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सिंधी की अग्रणी लेखिका कला प्रकाश का जन्म 2 जनवरी 1934 ई. में कराची (पाकिस्तान) में हुआ। इन्होंने एम.ए. तक शिक्षा ग्रहण की। ये महाराष्ट्र के उल्हासनगर के महाविद्यालय में प्राध्यापिका रहीं। बाद में दुबई के विद्यालय में प्रधानाचार्या रहीं। इनकी पहली कहानी ‘दोही बेदोही’ मुम्बई की एक साहित्यिक पत्रिका ‘नई दुनिया में प्रकाशित हुई। 1953 से लेकर निरंतर ये सिंधी साहित्य की विभिन्न विधाओं का सृजन कर सिंधी साहित्य की सेवा करती रहीं। 05 अगस्त, 2018 को इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ :- इनकी प्रकाशित रचनाओं में ‘हिक दिल हज़ार अरमान’, ‘शीशे जी दिल’, ‘हिक सपनों सुखन जो’, ‘हयाती होतन री’, ‘वक्त विथियू बिछोटिपू’, ‘आरसी अ-आड़ो’, ‘प्यार’, ‘पखन जी प्रीत’, ‘समुद्र-ए-किनारे’, ‘आँखा पंथ प्यार जा’ (उपन्यास), ‘मुर्क ए ममता’, ‘वारन में गुल’, “इन्तज़ार (कहानी संग्रह), ममता जूं लहरू (1963), ममता जूं लहरू (2006), काव्य संग्रह हैं तथा जे हिअरे मंझ हुरन (यात्रा – वृत्तांत) उल्लेखनीय हैं।

इनकी खास दिलचस्पी महिलाओं के मुद्दों पर रही है। सिंधी साहित्य में इनके अपूर्व योगदान के लिए इन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 1961 में ‘ममता जू लहरू’ काव्य संग्रह को अखिल भारतीय सिंधी बोली और साहित्य की ओर से बेस्ट बुक ऑफ दा ईयर अवार्ड, 1993 में महाराष्ट्र सिंधी अकादमी की ओर से तथा 1994 में ‘आरसी अ-आड़ो’ उपन्यास पर साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाजा गया।

श्रीमती कला प्रकाश और श्री मोती प्रकाश दोनों एक ऐसे लेखक दंपति हुए हैं जिन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से अलंकृत किया गया है।

प्रस्तुत कहानी नर्स के सेवाभाव और ममत्व को रोगों के हित में प्रस्तुत करती है साथ ही एक बच्चे और माँ के मनोभावों को भी सशक्त ढंग से अभिव्यक्त करती है। नर्सिंग केवल एक व्यवसाय, पेशा या करियर नहीं है बल्कि मानवता की सेवा है। नर्स अस्पताल का अभिन्न हिस्सा होती है। नर्स का कर्तव्य रोगी का इलाज करना उसकी देखभाल करना ही नहीं बल्कि उसका दायित्व रोगी की मनः स्थिति से परिचित होकर उस अनुरूप व्यवहार करना भी हैं। इस कहानी में अस्पताल में दाखिल छह वर्षीय महेश को अपनी माँ के बिना अच्छा नहीं लगता। ऐसे में सिस्टर सुसान चिकित्सा और उपचार के अतिरिक्त अपनी बातचीत और व्यवहार से उसे माँ जैसी ममता, स्नेह और सुरक्षा प्रदान करती है। सिस्टर सुसान का व्यवहार और आत्मीयता महेश के लिए किसी भी औषधि से अधिक उपयोगी साबित होता है। सिस्टर सूसान महेश का विश्वास जीत उसका मनोबल बढ़ाती है और प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल परिस्थिति में बदल देती है।

प्रस्तुत कहानी सिंधी से हिंदी में अनूदित है। यह अपनी भावभूमि, भाषा शैली और प्रस्तुति की दृष्टि से अनुपम है। कथानक में निरंतर रोचकता है। भाषा और भावाभिव्यक्ति पात्रों की मनोवृति के अनुरूप है। सहज, सरल संवाद सहृदय पाठक को घटना क्रम से जोड़े रखते हैं।

