(सन् 1926-1997)
डॉ. धर्मवीर आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और विचारक थे। उनका जन्म 25 दिसम्बर 1926 ई. में इलाहाबाद में हुआ था। वहीं से उन्होंने एम. ए. तथा पीएच. डी. की उपाधियाँ प्राप्त की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी प्राध्यापक रहे। वे साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ के प्रधान संपादक भी रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने सन् 1972 में उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया था। 04 सितम्बर, 1997 को इनका देहावसान हो गया।
रचनाएँ – भारती जी बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे। उन्होंने गद्य एवं पद्य दोनों क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उनकी रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार है-
कहानी संग्रह – मुर्दों का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग, बंद गली का आखिरी मकान, साँस की कलम से।
काव्य रचनाएँ – ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष, कनुप्रिया, सपना अभी भी।
उपन्यास – गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश, प्रारंभ व समापन।
निबंध-संग्रह – कहनी-अनकहनी, ठेले पर हिमालय, पश्यंती।
काव्य-नाटक – अंधायुग
आलोचना – प्रगतिवाद एक समीक्षा, मानव मूल्य और साहित्य।
विशेषताएँ – भारती जी के काव्य में दार्शनिक तत्त्व की प्रधानता है। निबंधों एवं कथा – साहित्य में उन्होंने सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सफल चित्रण किया है।
भाषा – भारती जी की भाषा प्रायः सरल है। उनके साहित्यिक निबंधों की भाषा का स्तर ऊँचा उठ गया है। अपने वर्णनात्मक निबंधों में उन्होंने सरल तत्सम शब्दों तथा छोटे-छोटे वाक्यों को प्राथमिकता दी है।
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखक हमें पर्वत सम्राट, हिम सम्राट हिमालय के करीब ले जाता है, जहाँ बादल नीचे उतर रहे थे और एक-एक कर नए शिखरों की हिम रेखाएँ अनावृत हो रही थी। लेखक द्वारा हिम दर्शन का वर्णन बहुत ही चित्रात्मक एवं आलंकारिक बन पड़ा है। लेखक ने प्राकृतिक सौंदर्य के एक अद्भुत रूप की ओर हमारा ध्यान खींचते हुए पर्वतीय स्थानों के प्रति आकर्षण जगाने का भी सफल प्रयास किया है।
ठेले पर हिमालय! खासा दिलचस्प शीर्षक है न! और यकीन कीजिए, इसे बिलकुल ढूँढ़ना नहीं पड़ा। बैठे बिठाए मिल गया। अभी कल की बात है, मैं एक पान की दुकान पर अपने अल्मोड़ावासी मित्र के साथ खड़ा था कि तभी ठेले पर बरफ की सिलें लादे हुए बरफ वाला आया। ठंडी, चिकनी, चमकती बरफ से भाप उड़ रही थी। वे क्षणभर उस बरफ़ को देखते रहे, उठती हुई भाप में खोए रहे और खोए-खोए से ही बोले, “यही बरफ तो हिमालय की शोभा है।” और तत्काल शीर्षक मेरे मन में कौंध गया – ठेले पर हिमालय |
सच तो यह है कि सिर्फ बरफ को बहुत निकट से देख पाने के लिए ही हम लोग कौसानी गए थे। नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी। कोसी से एक सड़क अल्मोड़ा चली जाती है, दूसरी कौसानी।
कितना कष्टप्रद, कितना सूखा और कितना कुरूप है वह रास्ता! पानी का कहीं नाम निशान नहीं, सूखे भूरे पहाड़, हरियाली का नाम नहीं। ढालों को काटकर बनाए हुए टेढ़े-मेढ़े रास्ते। कोसी पहुँचे तो सभी के चेहरे पीले पड़ चुके थे।
