(सन् 1922-1995)
हरिशंकर परसाई का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय से एम. ए. करने के बाद कुछ दिनों तक अध्यापन किया। सन् 1947 से स्वतंत्र लेखन करने लगे। संसार में काफी सराहना हुई। सन् 1995 में उनका निधन हो गया।
परसाई जी हिंदी साहित्य की दुनिया में मुख्यत: व्यंग्यकार के रूप में चर्चित रहे हैं, लेकिन उन्होंने व्यंग्य के अतिरिक्त उपन्यास, कहानी, रेखाचित्र, निबंध आदि गद्य विधाओं में भी अपना योगदान दिया है। परसाई जी की कृतियों में ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’ (कहानी संग्रह), ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ (उपन्यास) ‘तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘खिसायत मुझे भी है’, और अंत में (निबंध संग्रह), ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘तिरछी रेखाएँ’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर (व्यंग्य संग्रह) उल्लेखनीय हैं। परसाई जी का समस्त साहित्य परसाई रचनावली’ के नाम से प्रकाशित हो चुका है।
अपनी व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक विषमताओं पर सीधा प्रहार किया है। भारतीय जीवन के पाखंड, भ्रष्टाचार, अंतर्विरोध, बेईमानी आदि पर उनका व्यंग्य तीखा और मर्माहत करने वाला होने पर भी मर्यादित है। उनके व्यंग्य के पीछे उनका गंभीर विचारक रूप भी झलकता हैं।
‘सदाचार का तावीज़’ व्यंग्य पाठ में हरिशंकर परसाई जी ने भ्रष्टाचार के कारण तथा निवारण के उपायों को व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। इस व्यंग्य के माध्यम से लेखक स्पष्ट करता कि किसी को सदाचारी तभी बनाया जा सकता है जब भ्रष्टाचार के मौके खत्म हों। रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार तब तक समाप्त नहीं होगा, जब तक कि सभी कर्मचारियों को संतोषजनक वेतन नहीं मिल जाता, आर्थिक सुरक्षा नहीं मिल जाती। परसाई जी ने मानव मन की स्वाभाविकता पर भी प्रकाश डाला है। मनुष्य समय और परिस्थिति के अनुरूप अपने विचारों और आदर्शों को बदल लेता है।
एक राज्य में हल्ला मचा कि भ्रष्टाचार बहुत फैल गया है।
राजा ने एक दिन दरबारियों से कहा, “प्रजा बहुत हल्ला मचा रही है कि सब जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है। हमें तो आज तक कहीं नहीं दिखा। तुम लोगों को कहीं दिखा हो तो बताओ।” दरबारियों ने कहा- “जब हुजूर को नहीं दिखा तो हमें कैसे दिख सकता है?”
राजा ने कहा- “नहीं, ऐसा नहीं, ऐसा नहीं है। कभी-कभी जो मुझे नहीं दिखता, वह तुम्हें दिखता होगा। जैसे मुझे बुरे सपने कभी नहीं दिखते, पर तुम्हें दिखते होंगे।”
दरबारियों ने कहा – “जो दिखते हैं। पर वह सपनों की बात है।”
राजा ने कहा – “फिर भी तुम लोग सारे राज्य में ढूँढ़कर देखो कि कहीं भ्रष्टाचार तो नहीं है। अगर कहीं मिल जाए तो हमारे देखने के लिए नमूना लेते आना। हम भी तो देखें कि कैसा होता है।”
एक दरबारी ने कहा – “हुजूर, वह हमें नहीं दिखेगा। सुना है, वह बहुत बारीक होता है। हमारी आँखें आपकी विराटता देखने की इतनी आदी हो गई हैं कि हमें बारीक चीज नहीं दिखती। हमें भ्रष्टाचार दिखा भी तो उसमें हमें आपकी ही छवि दिखेगी, क्योंकि हमारी आँखों में तो आपकी ही सूरत बसी है। पर अपने राज्य में एक जाति रहती है जिसे “विशेषज्ञ” कहते हैं। इस जाति के पास कुछ ऐसा अंजन होता है कि उसे आँखों में आँजकर वे बारीक से बारीक चीज़ भी देख लेते हैं। मेरा निवेदन है कि इन विशेषज्ञों को ही हुजूर भ्रष्टचार ढूँढ़ने का काम सौंपे।”
राजा ने “विशेषज्ञ” जाति के पाँच आदमी बुलाए और कहा-”सुना है, हमारे राज्य में भ्रष्टाचार है। पर वह कहाँ है, यह पता नहीं चलता। तुम लोग उसका पता लगाओ। अगर मिल जाए ती पकड़ कर हमारे पास ले आना। अगर बहुत हो तो नमूने के लिए थोड़ा-सा ले आना।”
विशेषज्ञों ने उसी दिन से छानबीन शुरू कर दी।
दो महीने बाद वे फिर से दरबार में हाजिर हुए।
राजा ने पूछा- “विशेषज्ञों, तुम्हारी जाँच पूरी हो गई?”