छह साल के नन्हे से बेटे को सरस्वती कैसे समझाए कि वह उसके पास अस्पताल में नहीं रह सकती। अस्पताल के कायदे से बेखबर नन्हा तो माँ से रोता हुआ बस यही रट लगाए रहा, “मत जाओ मम्मी, प्लीज तुम मत जाओ।”

सरस्वती एक लंबी साँस लेकर बेटे के पलंग के पास रखे स्टूल पर बैठ गई। बेटे के गालों पर हाथ फिराकर कहने लगी, “देखो बेटे, वार्ड में कितने बच्चे हैं, किसी की मम्मी है उनके पास?”

महेश अपने नन्हे तन को कसमसाता बोला, “भले ही किसी की भी मम्मी न हो पर मैं आपको नहीं जाने दूँगा।”

सरस्वती परेशान हो गई। उसे दो बार कहा जा चुका है कि समय पूरा हो गया है, अब आप जाइए। जब वह चार बजे वार्ड में दाखिल हुई तो महेश माँ को देखते ही तड़प-तड़पकर रो उठा था। उसे दिलासा देने के लिए ही बोलना पड़ा था कि अब वह घर नहीं जाएगी, पर जाना तो था ही। वार्ड में कुल बारह बच्चे थे। दूसरे सभी बच्चों के पास आए हुए मुलाकाती छह बजते-बजते जा चुके थे, और सवा छह बज जाने पर भी वह यहीं बैठी थी। सरस्वती की घूमती निगाहों ने देखा, सभी बच्चे महेश को ही ताक रहे हैं। कुछ देर पहले ही नौ नंबर बेड वाला बच्चा बताकर गया था कि ऑपरेशन के बाद होश में आते ही महेश मम्मी…मम्मी पुकारता जोर-जोर से चिल्लाया था। सरस्वती को खयाल आया, नौ नंबर वाला बच्चा समझदार और दूसरे बच्चों से बड़ा, शायद 10 वर्ष का होगा। शायद वही उसकी मदद कर सके इसलिए उसके पास जाकर बोली, “बेटे, तुम आकर महेश से थोड़ी देर बातें करो तो मैं यहाँ से खिसक जाऊँ।”

बच्चे ने कहा कि वह पहले भी महेश से दो-तीन बार बात करने की कोशिश कर चुका है पर वह उसकी कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं। सरस्वती बोली, “अब तुम उसे कोई कविता या कहानी सुनाना, तब तक मैं निकल जाऊँगी।”

बालक को महेश के पास छोड़ वह वार्ड से ऐसे निकली जैसे कोई चोर। जाते-जाते उसने महेश की पुकार सुनी जरूर परंतु जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती अस्पताल के गेट के पास आ पहुँची। एक बार वार्ड नंबर 11 की तरफ देखा। उसकी आँखें कब बहने लगीं, उसे पता ही नहीं चल पाया था। आँखें पोंछती वह सड़क पर आ गई।

वार्ड में नौ नंबर वाला बच्चा महेश को समझाते हुए कह रहा था, “चिल्लाओगे तो दर्द ज्यादा होगा।” पर महेश उसे सुना-अनसुना कर मम्मी-मम्मी की रट लगाता रहा। अचानक उसे याद आया कि महेश की मम्मी ने कहानी सुनाने के लिए कहा था, सो फिर से बोला, “तुम रोना बंद करो तो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊँ।”

“मुझे नहीं सुननी कहानी।” महेश तुर्शी से बोला। दो-चार मिनट बाद ही नौ नंबर वाला बच्चा वापिस अपने बिस्तर पर चला गया।

