Punjab Board, Class X, Hindi Pustak, The Best Solution Neeti ke Dohe, Raheem, Biharee, Vrind, नीति के दोहे, रहीम, बिहारी एवं वृन्द

रहीम (सन् 1553-1625)

इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। इनका उपनाम रहीम था। इनके पिता का नाम बैरम खाँ था। ये अकबर के राज्यकाल में दरबार के नवरत्नों में से एक थे। परंतु जहांगीर के शासनकाल में राजद्रोह के अपराध में इन्हें बंदी कर लिया गया और जागीर भी छीन ली गई। इनकी वृद्धावस्था राजकीय कोप के कारण बड़ी दीनता में बीती। उस समय की दयनीय दशा की छाया इनके कई दोहों में मिलती है। रहीम संस्कृत, फारसी, अरबी, ब्रज और अवधि भाषाओं के ज्ञाता थे। मुसलमान होते हुए भी इन्हें हिंदू गाथाओं और पौराणिक कहानियों का अच्छा ज्ञान था। रहीम तुलसीदास के प्रिय मित्र थे।

रचनाएँ- ‘रहीम सतसई’ रहीम की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है। इसमें जीवन के गहरे अनुभवों का निचोड़ है। इनकी भाषा सरल और सुबोध है। शैली मुक्तक है। इन्होंने दोहा छंद को अपनाया है।

बिहारी (सन् 1603-1664)

महाकवि बिहारी लाल का जन्म ग्वालियर के पास बसुआ गोविंदपुर गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम केशवराय था। बिहारी जी की जन्म व मृत्यु तिथि के सम्बन्ध में विद्वानों का एक मत नहीं है। इन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य कला की शिक्षा ग्रहण की थी। विवाह के बाद ये अपनी सुसराल मथुरा में रहने लगे। कहा जाता है कि शाहजहाँ ने बिहारी को आगरे बुलाया और पुरस्कृत किया था। इसके बाद ये जयपुर के राजा जयसिंह के आश्रय में चले गए। वहां इन्होंने ‘सतसई’ की रचना की। वहां इनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी। जिसके बाद ये वृंदावन में चले गए, जहां सन् 1664 में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ- ‘बिहारी सतसई’ बिहारी की ख्याति का आधार है। यह उनकी एकमात्र रचना है। इनमें सात सौ सत्रह दोहे हैं। इनकी भाषा ब्रज है। बिहारी के दोहों में शृंगार रस मुख्य है। इसके साथ- साथ भक्ति, नीति, प्रकृति चित्रण आदि वर्णन में भी बिहारी किसी से पीछे नहीं हैं। इनकी शैली मुक्तक है। इन्होंने ‘दोहा छंद को अपनाया है। बिहारी के दोहों के बारे कहा गया है।

‘सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।

देखन को छोटे लगें, घाव करें गंभीर॥

वृंद (सन् 1685-1765)

वृंद का नाम रीतिकालीन परंपरा के अंतर्गत बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। अन्य प्राचीन कवियों की भाँति वृंद की जन्म व मृत्यु तिथि के संबंध में विद्वानों का एक मत नहीं है। वृंद कवि मेवाड़ (जोधपुर) के रहने वाले थे। इन्होंने काशी में जाकर संस्कृत पढ़ी थी। कहा जाता हैं कि ये कृष्णगढ़ नरेश महाराज राजसिंह के गुरु थे और उनके साथ औरंगजेब की फौज में ढाका में गए थे। इनके वंशधर अब तक कृष्णगढ़ में हैं। ये जोधपुर में महाराज जसवन्त सिंह के दरबार में भी रहे थे।

रचनाएँ – इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-’वृंद सतसई’, ‘पवन पचीसी’, ‘हितोपदेश सन्धि’, ‘वचनिका’, ‘शृंगार शिक्षा’ और ‘भाव पंचाशिका’। इनमें वृंद सतसई बहुत प्रसिद्ध हैं, जिसमें नीति के सात सौ दोहे हैं। इनके नीति के दोहे जन साधारण में बहुत प्रसिद्ध हैं। इनकी भाषा सरल है व लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग हुआ है। इनका काव्य लोक नीति का सुंदर संग्रह है।