जी, सरकार।”
“क्या तुम्हें भ्रष्टाचार मिला।”
“जी, बहुत सा मिला।”
राजा ने हाथ बढ़ाया – ”लाओ, मुझे बताओ। देखूँ, कैसा होता है।”
विशेषज्ञों ने कहा- “हुजूर, वह हाथ की पकड़ में नहीं आता। वह स्थूल नहीं, सूक्ष्म अगोचर है। पर वह सर्वत्र व्याप्त है। उसे देखा नहीं जा सकता अनुभव किया जा सकता है।”
राजा सोच में पड़ गए। बोले-“विशेषज्ञों, तुम कहते हो कि वह सूक्ष्म है, अगोचर है और सर्वव्यापी है। ये गुण तो ईश्वर के हैं। तो क्या भ्रष्टाचार ईश्वर है?”
विशेषज्ञों ने कहा- “हाँ, महाराज, अब भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया है।”
एक दरबारी ने पूछा- “पर वह है कहाँ? कैसे अनुभव होता है?”
विशेषज्ञों ने जवाब दिया “वह सर्वत्र है। वह इस भवन में है। वह महाराज के सिंहासन में है।”
“सिंहासन में है!” कहकर राजा साहब उछलकर दूर खड़े हो गए।
विशेषज्ञों ने कहा- “हाँ, सरकार, सिंहासन में है। पिछले माह इस सिंहासन पर रंग करने के जिस बिल का भुगतान किया गया है, वह बिल झूठा है। वह वास्तव में दुगुने दाम का है। आधा पैसा बीच वाले खा गए। आपके पूरे शासन में भ्रष्टाचार है और वह मुख्यतः घूस के रूप में है।”
विशेषज्ञों की बात सुनकर राजा चिंतित हुए और दरबारियों के कान खड़े हुए।
राजा ने कहा- “यह तो बड़ी चिंता की बात है। हम भ्रष्टाचार बिल्कुल मिटाना चाहते हैं। विशेषज्ञों, तुम बता सकते हो कि वह कैसे मिट सकता है?”
विशेषज्ञों ने कहा- “हाँ महाराज, हमने उसकी भी योजना तैयार की है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए महाराज को व्यवस्था में बहुत परिवर्तन करने होंगे। एक तो भ्रष्टाचार के मौके मिटाने होंगे। जैसे ठेका है तो ठेकेदार है और ठेकेदार है तो अधिकारियों को घूस है। ठेका मिट जाए तो उसकी घूस मिट जाए। इसी तरह और बहुत-सी चीज है। किन कारणों से आदमी घूस लेता है, यह भी विचारणीय है।”
राजा ने कहा- “अच्छा, तुम अपनी पूरी योजना रख जाओ। हम और हमारा दरबार उस पर विचार करेंगे।”
विशेषज्ञ चले गए।
राजा ने और दरबारियों ने भ्रष्टाचार मिटाने की योजना को पढ़ा। उस पर विचार किया।
विचार करते दिन बीतने लगे और राजा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा।
एक दिन एक दरबारी ने कहा – “महाराज, चिंता के कारण आपका स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है। उन विशेषज्ञों ने आपको झंझट में डाल दिया।”
राजा ने कहा- “हाँ, मुझे रात को नींद नहीं आती।”
दूसरा दरबारी बोला- “ऐसी रिपोर्ट को आग के हवाले कर देना चाहिए जिससे महाराज की नींद में खलल पड़े।’’
राजा ने कहा – “पर करें क्या? तुम लोगों ने भी भ्रष्टाचार मिटाने की योजना का अध्ययन किया है। तुम्हारा क्या मत है? क्या उसे काम में लाना चाहिए?”