कोसी से बस चली तो रास्ते का सारा दृश्य बदल गया। सुडौल पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी, किनारे के छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत। कितनी सुंदर है सोमेश्वर की घाटी! हरी-भरी! एक के बाद एक बस स्टैंड पड़ते थे, छोटे-छोटे पहाड़ी डाकखाने, चाय की दुकाने और कभी-कभी कोसी या उसमें गिरने वाले नदी-नालों पर बने हुए पुल। कहीं-कहीं सड़क निर्जन चीड़ के जंगलों से गुजरती थी।
सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में जो ऊँची पर्वतमाला है, उस पर, बिलकुल शिखर पर, कौसानी बसा हुआ है। कौसानी से दूसरी ओर फिर ढाल शुरू हो जाती हैं। कौसानी के अड्डे पर जाकर बस रुकी। छोटा-सा, बिल्कुल उजड़ा-सा गाँव और बरफ़ का तो कहीं नाम-निशान नहीं। ऐसा लगा जैसे हम ठगे गए। बस से उतरते समय मैं बहुत खिन्न था।
बस से उतरा ही था कि जहाँ का तहाँ पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया। कितना अपार सौंदर्य बिखरा था सामने के घाटी में। पर्वतमाला ने अपने अंचल में यह जो कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी छिपा रखी है, इसमें किन्नर और यक्ष ही तो बास करते होंगे। पचासों मील चौड़ी यह घाटी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत, सुंदर गेरू की शिलाएँ काटकर बने हुए लाल-लाल रास्ते, जिनके किनारे सफेद-सफेद पत्थरों की कतार और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जाने वाली बेलों की लड़ियों-सी नदियाँ। मन में बेसाख्ता यही आया कि इन बेलों की लड़ियों को उठाकर कलाई में लपेट लूँ। आँखों से लगा लूँ।
अकस्मात् हम एक दूसरे ही लोक में चले आए थे। इतना सुकुमार, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और निष्कलंक कि लगा इस धरती पर तो जूते उतारकर, पाँव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए।
धीरे-धीरे मेरी निगाह ने इस घाटी को पार किया और जहाँ ये हरे खेत, नदियाँ और वन, क्षितिज के धुंधलेपन में, नीले कोहरे में घुल जाते थे, वहाँ पर कुछ छोटे पर्वतों का आभास अनुभव किया। इसके बाद बादल थे और फिर कुछ नहीं। कुछ देर उन बादलों में निगाह भटकती रही कि अकस्मात् फिर एक हलका-सा विस्मय का धक्का मन को लगा।
इन धीरे-धीरे खिसकते हुए बादलों में यह कौन चीज है जो अटल है। यह छोटा-सा बादल के टुकड़े सा, और कैसा अजब रंग है इसका न सफ़ेद, न रुपहला, न हलका नीला… पर तीनों का आभास देता हुआ। यह है क्या? बरफ़ तो नहीं है। हाँ जी! बरफ नहीं है तो क्या है? और बिजली-सा यह विचार मन में कौंधा कि इसी घाटी के पार वह नगाधिराज, पर्वत सम्राट हिमालय है। इन बादलों ने उसे ढाँप रखा है, वैसे वह जो सामने है, इसका एक कोई छोटा-सा बाल स्वभाव वाला शिखर बादलों की खिड़की से झाँक रहा है। मैं हर्षातिरेक से चीख उठा, “बरफ़! वह देखो!
शुक्ल जी, सेन और अन्य सभी ने देखा, पर अचानक वह फिर लुप्त हो गया। लगा, उसे झील-शिखर जान किसी ने अंदर खींच लिया। खिड़की से झाँक रहा है, कहीं गिर न पड़े।
पर उस एक क्षण के हिम-दर्शन ने हममें जाने क्या भर दिया था। सारी खिन्नता, निराशा और थकावट, सब छूमंतर हो गई। हम सब व्याकुल हो उठे। अभी ये बादल छँट जाएँगे और फिर हिमालय हमारे सामने खड़ा होगा निरावृत। असीम सौंदर्यराशि हमारे सामने अभी-अभी अपना घूँघट धीरे से खिसका देगी और… और तब….? और तब…? सचमुच मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था।
डाक बंगले के खानसामे ने बताया कि आप लोग खुशकिस्मत हैं साहब! आपसे पहले 14 टूरिस्ट आए थे। हफ्ते भर पड़े रहे, बरफ नहीं दिखी। आज तो आपके आते ही आसार खुलने के हो रहे हैं।