प्रस्तुत संकलन में ‘नीति के दोहे के अंतर्गत महाकवि रहीम, बिहारी व वृंद के नीति से संबंधित शिक्षा दायक व प्रेरणादायक दोहे हैं। प्रथम दोहे में रहीम जी कहते है कि संपत्ति या अच्छे समय में आपके बहुत से मित्र बन जाते हैं, परंतु जो विपत्ति या कठिनाई में साथ देता है वही सच्चा मित्र हैं। दूसरे दोहे में रहीम जी अपना लक्ष्य या ध्येय एक ओर केंद्रित करने की शिक्षा देते हैं। उनका कहना है कि एक की साधना पूरी तरह करने से सब साधे जाते हैं और सबके पीछे दौड़ने पर सब बेकार हो जाता है, जिस प्रकार वृक्ष की जड़ को सींचने पर फूल, फल सब तृप्त हो जाते हैं। तीसरे दोहे में स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ के महत्व को दिखाया है जिस तरह वृक्ष अपना फल खुद न खाकर संसार को दे देते हैं- तालाब अपना जल दूसरों के लिए देते हैं उसी प्रकार दानी व्यक्ति अपनी संपत्ति परमार्थ या दूसरों की भलाई के कार्यों में लगाते हैं। चौथे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि किसी वस्तु छोटे आकार को देखकर उसके महत्व को नहीं भूलना चाहिए जिस प्रकार सुई जो कार्य कर सकती है वह तलवार जैसी बड़ी चीज भी नहीं कर सकती अतः हमें बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु की उपयोगिता को भूलना नहीं चाहिए।

पाँचवें दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि कनक (सोने) का नशा धतूरे (कनक) के नशे से सौ गुना है क्योंकि धतूर (कनक) को तो खाने से ही नशा चढ़ता है पर सोना (कनक) अर्थात् धन सम्पत्ति तो जिस व्यक्ति के पास आ जाती है उसे दौलत का नशा चढ़ जाता है। छठे दोहे में बिहारी जी ने एक भँवरे के माध्यम से मानव को आशावादी होने का संदेश दिया है। उनका कहना है कि पतझड़ में भी इसी उम्मीद के साथ भँवरा फूल की डालियों के पास रहता है कि बसन्त आने पर इनमें फिर फूल लगेंगे अर्थात् मानव को निराश न होकर आने वाले अच्छे दिनों के लिए आशावादी होना चाहिए। सातवें दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि एक जैसे स्वभाव या प्रकृति वालों का साथ ही ज़्यादा देर रहता है जैसे पान की पीक लाल रंग की होती है, वह ओठों पर रहती है। काजल काले रंग का होता है, वह आँखों में बसता है। आठवें दोहे में बिहारी जी गुणों के महत्व पर जोर देते हैं- गुणी- गुणी कहने से बिना गुण वाला गुणवान नहीं हो जाता जैसे अर्क यानि आक का पौधा सूर्य के समान नहीं हो जाता क्योंकि सूर्य को भी अर्क कहते हैं। इसलिए हमें नाम पर ही नहीं गुण या योग्यता पर ध्यान देना चाहिए।

नौवें दोहे में वृंद जी परिश्रम के महत्व के बारे में कहते हैं कि लगातार मेहनत करने से मूर्ख भी विद्वान हो सकता है, जिस तरह बार-बार रस्सी घिसने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं अतः कमजोर व्यक्ति भी लगातार मेहनत करके अपने लक्ष्य को पा सकता है। दसवें दोहे में वृंद छल और कपट के व्यवहार को थोड़ी देर चलने वाला ही मानते हैं कि जिस तरह काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ सकती उसी तरह धोखेबाज व्यक्ति एकाध बार तो चालाकी कर सकता है लेकिन उसकी चालाकी बार-बार नहीं चल पाती। ग्यारहवें दोहे में वृंद मीठे वचनों के महत्व को दर्शाते हुए कहते हैं कि हैं जिस तरह उबल रहे दूध का उफान ठंडे जल के छींटे से दूर हो जाता है उसी तरह ही गर्व या घमंड को मीठे वचनों से शांत किया जा सकता है। बारहवें दोहे में वृंद शिक्षा देते हैं कि अपने शत्रु को कभी भी कम में नहीं लेना चाहिए जिससे बात बिगड़ जाती है-जैसे छोटा सा अंगारा तिनकों के बड़े समूह को जला सकता है। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि छात्र-छात्राओं को अपने ध्येय को कभी कम में न लेकर उसके लिए पूरी अर्थात युद्ध स्तर पर तैयारी करनी चाहिए।

