डॉ. सुखविंदर कौर बाठ का जन्म सन् 1962 में पंजाब के गुरदासपुर जिले के शेष ‘छिछरेवाला’ में हुआ। इन्होंने अपनी शिक्षा गाँव से प्रारंभ करके हिंदी में एम. ए., एम.फिल, पीएच. डी. अमृतसर तथा डी. लिट पटियाला में रहते हुए 2003 में अवध विश्वविद्यालय से की। हिंदी के साथ-साथ इन्होंने धर्म-अध्ययन विषय में भी एम. ए. की। इनके पिता सरहद के रक्षक होने के कारण अधिकतर बाहर ही रहते थे। फलतः इनमें साहित्यिक रुचि जगाने का कार्य इनकी माता ने किया। हिंदी साहित्य में शैक्षिक योग्यता पाने के बाद इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय के पत्राचार विभाग के हिंदी सैल में प्राध्यापक का कार्य भार संभाला। पंजाब के ग्रामीण आँचल से संस्कारित होने के कारण इनका सीधा संबंध लोक भाषा, लोक-कथा, लोक गीत तथा लोक संस्कृति से है। ‘पंजाब के संस्कारगत लोक-गीतों का विश्लेषणात्मक अध्ययन’ तथा ‘पंजाबी लोकरंग’ इसी आशय से लिखी गई इनकी पुस्तकें हैं। पंजाबी संस्कृति पर गहरी पकड़ को देखते हुए हिसार से निकलने वाली एक साहित्यिक पत्रिका ‘पंजाबी संस्कृति’ के लिए इन्हें अतिथि संपादक का भी गौरव प्रदान किया गया। इनका शोध प्रबंध ‘गुरु तेग बहादुर की वाणी: संदर्भ और विश्लेषण’ नाम से प्रकाशित है। पंजाब के प्रसिद्ध कवि शिवकुमार बटालवी की रचना ‘लूणा’ का इन्होंने लिप्यंतरण भी किया।
प्रस्तुत पाठ में इन्होंने श्री गुरु नानक देव जी के जीवन चरित्र का वर्णन किया है। गुरु जी एक ऐसे अवतारी पुरुष, संत, विचारक थे, जिन्होंने मध्यकाल के कालिमापूर्ण वातावरण में पंजाब के लोगों को सच्चे ज्ञान व मार्ग का उपदेश देकर उनका उद्धार किया था। उनका समूचा जीवन ही हमारे लिए आदर्शों का स्रोत है। उनके व्यवहार में जहाँ मानवता झलकती थी, वहीं उनके उपदेशों में साक्षात् करुणशील भगवान के दर्शन होते थे। उनकी वाणी में जहाँ जीवन, समाज और अध्यात्म की विस्तृत व्याख्या मिलती है, वहीं विभिन्न रंगों के माध्यम से अद्भुत संगीत रस की मधुर ध्वनि झंकृत होती है। प्रस्तुत निबंध उनके जीवन और वाणी की अद्भुत विशेषताओं पर प्रकाश डालता है।
जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तब भारत अनेक प्रकार के कुसंस्कारों से ग्रस्त था। तत्कालीन समाज की राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशा बहुत शोचनीय थी। उस समय के राजा शोषक का रूप धारण कर चुके थे। समाज अनेक जातियों, संप्रदायों और धर्मों में विभाजित हो चुका था। धार्मिक तौर पर पाखंडों, अंधविश्वासों तथा कर्मकांडों का बोलबाला था। ऊँच-नीच और छुआछूत का जहर भारतीय लोगों की नस नस में फैल चुका था तथा राजाओं की लूटमार से जनता कराह रही थी। ऐसे समय में लोगों की पुकार सुनकर परमात्मा ने दुनिया का सुधार करने के लिए गुरु नानक देव जी को इस संसार में भेजा जिस पर भाई गुरदास जी लिखते हैं :
“सुनी पुकार दातार प्रभु,
गुरु नानक जगि माहि पठाया।”