पौने सात बजे ख़ामोश वार्ड में केवल पाँच नंबर वाले महेश की हिचकी भरी मम्मी-मम्मी की रट सुनाई दे रही थी। इस वक्त अक्सर वायुमंडल में गहरी उदासी छाई रहती। चुपचाप बैठे हुए बच्चे वार्ड में आते-जाते डॉक्टर, नर्स, वार्ड ब्वॉय व मेहतरानी को देख शायद इसी सोच में डूब जाते कि फिर 24 घंटों के बाद अपने घरवालों का मुँह देख सकेंगे।

सात बजे मरौंडा व मांजरकर नाम की दो नसें वार्ड में आई। मरीजों के बिस्तर ठीक करती आपस में धीरे-धीरे बातचीत करती हुई जैसे ही चार नंबर बिस्तर पर पहुँची तब मरींडा ने मांजरेकर से कहा, “देखो, कैसे इस बच्चे ने अपना मुँह चादर में छुपा लिया है। रोज शाम को छह बजे जैसे ही इसके पिता मिलकर जाते हैं वैसे ही यह बच्चा चद्दर में मुँह छुपाकर रोना शुरू कर देता है।”

मांजरेकर बोली, “इट्स सैड।”

चौथे नंबर का बिस्तर सही करती मरींडा बच्चे से बोली, “देखो, तुम्हारा पलंग कितनी अच्छ जगह पर रखा हुआ है, खिड़की के पास। अरे, खिड़की के बाहर तो देखो, आसमान दिख रहा है।” और उसने उसके मुँह से चद्दर हटा दी। बच्चे ने नैपकिन उठाकर आँखें पोंछीं और मरींडा का कहा मानकर खिड़की के बाहर देखने लगा।

पाँच नंबर का बिस्तर ठीक करते हुए मांजरेकर ने कहा, “यह बच्चा तो मम्मी को पुकारता हुआ इतना रोया है कि मन ही विचलित हो गया। देखो न अभी भी कैसे काँप रहा है।”

“मरींडा बोली, “सच में, हमें रोज़ इन बच्चों के पास बैठकर प्यार और अपनेपन से बातें करनी चाहिए।”

मांजरेकर ने बालक की चद्दर ठीक कर उसे कंधों तक ढकते हुए कहा, “यहाँ तो मरने तक की फुर्सत नहीं, इन बच्चों के साथ किस वक्त बैठकर बातें करें।”

मरींडा ने नैपकिन से बच्चे का मुँह साफ़ कर मुस्कुराते हुए पूछा, “पानी पीओगे?” फिर उसके जवाब का इंतज़ार न कर पानी भरा गिलास जैसे ही उसकी तरफ बढ़ाया, महेश ने मुँह फेर लिया। मरींडा पानी का गिलास वापस रख, बच्चे के सिर पर हाथ फेर कर आगे बढ़ गई फिर वही शांति, जैसे वहाँ कोई न हो। केवल बारह पलंग और हर पलंग के पास एक छोटा – सा कबर्ड, जिसे साइड टेबल की तरह भी काम में लिया जाता है। उस पर पानी का गिलास व जग। सब बच्चों के बिस्तर एक जैसे, हर बिस्तर के पायताने ब्राउन रंग का कंबल एक ही तरीके से लिपटा हुआ। कोई किसी से अलग नहीं, बारहों बच्चे ही एक जैसे लग रहे हैं।

आठ बजे सिस्टर सुसान ने वार्ड में आते ही कई बच्चों के चेहरे पर मुस्कान छा गई। एक और नौ नंबर वाले बच्चे तो उसके स्वागत के लिए बिस्तर पर उठकर बैठ गए। सिस्टर ने उनकी ओर हाथ हिलाया और बच्चों का टेंपरेचर देख रिकॉर्ड करती उन्हें दवा का डोज़ पिलाने लगी। सूसान जब नौ नंबर बेड के पास पहुँची तो वह बोला, “सिस्टर जो पाँच नंबर है न, सारा दिन मम्मी मम्मी कहकर रोया है। मेरा तो जिस दिन ऑपरेशन हुआ था मैंने क्राइस्ट को याद किया था।”

सिस्टर उसे एक कैप्सूल और गोली देती बोली, “पाँच नंबर अपनी माँ को ही क्राइस्ट समझता होगा।”

“माँ को कैसे क्राइस्ट समझता होगा?”