दरबारियों ने कहा – “महाराज, वह योजना क्या है एक मुसीबत है। उसके अनुसार कितने उलट-फेर करने पड़ेंगे! कितनी परेशानी होगी। सारी व्यवस्था उलट-पलट हो जाएगी। जो चला आ रहा है, उसे बदलने से नई-नई कठिनाइयाँ पैदा हो सकती हैं। हमें तो कोई ऐसी तरकीब चाहिए जिससे बिना कुछ उलट-फेर किए भ्रष्टाचार मिट जाए।”
राजा साहब बोले – “मैं भी यही चाहता हूँ। पर यह हो कैसे? हमारे प्रपितामह को तो जादू आता था हमें वह भी नहीं आता। तुम लोग ही कोई उपाय खोजो।”
एक दिन दरबारियों ने राजा के सामने एक साधु को पेश किया और कहा – “महाराज, एक कंदरा में तपस्या करते हुए इस महान साधक को हम ले आये हैं। इन्होंने सदाचार का तावीज़ बनाया है। वह मंत्रों से सिद्ध है और उसके बाँधने से आदमी एकदम सदाचारी हो जाता है।”
साधु ने अपने झोले में से एक तावीज़ निकालकर राजा को दिया। राजा ने उसे देखा। बोले – “हे साधु, इस तावीज़ के विषय में मुझे विस्तार से बताओ। इससे आदमी सदाचारी कैसे हो जाता है?”
साधु ने समझाया – “महाराज, भ्रष्टाचार और सदाचार मनुष्य की आत्मा में होता है, बाहर से नहीं होता। विधाता जब मनुष्य को बनाता है तब किसी की आत्मा में ईमान की कल फिट कर देता है और किसी की आत्मा में बेईमानी की। इस कल में से ईमान या बेईमानी के स्वर निकलते हैं, जिन्हें ‘आत्मा की पुकार’ कहते हैं। आत्मा की पुकार के अनुसार ही आदमी काम करता है। प्रश्न यह है कि जिनकी आत्मा से बेईमानी के स्वर निकलते हैं, उन्हें दबाकर ईमान के स्वर कैसे निकाले जाएँ? मैं कई वर्षों से इसी के चिंतन में लगा हूँ। अभी मैंने यह सदाचार का तावीज़ बनाया है। जिस आदमी की भुजा पर यह बँधा होगा, वह सदाचारी हो जाएगा। मैंने कुत्ते पर भी इसका प्रयोग किया है। यह तावीज़ गले में बाँध देने से कुत्ता भी रोटी नहीं चुराता। बात यह है कि इस तावीज़ में से भी सदाचार के स्वर निकलते हैं। जब किसी की आत्मा बेईमानी के स्वर निकालने लगती है तब इस तावीज़ की शक्ति आत्मा का गला घोंटती है और आदमी को तावीज़ से ईमान के स्वर सुनाई पड़ते हैं। वह इन स्वरों को आत्मा की पुकार समझकर सदाचार की ओर प्रेरित होता है। यही इस तावीज़ का गुण है, महाराज!”