ऐसी महान विभूति पंजाब के भक्ति आंदोलन के प्रवर्त्तक तथा पतनोन्मुखी तत्कालीन समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु नानक देव जी का जन्म जिला शेखूपुरा के तलवंडी (अब पाकिस्तान) गाँव में कार्तिक पूर्णिमा को सन् 1469 ई. में हुआ था। तलवंडी गाँव अब ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। जन्म से क्षत्रिय, प्रकृति से भ्रमणशील, कर्म से शील, चतुर्दिक् ज्ञान के भंडार, उदात्त भावनाओं के सागर, आध्यात्मिक पथ के अविचलित पथिक गुरु नानक देव महान व्यक्तित्व लेकर संसार में आए। आपके पिता का नाम मेहता कालू व माता का नाम तृप्ता था। आपकी बहन बीबी नानकी जी भी महान व्यक्तित्व वाली थी। आप बचपन से ही आध्यात्मिक विचारों के थे। आपका बचपन हरियाली से घिरी हुई तलवंडी में बीता। सात वर्ष की आयु में आपको गाँव की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया परंतु आपने आध्यात्मिक विचारों से अपने अध्यापक को प्रभावित किया। आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार आपको एक मौलवी सैयद हुसैन और एक पंडित बृजनाथ ने भी शिक्षा दी। आपने छोटी आयु में ही पंजाबी, फारसी, हिंदी, संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर लिया। परंतु ये शिक्षा आपके लिए अल्प थी। इसलिए और ज्ञान के लिए आपने अनुभवी साधुओं से मेल-मिलाप बढ़ाया, ताकि मन की पिपासा शांत हो सके। मेहता कालू ने आपको दुनियावी तौर पर जीविकोपार्जन के कार्यों में जैसे कृषि कार्य, व्यापार आदि में लगाने का यत्न किया परंतु आप इन कार्यों में प्रवृत्त न होकर साधुओं की सेवा में लीन रहे। लगभग अठारह वर्ष की आयु तक आप अनेक मतों के साधुओं की संगति में रहे। इन साधुओं की संगति से आपको भारतीय धर्म, संप्रदाय और भारतीय धर्म ग्रंथों व शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी काल में आपने भूखे साधुओं को 20 रुपए से खाना खिलाकर सच्ची सेवा व सच्चा सौदा किया। इसी समय में भाई मरदाना (रबाबी) से आपका स्नेह पैदा हुआ जो सदा आपके साथ रहा। आपके पिता जी ने आपकी दुनियावी विरक्ति देखते हुए आपको सांसारिकता में बाँधने के लिए आपकी शादी माता सुलखनी से कर दी। आपके दो संतानें हुईं। एक का नाम लखमीचंद व दूसरे का श्री चंद रखा गया। आपने कुछ समय तक सुलतानपुर में शाही मोदी खाने में नौकरी भी की।
उस समय सुलतानपुर, सूबे की राजधानी होने के कारण धार्मिक व सांस्कृतिक सरगर्मियों का केंद्र था। यहाँ रहकर आपको हुकूमत की ज्यादती तथा तत्कालीन समाज के धार्मिक आडंबरों, कर्मकांडों, अन्ध-विश्वासों आदि की गहरी जानकारी प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त आपने भिन्न-भिन्न आध्यात्मिक अवस्थाओं से गिरे हुए बनावटी जीवन को नजदीक से देखा। इन सब चीजों को देखकर आप बहुत विचलित हुए। एक सुबह (1499 ई.) आप वेंई नदी में स्नान करने गए। इस घटना को इतिहास में ‘वेंई प्रवेश’ के नाम से जाना जाता है। वहाँ आप तीन दिन अलोप रहे। इस समय आपको निरंकार परमात्मा से संसार का कल्याण करने के लिए चारों दिशाओं की यात्रा करने का संदेश प्राप्त हुआ। तीन दिन बाद प्रकट होकर आपने यह वाक्य बोला, ‘न कोई हिंदू न मुसलमान’। इसके साथ ही आप संसार के उद्धार के लिए यात्राओं पर चल पड़े। भाई गुरदास जी आपके इस फैसले के लिए इस प्रकार लिखते हैं-
‘चढ़िया सोधन धरत लुकाई’
