Sahityik Nibandh

हिंदू धर्मं और उसके धर्म ग्रंथ

hindu dharm aur dharmgranth par ek hindi laghu nibandh

वर्तमान हिंदू धर्म प्राचीन आर्यत्व का अवशेष है। जिस समय में आर्य आए तो यहाँ पर द्राविड़ लोग रहते थे। आर्यों ने उनमें कुछ को तो अपना दास बनाकर शूद्र नामकरण कर दिया और उनमें से कुछ दक्षिण भारत को भाग गए। उत्तर भारत पर आर्यों का धीरे-धीरे साम्राज्य स्थापित हो गया और आर्य-धर्म भारत का प्रधान धर्म बन गया।

आर्य ऋषि-मुनियों ने अपने धर्म ग्रंथों का निर्माण किया। वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण, उपपुराण इत्यादि आयों के प्रधान ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गए। इनके अतिरिक्त गीता, ब्राह्मण-ग्रंथ तंत्र ग्रंथ, शठ-दर्शन और उनकी टीकाएँ इत्यादि भी बहुत से ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों में रामायण, महाभारत और पुराणों को छोड़कर शेष ग्रंथों में कर्म-कांड और आध्यात्मिक चिंतन दिया गया है।

मध्य युग में आकर यही आर्य धर्म हिंदू धर्म कहलाया और इसमें अनेकों प्रकार के विचारक जन्म लेकर आए। अनेकों बादों का हिंदू धर्म में उदय हुआ। नये-नये आचार्यों ने अपने नये-नये दृष्टिकोण जनता के सामने रखे और धर्म भी विविध धाराओं में बहने लगा। एकेश्वरवाद, सर्वेश्वरवाद, अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैत बाद यह प्रधान प्रवृत्तियाँ धर्म के क्षेत्र में आ गई। इस प्रकार आर्यों की प्राचीन और नवीन अनेकों धार्मिक प्रवृत्तियों के साथ अनेकों ग्रंथ लिखे गए परंतु जिन्हें हिंदुओं के प्रतीक धर्म ग्रंथ कह सकते हैं वह केवल रामायण, महाभारत और पुराण ही हैं। हिंदुओं के धार्मिक विश्वासों का संबंध केवल इन्ही ग्रंथों से हैं।

हिंदू शब्द आर्यों को मुसलमानों ने दिया, जिसका अर्थ ‘काफिर’ है। यह अपमानसूचक शब्द है परंतु धीरे-धीरे रूढ़ि हो गया और व्यापक भी। इसी शब्द के आधार पर हमारा धर्म हिंदू-धर्मं हुआ। जिस समय से इस धर्म और संस्कृति के साथ हिंदू शब्द का सम्मिलन हुआ है उस समय से इस धर्म का ढाँचा इतना सुदृढ़ बना दिया था कि घोर आपत्ति काल में भी धर्म की बराबर रक्षा होती रही और धर्म-वीरों ने प्राणों की आहुतियाँ समय-समय पर दे देकर भी धर्म की रक्षा की हिंदू धर्म के लालों ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हँसने-हँसते बलिदान दिए हैं। गुरु गोविंदसिंह के बच्चे, बन्दा वैरागी, हकीकत-राय, स्वामी श्रद्धानंद इत्यादि के अमर बलिदान हिंदू धर्म के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखे हुए हैं। उनकी अमर कहानियाँ आज भी धर्मपरायण शिक्षित नारियाँ अपने बच्चों को सुनाकर उनमें धार्मिक भावनाओं का समावेश करती हैं।

हिंदू धर्म चार प्रधान वर्णों में विभाजित है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। प्रारंभ में इन चारों वर्णों का निर्माण जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधार पर हुआ था; परंतु धीरे-धीरे धर्म में विचारकों का स्थान कर्म-काण्डी रूढ़िवादियों ने ले लिया और कर्म का स्थान भी जन्म ने लेना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे इन चार वर्गों का भी विभाजन होना प्रारंभ हो गया और हिंदुओं में अनेकों जातियों का उदय हुआ। अनेकों प्रकार के ब्राह्मण बन गए, अनेकों प्रकार के वैश्य हो गए और इसी प्रकार शूद्रों में भी विभाजन हो गया। हिंदू धर्म के साथ-ही-साथ हमें भारत में कुछ अर्ध हिंदू जातियाँ भी मिलती हैं जिन्हें हम भुलाकर नहीं चल सकते। उदाहरण के लिए सिख संप्रदाय और जैनियों को हो ले सकते हैं। इनके धर्म ग्रंथ पृथक् अवश्य हैं परंतु रीति-रिवाजों में यह हिंदुओं की भाँति गौ-रक्षा करना अपना धर्म समझते हैं, हिंदू त्योहारों को मानते हैं।