सुसान ने आठ नंबर की तरफ बढ़ते हुए जवाब दिया, “तुम्हें इस बात का जवाब बाद में दूँगी, तब तक गुड नाइट।”

सुसान पाँच नंबर बेड पर पहुँची। टेबल पर दवाइयों की ट्रे रख थर्मामीटर उठाते हुए महेश से बोली, “कोई-कोई बच्चा बहुत तंग करता है। परंतु तुम अच्छे बच्चे लग रहे हो, तुम तंग नहीं करोगे।” महेश ने उसकी तरफ देखा। टेंपरेचर रिकॉर्ड करते हुए सूसान ने पूछा “छोटे बच्चे तुम्हारा नाम क्या है?”

“महेश।”

अरे वाह, महेश तो मेरे बेटे का भी नाम है।” और चुटकी बजाते हुए बोली, “वह अभी बहुत छोटा है, नन्हा-सा पता है कितना सा?”

“कितना सा?” महेश ने पूछा।

सुसान ने स्टूल पर बैठते हुए बताया, “यह तुम्हारी बाँह है ना, बस तुम्हारी बाँह जितना सिर्फ तीन महीने का है, मुझे इतना परेशान करता है कि बस….” सूसान, महेश का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली, “अभी जब मैं अस्पताल आ रही थी न, तब इतना रोया, इतना रोया कि मैं तुम्हें क्या बताऊँ?” महेश ने कुछ पूछना चाहा पर फिर चुपचाप सूसान को देखने लगा। सूसान ने उसे बताया, “आखिर में पता है मैंने क्या किया? उसे आया की गोदी में देकर चली आई। अब शायद चुप हो गया होगा। आया उससे खेलती है ना। या फिर गाना गाकर सुनाती है तो वह खुशी से अपने हाथ-पैर ऐसे ऊपर- नीचे करने लगता है, जैसे डांस कर रहा हो।”

महेश छोटे बबलू की कल्पना करते हुए पूछ बैठा, “वह और क्या करता है?”

सूसान महेश को सूप पिलाती हुई बोली, “बोलना तो उसे आता ही नहीं है, फिर भी कैसी- कैसी तो आवाजें निकालता है, अगूं, अंगू… गूं, गूं…. और यूँ गाल फुलाता है।” सुसान अपने गालों को फुलाती बबलू जैसी आवाजें निकालने की कोशिश करने लगी। महेश को हँसी आ गई। सूसान उसे दवाई पिलाती हुई बोली, “मैं तुम्हें अपने शैतान बबलू की बहुत-सी बातें बताऊँगी लेकिन बाद में, अभी तो मुझे काम है ना। कोई भी काम हो तो बेल बजाकर मुझे बुला लेना जैसे घर में मम्मी को बुलाते हो। अस्पताल में नर्स ही मम्मी होती है।”

दूसरे दिन शाम के चार बजते ही सरस्वती अस्पताल के गेट तक पहुँच गई। कल बेटे का ऑपरेशन सफल हुआ, इसका उसे संतोष था परंतु बेटे ने रात कैसे बिताई होगी, यह सोचते ही घबरा गई। कल उसे रोता छोड़कर आना पड़ा था। आज उसे किस तरह छोड़कर आ पाएगी, सोचते ही उसके माथे पर पसीना निकल आया। बेटे के पलंग तक पहुँचते-पहुँचते सोचों ने समय को लंबा कर दिया। महेश को चूमते हुए बोली, “बेटा, कैसा है तू?”

“अरे मम्मी, तुम आ गई?” महेश ने माँ के गले में बाँहें डालते हुए पूछा, “पापा कब आएँगे?”