आपने 1499 ई. से लेकर 1522 ई. के समय में पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण दिशाओं में चार उदासियाँ (यात्राएँ) कीं। इन यात्राओं में आपने क्रमशः आसाम, मक्का मदीना, लंका, तथा ताशकन्द तक की यात्राएँ कीं। इसी समय के दौरान ही आपने करतारपुर नगर बसाया। यात्राओं के दौरान ही आपने कई स्थानों पर उचित उपदेश द्वारा भटके हुए जनमानस को सुरुचिपूर्ण मार्ग दर्शाया। कश्मीर विद्वानों का गढ़ था। आपने वहाँ के पंडितों से विचार-विमर्श किया। हिमालय पर योगियों के केंद्र थे। आपने उनको सही धर्म सिखाया तथा योगी सिद्धों को जन सेवा का उपदेश दिया। हिन्दुस्तान में घूमते समय आपका अनेक पीरों-फकीरों, सूफी संतों के साथ भी तर्क-वितर्क हुआ। मौलवी व मुसलमानों को आपने सही रास्ता दिखाया। इस्लामी देशों में यात्राओं द्वारा आपने ‘सांझे’ धर्म की शिक्षा दी। लगभग बाईस वर्ष आप घूम फिर कर धर्म का प्रचार करते रहे। आपने अपने जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर में गृहस्थ जीवन में रहते हुए खेतीबाड़ी करने के साथ-साथ धार्मिक उपदेश देते हुए व्यतीत किये।
गुरु नानक देव जी ने बहुत सहज व सरल भाषा में लोगों को प्रभावित किया। अपनी सहजता से ही उन्होंने कुतर्कों को काटा। यह बहुत टेढ़ा कार्य था। सहज धर्म की व्याख्या उन्होंने सहजता से ही की। कहीं भी पांडित्य का प्रदर्शन नहीं किया-
“सब महि जोति जोति है सोइ।
तिस दै चानणि सब महि चानण होइ।”
ऐसी ही मीठी भाषा से उन्होंने सबको प्रभावित किया।
गुरु नानक देव जी ने तत्कालीन धार्मिक आडंबरों तथा संकीर्णताओं को दूर करने के लिए लोगों के सामने वास्तविक सत्य को प्रस्तुत कर दिया, जिससे संकीर्ण विचार और आडंबर अपने आप ही ढीले पड़ गए।
गुरु जी के जीवन से संबंधित बहुत सी करामातों का वर्णन भी मिलता है जैसे मक्का मदीना में मक्का को घुमा देना, वली कंधारी का अहंकार तोड़ना, गिरते हुए पहाड़ को हाथ का पंजा लगाकर गिरने से रोक देना, कड़वे रीठे मीठे कर देना आदि।
गुरु नानक देव जी एक महान कवि तथा संगीताचार्य भी थे। आपकी वाणी सिक्खों के धार्मिक ग्रंथ ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलित है।’ श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में 974 पद और श्लोक गुरु नानक देव जी द्वारा रचित हैं। इनमें विभिन्न विषयों की चर्चा है। मुख्यतः गुरु जी द्वारा सृष्टि, जीव और ब्रह्म के संबंध, अकाल पुरुष का रूप और स्थान, माया का बंधन काटने की प्रेरणा, निर्विकार एवं शुद्ध मन से प्रभु का नाम जपने का प्रोत्साहन आदि विषय लिए गए हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मुख्य 31 राग हैं और उनमें उन्नीस का प्रयोग गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में किया है। गुरु नानक देव जी के प्रातः कालीन प्रार्थना के लिए ‘जपुजी’ की रचना की, जो आज सिक्ख सिद्धांतों का सार कही जा सकती है। इसके अतिरिक्त आपकी अन्य रचनाओं में आसा की वार, सिद्ध गोसटि, पट्टी, दक्खनी ऊँकार, पहरे-तिथि, बारह माह, सुचज्जी-कुचज्जी, आरती आदि प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी की अन्य वाणी श्लोक, पद, अष्टपदियाँ, सोहले, छंद आदि के रूप में हैं।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में प्रत्येक कवि की अपनी अलग शैली है, परंतु गुरु नानक देव जी की वाणी शैली पक्ष से बिल्कुल अद्भुत विशेषताएँ लिए हुए हैं। गुरु नानक देव जी के प्रत्येक वाक्य के पीछे उनका संपूर्ण व्यक्तित्व झलकता है, जो उनकी शैली को बिल्कुल अनूठी बना देता है। अपने समय के कर्मकांडों, बहुदेवोपासना को देखते हुए आपने एक परमेश्वर की पूजा करने का उपदेश दिया।