हिंदू धर्म में जातियों का उदय हुआ। इससे समाज और धर्म छिन्न-भिन्न होता गया। जाति-विद्वेष की मात्रा बढ़ी और पारस्परिक घृणा को प्रश्रय मिला। जाति के उत्थान में यह सहायक न होकर बाधक हुई। अमानुषिक प्रवृत्तियाँ इन में जागृत हो गई और मानवता तथा सभ्यता का धीरे-धीरे हास होने लगा। जाति प्रथा का एक लाभ अवश्य हुआ कि इसने किसी-न-किसी रूप में आर्यत्व की शुद्ध रक्तता को स्थायी रखने में सहायता दी।

हिंदू धर्मं आज तक जीवित है तो किस आधार पर? केवल अपने धर्म-ग्रंथों के आधार पर वह जीवित है। इन्हीं ग्रंथों ने धर्म को जीवन प्रदान किया है और हिंदू संस्कृति को धर्म की छाती के रूप में सुरक्षित रखा है। यों जितने भी ग्रंथ हम ऊपर गिना चुके हैं सभी महत्त्वपूर्ण हैं परंतु यहाँ हम विशेष रूप रामायण और महाभारत की कथाओं पर विचार करेंगे, क्योंकि संस्कृति ग्रंथ धीरे-धीरे केवल पंडितों का धन बन गए और साधारण जनता का उन तक पहुँचना असंभव हो गया। जनता ने गीता से रामायण और महाभारतकी कथाओं पर ही संतोष किया और जो इनसे बढ़े उन्होंने पुराणों तक अपनी पहुँच की। इससे अधिक नहीं।

रामायण-

रामायण की रचना महाकवि वाल्मीकि ने की और गोस्वामी तुलसीदास ने उसको भाषा में लिखा। तुलसीकृत रामायण ने जनता में वह सम्मान प्राप्त किया जो संभवतः आर्यों के आदि काल में वेदों ने प्राप्त किया होगा।आज रामचरितमानस हिंदू धर्म का प्राण है। रामायण आपत्ति काल में सुदृढ़ रहना सिखाती है और कर्तव्य परायणता तो उसमें कूट-कूट कर भरी है। रामायण में राम-राज्य का इतना सुंदर चित्र संसार के सामने रखा है कि आज के युग का महान राजनीतिज्ञ गांधी भी उससे प्रभावित हुआ और उसने भारत का कल्याण भविष्य में राम राज्यकी स्थापना में ही सोचा रामायण, व्यक्ति के लिए है, समाज के लिए है, धर्म के लिए है और देश के लिए है। रामायण में जितनी प्रवृत्तियाँ मिलती हैं वह सभी व्यापक हैं, सब काल के लिए हैं। जीवन की साधारण प्रवृत्तियों में कभी कोई अंतर नहीं होता।

महाभारत-गीता-

गीता हिंदू धर्म का वह महान उपदेश है कि जिसका सम्मान न केवल भारतवर्ष में ही वरन् अन्य देशों में उसे बड़े चाव से पढ़ा जाता है। लोकमान्य तिलक ने गीता के ही आदेश पर चलकर भारत में असहयोग आंदोलन को जन्म दिया और बाद में महात्मा गांधी ने उसे अपनाया। गीता का महान उपदेश कवि दिनकर द्वारा लिखित-

अधिकार खोकर बैठ रहना यह महादुष्कर्म है।

न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है।

इसी बात को लेकर लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद से टक्कर ली और भारत को स्वतंत्र कराया। हिंदू-धर्म-ग्रंथों में कितनी महान शक्ति है इससे हम इसका अनुमान कर सकते हैं। हिंदू-धर्म-ग्रंथ हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति के प्रतीक हैं, जीवन हैं, और इन्हीं के बल पर वह युग-युग तक अपने को स्थायी रख सकेगा।

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