दरबार में हलचल मच गई। दरबारी उठ उठकर तावीज़ को देखने लगे।
राजा ने खुश होकर कहा-”मुझे नहीं मालूम था कि मेरे राज्य में ऐसे चमत्कारी साधु भी हैं। महात्मन्, हम आपके बहुत आभारी हैं। आपने हमारा संकट हर लिया। हम सर्वव्यापी भ्रटाचार से बहुत परेशान थे। मगर हमें लाखों नहीं, करोड़ों तावीज़ चाहिए। हम राज्य की ओर से तावीजों का कारखाना खोल देते हैं। आप उसके जनरल मैनेजर बन जाएँ और अपनी देख-रेख में बढ़िया तावीज़ बनवाएँ।”
एक मंत्री ने कहा- “महाराज, राज्य क्यों झंझट में पड़े? मेरा तो निवेदन हे कि साधु बाबा को ठेका दे दिया जाए। वे अपनी मंडली से तावीज बनवा कर राज्य को सप्लाई कर देंगे।”
राजा को यह सुझाव पसंद आया। साधु को तावीज़ बनाने का ठेका दे दिया गया। उसी समय उन्हें पाँच करोड़ रुपये कारखाना खोलने के लिए पेशगी मिल गए।
राज्यों के अखबारों में खबरें छपी “सदाचार के तावीज़ की खोज! तावीज़ बनाने का कारखाना खुला!”
लाखों ताबीज बन गए। सरकार के हर सरकारी कर्मचारी की भुजा पर एक-एक तावीज बाँध दिया गया।
भ्रष्टाचार की समस्या का ऐसा सरल हल निकल आने से राजा और दरबारी सब खुश थे। एक दिन राजा की उत्सुकता जागी। सोचा – “देखें तो कि यह तावीज़ कैसे काम करता है।” वह वेश बदलकर एक कार्यालय गए। उस दिन 2 तारीख थी। एक दिन पहले तनख्वाह मिली थी।
वह एक कर्मचारी के पास गए और कई काम बताकर उसे पाँच रुपये का नोट देने लगे।
कर्मचारी ने उन्हें डाँटा – “भाग जाओ यहाँ से घूस लेना पाप है!”
राजा बहुत खुश हुए। तावीज़ ने कर्मचारी को ईमानदार बना दिया था।
कुछ दिन बाद वह फिर वेश बदलकर उसी कर्मचारी के पास गए। उस दिन इकतीस तारीख थी महीने का आखिरी दिन।
राजा ने फिर उसे पाँच का नोट दिखाया और उसने लेकर जेब में रख लिया।
राजा ने उसका हाथ पकड़ लिया। बोले – “मैं तुम्हारा राजा हूँ। क्या तुम आज सदाचार का तावीज़ बाँधकर नहीं आए?”
“बाँधा है, सरकार, यह देखिए।”
उसने आस्तीन चढ़ाकर तावीज़ दिखा दिया।
राजा असमंजस में पड़ गए। फिर ऐसा कैसे हो गया?
उन्होंने तावीज़ पर कान लगाकर सुना। तावीज़ में से स्वर निकल रहे थे- “अरे, आज इकतीस है। आज तो ले ले।”
सदाचार – अच्छा आचरण
घूस – रिश्वत
भ्रष्टाचार – बुरा आचार-विचार
तरकीब – उपाय, युक्ति
विराटता – बहुत बड़ा, विशालता
प्रपितामह – परदादा
विशेषज्ञ – किसी विषय-विशेष का ज्ञान रखने वाला
कंदरा – गुफ़ा,
अंजन – काजल
तावीज़ – रक्षा कवच, मंत्र लिखा कागज या धातु का टुकड़ा जिसे हाथ पर या गले में धारण किया जाता है।
आँजकर – आँखों में काजल लगाकर
कल – यंत्र, मशीन
स्थूल – मोटा
सूक्ष्म – बारीक
पेशगी – किसी वस्तु के मूल का वह अंश जो काम करने वाले को पहले ही दे दिया जाता है, अग्रिम
अगोचर – अप्रत्यक्ष, अदृश्य
उत्सुकता – अधीरता, बेचैनी
व्याप्त – समाया हुआ
आस्तीन – पहनने के कपड़े का वह भाग जो बाँह को ढकता है, बाँह
सर्वव्यापी – हर तरफ फैला हुआ
असमंजस – दुविधा
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(1) राजा ने राज्य में किस चीज़ के फैलने की बात दरबारियों से पूछी?