अंत में कहा जा सकता है कि विश्व को एक नवीन दृष्टिकोण, जो सांसारिक संकीर्णताओं और पारस्परिक ईर्ष्या, द्वेष और नफरत से अछूता था, देने के कारण गुरु नानक देव जी विश्व विख्यात सुधारक कहलाए। गुरु नानक देव जी का प्रेम, समानता, सरलता आदि का उपदेश ही उस एक बड़े धर्म का बीज बना जो आगे चलकर सिक्ख धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन् 1539 में आप ज्योति – ज्योत समा गए।
कुसंस्कार – बुरी आदत
शोचनीय – चिंताजनक
शोषण – शोषण करने वाला, बेगार लेने वाला
छुआछूत – अस्पृश्यता
नस-नस – प्रत्येक हिस्से में
पतनोन्मुखी – विनाश, पतन, गिरावट की ओर
चतुर्दिक – चारों ओर
उदात्त भावना – उच्च भावना
अविचलित – अटल
जीविकोपार्जन – जीवन व्यापन हेतु किया जाने वाला व्यवसाय
प्रवृत्त – लगना
विचलित – डाँवाडोल
उद्धार – कल्याण,
सुरुचिपूर्ण – मनभावना (मन को अच्छा लगने वाला) उचित सद्मार्ग
सांझा धर्म – मानव धर्म
कुतर्क – नीचा दिखाने के लिए की गई अतार्किक बात
सहज धर्म – सरल, आडम्बर, विधि निषेधों से रहित (मुक्त) धर्म
पांडित्य – विद्वता, ज्ञानी
संकीर्ण – छोटी सोच
शैली – बात कहने का ढंग, तरीका, पद्धति-विशेष।
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
1.गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर – गुरु नानक देव जी का जन्म जिला शेखूपुरा के तलवंडी गाँव में कार्तिक पूर्णिमा को सन् 1469 ई. में हुआ था। अब यह पाकिस्तान में हैं।
2.गुरु नानक देव जी के माता और पिता का क्या नाम था?
उत्तर – गुरु नानक देव जी के माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम मेहता कालू था।
3.गुरु नानक देव जी ने छोटी आयु में ही कौन-कौन सी भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर लिया था?
उत्तर – गुरु नानक देव जी ने छोटी आयु में ही पंजाबी, हिंदी, फारसी और संस्कृत भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर लिया था।
4.गुरु नानक देव जी को किस व्यक्ति ने दुनियावी तौर पर जीविकोपार्जन संबंधी कार्यों में लगाने का प्रयास किया था?
उत्तर – गुरु नानक देव जी को उनके पिता मेहता कालू ने दुनियावी तौर पर जीविकोपार्जन संबंधी कार्यों में लगाने का प्रयास किया था।
5.गुरु नानक देव जी को दुनियादारी में बाँधने के लिए इनके पिता जी ने क्या किया?
उत्तर – गुरु नानक देव जी को दुनियादारी में बाँधने के लिए इनके पिता जी ने उनका विवाह देवी सुलखनी से करा दी।
6.गुरु नानक देव जी के दो बेटे थे जिनके नाम संतानें थीं और उनके नाम क्या थे?
उत्तर – गुरु नानक देव जी के दो बेटे थे, जिसमें पहले पुत्र का नाम लखमीचंद व दूसरे का श्री चंद था।
7.इस्लामी देशों की यात्रा के दौरान आपने किस धर्म की शिक्षा दी?