“आ जाएँगे थोड़ी देर में।”

“मम्मी जब तुम मेरे पास आ रही थीं तो मोना रो रही थी क्या?” महेश ने छोटी बहन के लिए पूछा।

सरस्वती ने लंबी साँस छोड़ते हुए कहा, “नहीं नहीं, उसे पास वाले राजू के घर छोड़कर आई हूँ। वो उसे खेल खिलाते हैं ना।”

“हमारी मोना अच्छी है। तुम उसे छोड़कर आई। तब भी नहीं रोई परंतु सिस्टर सूसान है ना, उसका बबलू बहुत ही शैतान है। वह बेचारी जब अस्पताल आती है तो बहुत रोता है।”

सरस्वती के दिल पर सिस्टर सूसान का नाम छप-सा गया। उसने महेश से पूछा, “तुम्हें किसने बताया कि सिस्टर सूसान का बबलू शैतान है?”

“सिस्टर सूसान ने बतलाया।”

“किस वक़्त?”

“रात को।”

“बेटे तुमको रात में नींद आई थी?”

“हाँ।” महेश ख़ुशी से बोला, “सिस्टर सुसान ने दूध पिलाया फिर कविता सुनाई। मम्मी उनकी आवाज़ इतनी प्यारी है..

किसकी, सिस्टर सुसान की?”

“हाँ। और मम्मी उनके बबलू का नाम भी महेश है और मम्मी, सिस्टर सूसान पता है क्या करती है, बबलू के बिस्तर के ऊपर जो डंडा है, उसमें खिलौने बाँध देती है।”

सरस्वती के दो घंटे कैसे निकल गए उसे पता ही नहीं चला। छह बजे जब मुलाक़ाती जाने लगे तब उसका मन घबराने लगा। स्टूल से उठते हुए बेटे को प्यार करती बोली, “बेटे अब मैं जा रही हूँ, छह बज गए हैं न।”

“हाँ मम्मी, जल्दी आओ। मोना को राजू के घर से जल्दी ले आओ।” आज बेटा घर जाने की इजाजत यूँ खुशी-खुशी देगा, उसने सपने में भी नहीं सोचा था। घर जाते-जाते वह असंभव को संभव करने वाली सिस्टर सूखान की कल्पना करने लगी कि कैसी होगी सुसान नाम की सोन परी जिसने यह जादू कर दिखाया।

13 दिन बाद महेश को अस्पताल से छुट्टी मिली। घर आकर वह अपनी छोटी बहन मोना और पड़ोस के दोस्तों से ऐसे मिला जैसे वर्षों बाद घर लौटा हो। सारा दिन ख़ुशी से बिताते हुए वह शाम होते न होते भूल चुका था कि 13 दिन अस्पताल में बिताकर आ रहा है। परंतु सरस्वती ना तो अस्पताल को भूली थी और ना ही सिस्टर सूसान को सुबह बेटे को घर लाते समय उसने पता लगा लिया था कि आज सिस्टर सुसान की ड्यूटी शाम चार बजे से है। शाम के पाँच बजते ही वह अस्पताल जाने के लिए तैयार हो गई। उसके हाथों में सिस्टर सूसान के लिए गुलदस्ता व उसके बबलू के लिए शानदार गिफ्ट था। अस्पताल जाते हुए वह अजीब सी ख़ुशी महसूस कर रही थी। बारह दिन से जिस स्त्री के प्रति उसका दिल शुक्रगुजार था, आज उसके सामने पहुँच अपने मन की भावना कैसे व्यक्त करेगी? उससे क्या बोलेगी, “मेहरबानी।” नहीं नहीं बोलेगी, “तुम्हारी जिंदगी हमेशा रोशन रहे।” अरे! नहीं उससे कहेगी, “तुम बहारों की रुत हो। तुम्हारे आँगन में हमेशा फूल खिलते रहें….”

