Sahityik Nibandh

हिंदी कहानी का विकास

hindi kahani ka vikas par ek nibandh

भारतवर्ष में कहानी के प्रथम चिह्न हमें वैदिक साहित्य में उपलब्ध होते है। ऋग्वेद में प्राप्त होने वाले ‘इंद्रसूक्त’, ‘दशराज सुक्त’ और ‘यम-यमी संवाद’ इसके उत्कृष्ट प्रमाण हैं। इन कथाओं में मानव जीवन की सरल अभिव्यक्ति और रूपक के संयोजन पर विशेष ध्यान दिया गया है। वैदिक कथाओं के बाद ऐतरेय ब्राह्मण’ आदि ब्राह्मण-ग्रंथों में उस समय के सामाजिक जीवन से संबंध रखने वाली कुछ उत्कृष्ट कथाएँ मिलती है। इसी प्रकार उपनिषदों में भी दार्शनिक तत्त्वों को स्पष्ट करने के लिए कुछ कथाओं को सम्मिलित किया गया है। इनमें ‘कठोपनिषद् की यम और नचिकेता की कथा तथा ‘केनोपनिषद्’ की यक्ष- कथा विशेष उल्लेखनीय हैं।

इसके उपरांत हमारे समक्ष महाभारत की कहानियाँ आती हैं। इनमें उस समय के जन-जीवन और दार्शनिक विचारधारा को सरल और स्वच्छ रूप में व्यक्त किया गया है। इसी समय पुराणों में प्राप्त होने वाली सामाजिक, ऐतिहासिक काल्पनिक और शिक्षाप्रद कहानियों की रचना की गई। कुछ समय पश्चात् बौद्धों ने अपनी प्रसिद्ध जातक कथाओं की रचना की। इनमें महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की घटनाओं का वर्णन किया गया है। इनके द्वारा हमें नैतिक और धार्मिक सजगता की प्राप्ति होती है। इन कथाओं में कुछ प्रासंगिक कथाओं का भी समावेश हुआ है। ये बौद्धकालीन भारत का स्पष्ट चित्रण करती है।

जातक कथाओं की भाँति ‘पंचतंत्र’ और ‘हितोपदेश’ की कथाएँ भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती है। इन कथाओ में आदर्शवादी दृष्टिकोण को अपनाया गया है। ये पाठक को चरित्र बल प्रदान करने वाली है। इनके अतिरिक्त ‘वृहत्कथा’, ‘कथा – सरित्सागर’, ‘शुकपंचविशति’ और ‘बेतालपंचविशति’ आदि ग्रंथों में भी उत्कृष्ट कथाएँ मिलती है। इस प्रकार हमने देखा कि संस्कृत में कथा-साहित्य की एक निश्चित और सुदृढ़ परंपरा है। आगे चलकर प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के कथा-साहित्य में इस परंपरा को साहित्यिक और लौकिक, दो प्रकार की कथाओं के सृजन द्वारा इसी रूप में विकासमग्न रखा गया है।

इस पृष्ठभूमि के उपरांत हिंदी के कथा-साहित्य की प्रगति पर दृष्टिपात कर लेना आवश्यक हो जाता है। हिंदी साहित्य में कहानी का प्रारंभ काफी विलंब से हुआ। इस दिशा में हमें सर्वप्रथम रचना सैयद इंशा अल्ला खाँ की ‘रानी केतकी की कहानी’ मिलती है। इसकी रचना सम्वत् 1860 के लगभग हुई थी और भाषा तथा भाव, दोनों ही की दृष्टि से यह हमारे समक्ष एक मौलिक रूप उपस्थित करती है। इसके उपरांत हमारे समक्ष राजा शिवप्रसाद ‘सितारेहिन्द’ की ‘राजा भोज का सपना’ और भारतेंदु हरिश्चंद्र की एक अद्भुत और अपूर्व ‘स्वप्न’ शीर्षक रचनाएँ प्राती है, किंतु हिंदी की प्रथम उल्लेखनीय कहानी श्री किशोरीलाल गोस्वामी की ‘इन्दुमती’ है। कुछ समय पश्चात् श्री रामचंद्र शुक्ल की, ‘ग्यारह वर्ष का समय’ और ‘बंग महिला’ की ‘दुलाई वाली’ शीर्षक कहानियाँ प्रकाशित हुई। इस प्रकार हिंदी कहानी का निश्चित सूत्रपात हो गया। आगे हम हिंदी के प्रारंभिक प्रमुख कहानी लेखकों की कहानी – कला की चर्चा करेंगे।