उत्तर – इस्लामी देशों की यात्रा के दौरान गुरु नानक देव जी ने ‘सांझे’ धर्म की शिक्षा दी।
8.श्री गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी के कुल कितने पद और श्लोक हैं?
उत्तर – श्री गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी के कुल 974 पद और श्लोक संगृहीत हैं।
9.श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मुख्य कितने राग हैं?
उत्तर – श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मुख्य 31 राग हैं।
10.गुरु नानक देव जी के जीवन के अंतिम वर्ष कहाँ बीते?
उत्तर – गुरु नानक देव जी के जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर में गृहस्थ जीवन में रहते हुए बीते थे।
11.गुरु नानक देव जी के जन्म के संबंध में भाई गुरदास जी ने कौन-सी तुक लिखी?
उत्तर – गुरु नानक देव जी के जन्म के संबंध में भाई गुरदास जी ने यह तुक लिखी थी-
“सुनी पुकार दातार प्रभु,
गुरु नानक जगि माहि पठाया।”
12.गुरु नानक देव जी पढ़ने के लिए किन-किन के पास गए?
उत्तर – गुरु नानक देव जी पढ़ाई करने के लिए सात वर्ष की आयु में गाँव की पाठशाला में गए, तत्पश्चात् आपको एक मौलवी सैयद हुसैन और एक पंडित बृजनाथ ने भी शिक्षा दी।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए :-
1.साधुओं की संगति में रहकर गुरु नानक देव जी ने कौन-कौन से ज्ञान प्राप्त किए?
उत्तर – गुरु नानक देव जी लगभग अठारह वर्ष की आयु तक अनेक मतों के साधुओं की संगति में रहे। इन साधुओं की संगति से इन्हें भारतीय धर्म, संप्रदाय और भारतीय धर्म ग्रंथों व शास्त्रों का अतुलित ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी काल में इन्होंने भूखे साधुओं को 20 रुपए से खाना खिलाकर सच्ची सेवा व सच्चा सौदा किया।
2.गुरु नानक देव जी ने यात्राओं के दौरान कौन-कौन से महत्त्वपूर्ण शहरों की यात्रा की?
उत्तर – गुरु नानक देव जी ने 1499 ई. से लेकर 1522 ई. के समय में पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण दिशाओं की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं में इन्होंने क्रमशः आसाम, मक्का मदीना, श्रीलंका, तथा ताशकंद तक की यात्राएँ कीं। इसी समय के दौरान ही इन्होंने करतारपुर नगर बसाया।
3.गुरु नानक देव जी ने तत्कालीन भारतीय जनता को किन बुराइयों से स्वतन्त्र कराने का प्रयास किया?
उत्तर – गुरु नानक देव जी ने तत्कालीन भारतीय जनता को समाज में व्याप्त धार्मिक आडंबरों, कर्मकांडों, अंध-विश्वासों, भिन्न-भिन्न आध्यात्मिक अवस्थाओं से गिरे हुए बनावटी जीवन आदि बुराइयों से स्वतंत्र कराने का प्रयास किया। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा पर भी बल दिया।
4.गुरु नानक देव जी की रचनाओं के नाम लिखें।
उत्तर – गुरु नानक देव जी की अनेक रचनाएँ हैं जिनमें से महत्त्वपूर्ण हैं – जपुजी साहिब, आसा की वार, सिद्ध गोसटि, पट्टी, दक्खनी ऊँकार, पहरे-तिथि, बारह माह, सुचज्जी-कुचज्जी, आरती। इनके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी की अन्य वाणी श्लोक, पद, अष्टपदियाँ, सोहले, छंद आदि के रूप में हैं।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-
1.जिस समय गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उस समय भारतीय समाज की क्या स्थिति थी?