और साढ़े पाँच बजे सरस्वती पहुँच गई सिस्टर सूसान के पास अपना परिचय देती बोली, “मैं तुम्हें कभी भी नहीं भूल पाऊँगी, कभी भी नहीं।’’

सूसान ने जोर से ठहाका लगाते हुए कहा, “मुझे जल्दी से भूल जाइएगा, नहीं तो आपके पति को मुझसे ईर्ष्या होने लगेगी। पति बहुत ही ईर्ष्यालु होते हैं।”

सरस्वती की भी हँसी छूट गई। उसने सिस्टर को गुलदस्ता और उसके बबलू के लिए गिफ्ट पेश किया। सिस्टर सुसान इतना हँसी, इतना हँसी कि पास में बैठी मैट्रेन ने उसे तीखी नज़रों से देखते हुए वार्निंग दे डाली कि अस्पताल में वह इतना ज़ोर से कैसे हँस सकती है? सूसान ने भी अपनी भूल महसूस करते हुए मैट्रेन से माफ़ी माँगी और सरस्वती से बोली, “रंग-बिरंगे सुंदर फूलों वाला यह गुलदस्ता तो मैं ख़ुशी से ले रही हूँ। बाक़ी यह गिफ्ट किसी ऐसी स्त्री को दे दीजिए, जिसका कोई बबलू हो। मेरा तो कोई बबलू है ही नहीं, मैंने तो अभी शादी ही नहीं की है।”

कायदा – नियम

विचलित – अस्थिर, चंचल,

बेख़बर – अनजान

फुर्सत – अवकाश

पायताने –  पाँयता, वह दिशा जिधर पैर फैला कर सोया जाए

मुलाक़ाती – परिचित

इजाजत – अनुमति, आज्ञा

ऑपरेशन – शल्यक्रिया, चीरफाड़

शुक्रगुज़ार – एहसान मानने वाला

अनसुना – जो सुना न गया हो

ईर्ष्या – जलन

तुर्शी – तीखापन, खट्टास।

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-

(1) महेश कितने साल का था?

(2) महेश कहाँ दाखिल था?

(3) अस्पताल में मुलाकातियों के मिलने का समय क्या था?

(4) वार्ड में कुल कितने बच्चे थे?

(5) सात बजे कौन सी दो नर्सों वार्ड में आई?

(6) महेश किस सिस्टर से घुल मिल गया था?

(7) महेश को अस्पताल से कितने दिन बाद छुट्टी मिली?

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिए-

(1) सरस्वती की परेशानी का क्या कारण था?

(2) सरस्वती ने नौ नम्बर बैड वाले बच्चे से क्या मदद मांगी?

(3) सिस्टर सूसान ने महेश को अपने बेटे के बारे में क्या बताया?

(4) दूसरे दिन महेश ने माँ को घर जाने की इजाज़त खुशी-खुशी कैसे दे दी?

(5) सरस्वती द्वारा सिस्टर सूसान को गुलदस्ता और उसके बबलू के लिए गिफ्ट पेश करने पर सिस्टर सुसान ने क्या कहा?

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिए-

(1) सिस्टर सूसान का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।

(2) नर्स कहानी का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।

I.निम्नलिखित पंजाबी गद्याशों का हिंदी में अनुवाद कीजिए-

(1)ਅੱਠ ਵਜੇ ਸਿਸਟਰ ਸੁਸਾਨ ਦੇ ਵਾਰਡ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦੇ ਹੀ ਕਈ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ਤੇ ਮੁਸਕਾਨ ਛਾ ਗਈ। ਇਕ ਤੋਂ ਨੌ ਨੰਬਰ ਵਾਲੇ ਬੱਚੇ ਤਾਂ ਉਸਦੇ ਸੁਆਗਤ ਲਈ ਬਿਸਤਰ ਤੋਂ ਉੱਠ ਕੇ ਬੈਠ ਗਏ। ਸਿਸਟਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਲ ਹੱਥ ਹਿਲਾਇਆ।

