Sahityik Nibandh

हिंदी का निबंध – साहित्य

hindi ka nibandh Sahitya

गद्य के प्रभाव के कारण आधुनिक युग से पूर्व निबंध – साहित्य का विकास न हो सका था। नाटक, उपन्यास आदि अन्य गद्य रचनाओं की भाँति निबंध का प्रारंभ भी भारतेंदु युग में ही हुआ। इस युग के निबंध लेखकों में सर्वश्री भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रेमघन, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, लाला श्रीनिवासदास और पंडित अंबिकादत्त व्यास प्रमुख हैं। इन लेखकों ने अपने निबंधों को सर्वप्रथम पत्र – साहित्य में प्रकाशित किया। इन पत्रों में ‘हिंदी – प्रदीप’ ‘कविवचन – सुधा’, ‘आनंद- कादंबिनी’ और ‘ब्राह्मण’ मुख्य है। भारतेंदु-युग के निबंधों में विषय की दृष्टि से राजनीति, समाज-सुधार, धर्म और कुछ भाषा- संबंधी समस्याओं को विशेष रूप से अपनाया गया है। गद्य-विकास की प्रारंभिक स्थिति होने के कारण इस समय के निबंधों में वर्णनात्मकता का विशेष आग्रह रहा है। इनमें गंभीरता के स्थान पर उक्ति कौशल को भी अनेक स्थानों पर स्वीकार किया गया है। इसी कारण लेखकों ने ‘आप’ और ‘दाँत’ जैसे निबंधों की सजीवतापूर्ण रचना की है और उनमें आत्मीयता का समावेश किया है। यह सत्य है कि इस युग के निबंधों में भाषा-शैली की प्रौढ़ता के दर्शन नहीं होते और व्याकरण- विरुद्ध प्रयोगों की इनमें पर्याप्त स्थिति रही है, तथापि विषयों की सामयिक और हास्य विनोदपूर्ण चर्चा के कारण इनका विशेष महत्त्व है।

भारतेंदु-युग के निबंधकारों में बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र तथा ‘प्रेमघन’ जी ने भाषा-परिष्कार का ध्यान रखते हुए साधारणतः उत्तम निबंधों की रचना की है। पंडित प्रतापनारायण मिश्र ने स्वदेश भक्ति तथा समाज सुधार संबंधी अनेक निबंधों की रचना की है। उनके ‘वृद्ध’ तथा ‘भौं’ आदि निबंधों में व्यंग्य का भी समावेश हुआ है। पंडित बालकृष्ण भट्ट के निबंधों में भाषा की विशेष सजीवता प्राप्त होती है। उन्होंने अपनी भाषा में अंग्रेजी और फारसी के शब्दों का भी समावेश किया है। भारतेंदु-युग के उपरांत हिंदी – निबंध के विकास में द्विवेदी युग के निबंधकारों ने महत्त्वपूर्ण योग प्रदान किया। इस युग के निबंध लेखकों में पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी, बाबू बालमुकुन्द गुप्त, पंडित माधवप्रसाद मिश्र, पंडित पद्यसिंह शर्मा, श्री गोपालराम गहमरी, श्री ब्रजनंदन सहाय तथा पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी मुख्य है। इस युग के निबंधों में सामान्यतः निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ प्राप्त होती है-

(1) भाषा सुधार-

पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी ने भाषा की अशुद्धियों और व्याकरण विरुद्ध प्रयोगों का प्रबल विरोध किया। प्रत. द्विवेदी युग के निबंधों की भाषा भारतेंदु- युग की भाषा की अपेक्षा कहीं अधिक परिष्कृत है।

(2) विषय-विस्तार –

ज्ञान – विस्तार के कारण द्विवेदी युग में भारतेंदु-युग के निबंधों में स्वीकृत विषयों के अतिरिक्त इतिहास, साहित्य, दर्शन तथा पुरातत्त्व आदि नवीन विषयों को भी ग्रहण किया गया। इस प्रकार इन निबंधों में जीवन की बहुमुखी चेतना को व्यक्त करने का प्रयास किया गया है।

(3) शैली सुधार-

द्विवेदी युग में वर्णनात्मक, विवरणात्मक विचारात्मक तथा भावात्मक, सभी प्रकार के निबंधों की रचना की गई। इनमें इनके उपयुक्त व्यास शैली तथा समास शैली को यथास्थान ग्रहण किया गया है।

(4) निबन्धानुवाद –

इस युग में अन्य भाषाओं में लिखे गए गंभीर विचारात्मक निबंधों के अनुवाद की ओर ध्यान दिया गया। इस प्रकार के अनुवादों में बेकन के अंग्रेजी निबंधों तथा चापलूणकर के मराठी निबंधों के अनुवाद उल्लेखनीय है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि द्विवेदी युग में हिंदी के निबंध-साहित्य का पर्याप्त विस्तार हुआ है। इस युग के निबंध लेखकों में पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी का सबसे मुख्य स्थान है। उन्होंने मौलिक और अनूदित, दोनों प्रकार के निबंध उपस्थित किए हैं। उनके निबंध प्रायः विचार-प्रधान रहे हैं और उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त व्यवस्थित भाषा का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं व्यंग्य और विनोद का पुट देकर उन्होंने उन्हें बोझिल होने से बचाए रखा है। अपने वर्णनात्मक निबंधों में उन्होंने सरल भाषा का प्रयोग किया है। इस युग के अन्य निबंध लेखकों में पंडित माधवप्रसाद मिश्र ने ‘धृति’ और ‘क्षमा’ आदि भावात्मक निबंध लिखे हैं। इसी प्रकार बाबू ब्रजनंदनलाल ने भी सजीव और स्वाभाविक शैली में भावात्मक निबंधों की रचना की है।