(1) प्रेमचंद –

मुंशी प्रेमचंद हिंदी कहानी के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने हिंदी में अनेक श्रेष्ठ सामाजिक, राजनैतिक और ग्राम-जीवन से संबंधित कहानियों की रचना की है। उनकी कहानियों का संग्रह उनकी आठ भागों में प्रकाशित ‘मानसरोवर’ नामक रचना में हुआ है। उनसे पूर्व हिंदी का कथा- साहित्य बिखरी हुई अवस्था में था। उन्होंने सौ से अधिक मौलिक कहानियों की रचना द्वारा उसे एक निश्चित गति प्रदान की। इस प्रकार उन्होंने भविष्य के कथा-लेखकों के लिए अनेक नवीन विषय उपस्थित कर दिए। उनकी भाषा- शैली सरल और स्वाभाविक है और उनकी कहानियों में बनावट को स्थान नहीं मिला है।

(2) जयशंकर प्रसाद-

प्रसादजी ने भारतीय इतिहास और संस्कृति को लेकर हिंदी में कुछ मौलिक कहानियों की रचना की है। वह कवि थे अतः उनकी कहानियों पर भी कविता की छाप रही है। संक्षिप्त और प्रभावपूर्ण कहानियों की रचना करने में वह कुशल थे। उनकी कहानियों की भाषा ‘साहित्यिक हिंदी’ है और कहीं-कहीं वह कठिन भी हो गई है। उनके ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इंद्र- जाल’ नामक कहानी-संग्रह प्राप्त होते हैं।

(3) चंद्रधर शर्मा गुलेरी-

गुलेरीजी ने अपनी कहानियों में कहानी के सभी तत्त्वों का सुंदर समावेश किया है। उनका दृष्टिकोण यथार्थवादी रहा है। यद्यपि उन्होंने हिंदी में अधिक कहानियाँ नहीं लिखी है, किंतु फिर भी कहानी-लेखकों में उनका अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका कारण यह है कि उन्होंने अपनी कहानियों में मार्मिकता और स्वाभाविकता के समावेश का लगातार ध्यान रखा है। इस दृष्टि से उनकी ‘उसने कहा था’ शीर्षक कहानी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

(4) विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक-

कौशिकजी ने अपनी कहानियों में परिवार में घटित होने वाली घटनाओं का चित्रण किया है। उनकी शैली स्वाभाविक है और उन्होंने अपनी कहानियों को आदर्शवादी दृष्टिकोण के अनुसार उपस्थित किया है। उनकी भाषा सरल है और शैली के प्रवाह को लगातार बनाए रखा गया है।

प्रेमचंद-युग के अन्य लेखकों में श्री जी. पी. श्रीवास्तव की कहानियों में हास्यरस को स्थान प्राप्त हुआ है। किन्हीं विशेष परिस्थितियों के कारण उत्पन्न स्थूल हास्य को उपस्थित करने में वह अत्यंत कुशल है। इस समय के ही एक अन्य कहानीकार राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह ने सामाजिक कहानियों को सुंदर रूप में उपस्थित किया है।

ऐतिहासिक कहानियाँ

हिंदी में ऐतिहासिक कहानियों के क्षेत्र में बाबू वृन्दावनलाल वर्मा ने सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने इतिहास की अनेक प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध घटनाओं को लेकर सुंदर और भावपूर्ण कहानियों की रचना की है। उनके अतिरिक्त श्री राहुल सांकृत्यायन ने भी अनेक खोजपूर्ण ऐतिहासिक कहानियों की रचना की है। उनकी कहानियों में सृष्टि के प्रारंभ की स्थितियों का भी सजीव वर्णन प्राप्त होता है। इस दृष्टि से उनका ‘वोल्गा से गंगा’ शीर्षक कहानी-संग्रह पढ़ने योग्य है। श्रीयुत शिवपूजन सहाय की कुछ कहानियाँ भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर ही लिखी गई है। इनके अतिरिक्त प्राचार्यं चतुरसेन शास्त्री, सुश्री विमला देवी आदि कुछ अन्य लेखकों ने भी इस ओर विशेष रुचि दिखाई है।