(2)ਰੰਗ ਬਿਰੰਗੇ ਸੁੰਦਰ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲਾ ਇਹ ਗੁਲਦਸਤਾ ਤਾਂ ਮੈਂ ਖੁਸ਼ੀ ਨਾਲ ਲੈ ਰਹੀ ਹਾਂ ਬਾਕੀ ਇਹ ਗਿਫਟ ਕਿਸੀ ਇਹੋ ਜਿਹੀ ਔਰਤ ਨੂੰ ਦੇ ਦੇਣਾ ਜਿਸਦਾ ਕੋਈ ਬਬਲੂ ਹੋਏ। ਮੇਰਾ ਤਾਂ वैष्टी ਹੀ ਨਹੀਂ।ਮੈਂ ਤਾਂ ਹਾਲੇ ਤਕ ਸ਼ਾਦੀ ਹੀ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਹੈ।

(1) आप अपने जीवन में क्या बनना चाहेंगे? इस विषय पर कक्षा में सभी विद्यार्थी चर्चा कीजिए।

(2) नर्सिंग क्षेत्र के अतिरिक्त और किस-किस क्षेत्र में मानव सेवा के भाव जिंदा है कक्षा में इसकी चर्चा कीजिए।

(3) अस्पताल के किसी वार्ड का वर्णन कीजिए।

(4) ‘नर्स होना चुनौतीपूर्ण वचनबद्धता है’ इस विषय पर अनुच्छेद लिखिए।

(1) 12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस और 1 जुलाई को डॉक्टर्स-डे पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। टी. वी. पर इन कार्यक्रमों को देखिए और समाचार पत्रों से इसके बारे में जानकारी जुटाइए।

(2) विद्यालय में नर्सिग सेवा-भाव पर कोई नाट्य प्रस्तुति करें।

(3) सेवा-भाव से दुनिया जीतने वाली मदर टेरेसा के चित्रों की एलबम तैयार कीजिए।

नर्सिंग-

रोगी की सेवा सुश्रूषा को नर्सिंग कहते हैं। अंग्रेजी के नर्स शब्द का अर्थ है ‘पोषण’। नर्स उसे कहते हैं जो शिशु का पोषण करती है। माँ भी एक प्रकार से नर्स है।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल-

नोबल नर्सिंग सेवा की शुरूआत करने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिवस पर हर वर्ष दुनिया भर में 12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वर्तमान युग में अस्पताल के प्रबंधन और रोगियों के स्वास्थ्य लाभ में नर्सों का विशेष महत्त्व है। नर्सों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन 19वीं शताब्दी के मध्य तक की स्थिति इसके सर्वथा विपरीत थी। उस समय नर्स का कार्य बहुत घटिया समझा जाता था। इस पेशे को सम्मान दिलाने का श्रेय ब्रिटेन की फ्लोरेंस नाइटिंगेल को जाता है। इनका जन्म 12 मई, 1820 को एक समृद्ध और उच्च वर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था। उस युग के ब्रिटिश वैभवपूर्ण जीवन के प्रति उन्हें कोई आकर्षण नहीं था और दुखी मानवता के लिए उनके हृदय में अपार संवेदना थी। उन्होंने परिवार के विरोध के बावजूद सेवा का मार्ग चुना। फ्लोरेंस का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा। अक्टूबर 1854 में उन्होंने 38 स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा। वे रात- रात भर जगाकर एक लालटेन के सहारे घायलों की सेवा करती थी, इसलिए उन्हें लेडी विद दि लैम्प की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनकी प्रेरणा से ही नर्सिंग क्षेत्र में महिलाओं को आने की प्रेरणा मिली थी।

मदर टेरेसा-

मदर टेरेसा कैथोलिक नन थी जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। उन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। उन्होंने 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की मदद की और साथ हो चेरिटी के मिशनरीज़ के प्रसार का मार्ग प्रशस्त किया। 1970 तक वे गरीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध हो गई। दया व सेवा की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार और भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया।

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