सामान रख दिया गया। पर सभी बिना चाय पिए सामने के बरामदे में बैठे रहे और अपलक सामने देखते रहे। बादल धीरे-धीरे नीचे उतर रहे थे और एक-एक कर नए-नए शिखरों की हिम रेखाएँ अनावृत हो रही थीं।
और फिर सब खुल गया। बाईं ओर से शुरू होकर दाईं और गहरे शून्य में धँसती जाती हुई ‘हिम शिखरों की ऊबड़-खाबड़, रहस्यमयी, रोमांचक शृंखला। हमारे मन में उस समय क्या भावनाएँ उठ रही थीं, अगर बता पाता तो यह खरोंच, यह पीर ही क्यों रह गई होती? सिर्फ एक धुँधला-सा संवेदन इसका अवश्य था कि जैसे बरफ की सिल के सामने खड़े होने पर मुँह पर ठंडी-ठंडी भाप लगती है, वैसे ही हिमालय की शीतलता माथे को छू रही है।
सूरज डूबने लगा और धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघला केसर बहने लगा। बरफ कमल के लाल फूलों में बदलने लगी। घाटियाँ गहरी पीली हो गई। अँधेरा होने लगा तो हम उठे। मुँह-हाथ धोने और चाय पीने लगे। पर सब चुपचाप थे, गुमसुम, जैसे सबका कुछ छिन गया हो, या शायद सबको कुछ ऐसा मिल गया हो जिसे अंदर ही अंदर सहेजने में सब आत्मलीन हों या अपने में डूब गए हों।
दूसरे दिन घाटी में उतरकर मीलों चलकर हम बैजनाथ पहुँचे, जहाँ गोमती बहती है। गोमती की उज्ज्वल जलराशि में हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों की छाया तैर रही थी। पता नहीं, उन शिखरों पर कब पहुँचूँ, इसीलिए उस जल में तैरते हुए हिमालय से जी भर कर भेंटा, उसमें डूबा रहा।
आज भी उसकी याद आती है तो मन पिरा उठता है। कल ठेले पर बरफ़ को देखकर अल्मोड़े के मेरे मित्र जिस तरह स्मृतियों में डूब गए, उस दर्द को समझता हूँ। इसीलिए जब ठेले पर हिमालय की बात कह कर हँसता हूँ तो वह उस दर्द को भुलाने का ही बहाना है। वे बरफ की ऊँचाइयाँ बार-बार बुलाती हैं, और हम हैं कि चौराहों पर खड़े, ठेले पर लदकर निकलने वाली बरफ़ को ही देखकर मन बहला लेते हैं।
शीर्षक – वह शब्द जो विषय का परिचय कराने के लिए लेख के ऊपर उसके नाम के रूप में रहता है (हैडिंग)
यकीन – विश्वास
तत्काल – तुरंत
कौंधना – चमकना
कष्टप्रद – दुख देने वाला
सुडौल – सुंदर बनावट वाला
निर्जन – जहाँ कोई न हो, एकांत,
ढाल – उतार
खिन्न – दुखी, उदासीन,
स्तब्ध – जो जड़ हो गया हो
अंचल – देश या प्रांत का एक भाग
गेरु – एक तरह की लाल मिट्टी
कतार – पंक्ति
बेसाख्ता – हार्दिकता से
निष्कलंक – बेदाग,
क्षितिज – वह स्थान यहाँ धरती और आकाश मिलते दिखाई देते हैं।
विस्मय – आश्चर्य
हर्षातिरेक – अत्यधिक प्रसन्नता
लुप्त – छिपा हुआ, गायब
निरावृत – बिना ढका हुआ
आसार – लक्षण, चिह्न
अपलक – लगातार, एकटक
अनावृत – खुला हुआ
रोमांचक – आश्चर्यजनक
शृंखला – वस्तुओं की क्रमानुसार माला
संवेदन – अनुभूति
पिराना – पीड़ा होना, दुख अनुभव करना।
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(1) लेखक कौसानी क्यों गए थे?
उत्तर – लेखक हिमालय की बर्फ की सुंदरता को बहुत नजदीक से देखने के लिए कौसानी गए थे।
(2) बस पर सवार लेखक ने साथ-साथ बहने वाली किस नदी का जिक्र किया है?
उत्तर – बस पर सवार लेखक ने साथ-साथ बहने वाली कोसी नदी का जिक्र किया है।
(3) कौसानी कहाँ बसा हुआ है?
उत्तर – सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में जो ऊँची पर्वतमाला है, उसके शिखर पर, कौसानी बसा हुआ है।
(4) लेखक और उनके मित्रों की निराशा और थकावट किसके दर्शन से छूमंतर हो गयी?
उत्तर – लेखक और उनके मित्रों की निराशा और थकावट हिम-दर्शन से छूमंतर हो गई।
(5) लेखक और उनके मित्र कहाँ ठहरे थे?
उत्तर – लेखक और उनके मित्र डाक-बंगले में ठहरे थे।
(6) दूसरे दिन घाटी से उतर कर लेखक और उनके मित्र कहाँ पहुँचे?