मनोवैज्ञानिक कहानियाँ

इस प्रकार की कहानियाँ प्रायः सामाजिक जीवन से संबंधित रहती हैं। इनमें मनोविज्ञान का विशेष रूप से आधार लिया जाता है। इस दृष्टि से सर्वश्री जैनेन्द्र कुमार, ‘अज्ञेय’ और इलाचंद्र जोशी की कहानियों में मन की उलझी हुई ग्रन्थियों को मनोविज्ञान की सहायता से सुलझाने का सुंदर प्रयत्न किया गया है। मानव मन के सहज विकास को उपस्थित करने के कारण ये कहानियाँ अत्यंत सुंदर बन पड़ी है। इसी प्रकार श्री भगवतीचरण वर्मा और श्री सियारामशरण गुप्त ने भी अपनी कहानियों में मनोविज्ञान और चरित्र- चित्रण को मिलाकर उपस्थित किया है। उनकी कहानियों में भावों की सरलता और स्पष्टता का श्रेष्ठ निर्वाह किया गया है।

प्रगतिवादी कहानियाँ

वर्तमान युग में साम्यवादी दृष्टिकोण को लेकर अनेक लेखकों ने प्रगतिवादी कहानियों की भी रचना की है। इस प्रकार की कहानियाँ लिखने वालों में सर्वश्री यशपाल, रांगेय राघव, धर्मवीर ‘भारती’, मन्मथनाथ गुप्त और कृष्णचंद्र मुख्य हैं। इस प्रकार की कहानियाँ जन जीवन का अत्यंत निकट से चित्रण करती हैं। इनमें मजदूरो के हितों की रक्षा की ओर सबसे अधिक ध्यान दिया गया है। इनमें से कुछ कहानियाँ तो गरीबी और अभावों का चित्रण करने के कारण अत्यन्त ही प्रभावशाली बन पड़ी हैं। कुछ कहानियों में सरकार और पूँजीपतियों की बुराई करने में आवश्यकता से अधिक उग्रता का सहारा लिया गया है। इससे लेखकों के दृष्टिकोण में संतुलन की कमी का आभास मिलता है।

उपसंहार

वर्तमान युग में कहानियों की प्रगति मुख्य रूप से पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कथा – साहित्य द्वारा हो रही है। हिंदी में कहानी संग्रह उपस्थित करने वाली पुस्तकों का प्रकाशन अब लगभग बंद हो गया है। अतः, हिंदी की श्रेष्ठ. कहानियाँ अब प्राय: पत्रिकाओं में झलक दिखाने के बाद फिर दिखाई नहीं देतीं। कहानी- साहित्य की प्रगति में आज सबसे बड़ी बाधा यही है। पत्र- पत्रिकाओं में कहानियों की अधिकता के कारण एक ओर जहाँ अनेक विषयों को लेकर कहानियाँ लिखी गई हैं वहाँ दूसरी ओर अनेक ऐसी कहानियाँ भी लिखी गई है, जिनका उद्देश्य केवल सस्ता मनोरंजन प्रदान करना होता है। इस प्रकार की कहानियों का कुछ भी स्थायी मूल्य नहीं होता।

पिछले दस-पंद्रह वर्षों में हिंदी के कहानीकारों ने राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र आदि अनेक नवीन विषयों को लेकर कहानियाँ लिखी हैं। इस समय साहित्य के अन्य अंगों को लिखने वालों की अपेक्षा हिंदी में कहानियों के लेखक अधिक है। इस दृष्टि से श्री भगवतीप्रसाद वाजपेयी, पहाड़ी, ‘अंचल’, विष्णु प्रभाकर, देवीप्रसाद धवन, ख्वाजा अहमद अब्बास आदि अनेक लेखकों ने सुंदर और महत्त्वपूर्ण कहानियाँ लिखी है। कहानी- रचना के क्षेत्र में महिलाओं ने भी उल्लेखनीय प्रगति की है और श्रीमती शिवरानी देवी, होमवती, कमला चौधरी, सत्यवती मल्लिक तथा उषादेवी मित्रा ने अनेक सुंदर पारिवारिक कहानियाँ लिखी है। इस समय लघु कथाएँ लिखने की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। इस दृष्टि से श्री धर्मवीर ‘भारती’ और श्री रावी की कहानियाँ अत्यंत सुंदर बन पड़ी है।

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