उत्तर – जिस समय गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उस समय भारतीय समाज अनेक प्रकार के कुसंस्कारों से ग्रस्त था। तत्कालीन समाज की राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशा बहुत शोचनीय थी। उस समय के राजा-महाराजा शोषक का रूप धारण कर चुके थे जिससे जनता कराह रही थी। समाज अनेक जातियों, संप्रदायों और धर्मों में विभाजित हो चुका था। धार्मिक तौर पर पाखंडों, अंधविश्वासों तथा कर्मकांडों का बोलबाला था। ऊँच-नीच और छुआछूत का जहर भारतीय लोगों की नस नस में फैल चुका था।
2.गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं के दौरान कहाँ-कहाँ और किन-किन लोगों को क्या उपदेश दिए?
उत्तर – गुरु नानक देव जी ने 1499 ई. से लेकर 1522 ई. के समय में पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण दिशाओं की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं में इन्होंने क्रमशः आसाम, मक्का मदीना, लंका, तथा ताशकंद तक की यात्राएँ कीं और करतारपुर नगर बसाया। यात्राओं के दौरान ही इन्होंने कई स्थानों पर उचित उपदेश द्वारा भटके हुए जनमानस को सुरुचिपूर्ण मार्ग दर्शाया। कश्मीर के विद्वानों और पंडितों से विचार-विमर्श किया। हिमालय के योगियों को जन सेवा का उपदेश दिया। अनेक पीरों-फकीरों, सूफी संतों के कुतर्कों को अपनी सहजता से काटा। मौलवी व मुसलमानों को आपने सही रास्ता दिखाया। इस्लामी देशों में ‘सांझे’ धर्म की शिक्षा दी।
3.गुरु नानक देव जी की वाणी की विशेषता अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – गुरु नानक देव जी एक महान कवि तथा संगीताचार्य थे। इनकी वाणी सिक्खों के धार्मिक ग्रंथ ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलित है जिसमें 974 पद और श्लोक हैं। इनमें मुख्यतः गुरु जी द्वारा सृष्टि, जीव और ब्रह्म के संबंध, अकाल पुरुष का रूप और स्थान, माया का बंधन काटने की प्रेरणा, निर्विकार एवं शुद्ध मन से प्रभु का नाम जपने का प्रोत्साहन आदि विषय हैं। इन्होंने अपने रागमयी वाणी से न केवल मानव समुदाय को सच्चे जीवन का मार्ग बताया बल्कि एकेश्वरवाद के मत को भी प्रचलित किया। सचमुच इनकी वाणी अद्भुत और अनूठी है।
I.निम्नलिखित की संधि-विच्छेद कीजिए :
परमात्मा = परम+आत्मा
जीविकोपार्जन = जीविका+उपार्जन
देवोपासना = देव+उपासना
पतनोन्मुखी = पतन+उन्मुखी
संगीताचार्य = संगीत+आचार्य
परमेश्वर = परम+ईश्वर
II.निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाइए :-
शब्द विशेषण
समाज सामाजिक
अर्थ आर्थिक
राजनीति राजनैतिक
संप्रदाय सांप्रदायिक
अध्यात्म आध्यात्मिक
धर्म धार्मिक
परस्पर पारस्परिक
पंडित पंडित, पंडिताऊ
भारत भारतीय
पंजाब पंजाबी
III. निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए :-
महान महानता
सहज सहजता
सरल सरलता
हरा हरियाली
शांत शांति
समान समानता
गुरु नानक देव जी आपके लिए किस तरह प्रेरणा स्रोत हैं। अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – मेरे लिए गुरु नानक देव जी अनेक तरह से प्रेरणा स्रोत हैं, जैसे – उनका यह सिद्धांत कि एक ईश्वर की पूजा करें, सभी धर्मों को समान रूप से देखें, ज्ञान की पिपासा शांत करना, मानवता को सबसे बड़ा धर्म मानना और ऐसे ही उनके अनेक गुणों के कारण ही वे मेरे लिए पूजनीय और श्रद्धेय हैं।
1. सिक्ख धर्म के सभी गुरुओं के जीवन चरित की जानकारी जुटाइए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इसे करें।
2.हिंदू, सिक्ख, मुस्लिम, ईसाई, जैन और बौद्ध आदि धर्मों के चिह्न बनाइए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इसे करें।
