Punjab Board, Class X, Hindi Pustak, The Best Solution Jada Ki Muskaan, Harivansh Rai, जड़ की मुसकान, हरिवंशराय बच्चन

(सन् 1907-2003)

हरिवंशराय बच्चन का जन्म सन् 1907 में इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने सन् 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. किया। बच्चन जी सन् 1942 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे। उन्होंने सन् 1952 से 1954 तक इंग्लैंड में रहकर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। दिसंबर 1955 में भारत सरकार ने उन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया। आप राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे। उन्हें ‘पद्म भूषण’ तथा ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुए।

रचनाएँ- उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं- मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा- निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन, सतरंगिनी, विकल विश्व, आरती और अंगार आदि। उनकी गद्य रचनाओं में उनकी आत्मकथा विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिसे चार भागों में प्रकाशित किया गया है। बच्चन जी मूलतः हाला व मस्ती के कवि हैं। वे छायावादी परवर्ती युग के लोकप्रिय गीतकार हैं। कवि सम्मेलनों के माध्यम से बच्चन अपने पाठकों व श्रोताओं के निकट आए हैं। बच्चन जी के गीतों की भाषा सहज, सरस व सामान्य जनभाषा रही है। बच्चन जी का निधन सन् 2003 में हुआ।

‘जड़ की मुस्कान’ में बच्चन जी कहते हैं कि प्रगति करने पर लोग अक्सर अपने मूलभूत आधार को भूल जाते हैं और सारी प्रगति का श्रेय अपने आप को देते हैं। वे यह बात भूल जाते हैं कि भवन वही मजबूत होगा जिसकी नींव मजबूत होगी। कविता में वृक्ष का तना जड़ को निर्जीव बताता है इसी प्रकार डालियाँ तने को, पत्तियाँ डालियाँ को तथा फूल पत्तियों के महत्त्व को नहीं समझते और स्वयं अपनी शेखी बघारते हैं। जड़ सभी की बातों को सुनती है और मुस्करा देती है। वास्तव में जड़ की इस मुस्कान का अर्थ है कि तना, पत्ते, डालियाँ और फूल सब का महत्त्व है, पर यह महत्त्व उस वक्त तक है जब तक उनकी जड़ सलामत है। इसलिए हमें उन लोगों के योगदान को कभी नहीं भूलना चाहिए जिनके कारण आज हम प्रगति के रास्ते पर जा रहे हैं। वास्तव में वे सभी लोग हमारी तरक्की की बुनियाद हैं सभ्यता के इस सुंदर भवन की नींव वे लोग ही हैं।

एक दिन तने ने भी कहा था,

जड़?

जड़ तो जड़ ही है;

जीवन से सदा डरी रही है,

और यही है उसका सारा इतिहास

कि जमीन में मुँह गड़ाए पड़ी रही है

लेकिन मैं ज़मीन से ऊपर उठा,

बाहर निकला,

बढ़ा हूँ

मज़बूत बना हूँ,

इसी से तो तना हूँ।

एक दिन डालों ने भी कहा था,

तना?

किस बात पर है तना?

जहाँ बिठाल दिया गया था वहीं पर है बना;

प्रगतिशील जगती में तिल भर नहीं डोला है,

खाया है, मोटाया है, सहलाया चोला है;

लेकिन हम तने से फूटीं,

दिशा-दिशा में गई

ऊपर उठीं,

नीचे आईं

हर हवा के लिए दोल बनीं, लहराईं,

इसी से तो डाल कहलाईं।

एक दिन पत्तियों ने भी कहा था,

डाल ?

डाल में क्या है कमाल?

माना वह झूमी, झुकी, डोली है

ध्वनि-प्रधान दुनिया में

एक शब्द भी वह कभी बोली है?

लेकिन हम हर हर स्वर करती हैं

मर्मर स्वर मर्मभरा भरती हैं

नूतन हर वर्ष हुई,

पतझर में झर

बहार फूट फिर छहरती हैं,

विथकित चित पंथी का

शाप-ताप हरतीं हैं।

एक दिन फूलों ने भी कहा था,

पत्तियाँ?

पत्तियों ने क्या किया?

संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया,

डालों के बल पर ही चल-चपल रही हैं,

हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं

लेकिन हम अपने से खुले, खिले, फूले हैं-

रंग लिए, रस लिए, पराग लिए-

हमारी यश-गंध दूर-दूर-दूर फैली है,

भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं,

हम पर बौराए हैं।

सबकी सुन पाई है,

जड़ मुसकराई है!

तना हूँ – दृढ़ता पूर्वक खड़ा हूँ

पंथी – राहगीर, पथिक मुसाफिर

तना – घमंड करना

बौराए – मँडराए

जगती – संसार

प्रगतिशील – प्रगति (तरक्की, विकास) कर रही है।

डोला – गतिशील

सहलाया चोला – सुविधा भोगी शरीर

दोल – हिलना, झूला  

ध्वनि प्रधान दुनिया – शब्दों की दुनिया

हर-हर स्वर – सुरीली आवाज

विथकित – थका हुआ

चित्त – मन

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

(1) एक दिन तने ने जड़ को क्या कहा?

(2) जड़ का इतिहास क्या है?

(3) डाली तने को हीन क्यों समझती है?

(4) पत्तियाँ डाल की किस कमी की ओर संकेत करती हैं?

(5) फूलों ने पत्तियों की चंचलता का आधार क्या बताया?

(6) सबकी बातें सुनकर जड़ क्यों मुसकराई?

II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें :-

(1) एक दिन तने ने भी कहा था,

जड़?

जड़ तो जड़ ही है

जीवन से सदा डरी रही हैं,

और यही है इसका सारा इतिहास

कि ज़मीन में मुँह गड़ाए पड़ी रही है

(2) एक दिन फूलों ने भी कहा था, पत्तियाँ?

पत्तियों ने क्या किया?

संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया,

डालों के बल पर ही चल चपल रही हैं

हवाओं के बल पर ही मचल रही है

लेकिन हम अपने से खुले, खिले, फूले हैं-

रंग लिए रस लिए, पराग लिए-

हमारी यश-गंध दूर-दूर-दूर फैली है,

भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए है,

हम पर बौराए हैं।

I. निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें :-

जीवन

जड़

मज़बूत

ऊपर

II. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाएँ :-

इतिहास

दिन

वर्ष

रंग

रस

III. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें :

प्रगति

हवा

ध्वनि

फूल

भ्रमर

IV. निम्नलिखित के अनेकार्थी शब्द लिखें

जड़

तना

डाल

डोली

बोली

1. रामवृक्ष बेनीपुरी का निबंध ‘नींव की ईंट’ पढ़िए और जड़ के महत्त्व पर अपने सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए।

2. ‘वही देश मजबूत होता है, जिसकी संस्कृति मजबूत जड़ के समान होती है।’ इस विषय पर कक्षा में भाषण प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।

3. प्रस्तुत कविता को आगे बढ़ाइए। जड़, तना, पत्ते और फूल के साथ फल को भी शामिल कीजिए। कविता को आगे बढ़ाते निम्न पंक्तियों को पूरा करें-

एक दिन फलों ने भी कहा था,

फूल

फूल ने क्या किया?

वृथा ही फूलते हैं

आज फूले हैं

कल मुरझा जाएँगे

हमें देखो,

हम पशु, पक्षी और इंसानों का।

पेट भरते हैं

उन्हें जिन्दा रखने को

अपना अस्तित्व खोया करते हैं।

1.परिवार की जड़ हमारे पूर्वज- दादा- माँ बाप हैं जो अपनी संतान के लिए हर त्याग करते हैं। इसलिए हमें अपने पूर्वजों के महत्त्व को जानना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।

2.माँ-बाप की तरह ही विद्यार्थी के जीवन में अध्यापकों का भी बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। उनसे स्नेह व सहयोग पाकर हम जीवन में आगे बढ़ते हैं। उनसे शिक्षित होकर ही हम उच्च पदों पर आसीन होते हैं। वे हमारा उज्ज्वल भविष्य बनाते हैं। अतः हमें उनके योगदान को सदैव स्मरण रखना चाहिए।

3.हमें अपने उन देशभक्तों को भी नहीं भूलना चाहिए, जिन्होंने वृक्ष की जड़ की तरह त्याग व बलिदान किया ताकि हम लोग आज़ादी के मधुर फल का स्वाद ले सकें।

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