उत्तर – दूसरे दिन घाटी से उतरकर लेखक और उनके मित्र बैजनाथ पहुँचे।
(7) बैजनाथ में कौन सी नदी बहती है?
उत्तर – बैजनाथ में गोमती नदी बहती है।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए :-
(1) लेखक को ऐसा क्यों लगा जैसे वे ठगे गए हैं?
उत्तर – लेखक जब घंटों की बस यात्रा करके कौसानी के बस अड्डे पर पहुँचे जो छोटा-सा, बिल्कुल उजड़ा-सा गाँव था और वहाँ बरफ़ का तो कहीं नाम-निशान नहीं था। इसलिए उन्हें ऐसा लगा जैसे हम ठगे गए हैं।
(2) सबसे पहले बर्फ दिखाई देने का वर्णन लेखक ने कैसे किया है?
उत्तर – सबसे पहले जब लेखक को बर्फ दिखाई पड़ा तो उन्हें वह छोटा-सा बादल के टुकड़े-सा लगा। उन्हें बर्फ का रंग भी अजीब लगा क्योंकि यह न सफ़ेद था, न रुपहला था, न हलका नीला था पर तीनों का आभास दे रहा था। इसी घाटी के पार वह नगाधिराज, पर्वत सम्राट हिमालय है। इन बादलों ने उसे ढाँक रखा है, वैसे वह जो सामने है, इसका एक कोई छोटा-सा बाल स्वभाव वाला शिखर बादलों की खिड़की से झाँक रहा है।
(3) खानसामे ने सब को खुशकिस्मत क्यों कहा?
उत्तर – डाक बंगले के खानसामे ने लेखक और उनके मित्रों को बताया कि आप लोग खुशकिस्मत हैं क्योंकि आपसे पहले 14 टूरिस्ट आए थे। हफ्ते भर पड़े रहे, बर्फ नहीं दिखी। आज तो आपके आते ही बर्फ दिखने लगी।
(4) सूरज के डूबने पर सब गुमसुम क्यों हो गए थे?
उत्तर – सूरज के डूबने पर सब गुमसुम हो गए थे क्योंकि अँधेरे में इस सुंदर दृश्य का लुत्फ नहीं उठाया जा सकता। वे तो इतनी लंबी यात्रा करके केवल इस दुर्लभ दृश्य को ही देखने गए थे परंतु सूर्यास्त के कारण वो धूमिल हो गई थी और जितना उन्होंने देखा था उतना ही उन्हें अपने मन में सँजोना था।
(5) लेखक ने बैजनाथ पहुँच कर हिमालय से किस रूप में भेंट की?
उत्तर – लेखक अपने मित्रों सहित मीलों चलकर बैजनाथ पहुँचे, जहाँ गोमती बहती है। गोमती की उज्ज्वल जलराशि में हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों की छाया तैर रही थी। लेखक को पता नहीं था कि वे कब वहाँ पहुँचेंगे इसीलिए उस जल में तैरते हुए हिमालय को जी भर कर निहारते रहे उसमें डूबे रहे।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-
(1) कोसी से कौसानी तक में लेखक को किन-किन दृश्यों ने आकर्षित किया?
उत्तर – कोसी से कौसानी तक की यात्रा में लेखक को अनेक प्राकृतिक दृश्य दिखाई दिए थे। इन दृश्यों ने लेखक को मोह लिया था। सुडौल पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी, किनारे के छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे-भरे खेत। अति सुंदर सोमेश्वर की हरी-भरी घाटी। निर्जन चीड़ के जंगल, पचासों मील चौड़ी यह घाटी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत, सुंदर गेरू की शिलाएँ काटकर बने हुए लाल-लाल रास्ते, जिनके किनारे सफेद-सफेद पत्थरों की कतार और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जाने वाली बेलों की लड़ियों-सी नदियाँ। पर्वतराज हिमालय पर छाए बादलों के दल प्राकृतिक शोभा को और भी अतिरंजित कर रहे थे।
(2) लेखक को ऐसा क्यों लगा कि वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए हैं?
