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मीराबाई

(सन् 1498-1573)

मीराबाई हिंदी भक्तिकाल की कृष्ण भक्त कवयित्री हैं। उनके काव्य में कृष्ण भक्ति के साथ साथ थोथी कुल मर्यादा तथा अंधी नैतिकता के प्रति विद्रोह है। उन्होंने सोलहवीं शती में नारी स्वतंत्रता का बिगुल भी बजा दिया। उन्हें नारी विमर्श की महान क्रांतिकारी कवयित्री के रूप में देखा जा सकता है।

मीरा का जन्म सन् 1498 में जोधपुर (राजस्थान) के कुड़की गाँव में राव रत्नसिंह राठौर के घर हुआ। बचपन में ही माँ के निधन के कारण इनका पालन-पोषण इनके दादा दूदा जी ने किया। मीरा के दादा जी श्री कृष्ण के भक्त थे। उनकी कृष्ण भक्ति से प्रभावित होकर मीरा बचपन से ही श्री कृष्ण भक्ति में लीन हो गई। मीरा का विवाह मेवाड़ के राणा साँगा के सबसे बड़े पुत्र भोजराज के साथ हुआ। परन्तु विवाह के कुछ वर्ष बाद ही यह विधवा हो गई। इस दुखद घटना ने मीरा को संसार से विरक्त कर दिया। वैधव्य ने भक्ति के संस्कारों को पल्लवित किया और मीराबाई उस समय के राजघरानों की मर्यादा को छोड़ साधु सन्तों के बीच रहने, मंदिरों में कीर्तन करने और नाचने गाने लगी। राजपूती शान के विरुद्ध आचरण से परिवार के सभी लोग मीरा से रुष्ट हो गए। इनके देवर ने तो कई बार मीरा को मरवाने की चेष्टा भी की, पर श्री कृष्ण जी की कृपा से मीरा हर बार बच गई। परिवार के लोगों के व्यवहार से दुःखी होकर मीरा वृंदावन और फिर द्वारिका चली गयीं। वहीं उन्होंने देह त्याग दी। इनकी मृत्यु का वर्ष विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग बताया है।

रचनाएँ: मीराबाई की ‘राग गोविंद’, ‘राग सोरठा के पद’, ‘नरसी जी का मायरा’, ‘गीत गोविंद की टीका’ तथा मीरा की पदावली- ये रचनाएँ मानी जाती हैं। इनमें से ‘मीरा पदावली’ मीराबाई की प्रमुख रचना है। उनकी भक्ति में माधुर्य भाव है। शैली मुक्तक है जिसमें गेय तत्त्व है। भाषा में राजस्थानी, मारबाड़ी, ब्रज और गुजराती का संगम है।

यहाँ मीराबाई के दो प्रमुख पद लिए गए हैं। पहले पद में मीरा ने बालकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन किया है। मीराबाई श्री कृष्ण की मन को मोहित करने वाली सुंदर छवि को अपनी आँखों में बसाना चाहती है। श्री कृष्ण की साँवली सूरत व बड़ी-बड़ी आँखें हैं। उन्होंने मोर के पंखों का बना मुकुट व मकर की आकृति के कुंडल धारण किए हैं। माथे पर लाल रंग का तिलक शोभा बढ़ा रहा है। ओठों पर अमृत के समान मीठी ध्वनि निकालने वाली मुरली है और हृदय पर वैजन्ती माला सुशोभित है। छोटी-छोटी घंटियाँ कमर पर बंधी हैं, पाँवों में छोटे-छोटे घुंघरू बंधे हैं, जिनकी ध्वनि मन को आकर्षित करती है। मीरा के प्रभु श्री कृष्ण का यह रूप संतों को सुख देने वाला तथा भक्तों की रक्षा करने वाला है।

दूसरे पद में मीरा ने श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व मानते हुए कहा कि गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले श्री कृष्ण ही मेरे पति है जिसके सिर पर मोर के पंखों का सुन्दर मुकुट है, वही कृष्ण मेरे अपने हैं- दूसरा कोई मेरा नहीं है। मैंने कुल की झूठी मर्यादा छोड़ दी है- मुझे अब किसी की परवाह नहीं है। संतों की संगति में रह कर मैंने लोक लाज को छोड़ दिया है। श्री कृष्ण रूपी प्रेम की बेल को मैंने अपने आँसुओं से सींचा है। अब प्रेम की वह बेल खिल गई है और उस पर भक्ति के मीठे-मीठे फल लगे हैं, जिससे आनंद की प्राप्ति होगी। मीरा कहती है कि भक्तों को देखकर उसे खुशी मिलती है-संसार का झमेला तो दुःख ही देने वाला है जिसमें रोना धोना ही है। मीराबाई श्री कृष्ण से प्रार्थना करती है कि वह उसकी दासी है अब संसार रूपी समुद्र से उसका उद्धार किया जाए। इस पद में नारी विमर्श की झलक मिलती है।