उत्तर – राजा ने राज्य में भ्रष्टाचार के फैलने की बात दरबारियों से पूछी।
(2) राजा ने भ्रष्टाचार ढूँढ़ने का काम किसे सौंपा?
उत्तर – राजा ने भ्रष्टाचार ढूँढ़ने का काम विशेषज्ञों को सौंपा।
(3) एक दिन दरबारियों ने राजा के सामने किसे पेश किया?
उत्तर – एक दिन दरबारियों ने राजा के सामने एक साधु को पेश किया।
(4) साधु ने राजा को कौन सी वस्तु दिखायी?
उत्तर – साधु ने राजा को एक चमत्कारी तावीज दिखाई।
(5) साधु ने तावीज़ का प्रयोग किस पर किया?
उत्तर – साधु ने तावीज़ का प्रयोग कुत्ते पर किया था।
(6) तावीज़ों को बनाने का ठेका किसे दिया गया?
उत्तर – तावीज़ों को बनाने का ठेका साधु बाबा को दिया गया था।
(7) राजा वेश बदल कर पहली बार कार्यालय कब गए थे?
उत्तर – राजा वेश बदल कर पहली बार महीने की दो तारीख को कार्यालय गए थे।
(8) साधु को तावीज़ बनाने के लिए कितनी पेशगी दी गई?
उत्तर – साधु को तावीज़ बनाने के लिए पाँच करोड़ रुपये पेशगी में दी गई।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए :-
(1) दरबारियों ने भ्रष्टाचार न दिखने का क्या कारण बताया?
उत्तर – दरबारियों ने भ्रष्टाचार न दिखने का राजा को पहला कारण यह कारण बताया कि वह बहुत बारीक होता है। उनका दूसरा कारण यह था कि उनकी आँखें महाराज की विराटता को देखने की इतनी अधिक आदी हो गई है कि उन्हें कोई बारीक चीज दिखाई ही नहीं देती। इसे और भी अतिरंजित करते हुए दरबारियों के कहा कि उनकी आँखों में तो सदा महाराज की सूरत बसी रहती है। इसलिए भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देता।
(2) राजा ने भ्रष्टाचार की तुलना ईश्वर से क्यों की?
उत्तर – राजा ने भ्रष्टाचार को ढूँढ़ने का काम विशेषज्ञों को दिया था। भ्रष्टाचार पर अपनी जाँच-पड़ताल करने के बाद विशेषज्ञों ने राजा से कहा कि वह सूक्ष्म, अगोचर और सर्वत्र व्याप्त है। उसे देखा नहीं जा सकता केवल अनुभव किया जा सकता है। इस पर राजा ने कहा कि यही सारे गुण तो ईश्वर में भी हैं। इसलिए राजा ने भ्रष्टाचार की तुलना ईश्वर से की है।
(3) राजा का स्वास्थ्य क्यों बिगड़ता जा रहा था?
उत्तर – राज्य में बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण राजा थोड़ा परेशान रहने लगे थे। इधर विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार मिटाने की जो योजना बनाई थी उसे पढ़ने और विचार करने में दिन बीतने लगे और राजा की चिंता बढ़ने लगी। उन्हें रातों को नींद भी ठीक सी नहीं आ रही थी। फलस्वरूप उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा।
(4) साधु ने सदाचार और भ्रष्टाचार के बारे में क्या कहा?