रहीम

कहि रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।

विपत कसौटी जे कसे, सोई साँचै मीत (1)

एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।

रहिमन सींचे मूल को, फूलै फलै अधाय॥ (2)

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।

कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति संचहिं सुजान॥ (3)

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।

जहाँ काम आवे सुई का करे तरवारि॥ (4)

बिहारी

कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।

बह खाये बौरात है, यह पाये बौराय॥ (5)

इहि आशा अटक्यों रहै, अलि गुलाब के मूल।

हो है बहुरि बसन्त ऋतु, इन डारनि पै फूल॥ (6)

सोहतु संग समानु सो, यह कहै सब लोग।

पान पीक ओठनु बनें, नैननु काजर जोग॥ (7)

गुनी गुनी सबकै कहैं, निगुनी गुनी न होतु।

सुन्यों कहूँ तरू अरक तें, अरक-समान उदोतु॥ (8)

वृंद

करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।

रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान॥ (9)

फेर न है है कपट सों, जो कीजै व्यापार।

जैसे हाँडी काठ की, चढ़ न दूजी बार॥ (10)

मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान।

तनिक सीत जल सौं मिटे, जैसे दूध उफान॥ (11)

अरि छोटो गनिये नहीं जाते होत बिगार।

तृण समूह को तनिक में, जारत तनिक अंगार॥ (12)

कसौटी – गुणवत्ता को परखना, मापदंड

संपत्ति – धन, दौलत

बौरात – बौरा जाना, नशे में होना;

बहुरीत – कई प्रकार से

निगुनी – बिना गुन वाला;

बिपत – कठिनाई के समय;

अरक आक, सूर्य,

बुद्धिमान; अघाय तृप्त होना;

मीत – मित्र;

जड़मति – मूर्ख

सिल – शिला, पत्थर

मूल जड़

सुजान – बुद्धिमान

पर काज – परमार्थ, दूसरे के कार्य के लिए

अरि – शत्रु

उबाल – उफान  

कनक – सोना, धतूरा,

तृण – तिनका;

संचहि – इकट्ठा करना, जमा करना

मादकता = मस्ती, नशा 

I.निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो पंक्तियों में उत्तर दीजिए-

(1) रहीम जी के अनुसार सच्चे मित्र की क्या पहचान है?

(2) ज्ञानी व्यक्ति सम्पत्ति का संचय किस लिए करते हैं?

(3) बिहारी जी के अनुसार किसका साथ शोभा देता है?

(4) बिहारी जी ने मानव को आशावादी होने का क्या संदेश दिया है?

(5) छल और कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चल सकता इसके लिए वृंद जी ने क्या उदाहरण दिया है?

(6) निरंतर अभ्यास से व्यक्ति कैसे योग्य बन जाता है? वृंद जी ने इसके लिए क्या उदाहरण दिया है?

(7) शत्रु को कमजोर या छोटा क्यों नहीं समझना चाहिए?

II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-

(1) रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।

जहाँ काम आवे सुई, का करे तरवारि॥

(2) कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।

बह खाये बौरात है, यह पाये बौराय॥

(3) मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान।

तनिक सीत जल सों मिटे, जैसे दूध उफान॥

I. निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें-

संपत्ति

हित

बैर

उत्तम

आशा

II. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाएँ-

प्रकृति

बल

हित

विष

मूल

व्यापार

III. निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाएँ-

लघु

एक

मादक

मधुर

(1) अध्यापक महोदय उपर्युक्त नीति के दोहों पर आधारित शिक्षाप्रद कहानियाँ छात्र- छात्राओं को सुनाएँ और उनसे भी इस प्रकार की कोई सच्ची घटना अथवा कहानी सुनाने के लिए कहें।

(2) छात्र छात्राएँ इस प्रकार के अन्य दोहों का संकलन कर विद्यालय की भित्ति पत्रिका पर लगाएँ।

(3) कक्षा में ‘दोहा गायन प्रतियोगिता’ में सक्रिय रूप से भाग लें।

(4) रहीम अथवा अन्य कवियों के द्वारा रचित दोहों की ऑडियो/वीडियो सी.डी. लेकर अथवा इंटरनेट के माध्यम से सुनें / देखें।

बिहारी, रहीम तथा वृंद ने नीति की अत्यंत महत्वपूर्ण बातें ‘दोहा’ छंद के माध्यम से की हैं। ‘दोहा’ एक मात्रिक छंद है जिसके पहले तथा तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

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