उत्तर – लेखक को ऐसा लगा कि वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए हैं क्योंकि पचासों मील चौड़ी घाटी में फैले हुए खेत हरे मखमली कालीनों जैसे प्रतीत हो रहे थे। सुंदर गेरू की शिलाएँ काटकर बने हुए लाल-लाल रास्ते, जिनके किनारे सफेद-सफेद पत्थरों की कतार और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जाने वाली बेलों की लड़ियों-सी नदियाँ उनका मन मोह रही थीं। लेखक के मन में यह ख्याल आया कि इन बेलों की लड़ियों को उठाकर कलाई में लपेट ले। आँखों से लगा ले। लेखक को यहाँ का दृश्य इतना सुकुमार, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और निष्कलंक लगा कि उन्होंने सोचा इस धरती पर तो जूते उतारकर, पाँव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए।
(3) लेखक को ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक कैसे सूझा?
उत्तर – लेखक को ‘ठेले पर हिमालय’ जैसा खासा दिलचस्प शीर्षक बड़ी ही आसानी से सूझा था। लेखक अपने मित्रों के साथ हिम-दर्शन करने के लिए अल्मोड़ा की यात्रा पर निकले थे। एक दिन जब वे एक पान की दुकान पर अपने अल्मोड़ावासी मित्र के साथ खड़े थे कि तभी ठेले पर बरफ की सिलें लादे हुए बरफ वाला आया। ठंडी, चिकनी, चमकती बरफ से भाप उड़ रही थी। वे क्षणभर उस बरफ़ को देखते रहे, उठती हुई भाप में खोए रहे और खोए-खोए से ही बोले, “यही बरफ तो हिमालय की शोभा है।” और तत्काल शीर्षक उनके मन में कौंध गया- ठेले पर हिमालय।
IV. निम्नलिखित में संधि कीजिए-
हिम + आलय = हिमालय
सोम + ईश्वर = सोमेश्वर
हर्ष + अतिरेक – हर्षातिरेक
वि + आकुल = व्याकुल
I. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए-
अच्छी किस्मत वाला – खुशकिस्मत
चार रास्तों का समूह – चौराहा
अपने में लीन – आत्मलीन
जहाँ कोई न रहता हो – निर्जन
जिसका कोई पार न हो – अपार
जिसमें कोई कलंक न हो – निष्कलंक
II. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
पहाड़ – भूधर, पर्वत
धरती – धरा, वसुधा
मुँह – मुख, चेहरा
बादल – मेघ, वारिद
सूरज – भानु, प्रभाकर
कमल – पंकज, जलज
नदी – सरिता, तटिनी
हाथ – हस्त, कर
III. निम्नलिखित में संधि कीजिए-
हिम + आलय = हिमालय
सोम + ईश्वर = सोमेश्वर
हर्ष + अतिरेक – हर्षातिरेक
वि + आकुल = व्याकुल
1. यदि हिमालय न होता तो क्या होता? इस विषय पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – यदि भारत की भौगोलिक स्थिति में हिमालय न होता तो एक तरह से भारत के सिर का मुकुट ही न होता। दूसरी तरफ, भारत के जलवायु में भी बहुत अंतर पड़ता और भारत की वो नदियाँ जो हिमालय से निकलती हैं वो भी न होती तो सिंचाई संबंधी समस्याएँ भी होती। राजनैतिक दृष्टि से भी हमारे पड़ोसी देश यदा-कदा हम पर आक्रमण करके हमारी जमीन हथियाने की कुचेष्टा करते रहते।
2. पहाड़, बरफ, नदी, बादल, सीढ़ीनुमा खेत, घुमावदार रास्ते तथा हरियाली आदि शब्दों का प्रयोग करते हुए अपनी कल्पना से प्रकृति पर पाँच-छह पंक्तियाँ लिखें।
उत्तर – कितना सुंदर दृश्य है यह
इसमें हैं उज्ज्वल उज्ज्वल बरफ
निर्मल नदी की धारा
बादलों की हलचल
पहाड़ों की कतार
घुमावदार रास्ते
सीढ़ीनुमा खेत और हरियाली
यहाँ हमेशा रहती है प्रकृति की दिवाली
सचमुच प्रकृति है अद्वितीय और निराली।
3. हम हर पल यात्रा करते हैं, कभी पैरों से तो कभी मन के पंखों पर इस पर अपने विचार दीजिए।
उत्तर – मुझे याद है कभी किसी ने पूछा था कि सबसे तेज़ गति किसकी है और इसका उत्तर था – मन की। यह सच है कि हम हमेशा यात्रा करते रहते हैं कभी पैरों से तो कभी मन के पंखों से। पैरों से की जाने वाली यात्रा वर्तमान में होती है जबकि मन से की जाने वाली यात्रा तीनों कालों अर्थात् भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों में होती है। जो हमारे शरीर को तो वहीं रखती है पर मन को कहीं और ही लेकर चली जाती है।