उत्तर – साधु ने सदाचार और भ्रष्टाचार के बारे में यह कहा कि भ्रष्टाचार और सदाचार मनुष्य की आत्मा में होता है। विधाता जब मनुष्य को बनाता है तब किसी की आत्मा में ईमान की कल फिट कर देता है और किसी की आत्मा में बेईमानी की। इस कल में से ईमान या बेईमानी के स्वर निकलते हैं, जिन्हें ‘आत्मा की पुकार’ कहते हैं। आत्मा की पुकार के अनुसार ही प्रत्येक आदमी काम करता है।
(5) तावीज़ किसलिए बनवाए गए थे?
उत्तर – तावीज़ राज्य में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए बनवाए गए थे। वास्तव में राजा यह चाहते थे कि बहुत सारे तावीजों का निर्माण करवाकर कर्मचारियों की भुजा में बँधवाया जाए ताकि तावीज के प्रभाव से रिश्वत लेने-देने का अनैतिक काम बंद हो जाए और राज्य भ्रष्टाचार मुक्त हो जाए।
(6) महीने के आखिरी दिन तावीज़ में से कौन-से स्वर निकल रहे थे?
उत्तर – राजा तावीज़ के प्रभाव का असर देखने के लिए वेश बदलकर महीने के आखिरी दिन एक कर्मचारी के पास गए और उसे पाँच का नोट दिखाया। कर्मचारी ने नोट लेकर जेब में रख लिया। तब राजा अपने असली रूप में आकर उसका हाथ पकड़ लिया और पूछे क्या तुमने आज सदाचार का तावीज़ नहीं बाँधा है? उसने आस्तीन चढ़ाकर तावीज़ दिखा दिया। इस पर राजा असमंजस में पड़ गए और उन्होंने तावीज़ पर कान लगाकर सुना। तावीज़ में से स्वर निकल रहे थे- “अरे, आज इकतीस है। आज तो ले ले।”
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-
(1) विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार खत्म करने के क्या-क्या उपाय बताए?
उत्तर – विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार खत्म करने के प्रभावी और सटीक उपाय बताए। उनके द्वारा प्रस्तुत की गई योजना में सबसे पहले व्यवस्था परिवर्तन की बात कही गई थी क्योंकि वर्तमान प्रचलित व्यवस्था में निहित खामियों के कारण भ्रष्टाचार फैल रहा है। उन्होंने नई नीतियों और क़ानूनों के लागू किए जाने पर भी बल दिया जिसे एक उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट करते हुए बोले कि जैसे ठेका है तो ठेकेदार है और ठेकेदार है तो अधिकारियों को घूस है। ठेका मिट जाए तो उसकी घूस मिट जाए। उन्होंने कर्मचारियों की वेतन वृद्धि की बात भी अपनी योजना में प्रस्तुत की थी। इसी तरह और बहुत-सी चीजें हैं। जिन कारणों से आदमी घूस लेता है, वे सब योजना में वर्णित थीं।
(2) साधु ने तावीज़ के क्या गुण बताए?
उत्तर – साधु ने तावीज़ के बारे में बताया कि मैंने कई वर्षों की साधना के बाद यह सदाचार का तावीज़ बनाया है। यह जिस आदमी की भुजा पर बँधा होगा, वह सदाचारी हो जाएगा। इस तावीज़ में से सदाचार के स्वर निकलते हैं। जब किसी की आत्मा बेईमानी के स्वर निकालने लगती है तब इस तावीज़ की शक्ति बेईमानी का गला घोंटती है और आदमी को तावीज़ से ईमानदारी के स्वर सुनाई पड़ते हैं। वह इन स्वरों को आत्मा की पुकार समझकर सदाचार की ओर प्रेरित होता है। यही इस तावीज़ का गुण है।
