सुमित्रानंदन पंत
(सन् 1900-1977)
आधुनिक हिंदी कविता को श्रेष्ठ अभिव्यंजना, भाषा सामर्थ्य तथा नई छंद दृष्टि देने वाले सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 में अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ। जन्म के कुछ ही घंटों बाद पंत जी की माता का देहांत हो गया। इनका बचपन का नाम गुसाई दत्त था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई। सन् 1919 में पंत जी इलाहाबाद आए और म्योर सेंट्रल कॉलेज में दाखिल हुए। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर बिना परीक्षा दिए ही उन्होंने पढ़ना छोड़ दिया।
रचनाएँ पंत जी की प्रमुख रचनाएँ है- ‘वीणा’, ‘ग्रंथि’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘युगांत’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्ण किरण’, ‘उत्तरा’, ‘कला और बूढ़ा चांद’, ‘चिंदबरा’ तथा ‘लोकायतन’। कविता के अतिरिक्त पंत जी ने आलोचना, कहानी और आत्मकथा भी लिखी। परंतु मुख्य रूप से उनका कवि रूप ही प्रमुख हैं। पंत जी को प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता
पंत जी को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। पंत जी का निधन सन् 1977 में हुआ।
पाठ-परिचय
‘गाता खग’ पंत जी की प्रमुख कविता है। इसमें कवि ने प्रकृति के विविध स्वरूपों का वर्णन किया है। ये मनुष्य के कल्याण के लिए संदेश देते हैं। प्रभात या सुबह के समय पक्षी संसार के लोगों के सुखी एवं समृद्ध जीवन की कामना करता है। संध्या के समय वह कल्याणकारी और मधुर जीवन के गीत गाता है। तारों की अनेक पंक्तियां मानव के दुख और आँसू देखकर ओस के रूप में स्वयं भी आँसू बहाती हैं। मुस्कराते हुए फूल मानव को हमेशा मुस्कराने का संदेश देते हैं। वे बताते हैं कि ज़िंदगी बहुत छोटी है। इस छोटी सी ज़िंदगी में संसार में आशा की खुशियां बांटकर संसार के आंगन को मुस्कराहट से भर दो- आशा और विश्वास से भर दो। पानी की लहरें भी मानव को बिना असफलता या किसी डर की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहने का संदेश देती हैं। किनारा दिखाई दे या न दे परंतु हमारे कदम मंजिल की ओर बढ़ते रहने चाहिए। हिलोर काँपती रहती हैं और किनारे से दूर रहती है परंतु पानी का बुलबुला विलीन होकर ज़िंदगीके मकसद को समझ जाता है। कविता की अंतिम पंक्तियों में रहस्यवाद की झलक भी मिलती है।
गाता खग
गाता खग प्रात: उठकर-
सुंदर, सुखमय जग-जीवन !
गाता खग संध्या तट पर –
मंगल, मधुमय जग-जीवन।
कहती अपलक तारावलि
अपनी आँखों का अनुभव,
अवलोक आँख आँसू की
भर आतीं आँखें नीरव !
हँसमुख प्रसून सिखलाते
पल भर है, जो हँस पाओ,
अपने डर की सौरभ से
जग का आँगन भर जाओ !
उठ उठ लहरें कहतीं यह-
हम कूल विलोक न पाएँ,
पर इस उमंग में बह-बह
नित आगे बढ़ती जाएँ।
कँप कँप हिलोर रह जाती-
रे मिलता नहीं किनारा।
बुद्बुद् विलीन हो चुपके
पा जाता आशय सारा।
शब्दार्थ-
खग – पक्षी
नीरव – शांत, खामोश
मंगल – कल्याणदायक
प्रसून – फूल
मधुमय – आनंदपूर्ण
उर – हृदय
तारावलि – तारों की पंक्तियाँ,
सौरभ – सुगंध
अवलोक – देखकर,
जग – संसार, दुनिया
कूल – किनारा
बुद्बुद – बुलबुला
अभ्यास
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(1) पक्षी प्रातः उठकर क्या गाता है?
(2) तारों की पंक्तियों की आँखों का अनुभव क्या है?
(3) फूल हमें क्या संदेश देते हैं?
(4) लहरें किस उमंग में आगे बढ़ती जाती हैं?
(5) बुलबुला विलीन होकर क्या पा जाता है?
II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(1) हँसमुख प्रसून सिखलाते
पल भर है, जो हँस पाओ,
अपने उर की सौरभ से
जग का आँगन भर जाओ।
(2) उठ उठ लहरें कहतीं यह
हम कूल विलोक न पाएँ,
पर इस उमंग में बह-बह
नित आगे बढ़ती जाएँ।
(ख) भाषा- बोध
I. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें :-
शब्द पर्यायवाची शब्द
खग
प्रसून
उर
किनारा
II. निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाएँ
शब्द भाववाचक संज्ञा
सुंदर
अपना
हँसना
नीरव
(ग) पाठ्येतर सक्रियता
1. कविता कंठस्थ करके सस्वर वाचन करें।
2. सुमित्रानंदन पंत ने प्रकृति के विभिन्न चित्र अपनी कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं। इस कविता में कवि ने लहरों, फूल, पक्षी, चमकते सितारों की पंक्तियां, नदी का किनारा आदि का वर्णन किया है। आप सुमित्रानंदन पंत की प्रकृति चित्रण से संबंधित कोई अन्य कविता याद कीजिए और कक्षा में सुनाइए।
(घ) ज्ञान-विस्तार
पंत जी की तरह कुछ अन्य कवियों ने भी प्रकृति चित्रण किया है। इनमें से कुछ प्रमुख नाम है- जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला एवं महादेवी वर्मा इस तरह पंत, प्रसाद, निराला व महादेवी वर्मा चारों कवियों को छायावाद का स्तंभ कहा जाता है। छायावाद को इन कवियों ने अपनी महान रचनाएँ दी। प्रकृति चित्रण भी छायावादी कविता की एक प्रवृति है।