- हिंदी यात्रा साहित्य के पितामह राहुल सांकृत्यायन जीवन पर्यंत दुनिया की सैर करते रहे। उनके यात्रा वृतांत लाइब्रेरी से लेकर पढ़िए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- छुट्टियों में आप घूमने जाते हो तो उस यात्रा के अनुभव को एक डायरी में लिखिए और कक्षा में बताइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- यात्रा के दौरान एक कैमरा साथ रखिए तथा प्रकृति के दुर्लभ व अद्भुत चित्रों को अपने कैमरे में कैद कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- यात्रा के दौरान कैमरे से खींचे गए चित्रों को अपने कंप्यूटर में अपलोड करना सीखिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
नैनीताल – नैनीताल भारत के उत्तराखंड राज्य का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्त्व है। ‘नैनी’ शब्द का अर्थ है आँखें और ‘ताल’ का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख नैनी झील है, जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है।
रानीखेत – रानीखेत भारत के उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के अंतर्गत एक प्रमुख पहाड़ी पर्यटन स्थल है। देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा रानीखेत बहुत ही रमणीक एक लघु हिल स्टेशन है। काठ गोदाम रेलवे स्टेशन से 85 कि. मी. की दूरी पर स्थित यह अच्छी पक्की सड़क से जुड़ा है।
अल्मोड़ा- अल्मोड़ा भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ का एक जिला है। नैनीताल से लगभग 70 कि. मी. दूर स्थित अल्मोड़ा एक रमणीक पर्यटन स्थल है। अल्मोड़ा अपनी सांस्कृतिक विरासत, हस्तकला, खानपान और वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध है।
कौसानी – कौसानी उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले से 53 कि. मी. उत्तर में स्थित है। कौसानी भारत का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्थल है। यह बागेश्वर जिला में आता है। हिमालय की खूबसूरती के दर्शन कराता कौसानी पिगनाथ चोटी पर बसा है। यहाँ से बर्फ से ढके नंदा देवी पर्वत की चोटी का नज़ारा बड़ा भव्य दिखाई देता है। कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा कौसानी भारत का स्विटज़रलैंड कहलाता है।
कोसी – अल्मोड़ा और फिर कौसानी जाते हुए साथ-साथ बहती नदी का नाम कोसी है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के पट्टी बोरारू पल्ला के प्राकृतिक झरनों से कोसी निकलती है। यह पतली दुबली नदी संकीर्ण घाटियों के घुमावदार रास्तों के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए एक यात्री को कई खूबसूरत मंजर ज़रूर दिखा देती है। कोसी पट्टी बोरारू पल्ला से दक्षिण बहती सोमेश्वर की ओर बढ़ती है और वहाँ से दक्षिण पूर्व की ओर मुड़कर अल्मोड़ा पहुँचती है। फिर अपनी दिशा कई बार बदलने के बाद रामनगर के पास ही समाप्त हो जाती है।
गोमती – गोमती उत्तर भारत में बहने वाली एक नदी है। इसका उद्गम पीलीभीत जिले में माधोटांडा के पास होता है। इसका बहाव उत्तर प्रदेश में 900 कि. मी. तक है। यह वाराणसी के निकट सैदपुर के पास गंगा में मिल जाती है।
बैजनाथ – बैजनाथ अल्मोड़ा जिला के उत्तराखंड में स्थित है। यह स्थान गोमती नदी के तट पर है। यह नागेश्वर जिले में गरुड़ के पास है। बैजनाथ में गोमती और गरुड़ गंगा बहती है। संगम के किनारे ही सन् 1150 का लगा हुआ मंदिर समूह हैं जिनमें मुख्य मंदिर भगवान शिव का है। बराबर में गोमती और गरुड़ गंगा का संगम एक छोटी सी झील का रूप ले चुका है।
ग्लेशियर (हिमानी) – पृथ्वी की सतह पर गतिशील विशाल आकार के बर्फ राशि को ग्लेशियर (हिमनद या हिमानी) कहते हैं। प्रायः यह पर्वत के ऊपर निर्मित एक हिमखंड होता है जो पिघलने पर जल देता है। हिमालय में हज़ारों छोटे बड़े हिमनद है जो लगभग 3350 वर्ग कि. मी. क्षेत्र में फैले हैं।