(3) ‘सदाचार का तावीज़’ पाठ में छिपे व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘सदाचार का तावीज़’ पाठ एक व्यंग्यात्मक रचना है। इस पाठ में समाज के सबसे बड़े रोग भ्रष्टाचार का खुलासा हास्यास्पद तरीके से किया गया है जिससे पाठकों को मनोविनोद का भी पूरा-पूरा अवसर प्राप्त होता है तो चिंतन हेतु विषय भी स्वत: ही मिल जाते हैं। एक बात तो तय है कि भ्रष्टाचार को निर्मूल नहीं किया जा सकता पर इसकी जड़ों को बढ़ने से रोका जा सकता है अगर कुछ नई नीतियाँ, नए कानून, सामाजिकता, आवश्यक वस्तुओं का समान रूप से आबंटन, सरकार का बहुत-सी आवश्यक वस्तुओं का उत्पाद और आबंटन अपने स्तर पर करना, कर्मचारियों का समुचित वेतन, पूँजीवादी प्रथा का लोप, निष्पक्ष रूप से निर्वाचन और मतदान, गरीबी उन्मूलन, सभी को रोजगार आदि व्यवस्था अगर आ जाए तो हमारा देश सचमुच उन्नति की राह पर द्रुत गति से बढ़ेगा। परंतु इन्हीं सबके अभाव में लेखक को ऐसी रचना मजबूरन लिखनी पड़ती है।
1.निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखिए-
एक – अनेक
गुण – अवगुण
सूक्ष्म – स्थूल
पाप – पुण्य
विस्तार – संकुचन
ईमानदारी – बेईमानी
2. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
राजा – नरेश, महीप
मनुष्य – नर, मनुज
सदाचार – सद्व्यवहार, सच्चरित्र
कान – कर्ण, श्रवणेंद्रिय
दिन – दीवा, वासर
भ्रष्टाचार – दुराचार, दुश्चरित्र
3. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए-
अच्छे आचरण वाला – सदाचार
बुरे आचरण वाला – भ्रष्टाचार
जो किसी विषय का ज्ञाता हो – विशेषज्ञ
हर तरफ फैला हुआ – सर्वव्यापी
जो दिखाई न दे – अदृश्य
जिसकी आत्मा महान हो – महात्मा
1. साधु के स्थान पर आप राजा को भ्रष्टाचार समाप्त करने का कौन-सा सा उपाय बताते?
उत्तर – साधु के स्थान पर मैं राजा को भ्रष्टाचार समाप्त करने का यह उपाय बताता कि प्रजा पर कम से कम टैक्स लगाया जाए। राज्य के व्यापार को राष्ट्रीय स्तर पर फैलाया जाए। अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी की जाए। साथ ही साथ सतर्कता विभाग की भी स्थापना की जाए। घूसखोरों के लिए कड़े दंड विधान की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
2. विद्यार्थी के रूप में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए आप कौन-कौन से कदम उठाएँगे?
उत्तर – जैसा कि पाठ में कहा भी गया है कि जब तक मनुष्यों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति पर्याप्त तरीके से नहीं हो जाती तब तक भ्रष्टाचार को खत्म करना असंभव है। पर विद्यार्थी के रूप में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए मैं अपने स्कूली जीवन में कभी भी कक्षा की उपेक्षा नहीं करूँगा, गृहकार्य पूरी निष्ठा से पूरा करूँगा। अपने मित्रों से साथ भी सदाचार का व्यवहार ही करूँगा।
3.भ्रष्टाचार या रिश्वत से संबंधित आप अपना या अपने माता पिता का कोई अनुभव लिखिए।
उत्तर – मेरे पिताजी ने मुझे एक बार बताया था कि वो अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय में गए हुए थे। वहाँ उनको एक चपरासी द्वारा यह बताया गया कि अगर वे तीन सौ रुपए दे देते हैं तो उन्हें किसी भी तरह का ड्राइविंग टेस्ट नहीं पास करना पड़ेगा और उन्हें एक महीने के अंदर लाइसेंस भी मिल जाएगा। मेरे पिताजी ने समय की आवश्यकता को समझते हुए उन्हें तत्काल तीन सौ रुपए दे दिए और सचमुच मेरे पिताजी को केवल एक महीने में ही उनका ड्राइविंग लाइसेंस बिना ट्राइविंग टेस्ट पास किए ही मिल गया।