बसौ मेरे नैनन में नंद लाल।

मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बनै विसाल।

मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाला

अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माल।

छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल।

मीरा प्रभु संतन सुखदाई भक्त बछल गोपाल॥ (1)

मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।

तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई।

छांड़ि दई कुल की कानि, कहा करै कोई।

संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।

अँसुअन जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई।

अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई।

भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।

दासी मीरा लाल गिरधर, तारौ अब मोही। (2)

नंदलाल – नंद के बेटे श्री कृष्ण;

बिसाल – विशाल, बड़े

अरुण – लाल

भाल – मस्तक, माथा;

अधर – होंठ

उर – हृदय;

कटि – कमर;

नुपूर – घुँघरू;

रसाल – मीठा, मोहक;

बछल – वत्सल, रक्षक;

गिरिधर – गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाला;

कानि – मर्यादा

राजी – प्रसन्न

तारो – उद्धार करना, तारना

I.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-

(1) श्री कृष्ण ने कौन-सा पर्वत धारण किया था?

(2) मीरा किसे अपने नयनों में बसाना चाहती हैं?

(3) श्री कृष्ण ने किस प्रकार का मुकुट और कुंडल धारण किए हैं?

(4) मीरा किसे देखकर प्रसंन हुई और किसे देखकर दु:खी हुई?

(5) संतों की संगति में रहकर मीरा ने क्या छोड़ दिया?

(6) मीरा अपने आँसुओं के जल से किस बेल को सींच रही थी?

(7) पदावली के दूसरे पद में मीराबाई गिरिधर से क्या चाहती है? निम्नलिखित

II.पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-

(1) बसौ मेरे नैनन में नंद लाल।

मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बनै विसाल।

मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाल।

अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माला।

छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल।

मीरा प्रभु सन्तन सुखदाई भक्त बछल गोपाल॥

(2) मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।

तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई।

छांड़ि दई कुल की कानि, कहा करै कोई।

संतन ढिग बैठि बैठि, लोक लाज खोई।

अँसुअन जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई।

अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई।

भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।

दासी मीरा लाल गिरधर, तारौ अब मोही।

(1) निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें :

भाल

प्रभु

जगत

वन

(2) निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए:

कुल :

कूल :

कटि :

कटी :

(1) मीराबाई द्वारा वर्णित श्री कृष्ण के बाल रूप का एक चित्र लेकर अपने विद्यालय की भित्ति पत्रिका पर लगाएँ।

(2) मीराबाई की तरह अन्य कृष्ण भक्त कवियों जैसे सूरदास, रसखान आदि ने श्री कृष्ण के बाल सौंदर्य का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। अपने स्कूल के पुस्तकालय से ऐसे कवियों के कुछ पद संकलित करें।

(3) मीराबाई के पदों की सी.डी/डी.वी.डी देखें या इंटरनेट पर इन पदों को सुन कर

आनंद लें।

(4) कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर ‘मीरा पद गायन प्रतियोगिता का आयोजन करें।

मीरा ने प्रायः श्री कृष्ण के लिए ‘गिरिधर गोपाल’ शब्द का प्रयोग अपने पदों में किया है। ‘गिरिधर’ शब्द-गिरि अर्थात पहाड़ (पर्वत) तथा अर्थात् धारण करना। इस तरह गिरिधर का अर्थ हुआ-पहाड़ हुआ पहाड़ को धारण करने वाले श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। गोवर्धन पर्वत द्वारा वृंदावन वासियों को दिए जाने वाली प्राकृतिक संपदा के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए श्री कृष्ण द्वारा प्रेरित किया गया। इस पर इंद्र देवता रुष्ट हो गए और उन्होने तेज वर्षा करके सारे गाँव को तबाह करने का प्रयास किया। उस समय श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण करके ब्रजवासियों की रक्षा की तथा इंद्र देवता के घमंड को चूर-चूर कर दिया। इसलिए श्री कृष्ण को गिरिधर भी कहा जाता है। ‘गोपाल’ का अर्थ है गौओं की पालना करने वाले श्री कृष्ण निश्चय ही पशु-पक्षियों और वृंदावन की वनस्पति से प्रेम करने वाले तथा उनके रक्षक और पालक थे।

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