द्विवेदी युग के पश्चात् हिंदी में निबंधों की व्यापक रचना की गई। इस युग में एक ओर तो निबंधों के अनेक नवीन विषय सामने आए और दूसरी और हिंदी गद्य को एक निश्चित रूप प्राप्त हो गया। अतः बाद के लेखकों ने हिंदी निबंध का यथेष्ट विस्तार किया। आगे हम द्विवेदी युग के बाद के प्रमुख निबंध लेखकों की चर्चा करेंगे।

(1) बाबू श्यामसुंदरदास –

बाबूजी ने साहित्यिक विचारात्मक निबंधों की रचना की है। उनके निबंधों में साहित्य, कला तथा मानव जीवन को सरल रीति से स्पष्ट किया गया है। उनके निबंधों में सूक्ष्म अध्ययन को विशेष स्थान प्राप्त हुआ है। उन्होंने उनमें अपने व्यक्तित्व का समावेश नहीं किया है। उनकी भाषा परि- मार्जित और स्वच्छ है। उनके निबंध- संग्रहों में ‘साहित्यिक लेख’ का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

(2) सरदार पूर्णसिंह  –

सरदार पूर्णसिंह भावुक प्रकृति के व्यक्ति थे। अतः उन्होंने आध्यात्मिक और सामाजिक विषय से लेकर भावात्मक निबंध लिखे है। उनकी भाषा स्वाभाविक है तथा शैली काव्य-गुण से युक्त है। हिंदी जगत् में उनके ‘आचरण की सभ्यता’ और ‘मजदूरी और प्रेम’ शीर्षक निबंध अत्यंत प्रसिद्ध हैं।

(3) श्राचार्य रामचंद्र शुक्ल-

शुक्लजी ने विषय प्रधान निबंधों की रचना की है, किंतु उनमें उनके व्यक्तित्व का सुंदर समावेश हुआ है। उन्होंने उनमें बुद्धि और हृदय का सुंदर समन्वय उपस्थित किया है। उन्होंने प्रमुख रूप से साहित्यिक और मनोवैज्ञानिक निबंधों की रचना की है। इस दृष्टि से उनके ‘चिन्तामणि’ नामक निबंध संग्रह के दोनों भाग पढ़ने योग्य है। उनके निबंधों में गहन अध्ययन और विश्लेषण के दर्शन होते हैं। इसी कारण उन्होंने अनेक गंभीर स्थायी महत्त्व वाले निबंध लिखे है। हिंदी के निबंध लेखकों में उनका सर्वश्रेष्ठ स्थान है।

(4) बाबू गुलाबराय –

गुलाबरायजी ने साहित्यिक, सामाजिक और दार्शनिक विषयों को लेकर निबंध लिखे हैं। उनके निबंधों में विचार-तत्त्व और भाव-तत्त्व, दोनों को ही स्थान प्राप्त हुआ है। उनकी भाषा-शैली सरल है और कहीं-कहीं उन्होंने उनमें गंभीर साहित्यिक हास्य का भी समावेश किया है।

(5) प्राचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी-

द्विवेदीजी ने विचारात्मक और गवेषणा से युक्त निबंधों की रचना की है। साहित्यिक विषयों के अतिरिक्त उन्होंने समाज, धर्म और शिक्षा आदि अन्य विषयों पर भी सुंदर निबंध लिखे हैं। इस दृष्टि से उनके अशोक के फूल’ तथा ‘विचार और वितर्क’ शीर्षक निबंध संग्रह उल्लेखनीय है। उनके निबंधों में भावुकता और बौद्धिकता का सुंदर समावेश हुआ है। भावों की दृष्टि से मौलिक होने के अतिरिक्त भाषा शैली की दृष्टि से भी उनके निबंध अत्यंत आकर्षक बन पड़े हैं।

(6) डॉ. नगेन्द्र-

नगेन्द्र जी ने साहित्यिक विषयों पर विचारात्मक निबंधों की रचना की। उनके निबंधों में गंभीर से गंभीर विचारों को भी अत्यंत स्वाभाविक रूप में उपस्थित किया गया है। शिष्ट हास्य-व्यंग्य का यथास्थान समावेश भी उनके निबंधों की एक विशेषता है। उन्होंने साहित्य की आलोचना से सम्बन्धित निबंधों में दैनिक जीवन के सम्भाषणों का समावेश कर उन्हें और भी आकर्षक बना दिया है। उनकी भाषा संस्कृतमयी है और शैली प्रवाहपूर्ण तथा पुष्ट है। उनके निबंध संग्रहों में ‘विचार और अनुभूति’, ‘विचार और विवेचन’ तथा ‘विचार और विश्लेषण’ उल्लेखनीय है।

उपर्युक्त लेखकों के अतिरिक्त सर्वश्री जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, शांतिप्रिय द्विवेदी, जैनेन्द्र, सियारामशरण गुप्त, डॉ. सत्येन्द्र तथा डॉ. रामविलास शर्मा आदि अनेक अन्य लेखकों ने भी उत्कृष्ट निबंधों की रचना की है। इन सभी लेखकों के निबंधों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी में निबंधों की रचना लगातार व्यापक दृष्टिकोण को लेकर की जा रही है। इस दृष्टि से एक ओर तो निबंध लेखकों ने साहित्य, समाज, राजनीति, धर्म तथा विज्ञान आदि विभिन्न विषयों को लेकर निबंध लिखे है और दूसरी ओर भाषा-शैली को भी प्रौढ़ आधार पर उपस्थित किया है।

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