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध स्लोगन लिखकर स्कूल में निश्चित स्थान पर लगाइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- ‘भ्रष्टाचार और उसका समाधान’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- ईमानदारी से संबंधित कहानियाँ पढ़िए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- इस निबंध में आए संवादों के आधार पर किसी एक प्रसंग को लघु नाटिका में रूपांतरित करके उसे स्कूल / कक्षा में मंचित कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- समय-समय पर विभिन्न पत्रिकाओं/ समाचार पत्रों आदि में भ्रष्टाचार उन्मूलन’ सम्बन्धी विषय पर कविता, निबंध, स्लोगन राइटिंग (नारे लेखन) आदि प्रतियोगिताओं में भाग लीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- स्कूल अथवा अपने इलाके में चल रहे लीगल लिटरेसी क्लब के सक्रिय सदस्य बनें तथा अपने आस-पास हो रहे भ्रष्टाचार उन्मूलन में सहयोग करें।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
हरिशंकर परसाई जी ने हिंदी साहित्य में व्यंग्य को एक विधा का दर्जा दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने व्यंग्य को हल्के-फुल्के मनोरंजन की परिधि से बाहर निकालकर समाज के और देश की ज्वलंत समस्याओं से जोड़ने का काम किया है। उन्होंने अनेक वर्षों तक स्कूल-कॉलेजों में अध्यापन कार्य के साथ-साथ लेखन कार्य भी किया। किंतु लेखन को पूर्णकालिक कार्य मानते हुए उन्होंने लेखन कार्य में नौकरी को बाधक मानकर नौकरी छोड़ दी जो कि एक साहसिक कार्य था। इसके बाद वे पूरी निष्ठा से स्वतंत्र लेखन कार्य में जुट गए और आर्थिक विपन्नता के बावजूद भी उन्होंने पुनः नौकरी नहीं की। इसके बाद वे पूरी तरह से स्वतंत्र लेखन में जुट गए। उनका व्यंग्य लेखन केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं था अपितु उन्होंने सामाजिक व राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार और शोषण पर करारा व्यंग्य किया है जो कि हिंदी साहित्य में विलक्षण स्थान रखता है।
सदाचार’ शब्द सत् + आचार दो शब्दों के मेल से बना है जिसका अर्थ है सदैव अच्छा आचरण करना। सदाचार के समांतर शब्द हैं अच्छा चाल चलन, सुशीलता, शीलाचार, शुद्ध आचरण, पारसाई, नेकचलनी सदाचार के कारण ही मानव सर्वत्र शोभा पाता है। हमें स्वामी विवेकानंद, लालबहादुर शास्त्री, कार्ल मार्क्स, मदर टेरेसा आदि महान सदाचारी विभूतियों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। हमें प्रण करना चाहिए कि हम सदा सदाचार को जीवन में अपनाकर स्वयं का, समाज का और देश का गौरव बढ़ाएँगे।
‘भ्रष्टाचार’ शब्द भ्रष्ट आचार दो शब्दों के मेल से बना है जिसका अर्थ है – बुरा आचरण भ्रष्टाचार के समांतर शब्द हैं – अनाचार, दुराचार, दुष्ट आचरण, पतित व्यवहार, पापाचार, कदाचार, बेईमानी, बदनीयती। अतः वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक एवं अनुचित होता है, भ्रष्टाचार कहलाता है और न्याय व्यवस्था के नियमों के विरुद्ध जाकर अपना उल्लू सीधा करने के लिए अनुचित आचरण करने वाला भ्रष्टाचारी कहलाता है। कमीशन बाजी, काला बाजारी, अपना कर्त्तव्य न निभाना, तस्करों का साथ देना, रिश्वत लेना आदि सब कुछ भ्रष्टाचार के ही रूप हैं।
अतः हम स्वयं जागृत होकर तथा समाज में भ्रष्टाचार के विरुद्ध चेतना जगाकर तथा सदाचार का मार्ग अपनाकर ही इस भ्रष्टाचार रूपी राक्षस का अंत कर सकते हैं।