3.विभिन्न धार्मिक स्थानों जैसे स्वर्ण मन्दिर, आनंदपुर साहिब, हरिद्वार, मथुरा, मक्का मदीना आदि की जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इसे करें।
4.श्री गुरु नानक देव जी की यात्राओं से संबंधित स्थानों को विश्व मानचित्र पर दर्शाइए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इसे करें।
5.सिक्ख धर्म के पाँच चिह्नों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – सिक्ख धर्म के पाँच चिह्न हैं, कृपाण, केश, कंघा, कच्छा और कड़ा। इन सबके शुरुआती अक्षर ‘क’ वर्ण है।
ननकाना साहिब – ननकाना साहिब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित एक शहर है। इसका वर्तमान नाम सिक्खों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा है। इसका पुराना नाम ‘राय-भोई दी तलवंडी’ था। यह सिक्खों का पवित्र ऐतिहासिक स्थान है। यह विश्व भर के सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है।
सुल्तानपुर लोधी – सुल्तानपुर लोधी पंजाब के कपूरथला जिले में एक पुराना शहर है। गुरु नानक देव यात्रा पर जाने से पहले सुल्तानपुर लोधी रहते थे। इस शहर में उनकी बहन बीबी नानकी और उनके पति भाई जय राम रहते थे।
मक्का – मक्का इस्लाम का पवित्रतम शहर है जो हज तीर्थ यात्रा के लिए प्रसिद्ध है। हर साल करीब 3 लाख हज यात्री मक्का आते है। 7वीं शताब्दी में इस्लामी पैगंबर मोहम्मद ने शहर में इस्लाम की घोषणा की थी। 966 से लेकर 1924 तक मक्का शहर का नेतृत्व स्थानीय शरीफ द्वारा किया जाता था। 1924 में यह सउदी अरब के शासन के अधीन आ गया। आधुनिक मक्का शहर सउदी अरब के मक्काह प्रांत की राजधानी है।
मदीना या अल-मदीना – जिसे सम्मानपूर्वक ‘अल-मदीना अल- मुनवरा’ (अर्थ: चमकदार मदीना) बुलाया जाता है। सउदी अरब के पश्चिमी हिजाज क्षेत्र में स्थित एक शहर है जो मदीना प्रांत की राजधानी भी हैं। यह इस्लाम में पवित्रतम दुसरा शहर है और इस्लामी पैगंबर मोहम्मद की दफन गाह है और यह उनके हिज रह (विस्थापित होने) के बाद उनके घर आने के कारण ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
श्रीलंका – श्रीलंका दक्षिण एशिया में हिंद महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र 31 किलोमीटर है। 1972 तक इसका नाम सीलोन था, जिसे 1972 में बदल कर लंका तथा 1978 में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द ‘श्री’ जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्री लंका का सबसे बड़ा नगर कोलंबो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह है।
ताशकंद – ताशकंद उजवेकिस्तान की राजधानी है यह ताशकेंत प्रांत की राजधानी भी है।
गुरु ग्रंथ साहिब – आदि ग्रंथ सिक्ख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ है इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ भी कहते हैं। इसका संपादन सिक्ख धर्म के पाँचवे गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने किया। गुरु ग्रंथ साहिब जी का पहला प्रकाश 16 अगस्त 1604 को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ। 1705 में दमदमा साहिब में दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु तेग बहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इसको पूर्ण किया गया। इसमें कुल 1430 पृष्ठ हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में मात्र सिक्ख गुरुओं के उपदेश नहीं है वरन् 30 अन्य हिंदू और मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित हैं।
जपुजी साहिब – आदि गुरु श्री गुरु ग्रंथ साहिब की मूल वाणी ‘जपुजी’ जगतगुरु श्री गुरु नानक देव जी द्वारा जनकल्याण हेतु उच्चरित की गई अमृतवाणी है। इसमें ब्रह्मज्ञान का अलौकिक ज्ञान प्रकाश है।