास गिरवी था?
(2) ठाकुर शिवपाल सिंह रुपये न लौटाए जाने पर किस बात की धमकी देता है?
(3) मनोहर सिंह ने रुपये लौटाने की मोहलत कब तक की मांगी थी?
(4) नीम का वृक्ष किसके हाथ का लगाया हुआ था?
(5) तेजा सिंह कौन था?
(6) ठाकुर शिवपाल सिंह का कर्ज अदा हो जाने के बाद मनोहर सिंह ने अपने नीम के पेड़ के विषय में क्या निर्णय लिया?
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए
(1) मनोहर सिंह ने अपने नीम के पेड़ को गिरवी क्यों रखा?
(2) ठाकुर शिवपाल सिंह नीम के पेड़ पर अपना अधिकार क्यों जताते हैं?
(3) मनोहर सिंह ठाकुर शिवपाल सिंह अपने नीम के वृक्ष के लिए क्या आश्वासन चाहता था?
(4) नीम के वृक्ष के साथ मनोहर सिंह का इतना लगाव क्यों था?
(5) मनोहर सिंह ने अपना पेड़ बचाने के लिए क्या उपाय किया?
(6) मनोहर सिंह की किस बात से तेजा सिंह प्रभावित हुआ?
(7) तेजा सिंह ने मनोहर सिंह की सहायता किस प्रकार की?
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिए
(1) मनोहर सिंह का चरित्र चित्रण कीजिए।
(2) तेजा सिंह का चरित्र चित्रण कीजिए।
(3) अशिक्षित का हृदय’ कहानी का क्या उद्देश्य है?
(ख) भाषा-बोध
I.निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :-
घर
गंगा
वृक्ष
बेटा
II. निम्नलिखित शब्दों से विशेषण शब्द बनाइए :-
सप्ताह
समय
निश्चय
प्रतिष्ठा
स्मरण
अपराध
III. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर इनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए :-
मुहावरा अर्थ वाक्य
बुढ़ापा बिगाड़ना
सीधे मुँह बात न करना
जान एक कर देना
क्रोध के मारे लाल होना
तीन तेरह बकना
नाक कटवाना
चेहरे का रंग उड़ना
IV. पंजाबी से हिंदी में अनुवाद कीजिए :
(1)
ਠਾਕੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਚਲੋ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਾਦ ਮਨੋਹਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਤੇਜਾ ਨੂੰ ਬੁਲਾ ਕੇ ਛਾਤੀ ਨਾਲ ਲਾਇਆ ਤੇ ਕਿਹਾ-ਪੁੱਤਰ, ਇਸ ਦਰਖਤ ਨੂੰ ਤੂੰ ਹੀ ਬਚਾਇਆ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਹੁਣ ਮੈਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੇ ਪਿੱਛੋਂ ਤੂੰ ਇਸ ਦਰਖੱਤ ਦੀ ਪੂਰੀ ਰਖਿਆ ਕਰ ਸਕੇਗਾ।
(2) ਸ਼ਿਵਪਾਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਆਦਮੀਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ-ਵੇਖਦੇ ਕੀ ਹੈ, ਇਸ ਬੁੱਢੇ ਨੂੰ ਫੜ ਲਓ ਅਤੇ ਦਰਖਤ ਕਟਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿਓ।
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
(1) तेजा सिंह ने मनोहर सिंह की सहायता के लिए रुपये चुराए। इसे आप कहाँ तक उचित मानते हैं?
(2) पेड़ों का विकास मानव के बिना हो सकता है, लेकिन मानव का विकास पेड़ों के बिना संभव नहीं। इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
(3) यह कहानी प्रकृति के साथ मानव के भावात्मक संबंध को प्रकट करती हुई एक मार्मिक कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
(1) वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ-जैसे नारे चार्ट पर लिखकर कक्षा में लगाइए। (2) अपने स्कूल या आस पड़ोस में पौधारोपण कीजिए और उसकी देखभाल कीजिए।
(3) नीम के पेड़ के क्या-क्या लाभ हैं? इस बारे में इंटरनेट से या पुस्तकों से जानकारी प्राप्त कीजिए।
(4) 5 जून को पर्यावरण दिवस में सक्रिय रूप से भाग लीजिए।
(5) विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों के चित्रों की एलबम तैयार कीजिए।
(6) इस कहानी को अध्यापक की सहायता से एकांकी रूपांतरित करके मंचित कीजिए।
(ङ) ज्ञान – विस्तार
नीम पर लोकोक्तियाँ
एक करेला दूजा नीम चढ़ा – एक दोष तो था ही दूसरा और लग गया।
नीम हकीम खतरा जान – अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है।
नीम न मीठा होय खाओ गुड़-घी से – जन्मजात स्वभाव अनेक कोशिशों पर भी नहीं छूटता अथवा प्राकृतिक गुण या अवगुण नहीं जाते।
नीम के कीड़े को नीम ही अच्छा लगता है – बुरी प्रकृति वाले को बुरी बातें / चीजें ही अच्छी लगती हैं।
नीम का फल निमकौड़ी – बुरे काम का बुरा नतीजा होता है।
नीम गुण बत्तीस, हर्र गुण छत्तीस – हर्र नीम से भी अधिक गुणकारी होती है अर्थात जब कहीं किसी तुलना में किसी को श्रेष्ठ बताना हो तो इसका प्रयोग किया जाता है।
नीम का वृक्ष
नीम भारतीय मूल का एक तेजी से बढ़ने वाला सदाबहार वृक्ष है जो 15-20 मीटर (लगभग 50-65 फुट) की ऊँचाई तक पहुँच सकता है और कभी-कभी 35-40 मीटर (115-113 फुट) तक भी ऊँचा हो सकता है।
नीम के बारे में उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों में इसके फल, बीज, तेल, पत्तों, जड़ और छिलके में बीमारियों से लड़ने के कई फायदे बताए गए हैं। नीम के अर्क में मधुमेय (डायबिटिज), कैंसर, हृदय रोग, एलर्जी, अल्सर, हेपेटाइट्स आदि से लड़ने के गुण पाए जाते हैं। इसकी छाल खासतौर पर मलेरिया और त्वचा संबंधी रोगों में उपयोगी है। नीम के तने, जड़ और कच्चे फलों में शक्तिवर्धक और मियादी रोगों से लड़ने का गुण पाया जाता है। नीम की छाया भी गुणकारी होती है, उसमें बीमारियों से लड़ने की शक्ति होती है।